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JUGAL KISHORE SHARMA

JUGAL KISHORE SHARMA

@jugalkishoresharma
(39)

सुनहरी सड़कें:
झूठे वादों और भ्रष्ट सपनों का प्रतीक नैतिक मूल्यों का व्यापारीकरण।
*****
सुनहरी सड़कों पे जब ख़्वाबों की बुनियाद रखी,
जाहिर ओ बातिन इश्क, बीमारी बेहियाद चखी।
****
हर रिश्वत पे इक भरोसे का कत्ल हो जाता है,
जर्राद बताकिद उजाला अंधेरों में खो जाता है।
******
सु ए तू दलालों की बातें अब राज़ नहीं रहीं,
सियासत के गलियों में अब शराफ़त नहीं रही।
*****
पा ए दिलाशा सिसकते लोग सड़कों के किनारे,
वो गवाही हैं उस तंत्र के, जो खा गया सारे।
********
इमां बिकते हैं खल्क ए दो जहॉं खुले बाज़ारों में,
नीयत डूबती है बंदा ए परवर चमकते इशारों में।
*******
उम्मीदें थमती हैं सजदा उॅंचा, हर ठंडी फाइल में,
इंसाफ़ गुम है तंजीम ए सब, सरकारी स्टाइल में।
*******
हस्ती ए दिल कहीं नोट की गड्डियाँ बोलती हैं अब,
सच्चाई की चीखें दर्द ए मोहबत यॉं झोलती हैं सब।
*******
ये सच है कि साजी ए हुस्न सपने अभी जिंदा हैं,
हिन्दू ए तू सौदा ईमान की बंदिशों में पाबंदा हैं।
*******
दर ए जुल्म कोई दीप जल रहा है अंधेरे में कहीं,
और कहता है कदा “मैं ही हूं सवेरे की लकीर।
*******
हल्कं आवाज़ बननी है उस सिसकती पीड़ा की,
जो खो गई है चुप्पी में सत्ता की चीत्कारों की।
*******
हमें लड़ना है कल के लिए, आज के जख़्मों से,
बच्चों की आँखों में ना हो डर की परछाइयाँं से।
*******
आशिक ए दीवान जो कुर्सियों पे बैठ मुस्कराते हैं,
जाहिर ये वक़्त बदलने पर रौशनी से घबराते हैं।
*******
मेहर ए रूखत ख़ामोशी उनका हथियार बन गई,
जादू ए आलम सत्ता की दीवार हिल जाए कई।
*******
पा ए दिलासा दस्तूर ए चादरें अब पुरानी हो चुकीं,
अहलाव की हवा से वो सब उखड़ जाय गो युही।
