गुस्ताखी माफ
सुमन शर्मा
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आप सादर आमंंंंंंऩ्ित्रत हैं
आजकल शादियों में एक से बढ कर एक दिखावा करने का प्रचलऩ, इस प्रकार अपने पॉव
पसार रहा है, कि शादियों में अजीबो गरीब नजारे दिखलाई देते हैं। ऐसा ही एक शादी का नजारा प्रस्तुत है।
पेशे से उदघोषिका अदिति की शादी का दृश्य। अदिति की सखियाँ भी इसी पेशे में हैं। अदिति पर पेशे का भूत इस तरह छाया हुआ है कि उसने शादी के पंडाल में यहाँ—वहाँ उदघोषक मंच बना दिए। अओ देखें वहाँ क्या हो रहा है
पंडाल में यहाँ—वहाँ अतिथि घूम रहे थे। बारात की प्रतीक्षा हो रही थी। एक सखी ने माईक लेकर उद्घोषना करनी प्रारम्भ की
अतिथिगण कृप्या घ्यान दें। बारात अपने निर्घारित समय से एक घंटा पाँच मिनिट बिलम्ब से चल रही है। आपका सहयोग अपेक्षित है। बारातियों के लिए आरक्षित सिटों पर न बैठें और बारात परिसर में गंदगीं न फैलाएँ।
शगुन धनराशि का लिफाफा केवल संबंधित व्यक्ति को ही दें। शगुन धन राशि देने से पहले ये सुनिश्चित कर लें, कि कोई भी नोट, सन 2004 से पुराना न हों
भाजी का डिब्बा केवल उन्हीं व्यक्त्यिों व परिवारों को दिया जाएगा जिन्होने पाँच सौ रुपए या उससे अघिक की शुगन राशि दी है। इससे कम शगुन राशि देने वालों का भाजी के डिब्बे के लिए कोई भी दावा बिना कारण बताए रद्द कर दिया जाएगा।
दूसरी सखी ने बारात को आते देखा और वह माईक पर बोली
बारात विवाह स्थल से केवल एक किलोमीटर दूर है, अतिथिगण बारात का स्वागत करने के लिए मुख्य द्वार की ओर प्रस्थान करें। अतिथितों से निवेदन है कि वह दूल्हा दुल्हन के मार्ग में बाँधा उत्पन्न न करें। ऐसा करना दंडनीय अपराध है। दुल्हा—दुल्हन को उपहार देने से पहले उसकी सुरक्षा जाुच अवश्य करवाएँ।
बरात आने पर अन्य सखी ने माईक का कार्यभार संभाला
कृप्या ध्यान दें—— बारातियों को पहले भोजन करने का अवसर प्रदान करें।
समय और धन की बचत के लिए केवल एक प्लेट व एक चम्मच का ही प्रयोग करें। घरातिओं के लिए फीडर बस सेवा विवाह स्थल से, दुल्हन के घर तक उपलब्ध है। इस सेवा का लाभ उठाएं।
जीजा अपने जूतों का स्वयं घ्यान रखें व जेबकतरियों से सावधान रहें।
फेरों के लिए बनाए गए परिसर में न घुसे और न ही सजावट के लिए लगाए गए फूलों को नोचें।
स्टेज पर फ़ोटो खींचवाने के लिए, पंक्ति में आए, तथा पहले से स्टेज पर चढ़े हुए मेहमानों के उतरने के बाद ही, स्टेज पर चढ़ें।
उधर दुल्हा और दुल्हन के अभिभावकों के बीच दहेज को लेकर बहस छिड़ जाती है। दुल्हन शादी से इन्कार कर देती है। उसकी सखी फिर माईक संभालती है ———कृप्या ध्यान दें
किन्ही गंभीर कारणों से यह शादी यहीं रद्द की जाती है। आप सब अपने घरों कि ओर प्रस्थान करें, तथा हमारी अगली सूचना की प्रतीक्षा करें। धन्यवाद।
