Quotes by Aachaarya Deepak Sikka in Bitesapp read free

Aachaarya Deepak Sikka

Aachaarya Deepak Sikka Matrubharti Verified

@drdeepaksikkagmailco
(45.7k)

Easy Vastu Remedies From My Vastu Notes.

चित्त शुद्धि व्रत, तप, दान, शास्त्र, वेद, तीर्थ यात्रा से नहीं — ज्ञाननिष्ठ पुरुष के सत्संग से होती है।

The soul is not cleansed by Vedas, Shastra, Fasting, Praying, Charity, Pilgrimage — but by spending time with people devoted to gyana.

Read More

The four difficulties of realising enlightenment;

So close you can't see it.
So deep you can't fathom it.
So simple you can't believe it.
So good you can't accept it."

*Tibetan Proverb*

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य मजबूत हो लेकिन चंद्रमा कमजोर हो, तो वे हमेशा तार्किक रूप से “सही काम” करेंगे—भले ही उसके लिए भावनाओं की कीमत क्यों न चुकानी पड़े। लेकिन ऐसी दबाई हुई भावनाएँ उनके अवचेतन मन की छाया बन जाती हैं।

दूसरी ओर, जिनका चंद्रमा मजबूत हो लेकिन सूर्य कमजोर हो, वे बहुत कम काम पूरे कर पाते हैं या उनकी उपलब्धियाँ कम होती हैं, क्योंकि वे निर्णय लेने में संघर्ष करते हैं और अक्सर अपनी ही भावनाओं में उलझे रहते हैं।

संतुलित रहने के लिए दोनों पक्षों—सूर्य और चंद्रमा—का पोषण और सुधार आवश्यक है।

Read More

आसक्ति (Attachment)

आसक्ति केवल किसी वस्तु, व्यक्ति या रिश्ते से जुड़ना नहीं है। आसक्ति वह रस्सी है जो मन को बाहरी संसार से बांधकर उसकी स्वतंत्रता छीन लेती है।

आसक्ति तब जन्म लेती है जब मन किसी चीज़ को पकड़कर कहता है यह मेरा है।
और जब हृदय डरते हुए फुसफुसाता है इसके बिना मैं अधूरा हूँ।

यहीं से असली बंधन शुरू होता है।
मन का मेरा शब्द ही संसार में सभी दुखों की जड़ है।
जब तुम किसी चीज़ को अपना कह देते हो, वही चीज़ तुम्हारी कैद बन जाती है।

आसक्ति का ऊर्जा-विज्ञान कहता है कि जिस चीज़ को तुम जितना कसकर पकड़ोगे, उतनी ही वह तुम्हारी ऊर्जा निगलती रहेगी।

जब जीव जागृत होता है तो एक दिन अचानक यह सत्य दिखाई देता है कुछ भी स्थायी नहीं। कुछ भी तुम्हारा नहीं।

आसक्ति टूटते ही यह भ्रम मिट जाता है कि
कोई वस्तु, कोई रिश्ता, कोई भावना मुझे पूर्णता देती है।

किसी को बांधकर रखा जा सकता है लेकिन उसकी आत्मा को नहीं। और जब आत्मा बंधन महसूस करती है,
वही रिश्ता टूट जाता है।

जो चीज़ तुम्हें बांधे, वह संसार है।
जो तुम्हें मुक्त करे, वह शिव है।

आसक्ति ऊर्जा को बाहर बांधती है।
प्रेम ऊर्जा को भीतर जगाता है।
और जब ऊर्जा भीतर जागने लगती है
तो मन, वस्तु, स्मृति, भाव सब ढह जाते हैं।

आसक्ति की समाप्ति साधक के लिए मुक्ति का आरंभ है।
जब तुम किसी को पकड़ना छोड़ देते हो तो तुम उसे खोते नहीं तुम स्वयं को पा लेते हो।

जब आसक्ति टूटती है तब मन हल्का हो जाता है। डर, ईर्ष्या, तुलना, जलन सब नष्ट हो जाते हैं। रिश्ते स्वाभाविक, सरल और शांत हो जाते हैं।

