hindi Best Comedy stories Books Free And Download PDF

Stories and books have been a fundamental part of human culture since the dawn of civilization, acting as a powerful tool for communication, education, and entertainment. Whether told around a campfire, written in ancient texts, or shared through modern media, Comedy stories in hindi books and stories have the unique ability to transcend time and space, connecting people across generations and cul...Read More


Languages
Categories
Featured Books

धंधा मारा जाएगा By Kishanlal Sharma

इक्कीसवीं सदी साइंस का जमाना।शिक्षा के प्रसार के साथ लोगो का ज्ञान बढ़ा है।लोग जागरूक हुए है और उनमें समझदारी आयी है।पहलेकी तरह लोग अज्ञानी और कूप मण्डूक नही रहे।सोशल मीडिया ने क्रा...

Read Free

मेरी कीमत क्या है ? (व्यंग्य) By Alok Mishra

मेरी कीमत क्या है ? (व्यंग्य) हम ठहरे एक आम आदमी ........नहीं ... नहीं , जनता..... अरे......नहीं...... फिर राजनैतिक हो गया । खैर आप तो समझ ही गए है कि हम और आप एक जैसे...

Read Free

चोलबे ना - 5 - चुनावी चक्कलस का मंत्र By Rajeev Upadhyay

सुबह सुबह की बात है (कहने का मन तो था कि कहूँ कि बहुत पहले की बात है मतलब बहुत पहले की परन्तु सच ये है कि आज शाम की ही बात है)। मैं अपनी रौ में सीटी बजाता टहल रहा था। टहल क्या रहा...

Read Free

How are you, Mr. Khiladi ? By BRIJESH PREM GOPINATH

देर रात शिफ्ट पूरी कर घर पहुंचा तो हालत देखकर भौंचक्का रह गया.ऐसा लगा मानो भूकंप आया हो.एक जूता बाथरूम के पास तो दूसरा किचन के दरवाज़े पर,अख़बार के टुकड़े बिखरे हुए,मैं हैरान कमरे...

Read Free

पांडे जी की सायकिल (व्यंग्य कथा) By Alok Mishra

पांडे जी की सायकिल (व्यंग्य कथा) अब साहब आपका पूछना जायज ही होगा कि पांडे जी कौन ? आपने पूछ ही लिया है तो हम बताएं देते है। पांडे जी हमारे शहर की कोई नामचीन हस्ती तो है नहीं।...

Read Free

कलयुग में भगवान By Kishanlal Sharma

"नारायण नारायण---घोर कलयुग है"क्या हुआ नारद,"भगवान विष्णु, नारद को देेेखते ही बोले," चितित नज़र आ रहेे हो।कहाँ से आ रहे हो?"प्रभु भूलोक में गया था।पूरी पृथ्वी का भृमण करके आ रहा...

Read Free

बुरा तो मानों .... होली है ( व्यंग्य ) By Alok Mishra

बुरा तो मानों...... होली है ( व्यंग्य) लो साहब होली आ गई । सब ओर नारा लगने लगा ‘ बुरा न मानो .... होली है । वैसे भी हम भारतियों की परंपरा रही है कि होली हो या न हो हम बुरा नहीं...

Read Free

अंग्रेजी में बैठना कुत्ते का By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

मैं काफी मॉडर्न थे। इस लिए उनके पास एक कुत्ता था। वे उससे हिंदी नहीं बोलते थे ।अंग्रेजी में आदेश देते थे - कम , गो, यस, नो , स्टैंड, सिट। वे गुस्सा ना बोल कर चलते थे । उन्हें लगता...

Read Free

काली पुतली  By Alok Mishra

काली पुतली ये गाँव से विकसित होता छोटा सा कस्बा था । इस शहर में कुछ सड़कें ऐसी भी थी जिन पर रातों को लोग जाने से कतराते थे । आज मै जहाँ हूँ वहाँ से ही कभी शहर का वीराना प्रा...

Read Free

लोटन का शौचालय ( व्यंग्य ) By Alok Mishra

लोटन का शौचालय एक गाँव में एक बुजुर्ग रहते थे, नाम था लोटनलाल। पहले उनका भरा-पूरा परिवार था। फिर धीरे-धीरे सब साथ छोड़ते गए, कुछ मौत के कारण और कुछ लोग शहर की ओर दौड़ के क...

