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suhail ansari

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@suhailansari028830


## 👁️‍🗨️ **कहानी का नाम: "13वां कमरा"**

*(5 भागों में एक मनोवैज्ञानिक हॉरर — जहां डर, दीवारों में नहीं... दिमाग में रहता है)*

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### 🔥 **भाग 1: किराये पर एक सस्ता फ्लैट**

आयुष नई नौकरी के लिए शहर में आया था।
बजट कम था — तो उसे एक शानदार मगर सस्ता फ्लैट मिल गया, एक पुराने अपार्टमेंट में।

मालिक ने सिर्फ एक बात कही:

> “बिल्डिंग में 13 नंबर का कोई फ्लैट नहीं है। किधर भी मत भटकना।”

आयुष को बात अजीब लगी, लेकिन अनसुना कर दिया।

रात को नींद के वक्त…
उसके मोबाइल पर एक अनजान नोटिफिकेशन आया:
**“कमरा 13 खुला है। दरवाज़ा बंद करो।”**

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### 🧱 **भाग 2: वो जो दिखता नहीं**

दूसरे दिन, बिल्डिंग में एक छोटा बच्चा मिला —
उसने पूछा:

> “क्या आप भी 13वें कमरे में रहते हैं?”

आयुष ने हँसते हुए जवाब दिया — “यहाँ ऐसा कोई कमरा नहीं।”

बच्चा बोला — *“पर वो मुझे रोज़ बुलाता है। रात को।”*

रात होते ही, आयुष की दीवार से **धीमी खरोंचने की आवाज़ें** आने लगीं।
उसने दरवाज़ा खोला — और देखा, **13 नंबर का एक दरवाज़ा गैलरी के एक कोने में था।**
जो सुबह नहीं था।

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### 🔒 **भाग 3: अंदर कोई है**

आयुष ने उस दरवाज़े के पास जाते ही महसूस किया —
**हवा ठंडी हो गई, और दिल ज़ोर से धड़कने लगा।**

दरवाज़े पर कोई कुंडी नहीं थी।
वो खोलता है —
अंदर अंधेरा... और **एक पुराना झूला हिल रहा था**... अपने आप।

झूले के पास एक लड़की बैठी थी —
पीठ उसकी ओर थी।
वो बोली,
**“तू लेट आया... मैंने बाकी सबको खा लिया।”**

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### 💀 **भाग 4: 13 लोगों की सजा**

आयुष जानता है कि कुछ गलत है।
वो पड़ोसियों से पूछता है।
एक बूढ़ा आदमी कहता है:

> “इस बिल्डिंग का फ्लैट नंबर 13 था… लेकिन उसमें 13 दोस्त रह रहे थे।”
> “एक रात पार्टी में किसी ने ज़हर मिला दिया... और सब मर गए।”
> “तभी से वो कमरा बंद कर दिया गया। लेकिन आत्मा बंद नहीं हुई।”

अब जो भी नया आता है — **कमरा उसे चुनता है।**

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### 🕯️ **भाग 5: कौन है असली?**

आयुष ने उस कमरे में कैमरा लगाया।
रिकॉर्डिंग में दिखा —
रात को **वो खुद उठता है**, चलता है… और उसी कमरे में जाकर **झूले पर बैठ जाता है।**

वो वीडियो देख ही रहा था कि उसके पीछे से आवाज़ आई:
**“ये तुम नहीं हो, ये हम हैं।”**

वो पलटा — **वहीं झूला उसके कमरे में था।**
अब वो समझ नहीं पा रहा था कि क्या सपना है, क्या असल।

**अगली सुबह, फ्लैट खाली मिला।**
आयुष ग़ायब था —
बस दीवार पर लिखा था ।।।।।।।।।
सुहेल अंसारी

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## 🕯️ **कहानी का नाम: “सीलन”**

*(एक पुरानी हवेली... एक खोई औरत... और दीवारों में कैद सिसकियाँ)*

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### 🔸 **भाग 1: बंद हवेली की दस्तक**

काव्या, एक वास्तुशिल्पी (architect), को एक ऑफर मिला —
शहर के बाहर एक सौ साल पुरानी हवेली को नया रूप देना था।

मालिक का एक ही कहना था:

