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“बचपन की सौगातें वो तारों वाली रातें “ इस पुस्तक में मैंने अपने बचपन की यादों को दादी ,माँ ,पिताजी से सुनी कहानियों को जोड़ कर लिखने का प्रयास किया है । एक प्रयास किया है कि आप सभी को भी अपने बचपन की यादें फिर से गुदगुदाने लगे । बचपन की अल्हड़ और ख़ूबसूरत यादों के साथ मिलते हैं । 😍
घर आंगन सूना पड़ा है , हम अपने अपने कमरों में अपने बिस्तर पर हाथ में लिए छोटे से मोबाइल फ़ोन पर सारी दुनिया को खोज रहे हैं । अपनी खुशियों को ढूँढ रहे हैं । आँगन खाली पड़ा है । चिड़िया भी आकर लौट गई है । ड्योढ़ी पर खड़ी गाय भी मुड गई है । हम मोबाइल पर परिवार , रिश्तेदारों गाँव ,पर्यावरण ,गोवर्धन न जाने किस किस पर चर्चा परिचर्चा कर रहे हैं ।🙏🏻🙏🏻
आजकल उनसे बातें होती हैं जो बोलते नहीं । देर तक बातें करते रहते हैं ,एक दूसरे को समझाते नहीं हैं बस एक दूसरे को समझने की कोशिश करते रहते हैं । - Anjana Vyas
मैं और मेरे पति हम दोनों के हमारे अलावा और तीन भाई बहन हैं मेरे पति सबसे बड़े हैं और उनसे छोटी तीन बहनें हैं ।मैं भाई बहनों में दूसरे नंबर पर हूँ ।मुझसे बड़ा भाई एक छोटा भाई और सबसे छोटी बहन ।एक दिन हम दोनों बैठे थे तो वो बोले कि ये कैसा इत्तफ़ाक़ है कि हम दोनों ही चार भाई बहन हैं और इससे भी बड़ा इत्तेफ़ाक़ ये है कि हम दोनों अपनी अपनी माता पिता की चौथी संतान हैं । चौथी संतान हैं !वो कैसे ?मैंने पूछा ,तो वो बोले मैं ये क्रम जन्म के आधार पर नहीं नहीं हमारे माता पिता के प्रेम के आधार पर बता रहा हूँ ।मैं अब भी असमंजस में थी कि वो क्या कहना चाहते हैं ।तो उन्होंने ये बताया कि बात ये है वैसे तो मैं सबसे बड़ा हूँ पर, माता - पिता के प्यार का बँटवारा होते होते मैं चौथे स्थान पर आ गया हूँ ।मेरे बाद जैसे -जैसे मेरी बहनें हुई उन्हें प्राथमिकता मिलने लगी ।इसके पीछे कई कारण थे पर जो प्रमुख कारण था वो ये था कि बेटियों के मन में में यह न आ जाए कि माता पिता को पुत्र ज़्यादा प्यारा है इसलिए हमेशा मुझे उपेक्षित कर उन्हें स्नेह और संरक्षण दिया गया और जो कि आज तक बरकरार है सबसे छोटी बेटी सबसे प्यारी और इस क्रम में मैं चौथे स्थान पर हूँ ।मैंने कहा इस तरह देखें तो अब मुझे समझ आ गया कि मैं भी चौथी संतान हूँ। माँ पिताजी हमेशा बड़े बेटे को विशेष प्यार स्थान और सम्मान देते आए हैं क्योंकि वो बड़ा है ।चलिए ये स्वीकार हैं । माँ को विशेष प्यार है अपनी छोटी बेटी से तो वो हुई भ दूसरी संतान आज तक माँ को उससे ही विशेष से प्यार है उसके प्रति माँ विशेष रूप से संवेदनशील है और उसके बाद छोटा भाई वो तीसरे नंबर पर ही है वैसे भी माँ के मन का एक कोना हमेशा ही रिक्त रहा कि वह अपने छोटे बेटे के लिए कुछ कर नहीं पाई । इस भावना से माँ उस छोटे बेटे से बहुत प्यार करती है और भावनात्मक तौर पर उससे जुड़ी हुई हैं तो हो गई ना मैं भी माँ के लिए चौथी संतान मेरे लिए माँ को विशेष सोचना ही नहीं पड़ता था क्योंकि माँ को लगता था कि मैं तो आत्मनिर्भर हूँ व आर्थिक रूप से सक्षम हूँ इसलिए मुझे कुछ नहीं चाहिए और न ही वो मुझे देने के लिए इच्छुक है ।