Read Free

सेवा-भाव की अपनी-अपनी सोच By r k lal

सेवा-भाव की अपनी-अपनी सोच आर० के० लाल पार्क में एक शाम बैठे कई बुजुर्ग समाजसेवा करने की बात पर ज़ोर दे रहे थे परंतु उनमे से दो चार लोग कह रहे थे कि उनका अनुभव अच्छा न...

Read Free

सब्जी बाजार By Alok Mishra

सब्जी बाजार हम सामाजिक रुप से बहुत ही समृद्ध होते जा रहे है । अब हमारी सामाजिक समृद्धता चाय-पान के ठेलों ढाबों और सब्जी बाजारों में दिखार्इ देती है। सामान्यत: मध्यमवर्गीय व्...

Read Free

हमारे घर छापा By Alok Mishra

हमारे घर छापा एक दिन अचानक ही मेरे मोहल्ले में हड़कम्प मच गई । पुलिस के एक बड़े से दस्ते का एक बड़ा सा फौज-फाटा हमारे मोहल्ले में दाखिल हुआ । हमें लगा , पड़ोस के वर्मा जी के घ...

Read Free

गड्ढा By Alok Mishra

गड्ढा पहले चुनाव और अब कौन जीतेगा या कौन हारेगा के शोर में हम और आप लोकतंत्र की सड़क पर पड़े उस बड़े से गड़्ढे को भूल ही गए थे , जिसका इतिहास है कि सरकार कोई भी बने...

Read Free

बीबी के ऐ जी By Alok Mishra

बीबी के" ऐ जी" सुरेन्द्र शर्मा बड़ा भला सा नाम था उनका छैल- छबीले, बांके जवान उन्होंने शादी क्या की जैसे अपना नाम ही खो दिया जब उनकी पत्नी उन्हें ऐ जी........., सुनते हो...

Read Free

अतिक्रमण -एक राष्ट्रीय खेल By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

छोटी चिन्ता /वही चिन्ता अतिक्रमण : एक राष्ट्रीय खेल हमारे देश में खेलों की गौरवशाली परम्परा है। गौरव यह है कि और हमारे में खेलों में भी खेल खेला जाता है बल्कि यहां जो कुछ भी होता ह...

Read Free

मैं बजट क्यूं देखूं? By Suvidha Gupta

कुछ दिन पहले मेरे एक परिचित का फोन आया। किसान आंदोलन की वजह से उनके यहां, नेट नहीं चल रहा था। तो उन्होंने मुझसे पूछा,"क्या आपने बजट देखा?" मैंने कहा,"नहीं"। नहीं सु...

Read Free

जूते की आत्मकथा  By Alok Mishra

जूते की आत्मकथा मैं एक जूता हुँ , अरे साहब वही जूता जो आप सर्दी,गर्मी और बरसात में बिना मुर्रवत के रगड़ते रहते है , अरे वही जूता जो सम्मान का प्रतीक बन कर आप के चरणों में सजता...

Read Free

कोतवाल की गर्दन (व्यंग्य कथा ) By Alok Mishra

कोतवाल की गर्दन एक नगर था, छोटा सा । इस नगर में रहने वाले लोग बहुत ही भोले- भाले थे । वे सुनी बातों को सत्य समझते और जो दिखता उसे परमसत्य । इस नगर का कोतवाल भोला सा दिख...

Read Free

लाल स्कूटी वाला - 2 (अंतिम भाग) By Aakanksha

अक्षिता नाम की एक लड़की बारहवीं कक्षा में पढ़ती है और उसे एक चिराग़ नाम का लफंगा लड़का परेशान करता है इसलिए अक्षिता उसका आधारकार्ड देखना चाहती है, परंतु अक्षिता...

Read Free

दर्द-ए-वेलेंनटाइन By Gaud Arun

सुबह सुबह मोवाइल की मैसेज रिगं बजी, चंदू ने अलसाये हुये रजाई से अपना मुँह बहार निकाला और आंखे मसलते हुये मैसेज पढने लगा, वह ‘वेलेंग्टाइन वीक’ का मैसेज था, ‘अशिकी के उत्सव’ का निमंत...

Read Free

छापे का डर (व्यंग्य कथा) By Alok Mishra

छापे का डर विभिन्न स्थानों पर चपरासी ,बाबू और बड़े-बड़े सहाबों के घर छापे पड़ने लगे । खबरों की दुनिया में तहलका मच गया क्योंकि इनके घर करोड़ों उगलने लगे । ऐसे समय में र...

