राक्षवन by Mani Kala in Hindi Novels
अजय रात के ग्यारह बजे अपनी मेज पर बैठा पढाई कर रहे था बाहर पूरी गली में सनाटा पसरा हुआ था तभी उसे खिड़की के पास से हल्की...
राक्षवन by Mani Kala in Hindi Novels
अजय पीछे हटने लगा लेकिन परछाईयां और तेज़ी से पास आने लगीं हर परछाई का चेहरा उसका ही था मानो समय की हर शक्ल उस पर टूट पडी...
राक्षवन by Mani Kala in Hindi Novels
धरती फट गई — और उस गहरी खाई से निकली वह काली परछाई अब पूरी तरह आकार ले चुकी थी। उसका कोई चेहरा नहीं था, सिर्फ़ भीतर का घ...