( कोहरा )
(यह कविता घने कोहरे में एकान्त में खड़े एक जवान व्यक्ति के मन में उतपन्न होने वाले विचार को दर्शाती है कि यदि उसकी महबूबा उस वक्त वहाँ आ जाये तो क्या होगा)
मेरा महबूब जो आये इस घने कोहरे में,
हो जाएं जवान मेरी मोहब्बत तो इन्ही सड़कों पे।
न कोई देख सके हमको न कोई रोक सके हमको,
हो जाये पहरेदार जो कोहरा मेरा।।।
सिमट-सिमट के वो लिपट के हमको प्यार करे,
उसको बांहों भर के हम भी जां निशार करें।
कोई इस इश्क की चर्चा न सरेआम करे,
अगर हर सिम्त में घनघोर धुंध छा जाये।।
हो जाये…….……………..
मेरा महबूब ….…………..
बागों में पपीहा कोई ये प्रेम गीत जब गए,
कोयल की मधुर धुन से ये हिर्दय शितार बन जाये।
हमारे दिल के चमन के हजारों फूल अगर खिल जाएँ,
बना के पुष्पमाल जयमाल हो जाये।
हो जाये…….…..
मेरा महबूब …………
उनकी सांसो की गर्मियों से शिशिर थम जाये,
हमारे दो बदन एक दूजे के अलावा अगर हो जाएं।
पुआल सेज बने और सुहागरात वहीं हो जाये,
अम्बर भी न गवाह हो छा जाये जो बदरा मेरा।।
हो जाये …..……… ।।
मेरा महबूब ……………….. ।।।।।
लक्ष्मी नारायण पन्ना
( प्रवक्ता रसायन शास्त्र एवं कलमकार)
( डार्लिंग मान भी जाओ न )
(यह हास्य काव्य उस महिला पर आधारित है जो अपने कवी पति से अपनी सुंदरता का वर्णन करने के लिये कविता करने की जिद में नाराज हो जाती है।उसे मनाने के लिये कविवर कविता करते हैं परंतु हास्य कवि होने के कारण उनकी कविता में हास्य आ ही जाता है )
तू हुस्न की मलिका जान मेरी तेरा बाप बड़ा लंगूर
रहता है मुम्बई बताता सबको देहरादून ।।
डार्लिग मन भी जाओ न।।।
हिरनी जैसी आँखें तेरी नागिन जैसी चाल ।
कमर तेरी जस ताल -तलैया चोटी हाथी पूँछ।।
डॉर्लिंग मान भी..……………… ।।।
सूरा सुराही गर्दन वाली छलकावो जाम ।
रंग विरँगी जुल्फें तेरी जैसे सूखा फूश ।।
डॉलिंग मान भी………….
(इसी बीच मैं आ जाता हूं दरवाजे पे दस्तक देता हूँ । कुण्डी खटकती है भाभी जी दरवाजा खोलती हैं। उनको देख कर मेरे मुंह से अवाक् ही निकल पड़ता है । कि भाभी जी क्या बात है आज तो आप साक्षात चंडी का अवतार लग रही हैं । मेरे मित्र महोदय ने समय का लाभ उठाया और मुझे हाल सुनाया ।कहने लगे भाई अब तुम्ही समझाओ । मैंने कहा भाई आपको कुछ सुंदरता का बखान करना चाहिए था और आप तो लग गए हसीं मजाक करने । अब देखिए मैं समझता हूँ ,,,,,,,,)
गोरे गोरे मुखड़े वाली बोली सिंह दहाड़ ।
होंठ तेरे जस पुष्प पंखुड़ी, दाँत हाँ जैसे ठूंठ ।।
ओ भाभी मान भी जाओ न ।।।।।।।
(इतना सुनते ही भाभी जी ने और विकराल रूप धारण कर लिया ।कहने लगी तुम्ही ने बिगाड़ा है मेरे पति ।आज मैं तुम्हे बताउंगी आप तो जानते हैं कि पति पत्नी के झगडे में पड़ने वाले का क्या हाल होता है ) तो सुनिये क्या होता है , भाभी जी क्या हाल करती हैं।।।।।
कितना है बदमाश न जाने कितना है तू धूर्त ।
लम्बी लम्बी मूंछों वाला बिरप्पान का बाप ।।
छिछोरे आज फशा है तू-3
लक्ष्मी नारायण पन्ना
( प्रवक्ता रसायन शास्त्र एवं कलमकार)
( पत्नी वंदना )
है वन्दन अभिनंदन तुमको अर्पित श्रद्धा सुमन प्रिये।
हे मर्द वाहिनी गृह स्वामिनी सत सत नमन प्रणाम प्रिये।।
है वन्दन अभिनंदन तुमको अर्पित श्रद्धा सुमन प्रिये।
हे मर्द वाहिनी गृह स्वामिनी सत सत नमन प्रणाम प्रिये।।।
तुम करछुल चिमटाधारी हो अब रही न अबला नारि प्रिये।
तुमने जब जब श्रृंगार किया कई आशिक हुए बीमार प्रिये ।।
