Quotes by JUGAL KISHORE SHARMA in Bitesapp read free

JUGAL KISHORE SHARMA

JUGAL KISHORE SHARMA

@jugalkishoresharma
(39)

ग़ज़ल: बहुत देर कर दी
लेखक: जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर
सादर वन्दन सहित मंच में सभी को आदर सहित समर्पित कृपया लघु रचना आकलन, समालोचना अपेक्षित है -
बहुत देर कर दी
सुरूर हसरतों ने हर घाव को गहरा किया,
ओ सवाल ने मुझे तन्हाई ने करारा दिया।
ग़म के साए में जब भी तुझे पुकारा किया,
अजामत यादों के दरीचों में गुज़ारा किया।
खुशामद-ए-मोहब्बत का कोई इल्म नहीं,
जैसे आईना हो और अपना नज़ारा लिया।
बहुत देरे शामकर दी तुझे भुलाने में हमदम,
मलाल हर ख्वाब ने बदनसीब इशारा किया।
दिल-ए-नाकाम का सुकून भी अधूरा सा है,
जैसे चिराग़ ने अंधेरों को यु बेसहारा किया।
इश्क़ और गवारा शिकस्त फ़िर भी नहीं,
वादों ने बस खामोशी का मुजारा किया।
हर मोड़ से तेरी ख़ुशबू की गवाही आई,
हर मंज़िल ने मेरे दिल का सहारा किया।
बहुत देर कर दी तुझे यादे निशा करने में,
आहट ने फिर नया इश्तिहार सुधारा किया।
अब चाँदनी रातें भी तुझसे सवाल करती हैं,
तेरी परछाइयों ने हर ज़ख़्म को हरा किया।
बहुत देर कर दी फख्रे सुकून को पाने में,
हजारात मोहब्बत ने हर दर्द खुदारा किया।
तेरे बिना ये गली, ये सफर बंजारा किया,
रस्म सांस ने बस मुझी को छलावा दिया।
--
प्रतिदिन आहार में संभव करे कि साबुत अनाज जिसमें जौ, ज्वार, मक्का, बाजरा, चना मूंग मोठ आदि स्थानीय बतौर उपज को अपने भोजन में रोटी दलिया और राब में स्थान देवें और उत्तम जीवन के साथ आदर्श, स्वस्थ्य और समग्र जीवन को अग्रसर सभी रहे यदि साद्र प्रार्थना-सविनय निवेदन है ।
------
जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर
मननं कुरु, चिन्तनं कुरु, कर्मभावं धारय the importance of reflection, contemplation, and maintaining the spirit of action (karma). - लोकः समस्ताः सुखिनो भवन्तु में समाहित सहज सनातन और समग्र समाज में आदरजोग सहित सप्रेम स्वरचित

