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अभी तो फ़क़ीरी की क़यादत में पाँव निकले थे, वो चाहता है मैं वापस उसका एहतिमाम करू क्या..
हमारा यार है हम में हम को इंतज़ारी क्या, उन्ही से नेह लागा है, हम को बे-क़रारी क्या
ख़्वाब ही से दिल बहला लिया हमनें, तु आज भी बे खबर है कल कि तरह..
कुछ और भी बहुत उसे इस जहाँ में, अकेले हम उसके ख़याल में नहीं है.. बहुत सोचा मैं ने कि समझाऊँ उसे लेकिन, सफ़र के पत्थर कि क़ीमत यहाँ नहीं है.. तक़ाज़े क्यू करू पहम ना साक़ी, महोब्बत महोब्बत है सियासत नहीं है.. हर रोज बदलता है मिज़ाज़ उसका, बदनाम ज़माने में हम भी कम नहीं है.. और गम-ए-ज़िन्दगी से यूँ तो नाता पुराना है मेरा, बद-गुमानी उधर भी कुछ नहीं है.. अदब तो अभी तक है बातों में उसकी, इधर सदाकत में अपनी हम भी कम नहीं है...
नज़रों को तसल्ली भी कर दे कोई शाम, दिल के बहलने को तेरा नाम काफी है..!
हिचकियां हीच-किचा रही आने में, तु वापस ज़हन में आ रहा है क्या..!
जिंदगी तेरी तरकश में कितने बे-रहम तीर होते है, जो परिंदे आँख रखते है रास्ते में फ़क़ीर होते है..
तेरी महोब्बत थी तो हाथ फैला दिए हमने, वरना इन पत्थरों से भीख हम नहीं मांगत..
नींद से उठकर इधर उधर ढूंढता हूं मैं तुम्हें, हर दिन इतना क़रीब आना जरूरी था क्या..!
यूँ अबस ही हताशियों में न डूब ऐ दिल, उम्मीद क्या है अब उसके लौट आने की..!
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