है वन्दन अभिनंदन तुमको अर्पित श्रद्धा सुमन प्रिये।
हे मर्द वाहिनी गृह स्वामिनी सत सत नमन प्रणाम प्रिये।।।
तुम व्हाट्स ऐप दीवानी हो करती हो दिनभर चैट प्रिये।
तुम पश्चिम वाली गोरी हो अब रही न बृज की छोरी प्रिये।।
है वन्दन अभिनंदन तुमको अर्पित श्रद्धा सुमन प्रिये।
हे मर्द वाहिनी गृह स्वामिनी सत सत नमन प्रणाम प्रिये।।।
बॉडी लोशन तन पर मलती, दिया देशी उबटन छाड़ि प्रिये।।
अब देशी वस्त्र न छजते तुम पर, जँचतें हैं जीन्स औ टॉप प्रिये।
है वन्दन अभिनंदन तुमको अर्पित श्रद्धा सुमन प्रिये।
हे मर्द वाहिनी गृह स्वामिनी सत सत नमन प्रणाम प्रिये।।
हैं इन्टरनेट पर लवर तुम्हारे, अब रहें न देशी यार प्रिये।
प्राणप्रिये से जानू होकर, करती हो हुस्न पे नाज प्रिये।।।
है वन्दन अभिनंदन तुमको अर्पित श्रद्धा सुमन प्रिये।
हे मर्द वाहिनी गृह स्वामिनी सत सत नमन प्रणाम प्रिये।।।
लक्ष्मी नारायण पन्ना
( प्रवक्ता रसायन शास्त्र एवं कलमकार)
( राजनीतिक गलियारा )
माया दीदी अबकिल करिहौ कउनु कमाल-2
अरे कुर्ता पी एम् बाबा होइगे मालामाल।
माया दीदी अबकिल करिहौ कउनु कमाल-2
चाचा जी की डांट से सी एम् भइया हैं बेहाल ।
खाक छान के राहुल चाचा होइगे खस्ताहाल।।
माया दीदी अबकिल करिहौ कउनु कमाल-2
भूखा प्यासा खड़ा है हाथी धीमी होइगै चाल।
सूखे ताल में कमल खड़ा है अब्भौ लाले लाल।।
माया दीदी अबकिल करिहौ कउनु कमाल-2
खण्ड खण्ड होइ गयी है साइकिल बिन मुहि के चिल्लानि।
हाथ का पंजा दूबर होइगा उतरि गयी है खाल ।।
माया दीदी अबकिल करिहौ कउनु कमाल-2
झाड़ू से भी भई सफाई तबहुँ न बदले हाल ।
यही बीच म डेंगू दादा करिगा बड़ा धमाल।।
माया दीदी अबकिल करिहौ कउनु कमाल-2
लक्ष्मी नारायण पन्ना
( प्रवक्ता रसायन शास्त्र एवं कलमकार)
( शिक्षा की खस्ताहाली )
कहूँ पीठ पर बोझ लदा है कहूँ है बस्ता खाली -2
बिना पढ़े जो दिहिन परीक्षा लरिका भये मवाली।।
यह है देश की खस्ताहाली , हम बताई किहिसे -2
कहूँ मास्टर वोट डरावैं ,कहूँ किचन रखवाली -2
स्कूलन म खीर पकती है , लरिका पीटें थाली ।।
यह है देश की खस्ताहाली , हम बताई किहिसे -2
कुछ दर्जा पांच की डिग्री लइके ,भये मिनिस्टर भारी -2
उनकी मालयै माल मलाई, मुँह मिठाई होइ गयी ।।
यह है देश की खस्ताहाली , हम बताई किहिसे -2
कुछ चोर भये कुछ भये जुवांरी ,कुछ होइ गये शराबी-2
होइगे देश की ये बीमारी ,बिकि गई इनकी लोटिया थाली।।
यह है देश की खस्ताहाली , हम बताई किहिसे -2
लादि के बस्ता पढ़ै गये जो , बाबू भये जुगाड़ी -2
सांठ गाँठ से माल उड़ाइन , रोजै मनै दीवाली।।
यह है देश की खस्ताहाली , हम बताई किहिसे -2
कुछ अधिवक्ता भये पुलिस कुछ,कुछ तौ करैं दलाली -2
जोड़ तोड़ के बड़े खिलाडी , बहुतै बड़े बावली ।।
यह है देश की खस्ताहाली , हम बताई किहिसे -2
कुछ पढिनि खूब और भये ऑफिसर , कुछ तौ होइगे टीचर -2
बाहर तौ उइ रौब जमावें ,घर म साहब हैं घरवाली ।।
यह है देश की खस्ताहाली , हम बताई किहिसे -2
लक्ष्मी नारायण पन्ना
( प्रवक्ता रसायन शास्त्र एवं कलमकार)
( नया सूरज )
मेरी खामोशियों को यूं तू बुजदिली न समझ ।
के दरिया शोर करता है समन्दर कुछ नही कहता।।
जला देंगें बुराई को, हमारे दिल में हाँ शोले
देखता हूँ मैं सब मंज़र जुबाँ से कुछ नही कहता ।
उठेगी जब भी चिंगारी धमाका कर ही डालूंगा ।।
न समझो तोप मुझको तुम मिशाइल मैं बना दूँगा।
कराके नाभिकीय क्रिया नया सूरज बना दूँगा -2 !!!