Read More

ग़ज़ल: बहुत देर कर दी
लेखक: जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर
सादर वन्दन सहित मंच में सभी को आदर सहित समर्पित कृपया लघु रचना आकलन, समालोचना अपेक्षित है -
बहुत देर कर दी
सुरूर हसरतों ने हर घाव को गहरा किया,
ओ सवाल ने मुझे तन्हाई ने करारा दिया।
ग़म के साए में जब भी तुझे पुकारा किया,
अजामत यादों के दरीचों में गुज़ारा किया।
खुशामद-ए-मोहब्बत का कोई इल्म नहीं,
जैसे आईना हो और अपना नज़ारा लिया।
बहुत देरे शामकर दी तुझे भुलाने में हमदम,
मलाल हर ख्वाब ने बदनसीब इशारा किया।
दिल-ए-नाकाम का सुकून भी अधूरा सा है,
जैसे चिराग़ ने अंधेरों को यु बेसहारा किया।
इश्क़ और गवारा शिकस्त फ़िर भी नहीं,
वादों ने बस खामोशी का मुजारा किया।
हर मोड़ से तेरी ख़ुशबू की गवाही आई,
हर मंज़िल ने मेरे दिल का सहारा किया।
बहुत देर कर दी तुझे यादे निशा करने में,
आहट ने फिर नया इश्तिहार सुधारा किया।
अब चाँदनी रातें भी तुझसे सवाल करती हैं,
तेरी परछाइयों ने हर ज़ख़्म को हरा किया।
बहुत देर कर दी फख्रे सुकून को पाने में,
हजारात मोहब्बत ने हर दर्द खुदारा किया।
तेरे बिना ये गली, ये सफर बंजारा किया,
रस्म सांस ने बस मुझी को छलावा दिया।
--
प्रतिदिन आहार में संभव करे कि साबुत अनाज जिसमें जौ, ज्वार, मक्का, बाजरा, चना मूंग मोठ आदि स्थानीय बतौर उपज को अपने भोजन में रोटी दलिया और राब में स्थान देवें और उत्तम जीवन के साथ आदर्श, स्वस्थ्य और समग्र जीवन को अग्रसर सभी रहे यदि साद्र प्रार्थना-सविनय निवेदन है ।
------
जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर
मननं कुरु, चिन्तनं कुरु, कर्मभावं धारय the importance of reflection, contemplation, and maintaining the spirit of action (karma). - लोकः समस्ताः सुखिनो भवन्तु में समाहित सहज सनातन और समग्र समाज में आदरजोग सहित सप्रेम स्वरचित

Read More

ग़ज़ल: बहुत देर कर दी
लेखक: जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर
सादर वन्दन सहित मंच में सभी को आदर सहित समर्पित कृपया लघु रचना आकलन, समालोचना अपेक्षित है -
बहुत देर कर दी
सुरूर हसरतों ने हर घाव को गहरा किया,
ओ सवाल ने मुझे तन्हाई ने करारा दिया।
ग़म के साए में जब भी तुझे पुकारा किया,
अजामत यादों के दरीचों में गुज़ारा किया।
खुशामद-ए-मोहब्बत का कोई इल्म नहीं,
जैसे आईना हो और अपना नज़ारा लिया।
बहुत देरे शामकर दी तुझे भुलाने में हमदम,
मलाल हर ख्वाब ने बदनसीब इशारा किया।
दिल-ए-नाकाम का सुकून भी अधूरा सा है,
जैसे चिराग़ ने अंधेरों को यु बेसहारा किया।
इश्क़ और गवारा शिकस्त फ़िर भी नहीं,
वादों ने बस खामोशी का मुजारा किया।
हर मोड़ से तेरी ख़ुशबू की गवाही आई,
हर मंज़िल ने मेरे दिल का सहारा किया।
बहुत देर कर दी तुझे यादे निशा करने में,
आहट ने फिर नया इश्तिहार सुधारा किया।
अब चाँदनी रातें भी तुझसे सवाल करती हैं,
तेरी परछाइयों ने हर ज़ख़्म को हरा किया।
बहुत देर कर दी फख्रे सुकून को पाने में,
हजारात मोहब्बत ने हर दर्द खुदारा किया।
तेरे बिना ये गली, ये सफर बंजारा किया,
रस्म सांस ने बस मुझी को छलावा दिया।
--
प्रतिदिन आहार में संभव करे कि साबुत अनाज जिसमें जौ, ज्वार, मक्का, बाजरा, चना मूंग मोठ आदि स्थानीय बतौर उपज को अपने भोजन में रोटी दलिया और राब में स्थान देवें और उत्तम जीवन के साथ आदर्श, स्वस्थ्य और समग्र जीवन को अग्रसर सभी रहे यदि साद्र प्रार्थना-सविनय निवेदन है ।
------
जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर
मननं कुरु, चिन्तनं कुरु, कर्मभावं धारय the importance of reflection, contemplation, and maintaining the spirit of action (karma). - लोकः समस्ताः सुखिनो भवन्तु में समाहित सहज सनातन और समग्र समाज में आदरजोग सहित सप्रेम स्वरचित