सुमन शर्मा
शूर्पनखा की वापिसी
कहीं दूर ,सुना है एक लोक है, जहाँ त्रेता युग में धरती पर जन्म लेने वाली शूर्पनखा उदास चिट बैठी है। ये तो आप सभी जानते होंगे कि शूर्पणखा का असली नाम मीनाक्षी था।
वह अपनी माँ ‘कैकसी'' की गोद में सिर रखकर रो रही है। कैकसी उसके बालों में हाथ फेरते हुए कह रही है, ‘बेटी ! मीनाक्षी, मत रो। तू बहुत अभागी है, जो तू त्रेतायुग में पैदा हुई, तू यदि कलियुग में पैदा होती, तो आज तू, लोगों की घृणा का पात्र नहीं बनती।
षूर्पनखा अपनी आँखों से आँसू पोंछते हुए कहती है, ‘ क्या तुम सच कह रही हो , माँ? कैकसी उसे ढाँढस बँधाते हुए कहती है, हाँ बेटी! षायद कलियुग में तूझे सम्मान की दृश्टि से भी देखा जाता। कैकसी, रुपवती मीनाक्षी का हाथ थाम कर एक कमरे की ओर ले जाती है और वहाँ लगे, प्लाज़्मा स्क्रीन पर दोनों हाथ फैरती है।
प्लाज़्मा पर दृष्य उभरने लगते हैं। समाचार वाचिका समाचार पढ़ रही है— आज भी संसद के दोनों सदनों की बैठक, विपक्ष द्वारा किए जा रहे हँगामें के कारण रद्द करनी पड़ी। विपक्ष ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा, ‘मीनाक्षी पर बेरहमी से हमला करने वाले अपराधी राम और लक्ष्मण अभी भी पुलिस के हाथ नही आए हैंं । जब तक दोनों अपराधी सलाखों के पीछे नहीं चले जाते , तब तक संसद की कार्यवाही नहीं होने दी जाएगी। समावार वाचिका दर्षकों को संंबोधित करते हुए कहती है, हम आप को बताते हैं, आखिर मीनाक्षी की कहानि क्या है, मीनाक्षी लंका नरेष रावण की बहिन है। लंका नरेष के द्वारा अपने पति ‘दुश्टबुद्धि' के मारे जाने का दर्द भूलाने के लिए मीनाक्षी अक्सर, दक्षिण भारत में अपने रिष्तेदारों के घर आया— जाया करती थी। फ़ैषन पसंद लड़कियों की तरह, मीनाक्षी को भी लम्बे नाखून रखने का षौक था। कुछ मनचले ऋशि— मुनियों ने लम्बे नाखूनों के कारण उसका नाम षूर्पनखा रख दिया।
यह सुन कर मीनाक्षी अपनी माँ से लिपट कर रोने लगती है। माँ कैकसी ने कहा, रो मत बेटी! क्लियुग में तो लंंंंंंंंम्बे नाखूनों और खुले बालों वाली अनेक षूर्पनखा हैं।
षूर्पनखा ने फिर से प्लाज़्मा टी वी की ओर देखना षुरु कर दिया। समाचार वाचिका कह रही थी, ‘मीनाक्षी का अपराध केवल इतना था कि, उसने विधवा होने के कारण, राम के साथ विवाह करने की इच्छा जाहिर कर दी।राम ने जब मीनाक्षी को बताया किए वह विवाहित है,सीता उसकी धर्मपत्नी है और वह दूसरा विवाह नहीं कर सकते, जबकि लक्ष्मण अविवाहित है। तब, मीनाक्षी ने राम को छोड़कर, लक्ष्मण के प्रति अपनी रुचि प्रकट की। लक्ष्मण के इन्कार करने पर मीनाक्षी ने अपनी फ्रसट्ैषन सीता पर निकालने की कोषिष की तो लक्ष्मण ने बेरहमी से उसकी नाक काट दीं।