*******
सीधे या भोले बहर जुर्म पे चुप्पी नहीं, जवाब चाहिए,
बे-खता फूंक के हर सवाल का अब हिसाब चाहिए।
*******
कयामत ए जालिम ये मुल्क किसी की जागीर नहीं,
मैं हूॅं ये मंजिल यहाँ हर दिल की तस्वीर है यकी।
*******
पांव के छाले है अधिकारों की पहचान या गमगीन,
जो मिटाई नहीं जा सकती किसी भी आदेश किन्ह।
*******
मिजाज ए हकी हम वादें से नहीं, वफ़ाओं से बंधे दीह,
रूह ए हमः खूबा गर नींव अब सच्चाई पे ये जमीह।
*******
हकीकी आजादी सच के लिए खड़े ते अब है अकेले,
कर्देम ए नजर गरे फुर्र कल बनेंगे इंकलाब के मेले।
******* JUGAL KISHORE SHARMA, BIKANER
सुनहरी: स्वर्णिम, सोने जैसी
बुनियाद: नींव
जाहिर: प्रकट, स्पष्ट
बातिन: अंदरूनी, गुप्त
बेहियाद: असीम, अनंत
रिश्वत: घूस
कत्ल: हत्या
जर्राद: कण, छोटे टुकड़े
बताकिद: निश्चित, पक्का
दलालों: बिचौलियों, दलाल
सियासत: राजनीति
शराफत: इमानदारी
दिलाशा: सांत्वना
तंत्र: व्यवस्था
इमां: विश्वास, ईमान
खल्क: सृष्टि, लोग
नीयत: इरादा
इंसाफ़: न्याय
तंजीम: संगठन
हस्ती: अस्तित्व
साजी ए हुस्न: सुंदरता के खेल
पाबंदा: बंधे हुए
जुल्म: अत्याचार
कदा: कब
मेहर ए रूख़्त: मौन की मुहर
दस्तूर: रीति, प्रथा
अहलाव: नए विचारों की हवा
बे-खता: बिना गलती के
कयामत: प्रलय, अंत
मिजाज: स्वभाव
वफ़ाओं: वादों का पालन
इंकलाब: क्रांति
रूपकों और प्रतीकों के माध्यम से समाज की विसंगतियों को उजागर किया है: सामाजिक-राजनीतिक भ्रष्टाचार, नैतिक पतन, और सत्ता के दमन के विरुद्ध एक तीखा प्रतिकार है।
Let them ignite the fire of vichāra (self-inquiry) until even the question “Who am I?” burns to ash, and what remains is the inarticulate, irreducible suchness of being—सत्यं, शिवं, सुन्दरम् (Truth, Consciousness, Bliss). The dawn is here. The mind’s night is an illusion. Awaken