Read More

ग़ज़ल: बहुत देर कर दी
लेखक: जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर
सादर वन्दन सहित मंच में सभी को आदर सहित समर्पित कृपया लघु रचना आकलन, समालोचना अपेक्षित है -
बहुत देर कर दी
सुरूर हसरतों ने हर घाव को गहरा किया,
ओ सवाल ने मुझे तन्हाई ने करारा दिया।
ग़म के साए में जब भी तुझे पुकारा किया,
अजामत यादों के दरीचों में गुज़ारा किया।
खुशामद-ए-मोहब्बत का कोई इल्म नहीं,
जैसे आईना हो और अपना नज़ारा लिया।
बहुत देरे शामकर दी तुझे भुलाने में हमदम,
मलाल हर ख्वाब ने बदनसीब इशारा किया।
दिल-ए-नाकाम का सुकून भी अधूरा सा है,
जैसे चिराग़ ने अंधेरों को यु बेसहारा किया।
इश्क़ और गवारा शिकस्त फ़िर भी नहीं,
वादों ने बस खामोशी का मुजारा किया।
हर मोड़ से तेरी ख़ुशबू की गवाही आई,
हर मंज़िल ने मेरे दिल का सहारा किया।
बहुत देर कर दी तुझे यादे निशा करने में,
आहट ने फिर नया इश्तिहार सुधारा किया।
अब चाँदनी रातें भी तुझसे सवाल करती हैं,
तेरी परछाइयों ने हर ज़ख़्म को हरा किया।
बहुत देर कर दी फख्रे सुकून को पाने में,
हजारात मोहब्बत ने हर दर्द खुदारा किया।
तेरे बिना ये गली, ये सफर बंजारा किया,
रस्म सांस ने बस मुझी को छलावा दिया।
--
प्रतिदिन आहार में संभव करे कि साबुत अनाज जिसमें जौ, ज्वार, मक्का, बाजरा, चना मूंग मोठ आदि स्थानीय बतौर उपज को अपने भोजन में रोटी दलिया और राब में स्थान देवें और उत्तम जीवन के साथ आदर्श, स्वस्थ्य और समग्र जीवन को अग्रसर सभी रहे यदि साद्र प्रार्थना-सविनय निवेदन है ।
------
जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर
मननं कुरु, चिन्तनं कुरु, कर्मभावं धारय the importance of reflection, contemplation, and maintaining the spirit of action (karma). - लोकः समस्ताः सुखिनो भवन्तु में समाहित सहज सनातन और समग्र समाज में आदरजोग सहित सप्रेम स्वरचित

Read More

सादर वन्दन सहित मंच में सभी को आदर सहित समर्पित कृपया लघु रचना आकलन, समालोचना अपेक्षित है -

-----



ख्वाबों के नियाज, तन्हाई की रंजो गमवा से,

दिल में उमड़े हैं हज़ारों सवालात वेवफा से।

ग़म की परछाईं में मगरूर नर्म तड़फती रही,

अंजाम-ए-सुकून की तलाश गंजो जख्मा से

मगर वो नूर, जो धुंध में चमकता दुश्वा से,

उसकी हर किरन जहां महकता सहरवा से।



गुलदहा-ए-रंग और दिले बे नियाज ये ताज़गी,

तेबा की हवाओं से आई ये रवानगी आश्नावा से।

वो दीदार, जो दिल को कर दे महताब ए सुकून,

इक पल की झलक, और रूह बेहतरीन हवा से ।

फितरत मगर हर चाहत के साथ बंधा एक धागा,

दिल को बाँधता है, दर्द का उजाला कुरबवा से।



“देखो!“ सूफ़ी ने फ़रमाया शोक ए पैगामात ये,

“तेरी ये तमन्नाएँ बस धोखे साया बदलवा से।

नजदीक तर जो मिट्टी की सूरतें तूने अपनाईं,

वो तो हैं बस एक पल की परछाईं हंजीशमा से।

-----------

--------------------

प्रतिदिन आहार में संभव करे कि साबुत अनाज जिसमें जौ, ज्वार, मक्का, बाजरा, चना मूंग मोठ आदि स्थानीय बतौर उपज को अपने भोजन में रोटी दलिया और राब में स्थान देवें और उत्तम जीवन के साथ आदर्श, स्वस्थ्य और समग्र जीवन को अग्रसर सभी रहे यदि साद्र प्रार्थना-सविनय निवेदन है ।