षूर्पनखा ने आगे देखा, अनेक महिला संस्थाएँ धरना एवं प्रदर्षन कर रही हैं। बुदि्धीजीवियों को टी वी स्टूडियों में आमंत्रित किया गया ह।ै उनसे सवाल किए जा रहे हैं। महिला पत्रकार नुक्कड़—नुक्कड़़ पर जाकर लोगों के विचार जान रही है और उन सब के विचार टी वी के माध्यम से अन्य लोगों तक पहुँचाए जा रहे हैं।
महिला प़़़़़़त्रकार ज़ोर ज़ोर से च़़़िल्लाकर कह रही है, क्या एक महिला को यह अधिकार नहीं है, कि वह अपने पति की मृत्यु के बाद दूसरा विवाह करे? क्या इस समाज में सारे अधिकार पुरूशों को ही प्राप्त है? क्या अपने प्रेम का इज़हार करने वाली महिला को इतनी बेरहमी से पीटा जाना चाहिए? राम और लक्ष्मण ने न केवल मीनाक्षी का परिहास किया, अपितु उसे जीवन भर के लिए एक बदसूरत निषान भी दे दिया। राम और लक्ष्मण को हिरासत में लेने के लिए धरने एवं ़प्रदर्षन करने वाली भीड़ ने उग्र रुप ले लिया। वाहनों पर पथराव व आगजनी की घटनाए जा़ेर पकड़ने लगीं। लोगों का इतना आक्राोष देखकर प्रषासन पर दबाव बढ़ा। राम व लक्ष्मया पुलिस हिरासत में ले लिए गए। षूर्पनखा हतभ्रत सी कैकसी की ओर देखती है।
कैकसी स्क्रीन पर हाथ घुमाकर अगला दृष्य प्रस्तुत करती है, षूर्पनखा के साथ घटी घटना पर नुक्कड़ नाटक किए जा रहे हैं। राम और लक्ष्मण पर मुकदमा चलाया जा रहा है । वकील ने षूर्पनखा से कहा, ‘मैडम! आप मीडिया के किसी भी सवाल का जवाब स्वयं न दें।' षाूर्पनखा का बोलने के लिए मन तड़प रहा था, लेकिन वह चुप रहने के लिए मज़बूर थी।
.खचाखच भरी कचहरी में राम —लक्ष्मण पर मुकदमा षुरु हो जाता है। षूर्पनखा का वकील ज़ोर से चिल्लाकर कह रहा है, ‘माईलॉड मेरी मुवक्किल षूर्पनखा अपने भाई खर से मिलने, जंगल के रास्ते दक्षिण भारत जा रही थी। वहाँ अपने देष, अयोध्या से तड़ी पार भेजे गए राम —लक्ष्मण भ्रमण कर रहे थे। एक निहती अबला को अकेला देखकर दोनों उससे के साथ दुर्व्यवहार करने लगे।
माई लॉड ! मेरी मुवक्किल ने जब स्वयं को बचाने की कोषिष की तो लक्ष्मण ने उसकी नाक पर तेज़ तलवार से वार कर दिया। ऐसे मुजरिमो को कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए और मीनाक्षी की सरकारी ख़र्च पर प्लास्टिक सर्जरी होनी चाहिए। माई लॉड!' जज साहिब ने ऑडर ऑडर कहकर मुक्द्में की तरीख एक महीना आगे बढ़ा दी ।
षूर्पनखा ने कैकसी से कहा, ‘माँ! यह सब झूठ है। मैं तो सीता के सौन्दर्य और राम—लक्ष्मण की षक्ति को जानने के लिए उनसे पंगा ले रही थी। षूर्पनखा अपनी भाशा पर षर्मिन्दा होते हुए कहती है, ‘मेरी जुबान भी कलियुगीन हो गई। माँ! मैंने ही रावण को सीता का हरण करने का परामर्ष दिया था। मैं रावण से तुम्हारे दामाद के वध का बदला लेना चाहती थी। मैं जान गई थी रावण को केवल राम ही पराजित कर सकता है।