Read Free

लेखक की चुनौती (व्यंग्य) By Alok Mishra

लेखक की चुनौती साहित्य समाज का आईना होता है परंतु साहित्य भी समाज को उसके वास्तविक रूप में चित्रण से बचता रहा है। समाज में जहाँ अच्छाईयाँ, आदर्श और ईमानदारी है वही धूर्तता, म...

Read Free

मरा कुत्ता’ (व्यंग्य कथा) By Alok Mishra

‘‘मरा कुत्ता’’ शहर से दूर एक माईन्स एरिया के थाने में उदासी का आलम हैैै। थानेदार को ऊपर से खबर आयी है कि किसी विशेष आयोजन के लिए पैसों का बंदोबस्त करना है। थानेदार ने हवलद...

Read Free

विज्ञप्ति वीर (व्यंग्य) By Alok Mishra

विज्ञप्ति वीर भारत वीरों की धरती है । यहॉं सच्चे सपूत पहले सर कटा कर ,कालांतर में उंगली कटा कर शहादत देते रहे है । अब आपके हमारे आस-पास वीरों की एक नई ही फसल लहलहाने लगी...

Read Free

अपने देश की खोज(व्यंग्य) By Alok Mishra

अपने देश की खोज पूरे देश में इस समय पाकिस्तान से कुम्भ के बहाने वीज़ा लेकर आए 80 परिवारों की चर्चा है। ये परिवार अब पाकिस्तान वापस नहीं जाना चाहते । वे भारत को अपना देश मानते...

Read Free

तीन दोस्‍त (व्यंग्य) By Alok Mishra

तीन दोस्‍त एक शहर में तीन दोस्‍त थे , तीनों बेरोजगार । उन्‍होने रोजगार पाने का बहुत प्रयास किया लेकिन हर ओर भ्रष्‍टाचार और भाई भतीजावाद के का बोल बाला था। उन्‍होंने जुगाड़ करन...

Read Free

असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 27 - अंतिम भाग By Yashvant Kothari

27 माधुरी को सम्पूर्ण प्रकरण की जानकारी थी । मगर इस तरह के हल्के-फुल्के मामलेां की वो जरा भी परवाह नही करती थी । वैसे भी संस्था के विभिन्न दैनिक कार्यक्रमों में वो दखल नही देती थी...

Read Free

अब बदला लेंगे हम (व्यंग्य) By Alok Mishra

अचानक ही ऐसा लगने लगा, अब कुछ होगा। पठानकोट हमले को अभी बहुत दिन नहीं बीते हैं। फोनों और मोबाइलों की घंटियाँ घनघनाने लगी। दिल्ली, मुम्बई और पुर्तगाल सहित अनेक देशों में...

Read Free

बाऊजी और बंदर By Suryabala

सूर्यबाला उन्‍हें फिर से बच्‍चों की बहुत याद आ रही है। सुनते ही मैंने सिर कूट लिया। सिर कूटने की बात ही थी। अभी साल भी तो पूरा नहीं हुआ, संदीले में आए ही थे। एक-दो नहीं, पू...

Read Free

देश-सेवा के अखाड़े में... By Suryabala

सूर्यबाला यह खबर चारों तरफ आग की तरह फैल गई कि मैं देश-सेवा के लिए उतरने वाला हूँ। जिसने सुना, भागा आया और मेरे निर्णय की दाद दी। सुना, आप देश-सेवा के लिए उतर रहे हैं। ईश्वर देश का...

Read Free

ठंडे जी का स्टार्टअप By Prabodh Kumar Govil

अब साल पूरा होने में केवल दो ही दिन बचे थे। न - न ...आज कोई उनतीस दिसंबर नहीं था। आज तो अठारह दिसंबर ही था। लेकिन आप सोच रहे हैं न कि फ़िर साल ख़त्म होने में बस दो ही दिन कैसे बचे?...

Read Free

जेबकतरा By राज कुमार कांदु

कलुआ एक जेबकतरा है। आठ नवम्बर 2016 को मोदीजी के आर्थिक सर्जिकल स्ट्राइक का सबसे बड़ा पीड़ित पक्ष अगर कोई है तो वह है कलुआ जैसे छोटे मोटे जरायम पेशा लोग। भारत में एक अनुमान के मुताबिक...