------

जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर

मननं कुरु, चिन्तनं कुरु, कर्मभावं धारय the importance of reflection, contemplation, and maintaining the spirit of action (karma). - लोकः समस्ताः सुखिनो भवन्तु में समाहित सहज सनातन और समग्र समाज में आदरजोग सहित सप्रेम स्वरचित

Read More

सादर वन्दन सहित मंच में सभी को आदर सहित समर्पित कृपया लघु रचना आकलन, समालोचना अपेक्षित है -

-----



ख्वाबों के नियाज, तन्हाई की रंजो गमवा से,

दिल में उमड़े हैं हज़ारों सवालात वेवफा से।

ग़म की परछाईं में मगरूर नर्म तड़फती रही,

अंजाम-ए-सुकून की तलाश गंजो जख्मा से

मगर वो नूर, जो धुंध में चमकता दुश्वा से,

उसकी हर किरन जहां महकता सहरवा से।



गुलदहा-ए-रंग और दिले बे नियाज ये ताज़गी,

तेबा की हवाओं से आई ये रवानगी आश्नावा से।

वो दीदार, जो दिल को कर दे महताब ए सुकून,

इक पल की झलक, और रूह बेहतरीन हवा से ।

फितरत मगर हर चाहत के साथ बंधा एक धागा,

दिल को बाँधता है, दर्द का उजाला कुरबवा से।



“देखो!“ सूफ़ी ने फ़रमाया शोक ए पैगामात ये,

“तेरी ये तमन्नाएँ बस धोखे साया बदलवा से।

नजदीक तर जो मिट्टी की सूरतें तूने अपनाईं,

वो तो हैं बस एक पल की परछाईं हंजीशमा से।

-----------

--------------------

प्रतिदिन आहार में संभव करे कि साबुत अनाज जिसमें जौ, ज्वार, मक्का, बाजरा, चना मूंग मोठ आदि स्थानीय बतौर उपज को अपने भोजन में रोटी दलिया और राब में स्थान देवें और उत्तम जीवन के साथ आदर्श, स्वस्थ्य और समग्र जीवन को अग्रसर सभी रहे यदि साद्र प्रार्थना-सविनय निवेदन है ।

------

जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर

मननं कुरु, चिन्तनं कुरु, कर्मभावं धारय the importance of reflection, contemplation, and maintaining the spirit of action (karma). - लोकः समस्ताः सुखिनो भवन्तु में समाहित सहज सनातन और समग्र समाज में आदरजोग सहित सप्रेम स्वरचित

Read More

सादर वन्दन सहित मंच में सभी को आदर सहित समर्पित कृपया लघु रचना आकलन, समालोचना अपेक्षित है -