लक्ष्मी नारायण पन्ना
( प्रवक्ता रसायन शास्त्र एवं कलमकार)
( किसान )
हड्डियां भीतर से झांककर,
जिसके हालात का करती हैं बयान -2
ओ है देश का किसान -2
उसे हलधर कहो या धरतीपुत्र।।
जो समय से पहिले बुढ़ान-2
ओ है देश का किसान -2
चाहे ओस पड़ै या ओला ,
चाहे दिन भर बरसै पाला।
जो तबहो न चिल्लान-2
ओ है देश का किसान -2
जो हाड़ तोड़ती मेहनत करिके ,
धान उगाइस खेतन म।
जो अब कौडिन भाव बिकान-2
ओ है देश का किसान -2
पेट देश का भरा है जिसनें,
उसकी थाली खाली है।।
जिहीके लरिका तक बिल्लान-2
ओ है देश का किसान -2
जो कंपकपाती ठंड में ,
थरथराती देह लेकर।।
तड़के खेतन म देखान-2
ओ है देश का किसान -2
लक्ष्मी नारायण पन्ना
( प्रवक्ता रसायन शास्त्र एवं कलमकार)
( बुज़दिली )
कभी हमने छुपाया तो कभी उसने छुपाया है,
होश दोनों को तब आया जब बुढ़ापा निकट आया है।।
कभी कूचे में उनके जाके शीटी बजाया करता था,
मै उनकी एक आहट सुनकर भाग जाया करता था।।
बाद वर्षों के आज मैंने मजनू को जगाया है,
होश दोनों को तब आया जब बुढ़ापा निकट आया है।।।
हाँ उन्होंने हुश्न को मेकअप औ मेंहंदी से सजाया है,
हमनें भी तो अपना जोर अखाड़ों में आजमाया है।
जो हसरतें दिल की जुबां बनकर ख़तों में रह गईं,
ओ अधूरे ख़त हमारे दीमकों ने बड़े चांव से चबाया हैं।।
होश दोनों को तब आया जब बुढ़ापा निकट आया है।।
कभी हमने छुपाया तो कभी उसने छुपाया है ज।।
खिड़की से झांक देख उनका मुस्कराना याद आया है,
हौले हौले ही सही उनका दिल चुराना याद आया है।
और हमको देखकर उनके कुत्ते का दौड़ाना याद आया है,
बहुत दिनों तक मुस्कराकर हमनें अपनी बुजदिली को छुपाया है।।
होश दोनों को तब आया जब बुढ़ापा निकट आया है।
कभी हमने छुपाया तो कभी उसने छुपाया हैज।।।
लक्ष्मी नारायण पन्ना
( प्रवक्ता रसायन शास्त्र एवं कलमकार)
( लड़कपन )
एक ठंडी हवा की शाम ,
हाथों में लेकर जाम ।
अजी मैं झूम उठा-3 ।।
पहले तो कभी न पीता था ,
बस अपने लिये ही जीता था ।
दिल हुआ मेरा बेईमान अजी मैं झूम उठा ।।
छम छम पायल की झनकार,
मेरे लड़कपन का ओ प्यार ।
जिसमें हुआ बदनाम अजी मैं झूम उठा ।।
ओ पहली बारिश की बून्दें ,
ओ भीगी भीगी सी आँखें ।
मैं जैसे हुआ गमगीन अजी मैं झूम उठा ।।
जहाँ झूठी प्यार की कसमें हैं ,
इंसान जहाँ पर सस्ता है ।
वहाँ बिकता है सम्मान अजी मैं झूम उठा ।।
पर घर की चौखट पर बैठी ,
जो राह हमारी है ताकती ।
कर उस माँ को प्रणाम अजी मैं झूम उठा ।।
लक्ष्मी नारायण पन्ना
( प्रवक्ता रसायन शास्त्र एवं कलमकार)
( सौदागिरी )
मैं जलता रहा तो जलाते गये, ख़ाक होकर धरा पर बिखर मै गया।
ओ मोहब्बत को मेरी समझ न सके , देख कर मुझसे नज़रें चुराते गए।।