Read Free

पुरस्कार By Alok Mishra

बहुत दिनों से सोच रहा था, कि कुछ नहीं बोलूंगा क्योंकि हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है। फिर हमें चुप रहना आता ही कहाँ है ? अब साहब लेखक लोगों की बिरादरी में पुरस्कार वापस करन...

Read Free

जूते चिढ़ गए हैं... By Suryabala

सूर्यबाला जूते चिढ़ गए हैं इन दिनों। कहते हैं, यह हमारी तौहीनी है। ये क्या कि हमें जिस-तिस पर उछाल दिया, जैसे हमारी कोई इज्जत ही नहीं। बात सही है कि चिरकाल से हमारा निवास आदमी के पै...

Read Free

कौन आया मेरे घर के द्वारे By Annada patni

आवत ही हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह, तुलसी तहाँ न जाइये, कंचन बरसे मेह ।। संत तुलसीदास जी कहते हैं कि जहाँ आपको आते देख, लोग खुश न हों और जिनकी आँखों में आपके लिए प्रेम न हो, ऐसी जगहो...

Read Free

महानता के नुस्खे  By Alok Mishra

महानता के नुस्खे हकीम लुकमान ने दुनिया के सभी मर्जाें के नुस्खे बताए । वे ये बताना तो भूल ही गए कि एक आम आदमी किन नुस्खों से महान बने । हमें भी तो ऐसी फालतू बातों की खोज करन...

Read Free

ए मेरे वतन के लोगों .....  By Alok Mishra

ए मेरे वतन के लोगों ..... हमारे पोपटलाल जी वैसे तो देशभक्त है लेकिन स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर उनकी देशभक्ति चरम पर पहुंच जाती है । उस पर जैसे ही लता जी '&#39...

Read Free

गर्व से कहो हम पति हैं By Suryabala

सूर्यबाला महिलाओं को मालूम है कि जिस तरह हर सफल पुरुष के पीछे कोई महिला होती है उसी तरह हर असफल महिला के पीछे भी कोई-न-कोई पुरुष होता है। आप भी माने या न मानें, स्त्री - स्वातंत्र्...

Read Free

भारत और इंड़िया (व्यंग्य ) By Alok Mishra

वो अक्सर आता और एक ही बात करता सर मोबाईल चार्ज कर लॅूं ? मै उसे ऐसा करने देता । एक दिन मैने उससे पूछा ‘‘यार तुम मेरे यहाॅ मोबाईल चार्ज करने ही आते हो क्या’’ ? उसने कहा...

Read Free

धंधा मारा जाएगा By Kishanlal Sharma

इक्कीसवीं सदी साइंस का जमाना।शिक्षा के प्रसार के साथ लोगो का ज्ञान बढ़ा है।लोग जागरूक हुए है और उनमें समझदारी आयी है।पहलेकी तरह लोग अज्ञानी और कूप मण्डूक नही रहे।सोशल मीडिया ने क्रा...

Read Free

मेरी कीमत क्या है ? (व्यंग्य) By Alok Mishra

मेरी कीमत क्या है ? (व्यंग्य) हम ठहरे एक आम आदमी ........नहीं ... नहीं , जनता..... अरे......नहीं...... फिर राजनैतिक हो गया । खैर आप तो समझ ही गए है कि हम और आप एक जैसे...

Read Free

चोलबे ना - 5 - चुनावी चक्कलस का मंत्र By Rajeev Upadhyay

सुबह सुबह की बात है (कहने का मन तो था कि कहूँ कि बहुत पहले की बात है मतलब बहुत पहले की परन्तु सच ये है कि आज शाम की ही बात है)। मैं अपनी रौ में सीटी बजाता टहल रहा था। टहल क्या रहा...

Read Free

How are you, Mr. Khiladi ? By BRIJESH PREM GOPINATH

देर रात शिफ्ट पूरी कर घर पहुंचा तो हालत देखकर भौंचक्का रह गया.ऐसा लगा मानो भूकंप आया हो.एक जूता बाथरूम के पास तो दूसरा किचन के दरवाज़े पर,अख़बार के टुकड़े बिखरे हुए,मैं हैरान कमरे...

Read Free

पांडे जी की सायकिल (व्यंग्य कथा) By Alok Mishra

पांडे जी की सायकिल (व्यंग्य कथा) अब साहब आपका पूछना जायज ही होगा कि पांडे जी कौन ? आपने पूछ ही लिया है तो हम बताएं देते है। पांडे जी हमारे शहर की कोई नामचीन हस्ती तो है नहीं।...

