Mera Dosta Mera Spaidara Maina in Hindi Comedy stories by Arvind Kumar books and stories PDF | मेरा दोस्त मेरा स्पाईडर मैन

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मेरा दोस्त मेरा स्पाईडर मैन

मेरा दोस्त, मेरा स्पाईडर मैन

वह हम सभी दोस्तों का एक प्यारा दोस्त था। हम चूंकि लंघोट नहीं पहनते थे, इसलिए उसे लंगोटिया तो नहीं कह सकते, पर वह हमारा कच्छिया दोस्त ज़रूर था। नाम था उसका छंगा। यूं तो हम सब अलग अलग मोहल्ले में रहते थे। पर हमारा उठना-बैठना, खेलना-कूदना एक साथ होता था। हम सब एक ही स्कूल, एक ही कक्षा में पढ़ते थे। लगभग हम साथ-साथ हैं वाली स्टाइल में। उसका असली नाम तो कुछ और था, पर हम सब उसे प्यार से छंगा कह कर पुकारते थे।

हम ही क्यों, हमारा पूरा स्कूल, सारे टीचर, अड़ोसी-पड़ोसी और उसके घर वाले भी उसे छंगा ही कहते थे। दरअसल उसके दोनों पैरों में छः-छः उँगलियाँ थीं। वैसे तो, छंगा गरीब परिवार का एक साधारण सा लड़का था, पर हमारी शैतानी-खेल टोली का वह एक बहुत ही ख़ास और ज़रूरी सदस्य था। वाकई वह आम दिखने के बावजूद बहुत ही खास था। उसके अन्दर कुछ ऐसी चीज़ें थीं, जो औरों में कत्तई नहीं थी। और वे चीज़ें उसके लिए तो ख़ास थी हीं, हमारे लिए भी किसी वरदान से कम नहीं थीं। हम सारे दोस्त अक्सर उसके इन दैवीय गुणों का जम कर फायदा उठाते थे।

एक तो छंगा को नाली, कीचड, थूक, टट्टी, खून और उल्टी से घिन बिलकुल नहीं लगती थी। इसीलिये उसकी यह खासियत अक्सर खेलते समय हमारे खूब काम आती थी। अगर कभी हमारी गेंद, गिल्ली या अंटा गोली नाली या संडास में या किसी ऐसी-वैसी गंदी जगह पर गिर जाती थी, तो छंगा बिना नाक-भौं सिकोड़े फ़ौरन ही उसे वहां से निकाल लाता था। उसे धोता था और हमारा खेल बिना किसी बाधा के फ़ौरन ही शुरू हो जाता था।

दूसरे, भले ही वह सींकिया पहलवान था, पर हार कभी नहीं मानता था। चाहे वह किसी से कितना भी पिटता रहता, हमेशा यही कहता था कि अबकी मार के देख, फिर देख क्या करता हूँ। पीटने वाला इस बात से चिढ कर उसे फिर मारता था। क्या करेगा बे? क्या करेगा? वह फिर यही कहता था कि अबकी मार के देख, फिर देख क्या करता हूँ? उसकी यह बात पीटने वाले को अंत तक इतना चिढ़ा देती थी कि वह खिसिया कर छंगा के आगे घुटने टेक देता था। और तब छंगा ताली पीट-पीट कर उसे खूब चिढ़ाता था---कहा था न कि अबकी मार के देख, फिर बताऊंगा। बेटा, अबकी अगर तू मुझे मारता न, तो मां कसम, मैं तेरे को मारते-मारते नाली में गिरा देता। और फिर तो स्साले, बिना नहाये तुझे कोई छूता भी नहीं। चाची तो तेरे को घर में घुसने भी नहीं देती।

तीसरे, छंगा किसी भी पेड़, किसी भी दीवार और किसी भी खम्भे पर इतनी फुर्ती से चढ़ जाता था कि पूछिए मत। इस बात में वह बंदरों को भी मात दे देता था। उसकी यह खासियत भी हमारे लिए किसी बड़े नेमत से कम नहीं थी। कटी हुयी पतंग को लूटने और ऊंचाइयों पर उलझी हुयी पतंगों को उतारने में छंगा अक्सर स्पाईडर मैन बन कर हमारी मदद करता था।

