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कॉलेज का माहौल अब थोड़ा जाना-पहचाना लगने लगा था। क्लासेस अब सिर्फ लेक्चर नहीं, ए...
वैजयंतीमाला फ़िल्मों में दक्षिण का ऐसा पहला चेहरा थीं जो जल्दी ही अखिल भारतीय चे...
हास्यास्त्र भाग–३सूडान में शांति स्थापित होते ही एलन का iPhone अचानक गूंज उठा। उ...
39 गोल्ड अब मैनेजर ने जैसे ही अजय की शिकायत करने के लिए अपने मोबाइल में पु...
संजना और हर्षवर्धन एक बड़े, आलीशान लेकिन सुनसान से वैयर हाऊस के डायनिंग टेबल पर...
हनुमत पचासा - समीक्षा व कवित्त 5 अंतिम 'हनुमत पचासा' मान कवि कृत 50 कवित्त का...
8. सपने मीरा को नींद नहीं आ रही थी। उसे शिवा की याद सता रही थी। उसने शिवा से फो...
काका महाजनी के मित्र और सेठ, निर्बीज अंगुर, बान्द्रा के एक गृहस्थ की अनिद्रा, बा...
टूटे हुए दिलों का अस्पताल – एपिसोड 27पिछले एपिसोड में:भावेश का आदमी अस्पताल में...
भाग 5 (मजेदार मोड़): एक सनकी हसीना का आगमन टिमडेबिट ने सब सच बता दियारामू चौकीदार...
बार्बी डॉल्स नीला प्रसाद (1) मैंने खुद को आईने के सामने खड़ी होकर देखा - फूले -फूले गालों, झरकर पतले हो गए बालों, पसरकर कमरा हो चुकी कमर, झुर्रियों की आहट समेटे चेहरे, थकी हुई आंखो...
सुबह के 8:00 बजे हैं, लक्ष्मी अपने कमरे में बिस्तर पर लेटी हुई है, उसे बहुत तेज बुखार है, उसका बदन बुखार से बुरी तरह तप रहा है, वह उठना तो चाहती है, लेकिन उसकी हिम्मत साथ नहीं देती...
एक विधवा और एक चाँद नीला प्रसाद (1) आज यहाँ आखिरी रात है। फैसले की ये रात मान्या के दिल पर बहुत भारी है- अपनी कह और अजित की सुन सकने वाली आखिरी रात! 'आज का दिन मेरी उम्मीद का ह...
बुरी औरत हूँ मैं (1) झुरमुटी शामों में उदास पपीहे की पीहू पीहू कौंच रही थी सीना और नरेन हर लहर से लड़ रहा था, समेट रहा था खुद को जब भी किसी दरीचे में कोई न कोई लहर आकर छेड़ जाती सुप्...
ईश्वर चुप है नीला प्रसाद (1) रंजना मंदिर की सीढ़ियां चढ़ती ठिठक रही है। ईश्वर से उसका रिश्ता बहुत पेचीदा होता जा रहा है। उसे इस रिश्ते को रेशे - रेशे कर समझने का मन होता है। हर बार...
खेल ----आखिर कब तक ? (1) मन की उद्वेलना हमेशा शब्दों की मोहताज नहीं होती । होती है कोई कोई ऐसी उद्वेलना जिसके बीज मिट्टी में डले तो होते हैं मगर अंकुरित होने के मौसम शायद बने ही नह...
"अर्धांगिनी"----- कहने को अर्धांगिनी कहा जाता है परंतु आधा हिस्सा दिया किसने, आधा हक दिया किसने, और आधा अधिकार/मान-सम्मान दिया किसने, आधा तो क्या उसे हर मोड़ पर छला जाता...
साक्षात्कार नीलम कुलश्रेष्ठ (1) मन में वही तड़प उठ खड़ी हुई है, उसकी कलम की रगें फड़कने लगीं है -उस अनूठे कलात्मक सौंदर्य को समेटने के लिए. शायद इसे ही किसी लेखक के मन का` क्लिक` कर...
नीला आकाश (1) सारी धुंध छँट गयी थी। खुशी का ओर छोर नहीं था। दोनों हाथ पैफलाये चक्राकार घूमते हुए वह पूरे आसमान को समेट लेना चाहती थी अपने अंक में। गहरी साँस लेकर पी लेना चाहती थी उ...
ये कहानी है कुछ दोस्तों की जिनके साथ एक दर्दनाक घटना घटित होती है.........
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