> “हवेली में कोई तोड़फोड़ न हो... बस साफ़ कर दो।”
> “नीचे तहखाने में मत जाना। वहाँ सब बंद है।”

काव्या हवेली पहुँची —
छतों से सीलन टपक रही थी, दीवारों में अजीब निशान थे —
जैसे **किसी ने अंदर से खरोंचा हो।**

पहली रात, दीवार से अचानक एक औरत की धीमी आवाज़ आई:
**"तू आई है मुझे बाहर निकालने?"**

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### 🔸 **भाग 2: दीवारों की दरार**

अगली सुबह, हवेली में रंग करवाते समय मजदूरों ने दीवार में एक हल्की दरार खोली।
उसमें से **राख जैसी गंध** और **एक टूटा ब्रेसलेट** मिला।

काव्या ने ब्रेसलेट को छुआ —
और तभी उसे तेज़ सरदर्द हुआ और आंखों के सामने **एक लड़की की चीख़** गूंजने लगी।

लड़की कहती है:

> “मुझे दीवारों में बंद कर दिया गया था...
> मैं अब भी यहीं हूँ... मैं अब भी... जिंदा हूँ।”

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### 🔸 **भाग 3: तहखाने का रहस्य**

काव्या को अब हवेली के नीचे के तहखाने में उतरने की जिद हो गई।
रात के समय, जब सब सो रहे थे, वो अकेली उस लोहे के दरवाज़े तक गई —
दरवाज़ा खुद-ब-खुद **खुल गया।**

अंदर सीढ़ियाँ थीं — गहरी और अंधेरी।
नीचे एक कमरा था — और उसमें पुराना लकड़ी का झूला, एक बच्चा गुड्डा, और दीवार पर लिखा था:
**“शगुफ़्ता, उम्र 19, क़ैद — 1912”**

तभी पीछे से किसी ने कान में फुसफुसाया:
**“अब तू मेरी जगह ले...”**

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### 🔸 **भाग 4: आत्मा की पहचान**

काव्या ने तहकीकात शुरू की।
पुराने अखबारों से पता चला — 1912 में इस हवेली के मालिक ने अपनी बेटी "शगुफ़्ता" को
**जिंदा दीवारों में चुनवा दिया था**, क्योंकि वो एक नौकर से प्यार करती थी।

तब से हवेली खाली रही।

शगुफ़्ता की आत्मा अब **हर उस लड़की को पुकारती है**, जो उसकी उम्र की हो —
उसे दीवारों से **आज़ाद** करने के लिए।
लेकिन आज़ादी की कीमत है — **एक नया शरीर... एक नया बंदी।**

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### 🔸 **भाग 5: सीलन की साँस**

काव्या को महसूस हुआ कि वो अब धीरे-धीरे बदली जा रही है —
उसकी आंखें लाल होने लगी थीं, आवाज़ भारी, और दीवारों से *“शगुफ़्ता”* की परछाईं उसे बुला रही थी।

आखिरी रात, हवेली में एक ज़ोरदार चीख़ गूंजी।
और फिर... **सब चुप।**

अगले दिन, हवेली को नया नाम दिया गया —
**“काव्या विला”**
लेकिन जो भी आता, उसे दीवार से सीलन नहीं — **सिसकियाँ** सुनाई देतीं।

> “अब शगुफ़्ता आज़ाद है... और काव्या उसकी जगह पर बंद है
सुहेल अंसारी। सनम

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"तेरे बिना कुछ भी नहीं"

तेरी आंखों में जो ठहराव है,
वो शहर की भीड़ में मेरा ठिकाना है।

तू जब मुस्कुराती है यूं बेपरवाह,
दिल सोचता है — और क्या चाहिए अब खुदा से?

