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Hiramani Kirloskar

Hiramani Kirloskar

@hiramanikirloskarmkirloskar1992gmail.com185320
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आता तुझे फोटो मी पुन्हा नाही बघत . ते जुने दिवस आता तसेच नाही जगत . तू आठवण म्हणुन आहेस नेहमी सोबत ; पण तुझी आठवण म्हणुन " आठवण " नाही करत . दुरावलो आपण तरी हरवले नाहीत आपले रस्ते ; पण रोजच्या आपल्या वाटा आता मी नाही चालत . हा मान्य मी बोललो नाही कधी ; पण आता तू नाही तर कुणाशी बोलावं ? हे ही नाही कळत . उतरणीला झोकुन देतो , जखमां सोबत रीता होतो , आता कशाचीच परवा नाही करत . भेटले रस्ते चालत फिरतो ; मागे नाही वळत . हुंदका येतो , श्वास कोंडतो ; घुसमट होते , राहतो डोळ्यांना पाणी पाजत ; तूच सांग खरच का रे ? कुणाचं मरण खरचं कुणी नाही मरत ?

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वि.स.खांडेकरांची " ययाती " वाचुन संपली . ययाती लोकांना का आवडली असेल माहीत नाही . प्रत्येकाला त्यात काही वेगळं सापडत असेल . कुणाला प्रणय प्रसंग आवडले असतील . कुणाला शर्मिष्टेच दुःख बघून गहीवरल असेल . कुणाला अलकाच विष पिन यातना देत असेल . कुणाला देवयानीचा राग आला असेल . कुणाला कच आवडला असेल . कुणी मुकुलिकेला दोष देत असेल . कुणी ययातीला भ्रमिष्ट म्हणत असेल . कुणी ययातीच्या प्रणयाला हवस समजत असेल . कुणी यतीला पोरकट समजत असेल . पण मला वाटतं ययाती कुणी ही असू शकतो . जो जगात हरला . नात्यात हरला . प्रेमात हरला . कर्तव्ये हरला . कुणी गर्दीत ही एकटाच भटकला . कुणाचा भरवसा तुटला . कुणाचं मन तुटल . ज्याने आयुष्यात काही तरी गमलवल . तो प्रत्येक जण ययाति आहे . कधी कधी काय होत की प्रत्येकवेळी तुटलेल्या गोष्टीला सांधन शक्य होत नाही .

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मुद्दतो खुद की कुछ खबर ना लगे
कोई अच्छा भी, इस कदर ना लगे
बस, तुझे भी उस नजर से देखा है
जिस नजर से तुझे नजर ना लगे

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गमो ने हाथ छोडा कब था राहो में
धूप मे उन्हे साया समजकर चल पडे
जिंदगी यू तो सुना है हमने भी कई बार
किसी और से तुम्हे
तुम कही मिलो तो तुम से बात बढे
फितरते बदलते लोग, कल कुछ और ही कहेते थे
अब जो सामने आये तो, करलेंगे हाथ खडे
मौत को यू ही बदनाम किया है जमाने ने
कितना कुछ सहा था,
खोया था,
रोया था,
गिड गिडाया था
किसी के साथ के लिये,
किसी अपने के हाथ के लिये
वो आदमी,
उसे जिने की कोई इक वजहा तो मिले.
फिर ना कहना बुजदिल था जो जान दे दी
जिंदा था तो कभी कस के मिले थे गले
ऐ, नमाजो मे, मिन्नतो में, दुवाओ मे
खुदा से सलामती की खैरात मांगने वालो
पत्थर, और पत्थर के बुथ सारे
है बस नाम के वो, है सच्च तो कभी सामने से आ के मिले

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सांजवेळ

-Hiramani Kirloskar

इन गुजरे शामो का हिसाब कुछ और हि है
कभी वक्त से जादा तुम्हे सोचना
तो कभी बेवक्ता का पलको तक आँसुवो का आना भी है
कुछ तुफान समेटे है सिने मे
कुछ भवर है मेरे अंदर
राते गेहरी काली है
किनारे से दुर मै और
चारो और
शोर करता तेरी यादों का समंदर हि समंदर

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एक शायरी लिखी है
कभी मिलेगी तो सुनाऊंगा
तेरी सीरत साफ शीशे की तरह,
मेरे दामन में दाग हजारों है
तू नायाब किसी पत्थर की तरह,
मेरा उठना बैठाना बाजारों में है।
तेरी मोजूदगी का इंतराम कर भी लूं,
जब होगा रूबरू तो ये जज्बात कहा छुपाऊंगा ।
एक उम्र लेके आना,
में खाली किताब लेके आऊंगा,
तोड़ कर लाने के वादे नहीं
में अपनी कलम से सितारे सजाऊंगा,
मेरी साबर की इंतहा पर शक कैसा
मेने तेरे आने जाने पे ता उम्र लिखी है,
जमीन पे कोई खास नही मेरा,
तू एक बार कुबूल कर
में अपने गवाहों को आसमान से बुलाऊंगा।
एक शायरी लिखी है
कभी मिलेगी तो सुनाऊंगा,
कई रात गुजारी है इस अंधेरे में,
तुम थोड़ा सा नूर ले आओगे,
मेरे तकिए गीले है आंसुओं से,
क्या तुम मुझे अपनी गोद में सुलाओगे,
सुना है बाग है तुमारे आंगन में,
मेरे ला हासिल बचपन को वो झूला दिखाओगे??
मैने खोया है अपनी हर प्यारी चीज को,
में अपनी किस्मत फिर भी आजमाऊंगा,
एक शायरी लिखी है
कभी मिलेगी तो सुनाऊंगा,

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बडे अजीब से है लोग
जब थी कहानीया कहेने को
तो कोई सुननेवाला नही था
अब जब कुछ केहेने का दिल नही है
तो पास आकर
किस्से सुनना चाहते है।

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तेरे संग खाब, जज्बात, जिक्र, प्यार तेरा
बेमानी हुआ
तुझे अपने जिंदगीका मानी समजकर
बडी भुल हुई

ये सब कुछ जो है
कुछ नया नही है
वही मै था वही तुम थे
बात भीे वही थी जहाँ रुकी हुई थी
वही गिले थे वही शिकायते
वक्त बदला जरुर था
लेकिन
ये सब कुछ जो है
कुछ नया नही है

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