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तेरी उल्फत का पहेरा लगा है सनम कौन आएगा मेरे ख़यालात में..!!
हटाओ हाथ आँखों से ये तुम हो जानता हूँ मैं.. तुम्हे खुशबु नहीं आहट से भी पहचानता हूँ मैं ...
वो ख़ामोशी से भरा हुआ शक़्स अपने अंदर कितना शोर लिए फिरता है
परबत पे फूल खिल रहे है बैठा है गार में दरिंदा
समेट लेते है हालातों के नज़र से मेरे पैर अपने चादर की हद जानते है
हम इश्क़ को सीने में जला करके आ गए दरिया की बढ़ी प्यास बुझा करके आ गए
शुकर है तलब तलब ही रह गई वो मेरा होकर बिछड़ता तो क्या होता ..!
किसने कहाँ हम पढ़ कर छोड़ देते है दिल छू जाए हम वो पन्ना मोद देते है
मैं क़ाबिल नहीं हूं तेरे जैसों के जा तू जा कर तेरे जैसे ढूंढ
सब दलीलें तो मुझ को याद थी मगर बहस क्या है देख उसी को भूल गया
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