एक बार हमारी पतंग घंटाघर की सबसे ऊंची वाली मीनार पर जाकर अटक गयी। फिर क्या था? छंगा ने आव देखा न ताव। यह जा वह जा। पतंग को उतार कर तो उसने फ़ौरन ही नीचे फेंक दिया था। पर अचानक ही उसके मन में न जाने कौन सी धुन सवार हुयी कि वह घड़ी के पेंडुलम को पकड़ कर बेसाख्ता झूलने लगा। और बड़ी देर तक तक झूलता रहा। किसी ने पुलिस को फोन कर दिया। पुलिस वाले आये। आकर उसे जबरन उतारा। और उसके तशरीफ पर बेंते बरसाने लगे। छंगा मार खाता रहा। पर अपना ज़रूर डायलौग बोलता रहा---अबकी मार के देख मामू, फिर देख क्या करता हूँ?...मारते-मारते जब पुलिसवाले थक गए या शायद छंगा पस्त होकर गिर गया, तब जाकर पुलिसवालों ने उसे छोड़ा---पागल है, स्साला। पूरा पागल है।

मुझे तो कभी कभी लगता है कि हॉलीवुड वालों ने कहीं न कहीं से हमारे छंगा के किस्सों को ज़रूर सुन लिया होगा। तभी उनके दिमाग में स्पाईडर मैन का नायाब आइडिया आया होगा। और क्या पता? हमारे बचपन का ही कोई दोस्त बाद में अमेरिका पहुँच गया हो। उसने वहाँ जाकर छंगा के किस्सों को सुना सुना कर उसे मशहूर कर दिया हो। छंगा था भी तो ऐसा ही। उसके किस्से थे भी तो बहुत मजेदार। एक से बढ़ कर एक।

एक बार की बात है। हमारे शहर के नुमाईश लगी हुयी थी। उसमें जेमिनी सर्कस आया हुआ था। हम सभी दोस्तों ने फैसला किया कि आज दोपहर का शो देखा जाएगा। वो भी घर वालों को बिना बताये। क्लास बंक करके। फिर क्या था, हम सब ने क्लास से भांजी मारी और पहुँच गए सर्कस देखने। पर पैसे किसी के पास नहीं थे। होते भी कैसे? तब जेब खर्च का ज़माना नहीं था। लिहाज़ा तय किया गया कि हम मैनेजर से मिल कर सभी के लिए पास मांगेगे।

पर सर्कस का बुड्ढा मैनेजर बड़ा खूसट और खुर्राट निकला। उसने पास देना तो दूर, धमकी देना शुरू कर दिया कि अगर यहाँ ज्यादा शोर-शराबा या हील-हुज्जत करोगे, तो पकड़ कर सीधे प्रिंसिपल के पास ले चलूँगा---एक तो स्कूल से भाग कर आये हो और दूसरे हमारे काम में बाधा डाल रहे हो। यह सुन कर तो हमारी हवा ही ख़राब हो गयी। क्योंकि अगर मैनेजर वाकई हमारी शिकायत कर देता, तो स्कूल में तो पिटते ही पिटते, घर पर लात खाते सो अलग। इसलिए हम सब ने वहां से चुपचाप खिसक लेने में ही अपनी भलाई समझी।

पर इससे पहले कि हम वहां से फूटें, पता नहीं कब और कैसे छंगा उनके सारे बैरियरों को लांघता फलांगता सर्कस के बीचोबीच बने स्टेज पर लटक रहे झूलों की फुनगी तक जा पहुंचा। फिर एक झूले से दूसरा झूला। दूसरे से तीसरा। तीसरे से चौथे। छंगा झूलों पर बंदरों की तरह छलांगे मारने लगा। पूरे सर्कस में हडकंप मच गया। काफी मशक्कतों के बाद भी जब सर्कस के कर्मचारी छंगा को उतारने में फेल हो गए, तो मैनेजर और मालिक दोनों हाँथ जोड़कर उसकी चिरौरी करने लगे। पर छंगा के आगे सब बे असर। वह उनकी बातों को सुना-अनसुना करता हुआ झूलों पर झूल-झूल कर अपना करतब दिखाता रहा। जब मालिक-मैनेजर वाकई गिड़गिड़ाने लगे, तब जाकर वह थोड़ा पिघला। उस ने ऐलान-सा किया कि वह नीचे तभी उतरेगा जब हम सारे दोस्तों को फ्री का पास दिया जायेगा। और प्रिंसपल, टीचर या किसी से भी कभी भी कोई हमारी शिकायत नहीं करेगा।

फिर क्या था, वही हुआ जिसे सर्कस हित में होना था। फ़ौरन ही छंगा की दोनों शर्तें न सिर्फ मानी गयीं, हम सभी को इंटरवल में फ्री की चाय पिलाई गयी। और समोसा भी खिलाया गया।