hindi Best Moral Stories Books Free And Download PDF

Stories and books have been a fundamental part of human culture since the dawn of civilization, acting as a powerful tool for communication, education, and entertainment. Whether told around a campfire, written in ancient texts, or shared through modern media, Moral Stories in hindi books and stories have the unique ability to transcend time and space, connecting people across generations and cult...Read More


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  • गूगल बॉय - 6

    गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 6 सुबह-सुबह नारायणी रस...

  • एनीमल फॉर्म - 8

    एनीमल फॉर्म जॉर्ज ऑर्वेल अनुवाद: सूरज प्रकाश (8) कुछ दिन बीतने के बाद, प्राणदण्ड...

  • पूर्ण-विराम से पहले....!!! - 24

    पूर्ण-विराम से पहले....!!! 24. अब शिखा को समीर के जुड़े हुए सभी काम पूरे करने थे...

गूगल बॉय - 6 By Madhukant

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 6 सुबह-सुबह नारायणी रसोई में नाश्ता बना रही थी। गोपाल व गूगल भी नाश्ता करने के लिये वहीं आ गये। ‘बेटे गूगल, तू कहे तो आज म...

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एनीमल फॉर्म - 8 By Suraj Prakash

एनीमल फॉर्म जॉर्ज ऑर्वेल अनुवाद: सूरज प्रकाश (8) कुछ दिन बीतने के बाद, प्राणदण्डों से उपजा आतंक धुंधला पड़ चुका था। कुछेक पशुओं को याद था, या उन्होंने सोचा कि उन्हें याद था कि छठे...

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जिंदगी मेरे घर आना - 9 By Rashmi Ravija

जिंदगी मेरे घर आना भाग – ९ और अभी कैसे घूर रहा है, खा ही जाएगा जैसे। मन नहीं था तो क्यों आया? नहीं ले आता, तो कोई मर तो नहीं जाती वह... जोर से बोली, ‘तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा क्या...

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इक समंदर मेरे अंदर - 11 By Madhu Arora

इक समंदर मेरे अंदर मधु अरोड़ा (11) जब उनका परिवार पारस नगर पहुंचा और पिताजी बिल्डर के कार्यालय में गये तो उसने हंसकर कहा – ‘वेलकम सर जी ..वो क्‍या है न....फ्लैट पूरा रेडी है। आप अप...

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जय हिन्द की सेना - 12 By Mahendra Bhishma

जय हिन्द की सेना महेन्द्र भीष्म ग्यारह नीले आकाश के नीचे अपने हवेलीनुमा घर की सबसे ऊँची छत पर श्वेत साड़ी में दरी के ऊपर बैठी शृंगार रहित होने पर भी गौर वर्ण उमा साक्षात्‌ परी लग रह...

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पूर्ण-विराम से पहले....!!! - 24 By Pragati Gupta

पूर्ण-विराम से पहले....!!! 24. अब शिखा को समीर के जुड़े हुए सभी काम पूरे करने थे| सबसे पहले उसने समीर के अलमारियों में लगे हुए कपड़ों को जगह-जगह पर जाकर दान में दिया| उनके घर में क...

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गवाक्ष - 29 By Pranava Bharti

गवाक्ष 29== स्वरा बंगाल की निवासी थी और बंबई में कार्यरत थी । सत्यनिष्ठ के संस्कार व व्यवहारों के प्रति आकर्षित हो वह उससे प्रेम करने लगी थी । संगीत की सुरीली धुन सी स्वरा...

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बात बस इतनी सी थी - 11 By Dr kavita Tyagi

बात बस इतनी सी थी 11. अगले दिन मैं निर्धारित समय से पहले एयरपोर्ट पर पहुँच गया । मंजरी एयरपोर्ट से बाहर आई, तो मैंने बाँहें फैलाकर उसका स्वागत किया । एयरपोर्ट पर ही एक कॉफी हाउस मे...

