Quotes by Darshita Babubhai Shah in Bitesapp read free

Darshita Babubhai Shah

Darshita Babubhai Shah Matrubharti Verified

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मैं और मेरे अह्सास
शोर
भीतर के उफान से खामोशी शोर बन गई हैं l
मौन गुलशन में चारो और से शोर भर गई हैं ll

फिझाओ में अजीब सी शांति छाई थी ओ l
तेज रफ्तार हरतरफ कोलाहल कर गई हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
बेशुमार
बेशुमार प्यार की दौलत से छलक रहे हैं l
नशीली निगाहें चार होते ही बहक रहे हैं ll

खूबसूरत हुस्न से भरी हुई महफिल में l
अनजाने में जरा सा छूने से महक रहे हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

महफिल बर्बाद करने आनेवाला ख़ुद बर्बाद होकर गया l
हुस्न से निगाहें चार क्या हुईं इश्क़ में दिल खोकर गया ll

असली चहरा छुपाके बेनमून कर्तव्य दिखाकर बच्चों को l
खूब हँसाकर सरकस से भीगी आँखैं लिए जोकर गया ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

अनजानी मंज़िल की और निकल पड़े हैं l
अनजाने लोगों को देखकर उछल पड़े हैं ll

दूर दूर तक अकेलेपन का मेला लगा हुआ l
जाने पहचाने चहरों के लिए तरस पड़े हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

सपनों ने आशा की किरणो को जगाया हैं l
आज हौसलों ने बड़ी शिद्दत से पुकारा हैं ll

मुद्दतों के इन्तज़ार बाद, मुलाकात के वक्त l
खुशी से बाहों के शजर ने गले से लगाया हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

चाय तो सिर्फ़ बहाना है बातें करने का l
जरिया है मन को खुशियों से भरने का ll

मोका भी है दस्तूर भी है साथ बैठ के l
खुशनुमा मौसम के नशें में सरने का ll

हरियाली छाई है बहुत दिनों बाद ये l
खूबसूरत शमा के लुफ़्त को हरने का l

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
घरौंदा
घरौंदा मेरी यादों का कश्ती का किनारा हैं l
खुशी से मुस्कराते हुए जीने का सहारा हैं ll

पतझड़ में भी बसंत का मज़ा देता है तो l
कैसे भी हो रिश्ता शिद्दत से निभाना हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
सपने सात रंग के
सपने सात रंग के अलबेला अजनबी दिखा गया l
ख्वाबों और ख्यालों को हकीकत में मिला गया ll

जन्मों जन्म की प्यास बुझाने के लिए वो
आज l
सपनों में निगाहों से प्रेम का प्याला पिला गया ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
फूल की अभिलाषा
फूल की अभिलाषा है क़ायनात को महकाता रहे l
सुगंधी बयारों में घोलके सारा ब्रमांड बहकाता
रहे ll

मातृ भूमि के वीर सपूत की शहादत पर चढ़के
यूही l
राह में पुष्पों की जाजम बिछाकर सर सरहाता
रहे l
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

रात बरसात की
हुस्न आसमाँ से छलका रही हैं l
रात बरसात की बहका रही हैं ll

शीत बयार की लहरें चौतरफा l
से फिझाओ को महका रही हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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