कैकसी ने कहा, ‘बस चुप हो जा। तेरे सच या झूठ का फैसला करने के लिए तीन सदस्य दल गठित हो चुका है। वह इस गुत्थी को कभी नहीं सुलझा पाएँगे।
कैकसी ने कलियुग की नारियों को संबोधित करते हुए कहा, ‘तुम मेरी बेटी की पर्सनेलटी से बहुत प्रभावित हो, तभी तो वह तुम्हारे बाहरी व आंतरिक रुप में विधमान है। तुम बार —बार यह भी दोहराती हो कि हमें सीता नहीं बनना। तो जागो। मेरी बेटी के नाम से कम से कम एक ‘डाक—टिकिट' ही निकलवा दो। जान लो यह तुम्हारा ही प्रतिबिम्ब है। मीनाक्षी यह सब सुनकर बोली माँ, र्ब्ह्मा जी से विनती कर मुझे कलयुग में धरती पर वापिस भेज दो।
सुमन शर्मा
पधारो म्हारे देस
दिसम्बर की ठिठुरती ठंड थी। कोहरे की चादर में लिपटी एक सुबह, हम सपरिवार जयपुर के लिए रवाना हुए। हम सड़़क के रास्ते जयपुर जा रहे थे। दिल्ली की सीमा पार करने के बाद पहले हरियाणा के कुछ छोटे व बड़े कस्बे आए और फिर राजस्थान की सीमा आ गई। घर से हम सुबह बहुत जल्दी निकल गए थे। हाई वे पर हमने कुछ नाश्ता करने का निर्णय किया। कार को एक ढाबे के सामने रोका।
ढाबे के सामने कच्ची मिटटी पर पानी का छिड़काव किया हुआ था। हम सब उतर कर ढाबे में रखी प्लास्टिक की कुर्सियों पर बैठ गए। ठंड से बदन कंपकंपा रहा था। लकड़ी की मेज़ पर इस ठंड में मक्खियाँ भिन्न—भिन्ना रहीं थींं। तभी तेरह चौदह साल का एक बालक मैले कुचले कपड़े पहने वहाँ आता है और मेज़ पर कपड़ा घुमाता है। हमने उससे पूछा खाने में क्या है? वह बोला, ‘‘सब कुछ।'' बताता है,‘‘शाही पनीर, दालफा्रई, दाल तड़का, आलू का परांठा, रायता। हमने आपस में सलाह करके तय किया । उसे शाही पनीर व परांठा लाने के लिए कहा। वह वहाँ से चला गया।
थोड़ी देर बाद वापिस आया और बोला,‘‘पनीर तो नाहींं है जी। कुछ और ले लो जी।'' हमने कहा, ‘‘दालफा्रई ले आओ'' कोयले का घुँआ हौले—हौले अंंगीठी से निकल रहा था। दाल उबलने की खुशबू चारों ओर फैल रही थी।वह थोड़ी देर बाद फिर वापिस आता है। कहता है,‘‘अभी लड़का बाज़ार गया है, टमाटर लेने ,वो वापिस आया ना हैजी।'' हम निराश निगाहों से उसकी ओर निहारतें हैं। वह कहता है, ‘‘दाल तड़का ले लो। बड़ी मसालेदार है जी।'' दाल तड़का? चलो ठीक है। हमने दाल तड़का के लिए हामी भर दी। वह मेज़ पर कुछ पानी के गिलास व पानी का जग रख गया। हमारी भूख और अघिक बढ़ गई। हमारी निगाहें दाल तड़का और परांठे का दीदार करने के लिए मेज़ पर बिछ गईं।
