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We are not human लगे हैं हम सभी कतार मैं मौत के फिर भी घमंड जीने का क्यों करते हैं। रह जाएगा सब यही पर पड़ा फिर भी इकट्ठा क्यों करते हैं। कोई रहता यहां कई कई दिनों भूखा और हम यहां खाना कूड़े में फेंका करते हैं। कोई मर जाता यहां ठंड से बिना कपड़ों के और हम यहां कपड़े बदल बदल कर पहना करते । किसी के पैरों में पड़ गए छाले हम यहां जूते बदला करते ना करते हम अब किसी की भी इज्जत ना करते किसी की शर्म । ना रहे हम अब इंसान और ना ही जानवर हमको कह सकते । हम बन गए स्वार्थी सभी यहां अपना खाओ और उड़ाओ यही बन गया है जीवन अब। ना देश ना धर्म ना ही समाज की परवाह हम वो युवा हैं जो करते हैं बस नशा और ना ही करते हम किसी स्त्री की इज्जत क्युकी हम अपनी मां की भी इज्जत नही किया करते । हमको दीजिए कोई और अलग नाम हमको मानुष ना कहिए । महेश ओशो 15/01/2025 1:47 AM Sangam vihar new delhi
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