Quotes by Dr Darshita Babubhai Shah in Bitesapp read free

Dr Darshita Babubhai Shah

Dr Darshita Babubhai Shah Matrubharti Verified

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मैं और मेरे अह्सास
जीवन
जीवन के लम्बे सफ़र में चलना तो होगा l
ईश जिस तरह से पालेंगे पलना तो होगा ll

तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हो जाता l
सुबह बाद शाम को तो ढलना तो होगा ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह"सखी"

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मैं और मेरे अह्सास
चाह
हमेशा देर कर देता हूं में l

जरा सा हाथ देना है तो भी l
जरा सा साथ देना है तो भी l
जरा सा हौंसला देना है तो भी ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह"सखी"

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मैं और मेरे अह्सास
श्राद्ध
पितृओ के आत्मा की तृप्ति के लिए श्राद्ध किया जाता हैं l
उनको हसते हुए विदा कर के आशिर्वाद लिया जाता हैं ll

जिनके हाथों से निवाला खाया था उनको भोग लगाकर l
भरे पूरे परिवार के संग श्रद्धा से अर्पण दिया जाता हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह"सखी"

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मैं और मेरे अह्सास
तसवीर
बड़ी जहमत उठाई है पल की झलकियां पाने के लिए l
और कई दिन लगें मुकम्मल तसवीर बनाने के लिए ll

वैसे भी उखड़े उखड़े रह्ते है अब नहीं चाहते बेचैन रहे l
कभी के अजनबी ओ गुमशुदा हो गये ज़माने के लिए ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह"सखी"

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मैं और मेरे अह्सास
आदत
ईंटो का ढाँचा रहा है, इमारत नहीं रही l
मकान रह गये कहीं पर छत नहीं रही ll

प्रकृत्ति ने अपना रौद्र रूप लिया है तो l
अगले पल की कोई सलामत नहीं रही ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह"सखी"

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मैं और मेरे अह्सास
अनजानी डगर
शिकायतें ये है कि अब कुछ नहीं कहते हैं l
ख़ामोशी का चोला पहनकर चुप रहते हैं ll

जरा सी अनबन में रूठ के बैठे है उसकी l
सालों की जुदाई को चुपचाप सहते हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह"सखी"

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मैं और मेरे अह्सास
शिकायतें
महकती यादें चहका रहीं हैं l
जिंदगी को महका रहीं हैं ll

भीगी हुई बरसाती बयार l
सुबह शाम तड़पा रहीं हैं ll

शिकायतें बंध कर ये l
सखी समजा रहीं हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह"सखी

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मैं और मेरे अह्सास
महकती यादें
शर्म का पर्दा डाल रखते हैं l
इश्क़ वाले जाल रखते हैं ll

महकती यादों में जीना l
रोमांचित हाल रखते हैं ll

वाबस्ता बरकरार रखने l
हररोज चौपाल रखते हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह"सखी"

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मैं और मेरे अह्सास
ढलती शाम
एक और शाम ढल गई यादों की किताब पढ़ते हुए l
आज निगाहें नम हो गई वादों की किताब पढ़ते हुए ll

दुनिया से छुपाके रात भर फोन पर बात यादकरते l
मादकता से छलकती रातों की किताब पढ़ते हुए ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह"सखी

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मैं और मेरे अह्सास
ढलती शाम
ढलती शाम का लुत्फ़ उठा लेने दो ज़रा l
प्राकृतिक सौंदर्य का मजा लेने दो ज़रा ll

बड़े बेईमानी हो गये है दुनिया वाले तो l
मोहब्बत का पाठ पढ़ा लेने दो ज़रा ll

खिली हुई कलियां, भीगी सी फिझाएं l
सौंदर्य निगाहों में समा लेने दो ज़रा ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह"सखी"

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