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सुरतिया - 1 By vandana A dubey

’नमस्ते बाउजी. कैसे हैं?’बाहर बरामदे में बैठे बाउजी यानी रामस्वरूप शर्मा जी, सुधीर के दोस्त आलोक के इस सम्बोधन और उसके पैर छूने के उपक्रम से गदगद हो गये. ’ठीक ही हूं बेटा. अब बुढ़ाप...

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अंग्रेजियत पर हिंदी दिवस का कटाक्ष By AKANKSHA SRIVASTAVA

हिंदी को वनवास दे दिया,अंग्रेजी को राज हम हिंदुस्तानियों ने सत्तर साल में कैसा गढ़ दिया समाज , बदल गया हिंदी का इतिहास,फिर हावी हो गया अंग्रेजियत का एक बार राज। आज हिंदी दिवस पर हिं...

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अरक्षित By Deepak sharma

अरक्षित उनका घर इन-बिन वैसा ही रहा जैसा मैंने कल्पना में उकेर रखा था| स्थायी, स्वागत-मुद्रा के साथ घनी, विपुल वनस्पति; ऊँची, लाल दीवारों व पर्देदार खुली खिड़कियाँ लिए वह बँगला पूरी...

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नश्तर खामोशियों के - 4 By Shailendra Sharma

नश्तर खामोशियों के शैलेंद्र शर्मा 4. किसी स्कूटर के स्टार्ट होने के स्वर से जैसे में नींद से जगी. मरे हुए लम्हों को बार-बार अपने भीतर जिंदा करते हुए,मैं प्रिंसिपल ऑफिस पहुच गई थी....

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आवरण By Raja Singh

आवरण राजा सिंह विशेष सोच रहा हैं। आने का सम्भावित समय निकल गया हैं।.........अब तो सात भी बज चुके हैं। शंका-कुशंका डेरा डालने लगी थीं।.........अणिमा अब तक निश्चय ही आ जाती हैं । फिर...

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यारबाज़ - 16 - अंतिम भाग By Vikram Singh

यारबाज़ विक्रम सिंह (16) घर के अंदर प्रवेश करते ही जैसे ही मैं अपने जूते के तसमें खोलने लगा कि मां ने रसोई से ही मुझे कहना शुरू किया," अरे फिर तुम चले गए थे इंटरव्यू देने। पापा ने...

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अपने-अपने इन्द्रधनुष - 6 By Neerja Hemendra

अपने-अपने इन्द्रधनुष (6) काॅलेज से लौटते समय मेरी और चन्द्रकान्ता की इच्छा पुनः कुछ दूर पैदल चलने की हो रही थी। मार्ग में चलते हुए हम दोनों सायं की खुशनुमा ऋतु का आनन्द व चर्चा करत...

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आखा तीज का ब्याह - 9 By Ankita Bhargava

आखा तीज का ब्याह (9) “ओहो, अब तो हमारी डॉ. वासंती होटल की मालकिन बन गयी है| अगर कभी हम तुम्हारे यहां घूमने आये तो तिलकजी को कह कर डिस्काउंट तो दिला दोगी ना|” श्वेता ने कुछ शरारत भर...

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30 शेड्स ऑफ बेला - 16 By Jayanti Ranganathan

30 शेड्स ऑफ बेला (30 दिन, तीस लेखक और एक उपन्यास) Day 16 by Harish Pathak हरीश पाठक ठहरी हुई शाम बेला के कदम आगे बढ़ने से इंकार कर रहे थे।उसकी सांस फूल गयी थी और हाथ की मुट्ठियां तन...

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दास्तानगो - 1 By Priyamvad

दास्तानगो प्रियंवद अंतिम फ़्रांसीसी उपनिवेश के अंतिम अवशेषों पर, पूरे चाँद की रात का पहला पहर था जब यह द्घटना द्घटी। समुद्र की काली और खुरदरी चट्टानों पर चिपके केकड़े किनारे की ओर सर...