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सुनहरी सड़कें:
झूठे वादों और भ्रष्ट सपनों का प्रतीक नैतिक मूल्यों का व्यापारीकरण।
*****
सुनहरी सड़कों पे जब ख़्वाबों की बुनियाद रखी,
जाहिर ओ बातिन इश्क, बीमारी बेहियाद चखी।
****
हर रिश्वत पे इक भरोसे का कत्ल हो जाता है,
जर्राद बताकिद उजाला अंधेरों में खो जाता है।
******
सु ए तू दलालों की बातें अब राज़ नहीं रहीं,
सियासत के गलियों में अब शराफ़त नहीं रही।
*****
पा ए दिलाशा सिसकते लोग सड़कों के किनारे,
वो गवाही हैं उस तंत्र के, जो खा गया सारे।
********
इमां बिकते हैं खल्क ए दो जहॉं खुले बाज़ारों में,
नीयत डूबती है बंदा ए परवर चमकते इशारों में।
*******
उम्मीदें थमती हैं सजदा उॅंचा, हर ठंडी फाइल में,
इंसाफ़ गुम है तंजीम ए सब, सरकारी स्टाइल में।
*******
हस्ती ए दिल कहीं नोट की गड्डियाँ बोलती हैं अब,
सच्चाई की चीखें दर्द ए मोहबत यॉं झोलती हैं सब।
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ये सच है कि साजी ए हुस्न सपने अभी जिंदा हैं,
हिन्दू ए तू सौदा ईमान की बंदिशों में पाबंदा हैं।
*******
दर ए जुल्म कोई दीप जल रहा है अंधेरे में कहीं,
और कहता है कदा “मैं ही हूं सवेरे की लकीर।
*******
हल्कं आवाज़ बननी है उस सिसकती पीड़ा की,
जो खो गई है चुप्पी में सत्ता की चीत्कारों की।
*******
हमें लड़ना है कल के लिए, आज के जख़्मों से,
बच्चों की आँखों में ना हो डर की परछाइयाँं से।
*******
आशिक ए दीवान जो कुर्सियों पे बैठ मुस्कराते हैं,
जाहिर ये वक़्त बदलने पर रौशनी से घबराते हैं।
*******
मेहर ए रूखत ख़ामोशी उनका हथियार बन गई,
जादू ए आलम सत्ता की दीवार हिल जाए कई।
*******
पा ए दिलासा दस्तूर ए चादरें अब पुरानी हो चुकीं,
अहलाव की हवा से वो सब उखड़ जाय गो युही।
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सीधे या भोले बहर जुर्म पे चुप्पी नहीं, जवाब चाहिए,
बे-खता फूंक के हर सवाल का अब हिसाब चाहिए।
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कयामत ए जालिम ये मुल्क किसी की जागीर नहीं,
मैं हूॅं ये मंजिल यहाँ हर दिल की तस्वीर है यकी।
*******
पांव के छाले है अधिकारों की पहचान या गमगीन,
जो मिटाई नहीं जा सकती किसी भी आदेश किन्ह।
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मिजाज ए हकी हम वादें से नहीं, वफ़ाओं से बंधे दीह,
रूह ए हमः खूबा गर नींव अब सच्चाई पे ये जमीह।
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हकीकी आजादी सच के लिए खड़े ते अब है अकेले,
कर्देम ए नजर गरे फुर्र कल बनेंगे इंकलाब के मेले।
******* JUGAL KISHORE SHARMA, BIKANER
सुनहरी: स्वर्णिम, सोने जैसी
बुनियाद: नींव
जाहिर: प्रकट, स्पष्ट
बातिन: अंदरूनी, गुप्त
बेहियाद: असीम, अनंत
रिश्वत: घूस
कत्ल: हत्या
जर्राद: कण, छोटे टुकड़े
बताकिद: निश्चित, पक्का
दलालों: बिचौलियों, दलाल
सियासत: राजनीति
शराफत: इमानदारी
दिलाशा: सांत्वना
तंत्र: व्यवस्था
इमां: विश्वास, ईमान
खल्क: सृष्टि, लोग
नीयत: इरादा
इंसाफ़: न्याय
तंजीम: संगठन
हस्ती: अस्तित्व
साजी ए हुस्न: सुंदरता के खेल
पाबंदा: बंधे हुए
जुल्म: अत्याचार
कदा: कब
मेहर ए रूख़्त: मौन की मुहर
दस्तूर: रीति, प्रथा
अहलाव: नए विचारों की हवा
बे-खता: बिना गलती के
कयामत: प्रलय, अंत
मिजाज: स्वभाव
वफ़ाओं: वादों का पालन
इंकलाब: क्रांति
रूपकों और प्रतीकों के माध्यम से समाज की विसंगतियों को उजागर किया है: सामाजिक-राजनीतिक भ्रष्टाचार, नैतिक पतन, और सत्ता के दमन के विरुद्ध एक तीखा प्रतिकार है।
Let them ignite the fire of vichāra (self-inquiry) until even the question “Who am I?” burns to ash, and what remains is the inarticulate, irreducible suchness of being—सत्यं, शिवं, सुन्दरम् (Truth, Consciousness, Bliss). The dawn is here. The mind’s night is an illusion. Awaken