Read Free

कलयुग में भगवान By Kishanlal Sharma

"नारायण नारायण---घोर कलयुग है"क्या हुआ नारद,"भगवान विष्णु, नारद को देेेखते ही बोले," चितित नज़र आ रहेे हो।कहाँ से आ रहे हो?"प्रभु भूलोक में गया था।पूरी पृथ्वी का भृमण करके आ रहा...

Read Free

बुरा तो मानों .... होली है ( व्यंग्य ) By Alok Mishra

बुरा तो मानों...... होली है ( व्यंग्य) लो साहब होली आ गई । सब ओर नारा लगने लगा ‘ बुरा न मानो .... होली है । वैसे भी हम भारतियों की परंपरा रही है कि होली हो या न हो हम बुरा नहीं...

Read Free

अंग्रेजी में बैठना कुत्ते का By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

मैं काफी मॉडर्न थे। इस लिए उनके पास एक कुत्ता था। वे उससे हिंदी नहीं बोलते थे ।अंग्रेजी में आदेश देते थे - कम , गो, यस, नो , स्टैंड, सिट। वे गुस्सा ना बोल कर चलते थे । उन्हें लगता...

Read Free

काली पुतली  By Alok Mishra

काली पुतली ये गाँव से विकसित होता छोटा सा कस्बा था । इस शहर में कुछ सड़कें ऐसी भी थी जिन पर रातों को लोग जाने से कतराते थे । आज मै जहाँ हूँ वहाँ से ही कभी शहर का वीराना प्रा...

Read Free

लोटन का शौचालय ( व्यंग्य ) By Alok Mishra

लोटन का शौचालय एक गाँव में एक बुजुर्ग रहते थे, नाम था लोटनलाल। पहले उनका भरा-पूरा परिवार था। फिर धीरे-धीरे सब साथ छोड़ते गए, कुछ मौत के कारण और कुछ लोग शहर की ओर दौड़ के क...

Read Free

सेवा-भाव की अपनी-अपनी सोच By r k lal

सेवा-भाव की अपनी-अपनी सोच आर० के० लाल पार्क में एक शाम बैठे कई बुजुर्ग समाजसेवा करने की बात पर ज़ोर दे रहे थे परंतु उनमे से दो चार लोग कह रहे थे कि उनका अनुभव अच्छा न...

Read Free

सब्जी बाजार By Alok Mishra

सब्जी बाजार हम सामाजिक रुप से बहुत ही समृद्ध होते जा रहे है । अब हमारी सामाजिक समृद्धता चाय-पान के ठेलों ढाबों और सब्जी बाजारों में दिखार्इ देती है। सामान्यत: मध्यमवर्गीय व्...

Read Free

हमारे घर छापा By Alok Mishra

हमारे घर छापा एक दिन अचानक ही मेरे मोहल्ले में हड़कम्प मच गई । पुलिस के एक बड़े से दस्ते का एक बड़ा सा फौज-फाटा हमारे मोहल्ले में दाखिल हुआ । हमें लगा , पड़ोस के वर्मा जी के घ...

Read Free

गड्ढा By Alok Mishra

गड्ढा पहले चुनाव और अब कौन जीतेगा या कौन हारेगा के शोर में हम और आप लोकतंत्र की सड़क पर पड़े उस बड़े से गड़्ढे को भूल ही गए थे , जिसका इतिहास है कि सरकार कोई भी बने...

Read Free

बीबी के ऐ जी By Alok Mishra

बीबी के" ऐ जी" सुरेन्द्र शर्मा बड़ा भला सा नाम था उनका छैल- छबीले, बांके जवान उन्होंने शादी क्या की जैसे अपना नाम ही खो दिया जब उनकी पत्नी उन्हें ऐ जी........., सुनते हो...

Read Free

अतिक्रमण -एक राष्ट्रीय खेल By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

छोटी चिन्ता /वही चिन्ता अतिक्रमण : एक राष्ट्रीय खेल हमारे देश में खेलों की गौरवशाली परम्परा है। गौरव यह है कि और हमारे में खेलों में भी खेल खेला जाता है बल्कि यहां जो कुछ भी होता ह...

Read Free

मैं बजट क्यूं देखूं? By Suvidha Gupta

कुछ दिन पहले मेरे एक परिचित का फोन आया। किसान आंदोलन की वजह से उनके यहां, नेट नहीं चल रहा था। तो उन्होंने मुझसे पूछा,"क्या आपने बजट देखा?" मैंने कहा,"नहीं"। नहीं सु...