तेरे बिना जो जिया वो वक़्त नहीं था,
सांसें थीं... पर ज़िंदगी कहीं नहीं थी।

तू साथ हो तो चाय भी कविता लगती है,
तेरे बिना कॉफ़ी भी फीकी लगती है।

तेरे आने से खामोशी में हरकत आई है,
दिल की दीवार पर तेरा नाम लिखा दिखाई देता है।

तू समझता नहीं पर हर बात समझा जाता है,
तेरा चुप रहना भी मेरा हाल बयाँ करता है।

तेरे ज़िक्र से भी फूल खिल जाते हैं,
और लोग कहते हैं, "तू कुछ ज़्यादा मुस्कुराता है आजकल।"

तेरी तस्वीर को देखा हर दिन नए नज़रों से,
जैसे हर बार तू थोड़ी और मेरी हो जाती है।

तेरे बिना जो किताब पढ़ी वो खाली थी,
तू थी तो हर लफ़्ज़ में रौशनी थी।


तेरा नाम जुबां पर आते ही कुछ थम जाता है,
जैसे दिल भी कहता है — बस अब और मत बोल।

तेरे होने से मुकम्मल हूं मैं,
वरना खुद को भी पूरा नहीं समझता था।

-सुहेल अंसारी । सनम

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**ग़ज़ल: जुदाई की तड़प**

तेरे बिन सूना सा हर एक मंज़र रहा,
दिल में बस तेरा ही आलम बस्तर रहा।

खामोशी की चादर ओढ़े रातें जागतीं,
चाँद भी तन्हा, जैसे मुझ में बिखर रहा।

वो मुलाकातें, वो बातें, वो हँसी के पल,
अब ख्वाबों में बस धुंधला सा असर रहा।

साँसों में बसी थी जो तेरी खुशबू कभी,
अब आँसुओं का वो समंदर बिखर सा रहा।

गलियों में तेरी याद की सैर करता हूँ,
हर कदम पे दर्द का साया नुमाया सा रहा ।

क्या कहूँ इस जुदाई ने क्या-क्या छीना,
खुद से भी मेरा वजूद अब बे-सहर रहा।

तेरे बिना हर लम्हा इक सजा सा बन गया,
जिंदगी का हर रंग अब जैसे ,बे रंग सा लगा l

कभी नज़रों में थी तुझ से दुनिया सारी,
अब आँखों में बस तेरा ही अक्स रहा।

सुनहरी यादों का मेला दिल में सजता है,
पर हर याद में तेरी दर्द का सैलाब बहता रहा।

कहाँ गए वो वादे, वो कसमें, वो बातें,
अब बस तन्हाई का सफर अकेले ही कट ता रहा।

तू पास नहीं, फिर भी तू हर जगह बस्ता,
दिल का हर कोना तुझ से ही तो बस्तर रहा।

जुदाई की आग में जलता हूँ रात-दिन,
फिर भी तुझ में ही मेरा जीना बसर रहा।

कभी तो आएगा वो लम्हा मुलाकात का,
जो ख्वाबों में हर पल मुझ में संवर रहा।

इस दिल ने चाहा तुझ को हर साँस में बस,
पर जुदाई का दर्द ही अब तक बिखर रहा।
सुहेल अंसारी (सनम)

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**तू ही है वो***
**तू ही है वो बात जो लफ़्ज़ों से आगे है,**
दिल में बसी कोई धड़कन की तरह है।

**तेरा हँसना जैसे बारिश की पहली बूँद,**
मन की तपिश पर ठंडी सी राहत है।

**तेरी आँखों में जो खामोशी बसी है,**
वो कहानियों से भरी एक किताब है।

**तू जब पास होता है, सब कुछ ठहर सा जाता है,**
वक्त भी रुककर तुझमें समा जाता है।

**तेरे होने से हर दिन लगे त्योहार सा,**
वरना हर दिन बस एक सा गुज़रता था।

**मैंने तुझमें खुद को देखा है कई बार,**
तू आईना भी है, और तस्वीर भी।


**तेरी आवाज़ की ख़ुशबू में डूबा रहता हूँ,**
हर बात तेरी जैसे कोई गीत हो।

**तेरा नाम जब भी लबों पे आता है,**
दिल बिना वजह मुस्कुरा जाता है।


**तू नहीं होती तो शायद मैं भी अधूरा होता,**
तेरे साथ होने से मुकम्मल हूँ मैं।


**तेरे स्पर्श में जो गर्मी है, वो सूरज सी,**
और जो नर्मी है, वो चाँदनी सी।


**तेरी ख़ामोशियाँ भी बोलती हैं मुझसे,**
और मैं हर बार उन्हें सुन लेता हूँ।


**तू अगर ख्वाब है तो नींदें दुआ बन जाएं,**
तू अगर हकीकत है तो हर रोज़ ईद हो।


**इस मोहब्बत को क्या नाम दूँ, कुछ सूझे नहीं,**
तू मेरा सब कुछ है, पर सब कुछ भी कम लगे।


**तू ही वो अहसास है जो बिन कहे भी जीता है,**
तू ही वो साज़ है जो बिन छुए भी बजता है।

सुहेल अंसारी । सनम

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**चाँदनी रात में तुझको पुकारूँ**