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सुनहरी सड़कें:
झूठे वादों और भ्रष्ट सपनों का प्रतीक नैतिक मूल्यों का व्यापारीकरण।
*****
सुनहरी सड़कों पे जब ख़्वाबों की बुनियाद रखी,
जाहिर ओ बातिन इश्क, बीमारी बेहियाद चखी।
****
हर रिश्वत पे इक भरोसे का कत्ल हो जाता है,
जर्राद बताकिद उजाला अंधेरों में खो जाता है।
******
सु ए तू दलालों की बातें अब राज़ नहीं रहीं,
सियासत के गलियों में अब शराफ़त नहीं रही।
*****
पा ए दिलाशा सिसकते लोग सड़कों के किनारे,
वो गवाही हैं उस तंत्र के, जो खा गया सारे।
********
इमां बिकते हैं खल्क ए दो जहॉं खुले बाज़ारों में,
नीयत डूबती है बंदा ए परवर चमकते इशारों में।
*******
उम्मीदें थमती हैं सजदा उॅंचा, हर ठंडी फाइल में,
इंसाफ़ गुम है तंजीम ए सब, सरकारी स्टाइल में।
*******
हस्ती ए दिल कहीं नोट की गड्डियाँ बोलती हैं अब,
सच्चाई की चीखें दर्द ए मोहबत यॉं झोलती हैं सब।
*******
ये सच है कि साजी ए हुस्न सपने अभी जिंदा हैं,
हिन्दू ए तू सौदा ईमान की बंदिशों में पाबंदा हैं।
*******
दर ए जुल्म कोई दीप जल रहा है अंधेरे में कहीं,
और कहता है कदा “मैं ही हूं सवेरे की लकीर।
*******
हल्कं आवाज़ बननी है उस सिसकती पीड़ा की,
जो खो गई है चुप्पी में सत्ता की चीत्कारों की।
*******
हमें लड़ना है कल के लिए, आज के जख़्मों से,
बच्चों की आँखों में ना हो डर की परछाइयाँं से।
*******
आशिक ए दीवान जो कुर्सियों पे बैठ मुस्कराते हैं,
जाहिर ये वक़्त बदलने पर रौशनी से घबराते हैं।
*******
मेहर ए रूखत ख़ामोशी उनका हथियार बन गई,
जादू ए आलम सत्ता की दीवार हिल जाए कई।
*******
पा ए दिलासा दस्तूर ए चादरें अब पुरानी हो चुकीं,
अहलाव की हवा से वो सब उखड़ जाय गो युही।
*******
सीधे या भोले बहर जुर्म पे चुप्पी नहीं, जवाब चाहिए,
बे-खता फूंक के हर सवाल का अब हिसाब चाहिए।
*******
कयामत ए जालिम ये मुल्क किसी की जागीर नहीं,
मैं हूॅं ये मंजिल यहाँ हर दिल की तस्वीर है यकी।
*******
पांव के छाले है अधिकारों की पहचान या गमगीन,
जो मिटाई नहीं जा सकती किसी भी आदेश किन्ह।
*******
मिजाज ए हकी हम वादें से नहीं, वफ़ाओं से बंधे दीह,
रूह ए हमः खूबा गर नींव अब सच्चाई पे ये जमीह।
*******
हकीकी आजादी सच के लिए खड़े ते अब है अकेले,
कर्देम ए नजर गरे फुर्र कल बनेंगे इंकलाब के मेले।
******* JUGAL KISHORE SHARMA, BIKANER
सुनहरी: स्वर्णिम, सोने जैसी
बुनियाद: नींव
जाहिर: प्रकट, स्पष्ट
बातिन: अंदरूनी, गुप्त
बेहियाद: असीम, अनंत
रिश्वत: घूस
कत्ल: हत्या
जर्राद: कण, छोटे टुकड़े
बताकिद: निश्चित, पक्का
दलालों: बिचौलियों, दलाल
सियासत: राजनीति
शराफत: इमानदारी
दिलाशा: सांत्वना
तंत्र: व्यवस्था
इमां: विश्वास, ईमान
खल्क: सृष्टि, लोग
नीयत: इरादा
इंसाफ़: न्याय
तंजीम: संगठन
हस्ती: अस्तित्व
साजी ए हुस्न: सुंदरता के खेल
पाबंदा: बंधे हुए
जुल्म: अत्याचार
कदा: कब
मेहर ए रूख़्त: मौन की मुहर
दस्तूर: रीति, प्रथा
अहलाव: नए विचारों की हवा
बे-खता: बिना गलती के
कयामत: प्रलय, अंत
मिजाज: स्वभाव
वफ़ाओं: वादों का पालन
इंकलाब: क्रांति
रूपकों और प्रतीकों के माध्यम से समाज की विसंगतियों को उजागर किया है: सामाजिक-राजनीतिक भ्रष्टाचार, नैतिक पतन, और सत्ता के दमन के विरुद्ध एक तीखा प्रतिकार है।
Let them ignite the fire of vichāra (self-inquiry) until even the question “Who am I?” burns to ash, and what remains is the inarticulate, irreducible suchness of being—सत्यं, शिवं, सुन्दरम् (Truth, Consciousness, Bliss). The dawn is here. The mind’s night is an illusion. Awaken