-----



ख्वाबों के नियाज, तन्हाई की रंजो गमवा से,

दिल में उमड़े हैं हज़ारों सवालात वेवफा से।

ग़म की परछाईं में मगरूर नर्म तड़फती रही,

अंजाम-ए-सुकून की तलाश गंजो जख्मा से

मगर वो नूर, जो धुंध में चमकता दुश्वा से,

उसकी हर किरन जहां महकता सहरवा से।



गुलदहा-ए-रंग और दिले बे नियाज ये ताज़गी,

तेबा की हवाओं से आई ये रवानगी आश्नावा से।

वो दीदार, जो दिल को कर दे महताब ए सुकून,

इक पल की झलक, और रूह बेहतरीन हवा से ।

फितरत मगर हर चाहत के साथ बंधा एक धागा,

दिल को बाँधता है, दर्द का उजाला कुरबवा से।



“देखो!“ सूफ़ी ने फ़रमाया शोक ए पैगामात ये,

“तेरी ये तमन्नाएँ बस धोखे साया बदलवा से।

नजदीक तर जो मिट्टी की सूरतें तूने अपनाईं,

वो तो हैं बस एक पल की परछाईं हंजीशमा से।

-----------

--------------------

प्रतिदिन आहार में संभव करे कि साबुत अनाज जिसमें जौ, ज्वार, मक्का, बाजरा, चना मूंग मोठ आदि स्थानीय बतौर उपज को अपने भोजन में रोटी दलिया और राब में स्थान देवें और उत्तम जीवन के साथ आदर्श, स्वस्थ्य और समग्र जीवन को अग्रसर सभी रहे यदि साद्र प्रार्थना-सविनय निवेदन है ।

------

जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर

मननं कुरु, चिन्तनं कुरु, कर्मभावं धारय the importance of reflection, contemplation, and maintaining the spirit of action (karma). - लोकः समस्ताः सुखिनो भवन्तु में समाहित सहज सनातन और समग्र समाज में आदरजोग सहित सप्रेम स्वरचित

Read More

सादर वन्दन सहित मंच में सभी को आदर सहित समर्पित कृपया लघु रचना आकलन, समालोचना अपेक्षित है -

-----



ख्वाबों के नियाज, तन्हाई की रंजो गमवा से,

दिल में उमड़े हैं हज़ारों सवालात वेवफा से।

ग़म की परछाईं में मगरूर नर्म तड़फती रही,

अंजाम-ए-सुकून की तलाश गंजो जख्मा से

मगर वो नूर, जो धुंध में चमकता दुश्वा से,

उसकी हर किरन जहां महकता सहरवा से।



गुलदहा-ए-रंग और दिले बे नियाज ये ताज़गी,

तेबा की हवाओं से आई ये रवानगी आश्नावा से।

वो दीदार, जो दिल को कर दे महताब ए सुकून,

इक पल की झलक, और रूह बेहतरीन हवा से ।

फितरत मगर हर चाहत के साथ बंधा एक धागा,

दिल को बाँधता है, दर्द का उजाला कुरबवा से।



“देखो!“ सूफ़ी ने फ़रमाया शोक ए पैगामात ये,

“तेरी ये तमन्नाएँ बस धोखे साया बदलवा से।

नजदीक तर जो मिट्टी की सूरतें तूने अपनाईं,

वो तो हैं बस एक पल की परछाईं हंजीशमा से।

-----------

--------------------

प्रतिदिन आहार में संभव करे कि साबुत अनाज जिसमें जौ, ज्वार, मक्का, बाजरा, चना मूंग मोठ आदि स्थानीय बतौर उपज को अपने भोजन में रोटी दलिया और राब में स्थान देवें और उत्तम जीवन के साथ आदर्श, स्वस्थ्य और समग्र जीवन को अग्रसर सभी रहे यदि साद्र प्रार्थना-सविनय निवेदन है ।

------

जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर

मननं कुरु, चिन्तनं कुरु, कर्मभावं धारय the importance of reflection, contemplation, and maintaining the spirit of action (karma). - लोकः समस्ताः सुखिनो भवन्तु में समाहित सहज सनातन और समग्र समाज में आदरजोग सहित सप्रेम स्वरचित

Read More

सादर वन्दन सहित मंच में सभी को आदर सहित समर्पित कृपया लघु रचना आकलन, समालोचना अपेक्षित है -