चाँदनी रात में तुझको पुकारूँ,
तेरे बिन सजना मन को ना देखूँ।

चाँद की किरनें बिछे रे बिछाने,
तेरे बिन ये रात अधूरी रे देखूँ।

पानी की लहरें करे रे पुकारा,
तेरे बिन ये नदिया सूनसान देखूँ।

सितारे झिलमिल करे रे इशारा,
तेरे बिन ये आकाश उदास रे देखूँ।

गाँव की गलियों में चाँद रे चमके,
तेरे बिन ये गलियाँ खाली रे देखूँ।

हवा की सरगम सुनाये रे गीतवा,
तेरे बिन ये धुनें अधूरी रे देखूँ।

महके रे फूलों की खुशबू हवाओं में,
तेरे बिन ये बगिया बेकार रे देखूँ।

झींगुर की आवाज़ बजे रे रात में,
तेरे बिन ये संगीत फीका रे देखूँ।

पेड़ों की छाँव में सपने रे सजते,
तेरे बिन ये सपने अधूरे रे देखूँ।

अंखियों में तेरा रे चेहरा बसे रे,
तेरे बिन ये नैन तरसते रे देखूँ।

दिल की किताबों में तेरा रे नामवा,
तेरे बिन ये पन्ने खाली रे देखूँ।

चाँदनी रात में तेरा रे इंतज़ार,
तेरे बिन ये लम्हे भारी रे देखूँ।

तेरे संग सजना सजे रे ये रातें,
तेरे बिन ये चाँदनी ठंडी रे देखूँ।

दिल-ए-मोहब्बत ये कहे बेकरारी,
तेरे संग सजना जीना रे देखूँ।
सुहेल अंसारी । सनम

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**सुबह तेरा ख्याल**

सुबह 5 बजे, नींद से जागा,
तेरे ख्याल में, दिल ये भागा,
बालकनी में हवा, चुपके से बोले,
तेरे बिन सजना, ये दिल ना डोले।

सुबह तेरा ख्याल, दिल को भाये,
तेरे प्यार का रंग, मन को लाये,
तेरे संग हर पल, जीना है मुझको,
तू है मेरा सपना, तुझसे ही जादू।

कॉफी की चुस्की, तेरे नाम की,
फोन की स्क्रीन पे, तस्वीर तेरी सी,
तेरे मैसेज का, इंतज़ार करता,
तेरे रिप्लाई से, दिल मेरा धड़कता।

सुबह तेरा ख्याल, दिल को भाये,
तेरे प्यार का रंग, मन को लाये,
तेरे संग हर पल, जीना है मुझको,
तू है मेरा सपना, तुझसे ही जादू।

शहर की सड़कों पे, तुझको ढूंढूँ,
लाइट्स की चमक में, तुझको ही पूछूँ,
तेरे प्यार की धुन, हेडफोन में बजती,
तेरे बिन ये धुन, अधूरी सी लगती।

पार्क की बेंच पे, तेरा इंतज़ार,
तेरे कदमों की, सुनूँ मैं पुकार,
तेरे बिन सजना, ये वक्त ना कटे,
तेरे प्यार में ही, मेरा दिल बटे।

तेरे संग बारिश में, सेल्फी लूँ मैं,
तेरे प्यार में डूबके, गीत गुनगुन मैं,
तेरे बिन सजना, ये दुनिया है काली,
तू है मेरा सूरज, तू मेरी लाली।

सुबह तेरा ख्याल, दिल को भाये,
तेरे प्यार का रंग, मन को लाये,
तेरे संग हर पल, जीना है मुझको,
तू है मेरा सपना, तुझसे ही जादू।

तो आ जा पास मेरे, थाम ले ये हाथ,
सुबह की धूप में, करें प्यार की बात,
तेरे बिन सजना, अधूरी कहानी,
तू है मेरा प्यार, मेरी सुबह की रानी।
सुहेल अंसारी । सनम