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मगर कभी न हुई

चिराग जलते रहे, रोशनी मगर कभी न हुई।
शोंख पहली ज़िया, सुकू मगर कभी न हुई।

हवाएँ बज्म कहती रहीं, चमन में बहार है,
मस्ती-ए-सबा सदॉए, मगर कभी न हुई।

दरीचों से झाँकती, वो चाँदनी की रात,
लम्हों मेहरबान अदा, मगर कभी न हुई।

बहार आई कई बार, घुले रंग बिखरे यहाँ,
सबे खुशबू-ए-वफ़ा, मगर कभी न हुई।

नज़र नज़र में जमी रही दास्तान-ए-हिज्र,
किसरा हर्फ़-ए-मुद्दआ, मगर कभी न हुई।

बरा हयात जीती रही, दर्द के धुएँ मगर,
मर्हबा लम्हा-ए-शिफ़ा, मगर कभी न हुई।

ख़्वाब आँख में आए थे पलक़ों की छाँव में,
शिर्क ऐलाने सूरतें सजी, मगर कभी न हुई।

जलवा हज़ार बार सुना, कि वक़्त मदावा करे,
रूखसत राहत-ए-सिला, मगर कभी न हुई।

कोई तो आए रूह संभालने, मगर कभी न हुई।
मुदाखिल दस्त-ए-मेहरबाँ, मगर कभी न हुई।
.......................
ज्ञस्य केवलमज्ञस्य न भवत्येव बोधजा । अनानन्दसमानन्दमुग्धमुग्धमुखद्युतिः ॥
सविनय सप्रेम और सहज भाव से
जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर ।

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मगर कभी न हुई

चिराग जलते रहे, रोशनी मगर कभी न हुई।
शोंख पहली ज़िया, सुकू मगर कभी न हुई।

हवाएँ बज्म कहती रहीं, चमन में बहार है,
मस्ती-ए-सबा सदॉए, मगर कभी न हुई।

दरीचों से झाँकती, वो चाँदनी की रात,
लम्हों मेहरबान अदा, मगर कभी न हुई।

बहार आई कई बार, घुले रंग बिखरे यहाँ,
सबे खुशबू-ए-वफ़ा, मगर कभी न हुई।

नज़र नज़र में जमी रही दास्तान-ए-हिज्र,
किसरा हर्फ़-ए-मुद्दआ, मगर कभी न हुई।

बरा हयात जीती रही, दर्द के धुएँ मगर,
मर्हबा लम्हा-ए-शिफ़ा, मगर कभी न हुई।

ख़्वाब आँख में आए थे पलक़ों की छाँव में,
शिर्क ऐलाने सूरतें सजी, मगर कभी न हुई।

जलवा हज़ार बार सुना, कि वक़्त मदावा करे,
रूखसत राहत-ए-सिला, मगर कभी न हुई।

कोई तो आए रूह संभालने, मगर कभी न हुई।
मुदाखिल दस्त-ए-मेहरबाँ, मगर कभी न हुई।
.......................
ज्ञस्य केवलमज्ञस्य न भवत्येव बोधजा । अनानन्दसमानन्दमुग्धमुग्धमुखद्युतिः ॥
सविनय सप्रेम और सहज भाव से
जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर ।

