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उषा जरवाल

उषा जरवाल Matrubharti Verified

@usha.jarwal
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इंसान ज़िंदगीभर चैन की ज़िंदगी बिताने के लिए दौलत के पीछे भागता है, और अंत में दौलत तो बहुत होती है पर ज़िंदगी पीछे छूट जाती है ।
- उषा जरवाल

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कुछ लोग आपके धैर्य की अंतिम सीमा तक आपको आजमाते हैं । फिर एक वक्त आता है जब उनके हर सवाल का जवाब आपकी खामोशी होती है । ये खामोशी उनकी उपेक्षा से उपजी हृदय की वो निराशा है जो अब उन्हें नहीं सुहाती ।
- उषा जरवाल

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खुद को बेहतर बनाने के लिए समय लीजिए, खुद को साबित करने के लिए नहीं ।
- उषा जरवाल

खिचड़ी - यदि बरतन में पके तो बीमार इंसान को ठीक कर देती और दिमाग में पके तो इंसान को बीमार कर देती है ।
- उषा जरवाल

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माँ और पत्नी दोनों ही आपकी गुरु हैं ।
माँ कहती है कि पत्नी सिखाती है और पत्नी कहती है कि माँ सिखाती है ।
विनम्रता की पराकाष्ठा तो देखिए कि सिखाती दोनों हैं लेकिन उसका श्रेय दोनों ही नहीं लेना चाहती ।
- उषा जरवाल

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यूँ ही एक छोटी - सी बात पर रिश्ते पुराने बिगड़ गए,
बात ‘सही क्या है ?’ से शुरू हुई थी और वे ‘सही कौन है ?’ पर अड़ गए ।

उषा जरवाल ‘एक उन्मुक्त पंछी’

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उन्हें कामयाबी में सुकून नज़र आया तो वे दौड़ते गए,
हमें सुकून में कामयाबी दिखाई दी तो हम ठहर गए ।
ख़्वाहिशों के बोझ में दबा तू क्या - क्या कर रहा है ?
इतनी तो ज़िंदगी भी नहीं है जितना तू मर रहा है !
- उषा जरवाल

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किसी न किसी के शब्द तो यदा कदा चुभते ही रहते हैं । जिस दिन किसी का मौन चुभ जाए तो सँभल जाना ।
उषा जरवाल ‘एक उन्मुक्त पंछी’

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मुझे ‘मैं’ पसंद हूँ ।

यह बिंदी ना लगाया करो ,

यह तुम पर जँचती नहीं ।

गहरे रंग ही पहना करो ,

यह साड़ी तुम पर फबती नहीं ॥

तो सुनो ...

यह बिंदी मैंने लगाई है ,

तो मुझे तो जँचती ही होगी।

यह साड़ी भी मैंने ही खरीदी है,

पहनी है तो मुझे पसंद ही होगी ॥

तुम्हें लाल रंग पसंद है तो ,

पीला रंग खराब है क्या ?

तुम शौक़ीन हो ‘अंग्रेज़ी’ में बड़बड़ाने के,

तो ‘हिंदी’ मेरी बेमिसाल नहीं है क्या ?

इतना तो तुम्हें भी पता ही होगा कि ,

नहीं मिलते दो लोगों के उंगलियों के भी निशान ।

फिर कैसे हो सकती है ?

सभी की पसंद नापसंद एक समान । ।

मेरे शौक को ,मेरे पहनावे को,

मेरे खाने को , मेरे गाने को ,

यूँ बेवजह जज ना तुम किया करो ।

खुद में भी मस्त रहना सीखो ,

हरदम दूसरों में नुक्स निकालने का कष्ट ना तुम किया करो ॥

क्या पता ...

तुम्हारी कोई पसंद भी ,

करोड़ों में से हर एक को रास नहीं हो। ।

तो क्या ?

आज तक जो तुम खुद को ‘ख़ूब’ समझते आए हो ,

मतलब,

तुम भी कुछ खास नहीं हो।

उषा जरवाल ‘एक उन्मुक्त पंछी’

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एक बार समंदर के किनारे एक केकड़ा अपने पैरों के सुंदर निशान बनाता हुआ चल रहा था । वह बार - बार पीछे मुड़कर अपने पैरों से बनाए हुए निशानों को देख रहा था और मन ही मन खुश हो रहा था । वह यह सोचकर खुश हो रहा था कि उसके पैरों के निशान सबसे सुंदर हैं ।
इतने में ही समंदर की एक तेज़ लहर आई और उसके सुंदर निशानों को मिटा दिया । यह देखकर केकड़े को बहुत बुरा लगा और वह समंदर को भला - बुरा कहने लगा । उसने समंदर से कहा कि वह उसकी कला से चिढ़ता है इसलिए उसने उसके पैरों के निशानों को मिटा दिया ।
समंदर मुस्कुराया और कहा -“कुछ मछुआरे तुम्हारे पैरों के निशानों का पीछा करते हुए तुम्हें पकड़ने आ रहे थे इसलिए मैंने उन निशानों को मिटा दिया ताकि वे तुम तक न पहुँच सके और तुम्हारी रक्षा हो सके ।”
समंदर की बात सुनकर केकड़े को अपने व्यवहार पर पछतावा हुआ ।
कई बार हम दूसरों के बारे में जाने बिना उनके प्रति गलत धारणा बना लेते हैं जिसके लिए हमें बाद में पछताना पड़ता है ।

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