लड़का जिसे सब छोटू कह कर पुकार रहे थे फिर से मुड़ कर हमारी और आया और बोला,‘‘ दाल बनने में थोड़ा टैम लगेगा जी कुछ और ले लीजिए।'' हमने आपस में बात—चीत कर चाय पीना तय किया। हमने उससे पूछा,‘‘चाय मिल जाएगी?''उसने बड़े विश्वास के साथ सिर हिलाया,‘‘हाँ जी चाय तो जरुर मिल जाएगी।'' ‘‘चाय के साथ क्या मिल सकता है?''हमारा सवाल था। ‘‘ ‘‘टोस्ट मिल जाएगा जी।'' उसके इस विश्वासपूर्ण जवाब से हमारे मुहँ में पानी आ गया। कुछ खाने की इच्छा से हमारी आँखें फिर से मेज़ पर टिक गईं। गर्मा— गर्म चाय का प्याला थामने के लिए हमारे हाथ मचलने लगे। वह फिर वापिस मुड़ कर आया। हमारी निगाहें उसके चेहरे पर टिक गईं। एक बार और ‘ना है जी' सुनने की हमारे भीतर शक्ति न थी। हमने पूछा अब क्या हुआ ‘‘क्या बिल्ली दूध पी गई? या फिर चाय पती खत्म हो गई?'' वह बतीसी चमकाता हुआ बोला, ‘‘ना जी दूध तो सही सलामत है। चाय की पती का भी डिब्बा भरा हुआ है।'' हमने उसके हाथों की ओर देखकर पूछा, ‘‘तो चाय कहाँ है?'' वह बोला, ‘‘जो लड़का चाय बनाता है, वो अभी ना आया जी। बस आता ही होगा।''
अब तो पानी सिर से उफपर हो चुका अब हम यहाँ नहीं ठहर सकते । हम सब बाहर की ओर चल दिए। बाहर खाट पर एक अघेड़ उम्र का व्यक्ति जयपुरी रजाई में पड़ा—पड़ा सुस्ता रहा था। हमें वापिस जाते देखकर वह पूछने लगा, ‘‘काईं हो गयो? वापिस काईं जा रिया हो?'' हमने कहा, ‘‘यहाँ तो कुछ तैयार ही नहीं है।'' उसने बेफिक्री से पूछा,‘‘ टैम ;टाईमद्ध क्या हुआ है? हमने कहा,‘‘पौने आठ बजे हैं।''
वह बोला,‘‘थोड़ी देर और ठहर जाओ होटल खुलने का टैम ;टाईमद्ध नौ बजे का है।'' हमने मन ही मन सोचा पहले ही टाईम पता चल जाता तो हमारा टैम ;समयद्ध बर्बाद न होता। हम मुँह लटकाए बाहर जा रहे थे। बाहर निकलने के रास्ते में बोर्ड लगा था, जिस पर लिखा था ‘आपके पघारने के लिए धन्यवाद। दुबारा सेवा का मौका अवश्य दें। और हौले—हौले संगीत बज रहा था, ‘केसरिया बालमा। पधारो म्हारे देस।'
सुमन शर्मा
मन भावन मुहावरे
हिन्दी का प्रयोग ध्ीरे—ध्ीरे कम होता जा रहा है। भविष्य में हिन्दी के मुहावरों का यदि निम्नलिखित ढंग से किया जाए तो आश्चर्य की बात नहीं।
1 दूध का दूध पानी का पानी — 24 घंटे रेपिफ्रजरेटर में रखने के बाद भी दूध् का दूध् और पानी का पानी ही रहता है।
2 नौ दो ग्यारह होना — चाहे नौ में दो जमा करो या पिफर दो में नौ , सर्वदा अंक ग्यारह ही प्राप्त होता है।
3 ना नौ मन तेल होगा ना राध नाचेगी — सेठजी राध बिटिया इध्र ही आ रही है इसलिए मैंने सारा तेल नाली मैं पफैंक दिया, ना नौ मन तेल होगा ना राध नाचेगी।
4 सौ सुनार की एक लुहार की — बेटा यह रेवड़ियाँ सब को बाँट दे और हाँ इसमें सौ सुनार की हैं एक लुहार की।
5 अंग से अंग चुराना— डॉक्टर ने अपने हाथों से मरीज की किडनी निकाल कर अंग से अंग चुरा लिया है।
6 मीठी छुरी चलाना — फल वाला छुरी को चाशनी में डूबो कर तरबूज पर मीठी छुरी चलाता है।