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मगर कभी न हुई

चिराग जलते रहे, रोशनी मगर कभी न हुई।
शोंख पहली ज़िया, सुकू मगर कभी न हुई।

हवाएँ बज्म कहती रहीं, चमन में बहार है,
मस्ती-ए-सबा सदॉए, मगर कभी न हुई।

दरीचों से झाँकती, वो चाँदनी की रात,
लम्हों मेहरबान अदा, मगर कभी न हुई।

बहार आई कई बार, घुले रंग बिखरे यहाँ,
सबे खुशबू-ए-वफ़ा, मगर कभी न हुई।

नज़र नज़र में जमी रही दास्तान-ए-हिज्र,
किसरा हर्फ़-ए-मुद्दआ, मगर कभी न हुई।

बरा हयात जीती रही, दर्द के धुएँ मगर,
मर्हबा लम्हा-ए-शिफ़ा, मगर कभी न हुई।

ख़्वाब आँख में आए थे पलक़ों की छाँव में,
शिर्क ऐलाने सूरतें सजी, मगर कभी न हुई।

जलवा हज़ार बार सुना, कि वक़्त मदावा करे,
रूखसत राहत-ए-सिला, मगर कभी न हुई।

कोई तो आए रूह संभालने, मगर कभी न हुई।
मुदाखिल दस्त-ए-मेहरबाँ, मगर कभी न हुई।
.......................
ज्ञस्य केवलमज्ञस्य न भवत्येव बोधजा । अनानन्दसमानन्दमुग्धमुग्धमुखद्युतिः ॥
सविनय सप्रेम और सहज भाव से
जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर ।

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मगर कभी न हुई

चिराग जलते रहे, रोशनी मगर कभी न हुई।
शोंख पहली ज़िया, सुकू मगर कभी न हुई।

हवाएँ बज्म कहती रहीं, चमन में बहार है,
मस्ती-ए-सबा सदॉए, मगर कभी न हुई।

दरीचों से झाँकती, वो चाँदनी की रात,
लम्हों मेहरबान अदा, मगर कभी न हुई।

बहार आई कई बार, घुले रंग बिखरे यहाँ,
सबे खुशबू-ए-वफ़ा, मगर कभी न हुई।

नज़र नज़र में जमी रही दास्तान-ए-हिज्र,
किसरा हर्फ़-ए-मुद्दआ, मगर कभी न हुई।

बरा हयात जीती रही, दर्द के धुएँ मगर,
मर्हबा लम्हा-ए-शिफ़ा, मगर कभी न हुई।

ख़्वाब आँख में आए थे पलक़ों की छाँव में,
शिर्क ऐलाने सूरतें सजी, मगर कभी न हुई।

जलवा हज़ार बार सुना, कि वक़्त मदावा करे,
रूखसत राहत-ए-सिला, मगर कभी न हुई।

कोई तो आए रूह संभालने, मगर कभी न हुई।
मुदाखिल दस्त-ए-मेहरबाँ, मगर कभी न हुई।
.......................
ज्ञस्य केवलमज्ञस्य न भवत्येव बोधजा । अनानन्दसमानन्दमुग्धमुग्धमुखद्युतिः ॥
सविनय सप्रेम और सहज भाव से
जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर ।

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रूखत ए हुजाम ए सराब पर बवाल होना था ।
कदम कदम पर दिल को बदहाल होना था ।।

जमाल ए खूंबा नाम की धुन में खो गए सब ।
हर्फे शुदःमक्तुब ज़िन्दगी ए दज्जाल होना था ।।

महफूज जे हर रूए चाँद भी डूबा तेरी यादों में ।
बजूज खुद ए निस्त चाँदनी उजाल होना था ।।

बे कर्द तज्जली महस्सूस में जल गया दिल तो ।
शाहिद ए मसूद सर्द सितारों को सवाल होना था।।

आखिरशः ए कदद्त गर आँखों में छुपा था असर तो ।
मस्तकुंचा ए ईश्क रूकन गर्क बेवफ़ा सज़ा होना था ।।

हर शब-ए-फ़ुरक़त में रोता अलबत्ता क्युकर वो तो ।
आफरीदंद अज्मत बु जाहिल दिल को बेचैन होना था ।।