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राम रचि राखा - 6 - 4 By Pratap Narayan Singh

राम रचि राखा (4) सवेरे जब मुन्नर द्वार पर नहीं दिखे तो पहले माई ने सोचा कि दिशा-फराकत के लिए गए होंगे। परन्तु जब सूरज ऊपर चढ़ने लगा फिर भी मुन्नर लौट कर नहीं आये तो माई को चिंता हो...

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गूंगा गाँव - 11 By रामगोपाल तिवारी (भावुक)

ग्यारहगूंगा गाँव 11 रात भर बादल छाये रहे। लोग पानी बरसने की आश लगाये रहे। पानी की एक भी बूँद न पड़ी। सुबह होते-होते आकाश पूरी तरह साफ हो गया। किसान निराश होकर आकाश की ओर ताकते रह गय...

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वटवृक्ष By Rama Sharma Manavi

आज मानसी को अवसादग्रस्त हुए एक वर्ष से अधिक हो गए।अभी कुछ माह पूर्व तक जब भी वह अपने पति से अपनी मानसिक,शरीरिक तकलीफों के बारे में बात करना चाहती थी तो उसके पति वरूण के पास...

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क्या नाम दूँ ..! - 1 By Ajay Shree

क्या नाम दूँ ..! अजयश्री प्रथम अध्याय “आखिर तुमने मुझे समझ क्या रखा है ! आज पाँच साल तक साथ रहने के बाद तुम कह रहे हो कि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूँ ..इन पाँच सालों में शायद ही कोई...

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उलझन - 1 By Amita Dubey

उलझन डॉ. अमिता दुबे एक नीचे के फ्लैट में जब से अंशी यानि अंशिका रहने आयी है तब से सोमू यानि सौमित्र का जीवन ही बदल गया है। इससे पहले सोमू तो केवल ‘बोर’ होता था। घनी आबादी के बड़े से...

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लाल फूल का एक जोड़ा By Uma Jhunjhunwala

लाल फूल का एक जोड़ा उमा झुनझुनवाला सीमा सिंह मामूली लड़की नहीं थी| उसके व्यक्तित्व में एक ख़ास आकर्षण था| बातचीत का सलीका ऐसा कि सुनने वाला उसके असर से बंध जाए जबकि आवाज़ में कोई एक रे...

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अनिर्णय By Pavitra Agarwal

अनिर्णय पवित्रा अग्रवाल "आरती अभी से सोने चल दी ? ...कुछ देर गप्पें ही लगाते ।' "नीलम क्यों परेशान करती है, उसे सोने दे। आज तो उसने सपनों की महफिल में डा.रवीन्द्र सिंह को आने क...

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सड़क पार की खिड़कियाँ - 2 By Nidhi agrawal

सड़क पार की खिड़कियाँ डॉ. निधि अग्रवाल (2) लंचब्रेक में मैंने आज एकांत नहीं तलाशा… सबके साथ ही लंच किया। बॉस वहाँ से गुज़रा पर मेरी हँसी नहीं छीन पाया। मैं सुरुचि का हाथ पकड़े रही। शा...

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आपकी आराधना - 3 By Pushpendra Kumar Patel

अतीत के कुछ अनसुलझे रहस्य जो बदल देंगे आराधना की जिन्दगी.....

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पुनर्मिलन By Sudha Adesh

पुनर्मिलन'देवेशजी, आप तो पढ़े लिखे इंसान हैं...इतनी निर्दयता से तो कोई जानवर को भी नहीं मारता...बच्चे प्यार से समझते हैं न कि मार से प्यार रूपी नकेल से शैतान से शैतान बच्चे को ठ...

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गोधूलि - 4 - अंतिम भाग By Priyamvad

गोधूलि (4) पिता ने इशारा किया। आका बाबा ने उनके हाथ से गिलास ले कर बोतल से थोड़ी कोन्याक डाली, कुछ बूँद गर्म पानी, फिर गिलास पिता को दे दिया। कुछ क्षण गिलास को नाक के आगे लहराते हुए...