7 तिल का ताड़ बनाना — मोहन ने ताड़ के पेड़ के चित्रा में तिल चिपका चिपका कर तिल का ताड़ बना दिया।
8 आटे दाल का भाव पता चलना — रोहित को सुपर मार्किट में लगी मूल्य सूची देखकर आटे दाल का भाव पता चल गया।
9 दुम दबाकर भागना— पड़ोस का समीर बार बार हमारे पालतू कुत्ते की दुम दबाकर भाग जाता है।
10 गिरगिट की तरह रंग बदलना — दिवाली पर बिजली के रंग बिरंगे बल्ब जल बुझ करते हुए गिरगिट की तरह रंग बदल रहे थे।
11 घाव पर नमक छिड़कना— माँ मेरी आलू की चार्ट पर नमक छिडक़ना चाहतीं थीं, लेकिन उन्होने गल्ती से मेरी अंगुली के घाव पर नमक छिड़क दिया।
12 अपना उल्लू सीध करना — हैरी पॉटर का उल्लू टेड़ा बैठा था, अपनी जादू की छड़ी से वह अपना उल्लू सीध कर लेता है।
13 छप्पर पफाड़ कर देना— डाकिये ने बहुत देर दरवाज़ा पीटा जब मुरली ने दरवाज़ा नहीं खोला तो डाकिये ने उसे पत्रा छप्पर पफाड़ कर दे दिया।
14 जुते चाटना — माँ बालक को फर्श पर बैठा कर अपना कार्य करने लगी तो बालक पास रखे जुते चाटने लगा।
15 चार चाँद लगाना —रात का नजा़रा दिखाने के लिए तो एक ही चाँद कापफी था, तुमने इमारत पर चार चाँद क्यों लगा दिए।
सुमन शर्मा
सहायिका?
आजकल घरेलु नौकर व नौकरानियों को रखने का प्रचलन बहुत बढ़ गया है। लेकिन यह सहायक कभी—कभी हमारी कुछ ऐसी सहायता कर देतें हैं कि हम अपना सिर पकड़ लेते हैं।
एक बार की बात है, हमारे घर में पूजा थी जिसके लिए तीस पैंतीस केलों की आवश्यता थी। मैंने अपनी सहायिका को पैंतीस—चालीस केले लाने को कहा। मेरे पास एक हजार का नोट था मैंने उसे दे दिया। थोड़ी देर बाद जब वह वापिस लौटी तो उसके दोनो कंधो पर थैले थे और एक बड़े से थैले को वह हाथ से घसीट कर भीतर ला रही थी। मैंने उससे सवाल किया, ‘‘कौन मेहमान आया है? तू यह किसका सामान घसीट कर ला रही है?''
वह खिलखिलाती हुई अन्दर घुसी आ रही थी। कंधों के थैलों को वह पफर्श पर रखकर बोेेेेेलाी, ‘‘दीदी! आप भूल गईं? आप ही ने तो पूजा के लिए केले लाने के लिए कहा था।'' उसने थैलों में से केलों के गुच्छे निकाल निकाल कर पफर्श पर रखने शुरू किए, तो हमारे घर में केलों की पूरी दुकान सज गई। मैंने उससे पूछा, ‘‘तू कितने केले ले आई?'' वह गर्व से बोली , ‘‘जितने आप ने मंगाये थे।'' मैंने आश्चर्य से पूछा,‘‘क्या मैंने इतने सारे केले मंगवाए थे? वह मेरी ओर इस तरह देखने लगी जैसे मेरी स्मरण शक्ति पर तरस खा रही हो। वह बोली, ‘‘आपने कहा था ना, पैंतीस चालीस।'' मैंने कहा ‘‘हाँ।'' वह बोली, ‘‘मैंने केले वाले से पूछा, पैंतीस और चालीस कितने होते हैं? वह बोला ‘‘पच्हतर।'' तो मैंने उससे कहा, पच्हतर केले के गुच्छे दे दो। उस बिचारे के पास तो इतने केले भी नहीं थे वह दूसरे ठेले वाले से लेकर आया। उसने दस का नोट मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘लो! आप के हजार रुपयों में से दस रुपए बचा कर भी ले आई।'' मैंने अपना सिर पकड़ लिया।