इ’श्क़-ए-आमद खबर के जीना खु अधूरे होना था ।
बदस ओ बदन तो अब ज़िन्दा ला खुसुशे होना था ।।
-----
रूखत ए हुजाम ए सराब पर बवाल होना था ।
"मिथ्या सौंदर्य के मैदान में अवश्य ही उथल-पुथल होनी थी।"
कदम कदम पर दिल को बदहाल होना था ।।
"हर कदम पर दिल को बेचैन होना था।"
जमाल ए खूंबा नाम की धुन में खो गए सब ।
"सभी 'जमाल-ए-खूब' (अद्भुत सौंदर्य) की धुन में खो गए।"
हर्फे शुदःमक्तुब ज़िन्दगी ए दज्जाल होना था ।।
"जीवन लिखित अक्षरों की तरह धोखेबाज़ और बेईमान साबित हुआ।"
महफूज जे हर रूए चाँद भी डूबा तेरी यादों में ।
"चाँद का चेहरा भी तेरी यादों में डूब गया।"
बजूज खुद ए निस्त चाँदनी उजाल होना था ।।
"अस्तित्व के बिना भी चाँदनी को चमकना था।"
बे कर्द तज्जली महस्सूस में जल गया दिल तो ।
"बेबसी के जलने के बाद दिल जल गया।"
शाहिद ए मसूद सर्द सितारों को सवाल होना था।।
"शहीद-ए-मसूद ने ठंडे सितारों से सवाल किया।"
आखिरशः ए कदद्त गर आँखों में छुपा था असर तो ।
"धैर्य के अंत में अगर आँखों में असर छुपा था।"
मस्तकुंचा ए ईश्क रूकन गर्क बेवफ़ा सज़ा होना था ।।
"प्रेम का नशा रुकना था, अगर बेवफाई की सजा होनी थी।"
हर शब-ए-फ़ुरक़त में रोता अलबत्ता क्युकर वो तो ।
"हर अलगाव की रात में वह उसके लिए रोता था।"
आफरीदंद अज्मत बु जाहिल दिल को बेचैन होना था ।।
"खुदा ने इस अज्ञानी दिल को बेचैन बनाया।"
इ’श्क़-ए-आमद खबर के जीना खु अधूरे होना था ।
"आने वाले प्रेम की खबर में जीना अधूरा रहना था।"
बदस ओ बदन तो अब ज़िन्दा ला खुसुशे होना था ।।
"सांस और शरीर के बिना अब जीवित रहना, लेकिन खुशी के बिना।"

जुगल किशोर शर्मा
ग़ज़ल, नज़्म और निबंध जैसे विभिन्न विधाओं में काम करने वाले थे। उनकी कविताओं की विशेषता यह है कि वे दार्शनिक गहराई, भावनात्मक गूढ़ता और सामाजिक टीका को जोड़ते हैं। उनकी भाषा में हिंदी और उर्दू का संगम है, जो उनके काव्य को सांस्कृतिक समृद्धि प्रदान करता है।

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रूखत ए हुजाम ए सराब पर बवाल होना था ।
कदम कदम पर दिल को बदहाल होना था ।।

जमाल ए खूंबा नाम की धुन में खो गए सब ।
हर्फे शुदःमक्तुब ज़िन्दगी ए दज्जाल होना था ।।

महफूज जे हर रूए चाँद भी डूबा तेरी यादों में ।
बजूज खुद ए निस्त चाँदनी उजाल होना था ।।

बे कर्द तज्जली महस्सूस में जल गया दिल तो ।
शाहिद ए मसूद सर्द सितारों को सवाल होना था।।

आखिरशः ए कदद्त गर आँखों में छुपा था असर तो ।
मस्तकुंचा ए ईश्क रूकन गर्क बेवफ़ा सज़ा होना था ।।

हर शब-ए-फ़ुरक़त में रोता अलबत्ता क्युकर वो तो ।
आफरीदंद अज्मत बु जाहिल दिल को बेचैन होना था ।।