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**तेरे बिन सजना लागे ना मनवा**
(रदीफ़: "लागे ना मनवा", काफिया: "कनवा")

सावन की बूंदें बरसें रे कनवा,
तेरे बिन सजना लागे ना मनवा।

खेतों की माटी महके रे सुनवा,
तेरे बिन ये धरती ठंडी रे कनवा।

पंछी की चहचह गाए रे गीतवा,
तेरे बिन ये धुन अधूरी रे कनवा।

चंदा की चांदनी झिलमिल करे रे,
तेरे बिन ये रात सूनसान कनवा।

माथे पे बिंदिया सजायी मैंने रे,
तेरे बिन ये साज फीका रे कनवा।

चूड़ी की खनक में गूँजे रे बोलवा,
तेरे बिन ये कंगना खामोश कनवा।

गाँव की चौपाल पे बातें रे करवा,
तेरे बिन ये सखियाँ उदास रे कनवा।

महके चमेली की कलियाँ रे सुनवा,
तेरे बिन ये खुशबू ना भाए कनवा।

बरगद की छाँव में सपने रे सजवा,
तेरे बिन ये नींद ना आए कनवा।

पनघट पे पानी भरूँ रे मैं डोलवा,
तेरे बिन ये गागर भारी रे कनवा।

सुरमई अंखियों में सपने रे बसवा,
तेरे बिन ये नैन तरसते रे कनवा।

दिल की दुआएँ करे रे पुकारवा,
तेरे बिन ये धड़कन रुके रे कनवा।

बाहर की हवा में तेरा रे संदेसवा,
तेरे बिन ये मौसम बेकार रे कनवा।

दिल-ए-मोहब्बत ये कहे बेकरारी,
तेरे संग सजना सजे मेरा मनवा।
सुहेल अंसारी।सनम

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**तेरे बिन सजना लागे ना जिया**


सावन की रिमझिम में बरसे गगनिया,
तेरे बिन सजना लागे ना जिया।

खेतों की पगडंडी पे चंदा चमके,
तेरे बिना चाँदनी ठंडी पिया।

गाँव की गलियों में पपीहा बोले,
तेरे बिन ये गीत अधूरे पिया।

माथे पे बिंदिया सजाके मैं आई,
तेरे बिन ये शृंगार फीका पिया।

महके चमेली, गुलाबों की डारी,
तेरे बिन ये खुशबू ना भाये पिया।

अंखियों में सपने सजाये मैंने,
तेरे बिन ये सपने ना साजे पिया।

दिल की दुआएँ करे बेकरारी,
तेरे संग जीना, ना मरे ये जिया।

सुहेल अंसारी। सनम

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**तेरे बिन ये सुबह**

सुबह 5 बजे, कॉफी की चुस्की,
तेरे मैसेज की, यादों की रुस्की,
बालकनी में हवा, चुपके से बोले,
तेरे बिन दिल ये, कुछ अधूरा सा खोले।

तेरे बिन ये सुबह, रंगों से खाली,
तेरी बातें ही, बनें मेरी लाली,
तेरे संग जी लूँ, हर एक लम्हा,
तू है मेरा म्यूजिक, मेरा सारा गाना।

शहर की रौशनी, जगमग सड़कें,
तेरे साथ की, वो प्यारी बड़बड़ बक-बकें,
हेडफोन में धुन, तेरी आवाज़ गूँजे,
दिल की स्क्रीन पे, तेरा चेहरा ही झलके।

तेरे बिन ये सुबह, रंगों से खाली,
तेरी बातें ही, बनें मेरी लाली,
तेरे संग जी लूँ, हर एक लम्हा,
तू है मेरा म्यूजिक, मेरा सारा गाना।

तेरे नाम की स्टोरी, इंस्टा पे लगाऊँ,
तेरे प्यार में डूबके, मैं दुनिया भुलाऊँ,
सनराइज की सेल्फी, तेरे संग है प्यारी,
तेरे बिन सजनी, ये ज़िंदगी है कारी।

तो आ जा पास मेरे, थाम ले ये हाथ,
सुबह की धूप में, करें हम प्यार की बात,
तेरे बिन अधूरी, ये सारी कहानी,
तू है मेरा प्यार, मेरी सुबह की रानी।

सुहेल अंसारी(सनम)

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