Read More

*रामायण के अद्भुत अकल्पनीय विश्वसनीय कथा जिसे आपने कभी सुना ही नहीं होगा*
अयोध्या के राजा दशरथ एक बार भ्रमण करते हुए वन की ओर निकले वहां उनका सामना बाली से हो गया। राजा दशरथ की किसी बात से नाराज हो बाली ने उन्हें युद्ध के लिए चुनोती दी। राजा दशरथ की तीनो रानियों में से कैकयी अस्त्र-शस्त्र एवं रथ चालन में पारंगत थी।
अतः अक्सर राजा दशरथ जब कभी कही भ्रमण के लिए जाते तो कैकयी को भी अपने साथ ले जाते थे इसलिए कई बार वह युद्ध में राजा दशरथ के साथ होती थी। जब बाली एवं राजा दशरथ के मध्य भयंकर युद्ध चल रहा था उस समय संयोग वश रानी कैकयी भी उनके साथ थी।
युद्ध में बाली राजा दशरथ पर भारी पड़ने लगा वह इसलिए क्योकि बाली को यह वरदान प्राप्त था की उसकी दृष्टि यदि किसी पर भी पड जाए तो उसकी आधी शक्ति बाली को प्राप्त हो जाती थी। अतः यह तो निश्चित था की उन दोनों के युद्ध में हार राजा दशरथ की ही होनी थी।
राजा दशरथ के युद्ध हारने पर बाली ने उनके सामने एक शर्त रखी की या तो वे अपनी पत्नी कैकयी को वहाँ छोड़ जाए या रघुकुल की शान अपना मुकुट छोड़ जाए तब राजा दशरथ को अपना मुकुट वहां छोड़ रानी कैकेयी के साथ वापस अयोध्या लौटना पड़ा।
रानी कैकयी को यह बात बहुत बुरी लगी , आखिर एक स्त्री अपने पति के अपमान को अपने सामने कैसे सह सकती थी। यह बात उन्हें हर पल काँटे की तरह चुभने लगी की उनके कारण राजा दशरथ को अपना मुकुट छोड़ना पड़ा।
वह राज मुकुट की वापसी की चिंता में रहतीं थीं। जब श्री रामजी के राजतिलक का समय आया तब दशरथ जी व कैकयी को मुकुट को लेकर चर्चा हुई यह बात तो केवल यही दोनों जानते थे। कैकेयी ने रघुकुल की आन को वापस लाने के लिए श्री राम के वनवास का कलंक अपने ऊपर ले लिया और श्री राम को वन भिजवाया उन्होंने श्री राम से कहा भी था कि बाली से मुकुट वापस लेकर आना है।
श्री राम जी ने जब बाली को मारकर गिरा दिया। उसके बाद उनका बाली के साथ संवाद होने लगा। प्रभु ने अपना परिचय देकर बाली से अपने कुल के शान मुकुट के बारे में पूछा था। तब बाली ने बताया- रावण को मैंने एक बार बंदी बनाया था जब वह भागा तो साथ में छल से वह मुकुट भी लेकर भाग गया। प्रभु मेरे पुत्र को सेवा में ले लें वह अपने प्राणों की बाजी लगाकर आपका मुकुट लेकर आएगा।
जब अंगद श्री राम जी के दूत बनकर रावण की सभा में गए तो वहाँ उन्होंने सभा में अपने पैर जमा दिए और उपस्थित वीरों को अपना पैर हिलाकर दिखाने की चुनौती दी। रावण के महल के सभी योद्धाओं ने अपनी पूरी ताकत अंगद के पैर को हिलाने में लगाई परन्तु कोई भी योद्धा सफल नहीं हो पाया।
जब रावण के सभा के सारे योद्धा अंगद के पैर को हिला न पाए तो स्वयं रावण अंगद के पास पहुचा और उसके पैर को हिलाने के लिए जैसे ही झुका उसके सर से वह मुकुट गिर गया। अंगद ने वह मुकुट श्री राम के पास पहुंचा दिया यह महिमा थी रघुकुल के राज मुकुट की।
ग्रहदशा जब राजा दसरथ के पास आई तो उन्हें पीड़ा झेलनी पड़ी। बाली से जब रावण वह मुकुट लेकर गया तो तो बाली को अपने प्राणों को आहूति देनी पड़ी इसके बाद जब अंगद रावण से वह मुकुट लेकर गया तो रावण के भी प्राण गए।
कैकयी के कारण ही रघुकुल के लाज बच सकी यदि कैकयी श्री राम को वनवास नही भेजती तो रघुकुल का सम्मान वापस नही लोट पाता कैकयी ने कुल के सम्मान के लिए सारा कलंक एवं अपयश अपने ऊपर ले लिए अतः श्री राम अपनी माताओ में सबसे अधिक प्रेम कैकयी को करते थे..!

Read More

*अमृत कथा*🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

*रावण ने कैलाश पर्वत को उठा लिया फिर धनुष क्यों नहीं उठा पाया और राम ने कैसे धनुष तोड़ दिया?*

*अक्सर लोगों के मन में यह सवाल आता है कि जब रावण कैलाश पर्वत उठा सकता है तो शिव का धनुष कैसे नहीं उठा पाया और भगवान राम ने कैसे उस धनुष को उठाकर तोड़ दिया? आओ इस सवाल का जवाब जानते हैं।*

*ऐसा था धनुष : भगवान शिव का धनुष बहुत ही शक्तिशाली और चमत्कारिक था। शिव ने जिस धनुष को बनाया था उसकी टंकार से ही बादल फट जाते थे और पर्वत हिलने लगते थे। ऐसा लगता था मानो भूकंप आ गया हो। यह धनुष बहुत ही शक्तिशाली था। इसी के एक तीर से त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को ध्वस्त कर दिया गया था। इस धनुष का नाम पिनाक था। देवी और देवताओं के काल की समाप्ति के बाद इस धनुष को देवराज इन्द्र को सौंप दिया गया था।*

