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खो दिया है खुद को कहीं तलाश खुद की जारी है। कभी मिली खुद से..... तो मिलवाऊंगी तुम से..... तरास रही हूं खुद के वजुद को नीखर गई तो मिलवाऊंगी तुम से .... उलज गये है मसले जिंदगी के सुलज गये होसले जिंदगी के तो मिलवाऊंगी तुम से..... खो दिया है खुद को कहीं तलाश खुद की जारी है। - धरा Vyas
किसने कहा मैं तेरा हिस्सा नहीं , तेरी तन्हाई का हिस्सा आज भी , तेरी जिंदगी एक हसीन किस्सा हूं मैं , किसने कहा दूर हूं मैं , तेरे लबों पर खिलती हंसी हूं मैं , किसने कहा खो गए हम , तेरी आंखों में चमकती नमी में, नहीं हूं ,मैं आने वाला कल तुम्हारा, हां हूं ,मैं बीता हुआ पल आज भी हूं और कल भी तुम्हारा और तुम्हारा सुनहरा ओ पल Dhara Vyas
ना बंधन है ,ना फेरे है , ना पास है, ना पाने कि आस है, ना अकेले हैं,ना साथ है , ना मोह है ,ना भ्रम है , ना समय का भान है , ना समाज का भय है , बस एक एहसास है कृष्ण । जिसमें हम तुम्हारे हैं कृष्ण। वहीं प्रीतहै,वहीं रीत है , राधा संग कृष्ण है। यही प्रीत अनन्त है। Vyas धरा
वह जिसे सुनकर दुःख से आंखें तेरी रोने लगेगी । आसमान से एक ऐसी खबर भी आएगी।। आज तेरी मुट्ठी में समय है। तो क्या हुआ तब तेरी मुट्ठीओ में राख होगी । -Vyas Dhara
तुमने ही समेटा था । तुमसे ही बिखर गए । तुम्हारे ही वादे थे , तुमसे ही टूट गए । हम तो तेरे थे। तेरे ही होके रह गए । ख्वाहिश साथ चलने की हमारी थी। हम तो एक ही मंजिल के दो मुसाफिर हो गए । -Vyas Dhara
जुदा होने से बड़ी कोई सज़ा नहीं , सज़ा किस बात की है यह भी पता नहीं , और, इतना खोया है , कि अब खोने को कुछ बचा ही नहीं । -Vyas Dhara
my new poems coming soon 😉.......
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