इ’श्क़-ए-आमद खबर के जीना खु अधूरे होना था ।
बदस ओ बदन तो अब ज़िन्दा ला खुसुशे होना था ।।
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रूखत ए हुजाम ए सराब पर बवाल होना था ।
"मिथ्या सौंदर्य के मैदान में अवश्य ही उथल-पुथल होनी थी।"
कदम कदम पर दिल को बदहाल होना था ।।
"हर कदम पर दिल को बेचैन होना था।"
जमाल ए खूंबा नाम की धुन में खो गए सब ।
"सभी 'जमाल-ए-खूब' (अद्भुत सौंदर्य) की धुन में खो गए।"
हर्फे शुदःमक्तुब ज़िन्दगी ए दज्जाल होना था ।।
"जीवन लिखित अक्षरों की तरह धोखेबाज़ और बेईमान साबित हुआ।"
महफूज जे हर रूए चाँद भी डूबा तेरी यादों में ।
"चाँद का चेहरा भी तेरी यादों में डूब गया।"
बजूज खुद ए निस्त चाँदनी उजाल होना था ।।
"अस्तित्व के बिना भी चाँदनी को चमकना था।"
बे कर्द तज्जली महस्सूस में जल गया दिल तो ।
"बेबसी के जलने के बाद दिल जल गया।"
शाहिद ए मसूद सर्द सितारों को सवाल होना था।।
"शहीद-ए-मसूद ने ठंडे सितारों से सवाल किया।"
आखिरशः ए कदद्त गर आँखों में छुपा था असर तो ।
"धैर्य के अंत में अगर आँखों में असर छुपा था।"
मस्तकुंचा ए ईश्क रूकन गर्क बेवफ़ा सज़ा होना था ।।
"प्रेम का नशा रुकना था, अगर बेवफाई की सजा होनी थी।"
हर शब-ए-फ़ुरक़त में रोता अलबत्ता क्युकर वो तो ।
"हर अलगाव की रात में वह उसके लिए रोता था।"
आफरीदंद अज्मत बु जाहिल दिल को बेचैन होना था ।।
"खुदा ने इस अज्ञानी दिल को बेचैन बनाया।"
इ’श्क़-ए-आमद खबर के जीना खु अधूरे होना था ।
"आने वाले प्रेम की खबर में जीना अधूरा रहना था।"
बदस ओ बदन तो अब ज़िन्दा ला खुसुशे होना था ।।
"सांस और शरीर के बिना अब जीवित रहना, लेकिन खुशी के बिना।"

जुगल किशोर शर्मा
ग़ज़ल, नज़्म और निबंध जैसे विभिन्न विधाओं में काम करने वाले थे। उनकी कविताओं की विशेषता यह है कि वे दार्शनिक गहराई, भावनात्मक गूढ़ता और सामाजिक टीका को जोड़ते हैं। उनकी भाषा में हिंदी और उर्दू का संगम है, जो उनके काव्य को सांस्कृतिक समृद्धि प्रदान करता है।

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मेरा दिल हर लम्हा जाता है सू-ए-दिगर की तरफ़,
क्यों ये फ़िराक़ ही रहा क़ाबिल-ए-शिफर की तरफ़?

नज़र आती थी जो दूरी, वो भी क्या कम थी मगर,
अचानक युकें मौसम बदला रुख़-ए-मिगर की तरफ़।

वो भी फ़साना था फ़लक की दस्तकों का सदियों से,
वो उतर आया अब दर-ओ-दीवार-ए-तिगर की तरफ़।

बंदा या सलामत, रहमत है ये कि ये फ़ासले टूट गए,
नहीं तो हम भी थे मुतमईन इन्तज़ार-ए-दिगर की तरफ़।

मनफ़रीद, ये कैसा नशेब है कि जो मंज़िल थी बहुत दूर,
वहीं पे ख़त्म हुआ सफ़र-ए-गुमान-ए-जिगर की तरफ़।
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उसके शगल ने छीन ली महफ़िल की रौनक़ भी,
वो इक लम्हा था जिसे उम्र भर का सोज मिला।
तवानद ताउम्र देखा है उसकी नज़रों का जादू,
मीकसद इसे ’शगल’ कहे है क्या इबादत कहते हैं!

जुगल किशोर शर्मा बीकानेर
ग़ज़ल एक गहरी भावनात्मक और दार्शनिक यात्रा को प्रस्तुत करती है। दूरियों, इंतज़ार, और अचानक बदलती परिस्थितियों का चित्रण किया गया है। प्रेम को ईश्वर की पूजा के रूप में देखते हैं, जो उन्हें शांति और संतोष प्रदान करता है।
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