Read Free

जूते की आत्मकथा  By Alok Mishra

जूते की आत्मकथा मैं एक जूता हुँ , अरे साहब वही जूता जो आप सर्दी,गर्मी और बरसात में बिना मुर्रवत के रगड़ते रहते है , अरे वही जूता जो सम्मान का प्रतीक बन कर आप के चरणों में सजता...

Read Free

कोतवाल की गर्दन (व्यंग्य कथा ) By Alok Mishra

कोतवाल की गर्दन एक नगर था, छोटा सा । इस नगर में रहने वाले लोग बहुत ही भोले- भाले थे । वे सुनी बातों को सत्य समझते और जो दिखता उसे परमसत्य । इस नगर का कोतवाल भोला सा दिख...

Read Free

लाल स्कूटी वाला - 2 (अंतिम भाग) By Aakanksha

अक्षिता नाम की एक लड़की बारहवीं कक्षा में पढ़ती है और उसे एक चिराग़ नाम का लफंगा लड़का परेशान करता है इसलिए अक्षिता उसका आधारकार्ड देखना चाहती है, परंतु अक्षिता...

Read Free

दर्द-ए-वेलेंनटाइन By Gaud Arun

सुबह सुबह मोवाइल की मैसेज रिगं बजी, चंदू ने अलसाये हुये रजाई से अपना मुँह बहार निकाला और आंखे मसलते हुये मैसेज पढने लगा, वह ‘वेलेंग्टाइन वीक’ का मैसेज था, ‘अशिकी के उत्सव’ का निमंत...

Read Free

छापे का डर (व्यंग्य कथा) By Alok Mishra

छापे का डर विभिन्न स्थानों पर चपरासी ,बाबू और बड़े-बड़े सहाबों के घर छापे पड़ने लगे । खबरों की दुनिया में तहलका मच गया क्योंकि इनके घर करोड़ों उगलने लगे । ऐसे समय में र...

Read Free

लेखक की चुनौती (व्यंग्य) By Alok Mishra

लेखक की चुनौती साहित्य समाज का आईना होता है परंतु साहित्य भी समाज को उसके वास्तविक रूप में चित्रण से बचता रहा है। समाज में जहाँ अच्छाईयाँ, आदर्श और ईमानदारी है वही धूर्तता, म...

Read Free

मरा कुत्ता’ (व्यंग्य कथा) By Alok Mishra

‘‘मरा कुत्ता’’ शहर से दूर एक माईन्स एरिया के थाने में उदासी का आलम हैैै। थानेदार को ऊपर से खबर आयी है कि किसी विशेष आयोजन के लिए पैसों का बंदोबस्त करना है। थानेदार ने हवलद...

Read Free

विज्ञप्ति वीर (व्यंग्य) By Alok Mishra

विज्ञप्ति वीर भारत वीरों की धरती है । यहॉं सच्चे सपूत पहले सर कटा कर ,कालांतर में उंगली कटा कर शहादत देते रहे है । अब आपके हमारे आस-पास वीरों की एक नई ही फसल लहलहाने लगी...

Read Free

अपने देश की खोज(व्यंग्य) By Alok Mishra

अपने देश की खोज पूरे देश में इस समय पाकिस्तान से कुम्भ के बहाने वीज़ा लेकर आए 80 परिवारों की चर्चा है। ये परिवार अब पाकिस्तान वापस नहीं जाना चाहते । वे भारत को अपना देश मानते...

Read Free

तीन दोस्‍त (व्यंग्य) By Alok Mishra

तीन दोस्‍त एक शहर में तीन दोस्‍त थे , तीनों बेरोजगार । उन्‍होने रोजगार पाने का बहुत प्रयास किया लेकिन हर ओर भ्रष्‍टाचार और भाई भतीजावाद के का बोल बाला था। उन्‍होंने जुगाड़ करन...

Read Free

असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 27 - अंतिम भाग By Yashvant Kothari

27 माधुरी को सम्पूर्ण प्रकरण की जानकारी थी । मगर इस तरह के हल्के-फुल्के मामलेां की वो जरा भी परवाह नही करती थी । वैसे भी संस्था के विभिन्न दैनिक कार्यक्रमों में वो दखल नही देती थी...