*देवताओं ने राजा जनक के पूर्वज देवराज को दे दिया। राजा जनक के पूर्वजों में निमि के ज्येष्ठ पुत्र देवराज थे। शिव-धनुष उन्हीं की धरोहरस्वरूप राजा जनक के पास सुरक्षित था। उनके इस विशालकाय धनुष को कोई भी उठाने की क्षमता नहीं रखता था, लेकिन भगवान राम ने इसे उठाकर इसकी प्रत्यंचा चढ़ाई और इसे एक झटके में तोड़ दिया।*

*श्रीराम चरितमानस में एक चौपाई आती है:-*
"*उठहु राम भंजहु भव चापा, मेटहु तात जनक परितापाI"*

*भावार्थ- गुरु विश्वामित्र जनकजी को बेहद परेशान और निराश देखकर श्री रामजी से कहते हैं कि हे पुत्र श्रीराम उठो और "भव सागर रुपी" इस धनुष को तोड़कर, जनक की पीड़ा का हरण करो।"*

*इस चौपाई में एक शब्द है 'भव चापा' अर्थात इस धनुष को उठाने के लिए शक्ति की नहीं बल्कि प्रेम और निरंकार की जरूरत थी। यह मायावी और दिव्य धनुष था। उसे उठाने के लिए दैवीय गुणों की जरूरत थी। कोई अहंकारी उसे नहीं उठा सकता था।*

*रावण एक अहंकारी मनुष्‍य था। वह कैलाश पर्वत तो उठा सकता था लेकिन धनुष नहीं। धनुष को तो वह हिला भी नहीं सकता था। वन धनुष के पास एक अहंकारी और शक्तिशाली व्यक्ति का घमंड लेकर गया था। रावण जितनी उस धनुष में शक्ति लगाता वह धनुष और भारी हो जाता था। वहां सभी राजा अपनी शक्ति और अहंकार से हारे थे।*

*जब प्रभु श्रीराम की बारी आई तो वे समझते थे कि यह कोई साधारण धनुष नहीं बल्की भगवान शिव का धनुष है। इसीलिए सबसे पहले उन्हों धनुष को प्रणाम किया। फिर उन्होंने धनुष की परिक्रमा की और उसे संपूर्ण सम्मान दिया। प्रभु श्रीराम की विनयशीलता और निर्मलता के समक्ष धनुष का भारीपन स्वत: ही तिरोहित हो गया और उन्होंने उस धनुष को प्रेम पूर्वक उठाया और उसकी प्रत्यंचा चढ़ाई और उसे झुकाते ही धनुष खुद ब खुद टूट गया।*

*कहते हैं कि जिस प्रकार सीता शिवजी का ध्यान कर सहज भाव बिना बल लगाए धनुष उठा लेती थी, उसी प्रकार श्रीराम ने भी धनुष को उठाने का प्रयास किया और सफल हुए।*

Read More

क्या आप जानते हैं? आपके सोने का तरीका आपके गहरे राज खोलता है........

हम अपने जीवन का एक तिहाई हिस्सा सोने में बिताते हैं। सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार, जब हम अवचेतन अवस्था (नींद) में होते हैं, तो हमारा सोने का तरीका हमारे असली स्वभाव को दर्शाता है।

जानिए आपके सोने की पोजीशन आपके बारे में क्या कहती है:

*1. करवट लेकर सोना:*

ये लोग समझौतावादी और आदर्श जीवन जीना पसंद करते हैं। साफ-सफाई, अच्छा भोजन और नई खोज करना इनका शौक होता है।

*2. सोने से पहले पैर हिलाना:*

यह चिंता का लक्षण है। ऐसे लोग खुद से ज्यादा परिवार की चिंता करते हैं और अक्सर किसी न किसी उधेड़बुन में रहते हैं।

*3. पांवों को कसकर या शरीर ढककर सोना:*

इनका जीवन संघर्षपूर्ण हो सकता है, लेकिन ये बहुत व्यवहारकुशल होते हैं और परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढाल लेते हैं।

*4. शरीर सिकोड़कर (Fetal Position) सोना:*

इनके मन में असुरक्षा या अनजाना भय होता है। ये थोड़े डरपोक और अकेले रहना पसंद करने वाले होते हैं।

*5. चित्त (सीधे पीठ के बल) सोना:*

यह एक शुभ लक्षण है! ऐसे लोग आत्मविश्वास से भरे, आकर्षक व्यक्तित्व वाले और परिवार के मुख्य सदस्य होते हैं। ये अच्छे समस्या निवारक (problem solver) होते हैं

*6. पेट के बल सोना:*

इनमें एक अनजाना डर होता है और ये जोखिम लेने से बचते हैं। ये धोखे का शिकार जल्दी हो जाते हैं, इसलिए दोस्ती सोच-समझकर करते हैं।

*7. हाथ-पैर फैलाकर पीठ के बल सोना:*

ये स्वतंत्रता पसंद लोग होते हैं। इन्हें जीवन की सभी सुख-सुविधाएं चाहिए होती हैं। ये सुंदरता की ओर जल्दी आकर्षित होते हैं और इन्हें गपशप (gossip) करना पसंद होता है।

Read More