Quotes by Darshita Babubhai Shah in Bitesapp read free

Darshita Babubhai Shah

Darshita Babubhai Shah Matrubharti Verified

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मैं और मेरे अह्सास

प्रेम बिना जग सुना लागे कुछ नहीं रह जाता जिन्दगी में l
सुबह शाम दिन रात बस देखा करते रह्ते है आसमान में ll

खामोशी से बिना कहे बिना सुने छोड़कर चल दिये l
दिल की कश्ती को छोड़ दिया है समंदर के तूफान में ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

जीवन एक सफ़र ये जान लीजिये l
सुख दुख का चक्र ये मान लीजिये ll

काम कुछ एसा कारगुजारियों की l
क़ायनात में अपना मुकाम लीजिये ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

आजादी का सन्देशा सुखद भोर लेकर आया l
मुक्ति का अहसास दिलों दिमाग को है भाया ll

सब कुछ भुलाकर हर पल हर लम्हा जी लेना l
नया जीवन, नई उमंग ओ नया सवेरा लाया ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

प्यासी धरती की पुकार सुनी आसमान ने l
प्यास बुझाई रिमझिम बारिस के जाम ने ll

तन मन ने चैन और सुकून की साँस ली जब l
बेबाक ओ बेसब्र कर दिया था तापमान ने ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

आसमान
कब से क्या देख रहे हों आसमान में?
पंखी को भरोसा है पँखों की उड़ान में ll

दयार का झोंका है गूजर ही जायेगा l
बात मानो कुछ नहीं रखा तूफान में ll

चार भीतो को घर कह रहे हो देखो l
दरों दीवार रह गई ख़ाली मकान में ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

एक झलक देखते ही जिन्दगी निखर जाती हैं l
आँखों से सीधे सीधा दिल में उतर जाती हैं ll

अभी ना जाओ छोड़कर दिल अभी भरा नहीं l
पल भर की दूरी से दुनिया बिखर जाती हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

यादों की महक
यादों की महक से जीस्त का रोम रोम सुगंधित हो उठा हैं l
प्रेम भरे अविरत झरनों से तन मन पुलकित हो उठा हैं ll

प्यार भरे लम्हों की याद आते ही एक कसक हो रही ओ l
जल्द मुलाकात का आश का दिपक प्रज्वलित हो उठा हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

सूरज का पैग़ाम
सूरज का पैग़ाम कि कर जिन्दगी की नई शुरुआत भी ll
ख़ुद मुस्कुरा कर औरों के चहरे प़र दे मुस्कान भी ll

वक़्त सब का हिसाब रखता है तो बस मुकम्मल l
कर्म किया जा औ ख़ामोश रख अपनी जबान भी ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

आत्मा की आवाज़
आत्मा की आवाज़ सही राह दिखाती हैं l
अच्छा बूरा क्या वो पहचाना सिखाती हैं ll

अनजाने और अनचाहे हादसों से बचाके l
खामोशी से अपना फर्ज बखूबी निभाती हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

प्रेम के इन्द्रधनुष की बारिस हो रही हैं l
पिया मिलन की तमन्ना को बो रही हैं ll

सुहाने नशीले मौसम में सावन की धीमी l
रिमझिम छांट चैन और सुकून खो रही हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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