Quotes by Darshita Babubhai Shah in Bitesapp read free

Darshita Babubhai Shah

Darshita Babubhai Shah Matrubharti Verified

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मैं और मेरे अह्सास

सूना आसमान सो गया हैं l
रंगी खयालों में खो गया हैं ll

सुनहरा पँछी पैगाम लाकर l
मिलने की आश बो गया हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

प्रीत के बंधन की परछाइयाँ ताउम्र साथ चलती हैं l
रूठने मनाने की हरजाईयाँ ताउम्र साथ चलती हैं ll

ना जाने कैसे जुड़ जाते है दिलों के रिश्ते प्यार में l
इश्क़ की जुदाई में तन्हाइयाँ ताउम्र साथ चलती हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

मेरे अपने मेरे होने की निशानी मांगे l
मुझ में मेरी ही तस्वीर पुरानी मांगे ll

फ़िर से वो बाँकपन के दिन जीने को l
डायरी में बचपन की कहानी मांगे ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

दिलबर से प्रीत का बंधन अनोखा अनूठा होता हैं l
दिल में जीने की आशा और उम्मीद को बोता हैं ll

छुटना चाहे भी तो मन ही नहीं मानता है छुटने को l
प्यार की जंजीर में बंधने से खुशी से संजोता हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

महफ़िल में नूतन नवीन राग बजा रहे हो l
हसीन रंगत किसके लिए सजा रहे हो ll

दिलरुबा के आनेका अंदेशा लगता है कि l
माहौल महकता आशिकाना बना रहे हो ll

चरोऔर जगमगाहट से उजियाला करके l
रंगीन दीपकों की हारमाला जला रहे हो ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

प्रकृति की अद्भुत अद्वितीय कलाकारी का
लुफ़्त उठाना चाहिए l
कुदरत के हसीन रंगीन नजारे को देखके
सिर झुकाना चाहिए ll

कलकल बहता झरना, बहती नदियाँ ओ
उफनता समन्दर फेला l
प्रकृति की न्यारी अनोखी लीला की तरह
जीवन बिताना चाहिए ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

शुभारंभ तो जीवन में कभी भी शुरू किया जा सकता हैं l
नई शुरुआत जिन्दगी में खुशियां और रंगिनिया भरता हैं ll

उत्साह और जोश के साथ की गया हर कार्य
जीवन में l
नई उम्मीदें, नई उमंगे, नई भावनाओ के साथ
पलता हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह
- Darshita Babubhai Shah

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मैं और मेरे अह्सास

पीले पीताम्बर वाले ने दिल को चुरा लिया l
भोली दिलवाली ने भोलेपन में दिल दिया ll

मिलने को आतुर हैं नैना जन्मोंजन्म से ही l
पगली बासुरी धुन पुकारे कहां हो पिया ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

ढलती उम्र का असर हो रहा हैं l
धीरे धीरे ख़त्म सफर हो रहा हैं ll

शिद्दत से याद कोई कर रहा है l
सुबह से यहीं वहम हो रहा हैं ll

जिंदगी भर भागदौड़ करते रहे l
तो शाम ढलते बसर हो रहा हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

ढलती उम्र का असर है कि पुरानी शराब ज्यादा पसंद आने लगी हैं l
महफिल में आई खबर है कि पुरानी शराब ज्यादा पसंद आने लगी हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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