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@nikiii

"मातृभारती की वाणी"

माँ की गोद सी कोमल भाषा,
माटी की सौंधी सी परिभाषा,
जिसमें बसी हो संस्कृति सारी,
वह वाणी है — मातृभारती हमारी।

शब्दों के मंदिर में दीप जलाकर,
कवि बनते हैं साधक बनकर,
हर अक्षर में रस बरसाए,
मन के भावों को रूप दिलाए।

कभी बन जाए वीर गाथा,
कभी बहा दे आँसू की धारा,
कभी प्रेम में डूबे गीतों में,
कभी जगे चेतना पुकारा।

यह केवल कविता नहीं कहानी है,
यह आत्मा की गहराई की निशानी है।
हर पन्ने पर छुपी संवेदना,
हर बिंदी में है कोई भावना।

मातृभारती, तू है संस्कारों की खान,
तूने ही सिखाया शब्दों का मान।
तेरे आँगन में उगते हैं विचार,
जो बदल देते हैं जीवन के तार।

तू है कलम की शक्ति, तू है लेखनी की जान,
तेरे बिना अधूरी सी है कवि की पहचान।
तूने रचाए हैं प्रेम के अफसाने,
और सहेजे हैं युगों के दीवाने।

तू है वो धरती, जिसमें बीज पनपे ज्ञान के,
तू है वो आकाश, जिसमें उड़ते हैं अरमान के।
तेरे आंचल में लोरी भी है, जागृति की पुकार भी,
तू है मौन साधना भी, तू है क्रांति का श्रृंगार भी।

तेरी छांव में पनपा साहित्य अपार,
तेरे हर शब्द में छुपा है संसार।
तू जो बोले, तो मन झूमे,
तू जो रोए, तो आँखें भीगें।

हर लेखक, हर पाठक का तू गर्व है,
तू ही तो हिन्दी की असली शर्व है।
तूने ही जोड़ा शब्दों का राग,
तूने ही दिया हर दिल को सुबाग।

हे मातृभारती, तुझे नमन हमारा,
तेरे शब्दों में ही है सारा सहारा।
तेरे आँचल में हम सबका वास,
तू ही हमारे जीवन का प्रकाश।


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