पर बात तो ये सही है ना कि हमारे पास चाहे कितनी आर्थिक सम्पदा हो पर प्यार और संरक्षण की आवश्यकता कभी पूरी नही होती।पर आज मैं ये सोच रही थी कि सोच रही थी कि यह संयोग नहीं है तो फिर क्या है कि हम दोनों पति पत्नी अपने माँ बाप की आँखों के तारे नहीं है जब हमारा उनकी नज़रों में चौथा स्थान है तो हमारे बच्चों का भी तो वही दर्जा है।🙏🏻
टूट कर फिर जुड़ तो जाते ही हैं,पर जहाँ से जुड़ते हैं वहाँ के घाव हरे ही रह जाते हैं । - Anjana Vyas
वो सोचते हैं कि हमें तोड़ रहे हैं , पर हम टूट टूटकर रोज़ जुड़ रहे हैं पत्थर बन रहे , चट्टानों की तरह दिल में आग को दबाये ख़ामोश हो रहे हैं ।।😔😔
क्यों उन लोगों की बातों से परेशान होना जिन्हें हमारी परेशानी से कोई मतलब ही नहीं।
चापलूसी मात्र चापलूसी नहीं है। एक चापलूस व्यक्ति सिर्फ़ चापलूसी नहीं जानता उसे राजनीतिक दाँवपेच आते हैं ,वो कूटनीतिक चालें चलना जानता है , चौकन्ना रहता है ,वो इस बात की पुख़्ता खबर रखता है कि वो जिसकी चापलूसी में लगा है वो किसे पसंद या नापसंद करता है। एक चापलूस व्यक्ति उस व्यक्ति को बराबर अपमानित या उपेक्षित करता रहता है , जिसे वो पसंद नहीं करता जिसके वो तलवे सहलाता है।चापलूसी एक कला है ,साधना है जो सब नहीं कर सकते क्योंकि इसकी सबसे पहली शर्त है कि आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता का त्याग । आप जिसकी चापलूसी में लगे हैं वो कभी आपको पुचकारेगा तो कभी दुत्कारेगा।अगर आपमें सहनशीलता है तो आप उनकी दुत्कार सह पाएँगे। और ऐसे ही आप लाभान्वित भी होते रहेंगे और जीवन भी खुशहाल हो जाएगा । समय के साथ लोग आपकी चापलूसी में लग जाएँगे और इस तरह चापलूसों का कारवाँ बन जाता है। यक़ीन मानिए ऐसे कई चापलूसों की ज़िंदगी खुशहाल होते हुए देखी है जिन्हें अपनी योग्यता से अधिक सब मिला थोड़े परिश्रम से जबकि आत्मसम्मान की डींगें हाँकते लोगों को फाका मारते ही देखा है वे अपनी थोथी अकड़ में रहते हैं और जीवन भर अपने काम के लिए प्रशस्ति शब्दों की अपेक्षा कराटे हैं। उनकी धरातल स्तर पर की गई मेहनत कोई नहीं देखता या लोग देखकर भी नज़रअंदाज़ कर देते हैं। जबकि चापलूस के लिए कुछ भी पाना असंभव नहीं है। हमारे देश की राजनीति हो या कोई भी विभाग सब जगह चापलूस पाये भी जाते हैंऔर भाये भी हैं । ये वो लोग हैं जो हर वक्त अपने कंधे ,कमर ,सिर तैयार रखते हैं अपने रहनुमा का बोझ उठाने को ।🙏🏻🙏🏻
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