Quotes by Darshita Babubhai Shah in Bitesapp read free

Darshita Babubhai Shah

Darshita Babubhai Shah Matrubharti Verified

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मैं और मेरे अह्सास

तबीयत दुरस्त रखने के लिए
महफिलों में l
दिल मिलने मिलाने की रवायत
होनी चाहिये ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

याद आते हैं
पुराने नशीले ज़माने याद आते हैं l
इत्तफाक से फ़साने याद आते हैं ll

फुलझड़ी, टेटे, जलेबी, अनार व् l
बचपन वाले पटाख़े याद आते हैं ll

एक नज़र हुस्न का दीदार करने को l
छत पे जाने के बहाने याद आते हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

अपनों के लिए तो सभी जी रहे हैं दुनिया में l
आमदनी से थोड़ी सी सखावत होनी चाहिये ll

जिंदगी का लुफ्त उठाने के वास्ते मुकम्मल l
वक्त बेवक्त दोस्तों से जमावट होनी चाहिये ll

तबीयत दुरस्त रखने के लिए महफिलों में l
दिल मिलने मिलाने की रवायत होनी चाहिये ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
स्वच्छ भारत
स्वच्छ भारत का सपना साकार करने
को एकजुट होना पड़ेगा l
दिन का सुकून और रातों की नींद को
मुकम्मल खोना पड़ेगा ll

स्वच्छता ही सेवा गली गली गाँव गाँव अभियान करना होगा l
हर घर हर इन्सान के दिलों दिमाग में
विचार बोना पड़ेगा l
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

देश रक्षक
देश रक्षक के हौसले बुलंद होते हैं l
जान बाजों के पंख अनंत होते हैं ll

वतन के वास्ते मरने या मिटने के l
उनके जज्बात भी अभंग होते हैं ll

भारत माता की रखवाली करते हुए l
वीरों के हाथों में सदा तिरंग होते हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
जीवन अनुभव
जीवन अनुभवों का जंगल हैं l
सुख और दुख का बंडल हैं ll

अँधेरों और उजालों में किये l
अच्छे प्रयत्नों का मंडल हैं ll

मंज़िल तक पहुंचने के लिए l
हमराही का साथ संदल हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

मेला
जिंदगी आती जाती साँसों का मेला हैं l
क़ायनात में कुछ सालों का डेरा हैं ll

सुनो जलजले से कम नहीं हैं इश्क़ l
दिल की दुनिया को मुकम्मल घेरा हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

संगम
दो दिलों का संगम हो रहा हैं l
होशो हवास को खो रहा हैं ll

निगाहों की मस्ती को दिल में l
नशीली मोहब्बत बो रहा हैं ll

जज़्बातों को भड़काने के बाद l
प्यारी मदहोशी में सो रहा हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

चुपके से कानों में ये क्या कह गई l
आकर सपनों में ये क्या कह गई ll

हर जनम में मिलते रहेगे यही पे कहीं l
महकी फिझाओ में ये क्या कह गई ll

आँखों के इशारों से पिलाते रहते हैं l
नशीले प्यालों में ये क्या कह गई ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

बहती सर्द हवाएँ चुपके से कानों में
ये क्या कह गई l
कुछ ज्यादा ही जल्दीमें बात पतेकी
कहकर बह गई ll

अच्छा है खुले आम न कहीं कानों में
कहने वाली l
दिल में चुभने वाली बात चुपचाप से
आज सह गई ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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