The Download Link has been successfully sent to your Mobile Number. Please Download the App.
Continue log in with
By clicking Log In, you agree to Matrubharti "Terms of Use" and "Privacy Policy"
Verification
Download App
Get a link to download app
अध्याय ४:- ज्ञान कर्म संन्यास योग अर्जुन उवाच | अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वत: | कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति ||4. 4|| - Rαᴠɪna_____
अध्याय ४:- ज्ञान कर्म संन्यास योग स एवायं मया तेऽद्य योग: प्रोक्त: पुरातन: | भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम् || 4.3|| - Rαᴠɪna_____
अध्याय ४:- ज्ञान कर्म संन्यास योग एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदु: | स कालेनेह महता योगो नष्ट: परन्तप || 4.2||
अध्याय ४:- ज्ञान कर्म संन्यास योग श्रीभगवानुवाच | इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् | विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत् || 4.1|| - Rαᴠɪna_____
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय ४:- ज्ञान कर्म संन्यास योग प्रारंभ जय योगेश्वर 🙏🏻
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय:-३ कर्मयोग संपूर्ण जय योगेश्वर 🙏🏻
अध्याय:-३ कर्मयोग एवं बुद्धे: परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना | जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम् || 3.43||
अध्याय:-३ कर्मयोग इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्य: परं मन: | मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धे: परतस्तु स: || 3.42||
अध्याय:-३ कर्मयोग तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ | पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम् || 3.41|| - Rαᴠɪna_____
अध्याय:-३ कर्मयोग इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते | एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम् || 3.40||
Copyright © 2025, Matrubharti Technologies Pvt. Ltd. All Rights Reserved.
Please enable javascript on your browser