-----



ख्वाबों के नियाज, तन्हाई की रंजो गमवा से,

दिल में उमड़े हैं हज़ारों सवालात वेवफा से।

ग़म की परछाईं में मगरूर नर्म तड़फती रही,

अंजाम-ए-सुकून की तलाश गंजो जख्मा से

मगर वो नूर, जो धुंध में चमकता दुश्वा से,

उसकी हर किरन जहां महकता सहरवा से।



गुलदहा-ए-रंग और दिले बे नियाज ये ताज़गी,

तेबा की हवाओं से आई ये रवानगी आश्नावा से।

वो दीदार, जो दिल को कर दे महताब ए सुकून,

इक पल की झलक, और रूह बेहतरीन हवा से ।

फितरत मगर हर चाहत के साथ बंधा एक धागा,

दिल को बाँधता है, दर्द का उजाला कुरबवा से।



“देखो!“ सूफ़ी ने फ़रमाया शोक ए पैगामात ये,

“तेरी ये तमन्नाएँ बस धोखे साया बदलवा से।

नजदीक तर जो मिट्टी की सूरतें तूने अपनाईं,

वो तो हैं बस एक पल की परछाईं हंजीशमा से।

-----------

--------------------

प्रतिदिन आहार में संभव करे कि साबुत अनाज जिसमें जौ, ज्वार, मक्का, बाजरा, चना मूंग मोठ आदि स्थानीय बतौर उपज को अपने भोजन में रोटी दलिया और राब में स्थान देवें और उत्तम जीवन के साथ आदर्श, स्वस्थ्य और समग्र जीवन को अग्रसर सभी रहे यदि साद्र प्रार्थना-सविनय निवेदन है ।

------

जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर

मननं कुरु, चिन्तनं कुरु, कर्मभावं धारय the importance of reflection, contemplation, and maintaining the spirit of action (karma). - लोकः समस्ताः सुखिनो भवन्तु में समाहित सहज सनातन और समग्र समाज में आदरजोग सहित सप्रेम स्वरचित

Read More

सादर वन्दन सहित मंच में सभी को आदर सहित समर्पित कृपया लघु रचना आकलन, समालोचना अपेक्षित है -

-----



ख्वाबों के नियाज, तन्हाई की रंजो गमवा से,

दिल में उमड़े हैं हज़ारों सवालात वेवफा से।

ग़म की परछाईं में मगरूर नर्म तड़फती रही,

अंजाम-ए-सुकून की तलाश गंजो जख्मा से

मगर वो नूर, जो धुंध में चमकता दुश्वा से,

उसकी हर किरन जहां महकता सहरवा से।



गुलदहा-ए-रंग और दिले बे नियाज ये ताज़गी,

तेबा की हवाओं से आई ये रवानगी आश्नावा से।

वो दीदार, जो दिल को कर दे महताब ए सुकून,

इक पल की झलक, और रूह बेहतरीन हवा से ।

फितरत मगर हर चाहत के साथ बंधा एक धागा,

दिल को बाँधता है, दर्द का उजाला कुरबवा से।



“देखो!“ सूफ़ी ने फ़रमाया शोक ए पैगामात ये,

“तेरी ये तमन्नाएँ बस धोखे साया बदलवा से।

नजदीक तर जो मिट्टी की सूरतें तूने अपनाईं,

वो तो हैं बस एक पल की परछाईं हंजीशमा से।

-----------

--------------------

प्रतिदिन आहार में संभव करे कि साबुत अनाज जिसमें जौ, ज्वार, मक्का, बाजरा, चना मूंग मोठ आदि स्थानीय बतौर उपज को अपने भोजन में रोटी दलिया और राब में स्थान देवें और उत्तम जीवन के साथ आदर्श, स्वस्थ्य और समग्र जीवन को अग्रसर सभी रहे यदि साद्र प्रार्थना-सविनय निवेदन है ।

------

जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर

मननं कुरु, चिन्तनं कुरु, कर्मभावं धारय the importance of reflection, contemplation, and maintaining the spirit of action (karma). - लोकः समस्ताः सुखिनो भवन्तु में समाहित सहज सनातन और समग्र समाज में आदरजोग सहित सप्रेम स्वरचित

Read More