मैं जलता रहा तो जलाते रहे ।।।।
प्यार तो दो दिलो की है सौदागिरी , दिल के बदले में दिल माँगता हर कोई।
न सोना न चाँदी न धन माँगता , उसके पायल कि बस एक खनक माँगता।।
अब तो पागल मुझे लोग कहने लगे , देख कर ओ भी पत्थर उठाते रहे।।।
मैं जलता रहा तो जलाते रहे।।।।
उनकी गलियों के कुत्ते मुझे जानते , ओ मेरी वफ़ा को है पहचानते ।
देख कर मुझको वे भौंकते हैं नहीं , ओ वफ़ादार मेरी वफ़ा जानतें ।।
नैन उसके नशीले ओ मादक भरे , देख उनको खुमारी सि छाने लगी ।
चाल से उनकी बजता जो संगीत है , सुनके धुन हम वोही गुनगुनाते रहे ।।
मैं जलता रहा तो जलाते गये ।।।।
लक्ष्मी नारायण पन्ना
( प्रवक्ता रसायन शास्त्र एवं कलमकार)
( मर्म )
क्या कभी देश में किसी भैंस का मर्म सुनाया जाता है।
सुबह सुबह बासी रोटी से पुण्य कमाया जाता है।।
जो भैंस देश में 80% दूध की आपूर्ति करती है।।
वही आज स्लॉटर हाउस में बिना किसी प्रतिबंध के कटती है।।
सब दूध पीते भैंस का रोटी गाय माता को खिलाया जाता है।
सुबह सुबह बासी रोटी से पुण्य कमाया जाता है।।-2
क्या कभी देश में किसी भैंस का मर्म सुनाया जाता है।
दूध पिलाती सबको फिर भी माता न कहलाती है।
गोरी चमड़ी वाली गाय ही माता कहलाती है।।
इसी तरह काले गोरे का भ्र्म फैलाया जाता है।
सुबह सुबह बासी रोटी से पुण्य कमाया जाता है।।-2
ऊंच नीच का भेद अभी भी अंदर बिगुल बजाता है।
जहाँ बेटी लक्ष्मी कहलाती वहीं जिन्दा भी जलाया जाता है।
लोकतंत्र की बात न करना इससे दूर दूर का नाता है।।
अब भी देश में दलितों को मंदिर से भगाया जाता है।।
सुबह सुबह बासी रोटी से पुण्य कमाया जाता है।।-2
क्या कभी देश में किसी भैंस का मर्म सुनाया जाता है।
बेटा पैदा होने पर खुशियों के दीप जलाते हैं।-3
बेटी पैदा होने पर कूड़े में बहाया जाता है।।
ऊंच नीच का भेद अभी भी अंदर बिगुल बजाता है।।
सुबह सुबह बासी रोटी से पुण्य कमाया जाता है।।-३
क्या कभी देश में किसी भैंस का मर्म सुनाया जाता है।
जहाँ बरगद पीपल पूजे जाते नीम में देवी रहती हैं।
जहाँ हर आँगन में तुलसी पर जल बरसाया जाता है।।
उसी देश में निजी स्वार्थ से जंगल कटवाया जाता है।।
सुबह सुबह बासी रोटी से पुण्य कमाया जाता है।।-३
क्या कभी देश में किसी भैंस का मर्म सुनाया जाता है।
गौ रक्षा का ढोंग रचाकर आपस में लड़ाया जाता है।
वाह रे देश कि ढोंगी जनता तुझसे बड़ा महान कहाँ।।
तक़लीफ़ से रोना कुत्ते का अप्सगुन बताया जाता है।।।
सुबह सुबह बासी रोटी से पुण्य कमाया जाता है।।-३
क्या कभी देश में किसी भैंस का मर्म सुनाया जाता है।
लक्ष्मी नारायण पन्ना
( प्रवक्ता रसायन शास्त्र एवं कलमकार)