एक बार हमें सपरिवार दो दिनों के लिए दिल्ली से बाहर जाना था। हम अपना सामान बाँध कर जाने के लिए तैयार थे। टैक्सी दरवाजे पर थी और हमें हवाई अडडे जाना था। हमने अपनी इस सहायिका को समझाया कि हमारे जाने के बाद किसी के लिए दरवाजा ने खोले। वह सिर हिला कर बोली, ‘‘ठीक है।'' टैक्सी आधे रास्ते पर पहुँची थी कि हमारे पिताजी को याद आया कि हवाई टिकिट तो घर पर ही रह गए हैं। हमने टैक्सी का रुख घर की तरपफ किया। घर पहुँच कर हमने दरवाजे को जोर—जोर से खड़खड़ाया लेकिन वह दरवाजा खोलने का नाम ही नहीं ले रही थी। कुछ देर बाद हमें एक उपाय सूझा। उमने अपने घर का पफोन मिलाया जिसे इस सहायिका ने तुरन्त उठा लिया। हमने उसे पफटकार लगाते हुए दरवाजा खोलने को कहा। वह दरवाजा खोलने आई और हम पर ही बिगड़ने लगी वह बोली, ‘‘अरे वाह! आप ही ने तो मना किया था कि किसी के लिए दरवाजा नहीं खोलना। '' हमने उससे कहा कि तुम्हें पूछना चाहिए था कौन है। वह मुँह बनाकर बोली, ‘‘जब किसी के लिए दरवाजा खोलना ही नहीं, तो पूछने की क्या आवश्यकता है?
हमारी इसी सहायिका को बहुत दिनों से आँखों में तकलीपफ हो रहीं थी। उसे दूर की वस्तुएँ साफ नज़र नहीं आ रहीं थीं। मैंने उसे आँखों के डाक्टर के पास जाने की सलाह दी और यह भी कहा कि शायद तुम्हें आँखों पर चश्मा लगवाना पड़ेगा। वह एक दिन का अवकाश माँग कर अपने घर चली गई। लेकिन वह तीन दिन के बाद काम पर लौटी। मैंने उससे पूछा, ‘‘क्या आँखों की जांच करवा ली?'' वह बोली, ‘‘नहीं दीदी! डाक्टर अच्छा नहीं है। आँखों की तो जांच करता नहीं है। एक कुर्सी पर बैठाकर कहता है पहले सामने वाला बोर्ड पढ़ो। अरे कभी मेरे माँ बाप ने मुझे पढ़ने लिखने के लिए नहीं कहा तो तू कौन होता है मुझे पढ़ाने वाला?'' वह तैष में आकर बोलती ही जा रही थी वह आगे बताती है, ‘‘मैंने कहा मुझे पढ़ना नहीं आता। तो डाक्टर बोला, ‘‘जाओ दूसरी कुर्सी पर बैठ जाओ और सामने बोर्ड पर देखकर बताओ कौन सा आकर गोल है? कौन सा चौरस है?'' वह मेज़ पर से बर्तनों को समेटते हुए बोली, ‘‘ मैं तो डाक्टर को चार बाँते सुनाकर आ गई। तू आँखों का डाक्टर है। चुपचाप चश्में बना। पफालतु में मसखरी क्यों करता है।'' वह बोली, ‘‘दीदी आप ही मेरा चश्मा बनवा कर ला देना।'' मैंने उससे कहा,‘‘ऐसे थोड़े ही बन जाता है चश्मा। चष्मे का नम्बर भी तो होना चाहिए।'' वह बोली, ‘‘आपकी चप्पलों का चार नम्बर मुझे ठीक आता है। चश्में का भी अपना वाला नम्बर ले आना।''
सुमन शर्मा