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आखिरी खत By Raja Singh

आखिरी खत राजा सिंह शशि ! तुम्हारी शादी का कार्ड मेरे सामने है। और मैं कार्ड में उभरते तुम्हारे उषाकाल की तरह सुन्दर अक्श को निहार रहा हूॅ जो कि हर पल डूबता एवं उतरता सा लग रहा है।...

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टेबल नम्बर सत्रह... By Dr Vinita Rahurikar

टेबल नम्बर सत्रह... अपने दोस्तों के साथ जब संदीप ने भरी दोपहरी में तालाब के किनारे बने खूबसूरत रेस्तराँ विंड एंड वेव्स के एक हॉल में प्रवेश किया तो कुछ देर तक आँखें अंधेरे में झपक...

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निगोड़ी By Deepak sharma

निगोड़ी रूपकान्ति से मेरी भेंट सन् १९७० में हुई थी| उसके पचासवें साल में| उन दिनों मैं मानवीय मनोविकृतियों पर अपने शोध-ग्रन्थ की सामग्री तैयार कर रही थी और रूपकान्ति का मुझसे परिचय...

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गूगल बॉय - 6 By Madhukant

गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 6 सुबह-सुबह नारायणी रसोई में नाश्ता बना रही थी। गोपाल व गूगल भी नाश्ता करने के लिये वहीं आ गये। ‘बेटे गूगल, तू कहे तो आज म...

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एनीमल फॉर्म - 8 By Suraj Prakash

एनीमल फॉर्म जॉर्ज ऑर्वेल अनुवाद: सूरज प्रकाश (8) कुछ दिन बीतने के बाद, प्राणदण्डों से उपजा आतंक धुंधला पड़ चुका था। कुछेक पशुओं को याद था, या उन्होंने सोचा कि उन्हें याद था कि छठे...

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जिंदगी मेरे घर आना - 9 By Rashmi Ravija

जिंदगी मेरे घर आना भाग – ९ और अभी कैसे घूर रहा है, खा ही जाएगा जैसे। मन नहीं था तो क्यों आया? नहीं ले आता, तो कोई मर तो नहीं जाती वह... जोर से बोली, ‘तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा क्या...

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इक समंदर मेरे अंदर - 11 By Madhu Arora

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जय हिन्द की सेना - 12 By Mahendra Bhishma

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गवाक्ष - 29 By Pranava Bharti

गवाक्ष 29== स्वरा बंगाल की निवासी थी और बंबई में कार्यरत थी । सत्यनिष्ठ के संस्कार व व्यवहारों के प्रति आकर्षित हो वह उससे प्रेम करने लगी थी । संगीत की सुरीली धुन सी स्वरा...

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बात बस इतनी सी थी - 11 By Dr kavita Tyagi

बात बस इतनी सी थी 11. अगले दिन मैं निर्धारित समय से पहले एयरपोर्ट पर पहुँच गया । मंजरी एयरपोर्ट से बाहर आई, तो मैंने बाँहें फैलाकर उसका स्वागत किया । एयरपोर्ट पर ही एक कॉफी हाउस मे...

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सुरतिया - 1 By vandana A dubey

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अंग्रेजियत पर हिंदी दिवस का कटाक्ष By AKANKSHA SRIVASTAVA

हिंदी को वनवास दे दिया,अंग्रेजी को राज हम हिंदुस्तानियों ने सत्तर साल में कैसा गढ़ दिया समाज , बदल गया हिंदी का इतिहास,फिर हावी हो गया अंग्रेजियत का एक बार राज। आज हिंदी दिवस पर हिं...

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अरक्षित By Deepak sharma

अरक्षित उनका घर इन-बिन वैसा ही रहा जैसा मैंने कल्पना में उकेर रखा था| स्थायी, स्वागत-मुद्रा के साथ घनी, विपुल वनस्पति; ऊँची, लाल दीवारों व पर्देदार खुली खिड़कियाँ लिए वह बँगला पूरी...

