Quotes by satyendra Kumar dubey in Bitesapp read free

satyendra Kumar dubey

satyendra Kumar dubey

@satyendradubey1988


(प्रेम कब था)

हम एक कब थे — प्रेम की परछाईं में
न तेरा था, न मेरा कोई नाम,
फिर भी दिल ने रख लिया इक पैग़ाम।
तेरी नज़रों में जो ख़ामोशी थी,
वो मेरी रूह की आवाज़ थी।

हम एक कब थे — ये सवाल ना कर,
हर धड़कन में था तेरा ही असर।
न छू सके तुझको ये हाथ कभी,
पर दिल ने तुझे हर साँस में जिया अभी।

बिना कहे, बिना सुने,
तेरे प्यार में ही तो हम बने।
तू चाँद था मेरी रातों का,
मैं ख्वाब था तेरे जज़्बातों का।

कोई रिश्ता नहीं, कोई नाम नहीं,
फिर भी तुझसे बेहतर कोई काम नहीं।
हम अगर साथ होकर भी अलग थे,
तो भी प्रेम में पूरे, अधूरे कब थे?


(सत्येंद्र कुमार दूबे)

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कविता शीर्षक: "शांत वादियों में मातम"

पहलगाम की वादियों में, बर्फ सी सफेदी घुली थी,
चिनारों की छांव तले, अमन की नर्म हवा चली थी।
पर एक दिन उन फूलों पर, बारूद की बदबू छाई,
जंगलों की शांति में, गोलियों की गूंज समाई।

नदी जो कल तक गीत गाती, आज खून से भीग गई,
धरती माँ की छाती फिर, निर्दोष लहू से सील गई।
मासूम आँखें ढूँढ रही थीं, उम्मीदों का कोई किनारा,
पर जुल्म की काली रातों ने, उजालों को भी किया किनारा।

जो बच्चे कल तितली पकड़ते, अब ताबूत में सोए हैं,
उनकी माँओं के आँचल से, सारे रंग भी खोए हैं।
सैनिक का लहू भी बोला — "मैं मिटा तो गया मगर,
मिटा न सका ये ज़हर, जो दिलों में बोता डर।"

शब्द भी रो पड़े आज, कलम थरथराई है,
वो घाटी जहाँ कभी प्रेम था, आज सिसकियाँ समाई हैं।
लेकिन याद रखो ओ आतंक, यह वादी झुकेगी नहीं,
हर आँसू की चिंगारी से, एक नई सुबह फूटेगी यहीं।

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