Read Free

अब बदला लेंगे हम (व्यंग्य) By Alok Mishra

अचानक ही ऐसा लगने लगा, अब कुछ होगा। पठानकोट हमले को अभी बहुत दिन नहीं बीते हैं। फोनों और मोबाइलों की घंटियाँ घनघनाने लगी। दिल्ली, मुम्बई और पुर्तगाल सहित अनेक देशों में...

Read Free

बाऊजी और बंदर By Suryabala

सूर्यबाला उन्‍हें फिर से बच्‍चों की बहुत याद आ रही है। सुनते ही मैंने सिर कूट लिया। सिर कूटने की बात ही थी। अभी साल भी तो पूरा नहीं हुआ, संदीले में आए ही थे। एक-दो नहीं, पू...

Read Free

देश-सेवा के अखाड़े में... By Suryabala

सूर्यबाला यह खबर चारों तरफ आग की तरह फैल गई कि मैं देश-सेवा के लिए उतरने वाला हूँ। जिसने सुना, भागा आया और मेरे निर्णय की दाद दी। सुना, आप देश-सेवा के लिए उतर रहे हैं। ईश्वर देश का...

Read Free

ठंडे जी का स्टार्टअप By Prabodh Kumar Govil

अब साल पूरा होने में केवल दो ही दिन बचे थे। न - न ...आज कोई उनतीस दिसंबर नहीं था। आज तो अठारह दिसंबर ही था। लेकिन आप सोच रहे हैं न कि फ़िर साल ख़त्म होने में बस दो ही दिन कैसे बचे?...

Read Free

जेबकतरा By राज कुमार कांदु

कलुआ एक जेबकतरा है। आठ नवम्बर 2016 को मोदीजी के आर्थिक सर्जिकल स्ट्राइक का सबसे बड़ा पीड़ित पक्ष अगर कोई है तो वह है कलुआ जैसे छोटे मोटे जरायम पेशा लोग। भारत में एक अनुमान के मुताबिक...

Read Free

पुरस्कार By Alok Mishra

बहुत दिनों से सोच रहा था, कि कुछ नहीं बोलूंगा क्योंकि हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है। फिर हमें चुप रहना आता ही कहाँ है ? अब साहब लेखक लोगों की बिरादरी में पुरस्कार वापस करन...

Read Free

जूते चिढ़ गए हैं... By Suryabala

सूर्यबाला जूते चिढ़ गए हैं इन दिनों। कहते हैं, यह हमारी तौहीनी है। ये क्या कि हमें जिस-तिस पर उछाल दिया, जैसे हमारी कोई इज्जत ही नहीं। बात सही है कि चिरकाल से हमारा निवास आदमी के पै...

Read Free

कौन आया मेरे घर के द्वारे By Annada patni

आवत ही हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह, तुलसी तहाँ न जाइये, कंचन बरसे मेह ।। संत तुलसीदास जी कहते हैं कि जहाँ आपको आते देख, लोग खुश न हों और जिनकी आँखों में आपके लिए प्रेम न हो, ऐसी जगहो...

Read Free

महानता के नुस्खे  By Alok Mishra

महानता के नुस्खे हकीम लुकमान ने दुनिया के सभी मर्जाें के नुस्खे बताए । वे ये बताना तो भूल ही गए कि एक आम आदमी किन नुस्खों से महान बने । हमें भी तो ऐसी फालतू बातों की खोज करन...

Read Free

ए मेरे वतन के लोगों .....  By Alok Mishra

ए मेरे वतन के लोगों ..... हमारे पोपटलाल जी वैसे तो देशभक्त है लेकिन स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर उनकी देशभक्ति चरम पर पहुंच जाती है । उस पर जैसे ही लता जी '&#39...

Read Free

गर्व से कहो हम पति हैं By Suryabala

सूर्यबाला महिलाओं को मालूम है कि जिस तरह हर सफल पुरुष के पीछे कोई महिला होती है उसी तरह हर असफल महिला के पीछे भी कोई-न-कोई पुरुष होता है। आप भी माने या न मानें, स्त्री - स्वातंत्र्...

Read Free

भारत और इंड़िया (व्यंग्य ) By Alok Mishra

वो अक्सर आता और एक ही बात करता सर मोबाईल चार्ज कर लॅूं ? मै उसे ऐसा करने देता । एक दिन मैने उससे पूछा ‘‘यार तुम मेरे यहाॅ मोबाईल चार्ज करने ही आते हो क्या’’ ? उसने कहा...

Read Free