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नश्तर खामोशियों के - 4 By Shailendra Sharma

नश्तर खामोशियों के शैलेंद्र शर्मा 4. किसी स्कूटर के स्टार्ट होने के स्वर से जैसे में नींद से जगी. मरे हुए लम्हों को बार-बार अपने भीतर जिंदा करते हुए,मैं प्रिंसिपल ऑफिस पहुच गई थी....

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आवरण By Raja Singh

आवरण राजा सिंह विशेष सोच रहा हैं। आने का सम्भावित समय निकल गया हैं।.........अब तो सात भी बज चुके हैं। शंका-कुशंका डेरा डालने लगी थीं।.........अणिमा अब तक निश्चय ही आ जाती हैं । फिर...

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यारबाज़ - 16 - अंतिम भाग By Vikram Singh

यारबाज़ विक्रम सिंह (16) घर के अंदर प्रवेश करते ही जैसे ही मैं अपने जूते के तसमें खोलने लगा कि मां ने रसोई से ही मुझे कहना शुरू किया," अरे फिर तुम चले गए थे इंटरव्यू देने। पापा ने...

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अपने-अपने इन्द्रधनुष - 6 By Neerja Hemendra

अपने-अपने इन्द्रधनुष (6) काॅलेज से लौटते समय मेरी और चन्द्रकान्ता की इच्छा पुनः कुछ दूर पैदल चलने की हो रही थी। मार्ग में चलते हुए हम दोनों सायं की खुशनुमा ऋतु का आनन्द व चर्चा करत...

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आखा तीज का ब्याह - 9 By Ankita Bhargava

आखा तीज का ब्याह (9) “ओहो, अब तो हमारी डॉ. वासंती होटल की मालकिन बन गयी है| अगर कभी हम तुम्हारे यहां घूमने आये तो तिलकजी को कह कर डिस्काउंट तो दिला दोगी ना|” श्वेता ने कुछ शरारत भर...

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30 शेड्स ऑफ बेला - 16 By Jayanti Ranganathan

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राम रचि राखा - 6 - 4 By Pratap Narayan Singh

राम रचि राखा (4) सवेरे जब मुन्नर द्वार पर नहीं दिखे तो पहले माई ने सोचा कि दिशा-फराकत के लिए गए होंगे। परन्तु जब सूरज ऊपर चढ़ने लगा फिर भी मुन्नर लौट कर नहीं आये तो माई को चिंता हो...

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गूंगा गाँव - 11 By रामगोपाल तिवारी (भावुक)

ग्यारहगूंगा गाँव 11 रात भर बादल छाये रहे। लोग पानी बरसने की आश लगाये रहे। पानी की एक भी बूँद न पड़ी। सुबह होते-होते आकाश पूरी तरह साफ हो गया। किसान निराश होकर आकाश की ओर ताकते रह गय...

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वटवृक्ष By Rama Sharma Manavi

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उलझन - 1 By Amita Dubey

उलझन डॉ. अमिता दुबे एक नीचे के फ्लैट में जब से अंशी यानि अंशिका रहने आयी है तब से सोमू यानि सौमित्र का जीवन ही बदल गया है। इससे पहले सोमू तो केवल ‘बोर’ होता था। घनी आबादी के बड़े से...

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लाल फूल का एक जोड़ा By Uma Jhunjhunwala

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सड़क पार की खिड़कियाँ - 2 By Nidhi agrawal

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पुनर्मिलन By Sudha Adesh

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गोधूलि - 4 - अंतिम भाग By Priyamvad

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आखिरी खत By Raja Singh

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टेबल नम्बर सत्रह... By Dr Vinita Rahurikar

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निगोड़ी By Deepak sharma

निगोड़ी रूपकान्ति से मेरी भेंट सन् १९७० में हुई थी| उसके पचासवें साल में| उन दिनों मैं मानवीय मनोविकृतियों पर अपने शोध-ग्रन्थ की सामग्री तैयार कर रही थी और रूपकान्ति का मुझसे परिचय...

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