---
कहानी - गाँव नहीं, भूतों का भंडार
मैं हूँ रोहन शेखर, मैं 10वीं जमात का छात्र हूँ और दिल्ली में अपने परिवार के साथ रहता हूँ। मेरे छोटे भाई का नाम रोहन शेखर है, मेरी बड़ी बहन का नाम निता शेखर और मम्मी का नाम प्रिया शेखर है। मेरे पापा एक डॉक्टर हैं। मेरी मम्मी का जुनून एक अध्यापिका बनने का था, और अब कुछ ही दिनों में उनकी 15 साल की नौकरी पूरी होने वाली थी।
अब से मेरी गर्मियों की छुट्टियाँ शुरू हो जाएँगी तो हम सबने सोचा — क्यों ना इस पूरे महीने नाना जी के यहाँ घूमने जाया जाए। सब तय हुआ और हम पैकिंग कर के चल पड़े। ट्रेन का सफ़र तीन दिनों का था और बेहद मज़ेदार।
हम नाना जी के गाँव नंदनगढ़ पहुँच चुके थे। हमारी खुशी मानों सातवें आसमान पर थी। नाना जी के घर पहुँचकर खूब मस्ती की।
एक दिन, जब मैं शाम के वक्त मंदिर से लौट रहा था, घर के बाहर मैंने ‘4 दिन बाद आना’ लिखा देखा। यह वाक्य बाहर साफ़-साफ़ लिखा था। मैंने नाना जी से कारण पूछा, तो उन्होंने मुस्कराकर कहा — “इसकी भी एक कहानी है।”
मैं दौड़कर बहन और भाई को बुला लाया। जब हम सब बैठ गए, नाना जी ने कहानी शुरू की।
नाना जी बोले — “ यह तब की बात है जब मैं जवान था। तब नंदनगढ़ में ‘सरकटा’ नाम का एक भूत था। वह हर महाशिवरात्रि के दस दिनों में बाहर निकलता था ”
गाँव वाले बहुत परेशान हो गए थे। एक दिन किसी ने अपने घर के बाहर लिखा — ‘4 दिन बाद आना।’
और चमत्कार हुआ — उन दस दिनों में कोई घटना नहीं हुई।
उस दिन के बाद से, सबने अपने घर के बाहर वही वाक्य लिखना शुरू कर दिया।
उस दिन के बाद सब खुशी-खुशी शिवरात्रि मनाने लगे।
मुझे भूत-प्रेत पर विश्वास नहीं था, पर गाँव की रातें कुछ अलग ही लगती थीं। एक रात दरवाजे पर खटखटाहट हुई। हमने झाँका — वो सरकटा था। थोड़ी देर बाद गायब हो गया।
फिर कई रातों तक वह दरवाज़ों पर दस्तक देता रहा।
एक दिन सुबह, गाँव वालों ने देखा — दीवार पर खून से लिखा था:
“कब तक बचोगे? महाशिवरात्रि के आखिरी दिन मैं पहले से ज़्यादा ताकतवर हो जाऊँगा।”
पूरा गाँव दहशत में था।
नाना जी ने एक तांत्रिक को बुलाया, पर वो सरकटा का कुछ नहीं बिगाड़ सका। फिर नाना जी बोले, “एक उपाय है… गाँव से दूर एक पुराना बंगला है, उसमें एक शक्तिशाली स्त्री आत्मा रहती है — पर वह भली है।”
गाँव वाले वहाँ गए। उस आत्मा ने सुना और बोली, “मैं मदद करूँगी।”
रात को गाँव वाले बाहर बैठे सरकटा का इंतज़ार करने लगे। जब वह आया, आत्मा ने उस पर वार किया।
उस दिन के बाद सरकटा हमेशा के लिए शांत हो गया, और शिवरात्रि फिर से खुशियों में बदल गई।
लेकिन कुछ सालों बाद, जब मैं कॉलेज में था, नाना जी के गाँव से एक भयानक खबर आई — नाना जी की लाश तालाब में मिली। शरीर पर गहरे नाखूनों के निशान थे, और सिर पर बाल नहीं थे।
हम गाँव पहुँचे, अंतिम संस्कार हुआ, और पुलिस ने जाँच शुरू की।
अगले दिन फिर एक लाश मिली — बिल्कुल वैसी ही।
मैंने तालाब के पास एक कागज़ पर लिखा —
“तुम कौन हो और ऐसा क्यों कर रहे हो?”
अगली सुबह उस पर लिखा था:
“मैं हूँ मुनझेयक — सरकटा का छोटा भाई। मैं उसका बदला लेने आया हूँ।”
यह सुनकर गाँव में हाहाकार मच गया। नाना जी के दोस्त, गाँव के बुज़ुर्ग, सब डर गए। पापा ने एक सिद्ध अघोरी तांत्रिक को बुलाया।
रात को तांत्रिक ने अपने मंत्र जपे, पर तभी आसमान गूंज उठा। मुनझेयक की भयानक हँसी चारों ओर फैल गई।
पेड़ झूमने लगे, हवा में राख और चीखें उड़ने लगीं। गाँव की ज़मीन काँप उठी।
अचानक तालाब से लाल धुंआ उठा और मुनझेयक प्रकट हुआ — सरकटा से भी ज़्यादा डरावना, आँखों से नीली आग निकलती हुई।
तांत्रिक ने त्रिशूल उठाया और मुनझेयक पर प्रहार किया, पर वह हर वार का जवाब भूतिया गर्जना से देता रहा। बिजली आसमान में फटी, धरती पर तांत्रिक और मुनझेयक का भयंकर युद्ध छिड़ गया।
घंटों तक मंत्र और चीखें गूंजती रहीं। हवा में मौत की गंध थी।
आख़िरकार, भोर होते ही तांत्रिक ने अग्नि-मंत्र का उच्चारण किया, जिससे नीली ज्वाला ने मुनझेयक को घेर लिया। उसकी चीखें पूरे गाँव में गूंज उठीं — और धीरे-धीरे सब शांत हो गया।
तांत्रिक ने गाँव के चारों ओर एक अदृश्य सुरक्षा चक्र बना दिया ताकि कोई आत्मा अंदर न आ सके।
उसके बाद गाँव में कभी कोई डरावनी घटना नहीं हुई।
यह सिद्ध हो गया — “अंत भला तो सब भला।”
और मैंने ठान लिया कि यह कहानी मैं अपने बच्चों को सुनाऊँगा।
--- A M
( This story, "गाँव नहीं भूतों का भंडार"
: A Mysterious Journey', was collaboratively created by the members of our 'Alfha' group. It is entirely based on the authors imagination and serves as a fictional travelogue. All characters and events described in the narrative are purely fictitious. The sole purpose of this story is entertainment. )
COPYRIGHT ACT MAY BE IMPLEMENTED
* copyrighting is a crime *