Mass Jathara - Movies Review in Hindi Film Reviews by suraj books and stories PDF | मास जठरा - Movies Review

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मास जठरा - Movies Review

प्रस्तावना: मास सिनेमा का बदलता स्वरूप
भारतीय सिनेमा, विशेषकर तेलुगु फिल्म उद्योग (Tollywood) में 'मास' शब्द केवल एक श्रेणी नहीं, बल्कि एक भावना है। रवि तेजा, जिन्हें प्रशंसक प्यार से "मास महाराजा" कहते हैं, इस श्रेणी के निर्विवाद राजा माने जाते हैं। 2025 में रिलीज़ हुई उनकी फिल्म 'मास जठरा' इसी उम्मीद के साथ आई थी कि वह बॉक्स ऑफिस पर एक बार फिर धमाका करेगी। निर्देशक भानु भोगवरापु ने इस फिल्म के माध्यम से एक पारंपरिक व्यावसायिक कहानी को आधुनिक कलेवर में पेश करने की कोशिश की है।
कहानी की विस्तृत रूपरेखा (The Plot)
फिल्म की कहानी लक्ष्मण भेरी (रवि तेजा) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो रेलवे सुरक्षा बल (RPF) में एक ईमानदार लेकिन बेहद आक्रामक अधिकारी है। लक्ष्मण का मानना है कि वर्दी की मर्यादा अपराधियों को पकड़ने में बाधा नहीं बननी चाहिए। कहानी में मोड़ तब आता है जब लक्ष्मण का तबादला 'अडविवरम' नाम के एक दूरदराज के इलाके में कर दिया जाता है।
यह गांव कानूनी रूप से एक 'ब्लैक होल' है, जहाँ सरकार का नहीं, बल्कि शिवुडु (नवीन चंद्रा) का शासन चलता है। शिवुडु एक खतरनाक ड्रग कार्टेल का मुखिया है, जो रेलवे नेटवर्क का उपयोग करके पूरे राज्य में नशीले पदार्थों की तस्करी करता है। लक्ष्मण और शिवुडु के बीच का टकराव केवल कानून और जुर्म की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह सिद्धांतों और व्यक्तिगत प्रतिशोध की भी कहानी है। फिल्म के बीच में तुलसी (श्रीलीला) का प्रवेश होता है, जो कहानी में ग्लैमर और कुछ हल्के पल जोड़ती है, लेकिन जल्द ही वह भी इस खूनी खेल का हिस्सा बन जाती है।
रवि तेजा: ऊर्जा का पावरहाउस
इस फिल्म की सबसे बड़ी ताकत रवि तेजा स्वयं हैं। 50 की उम्र पार करने के बाद भी, उनकी ऊर्जा किसी 25 साल के युवा अभिनेता को मात दे सकती है।
संवाद अदायगी: उनके पंच डायलॉग्स "मास" दर्शकों को ध्यान में रखकर लिखे गए हैं। "कानून की पटरी पर जब मेरी ट्रेन दौड़ती है, तो ब्रेक नहीं सीधे अंत होता है" जैसे संवाद सिनेमाघरों में सीटियाँ बजवाने के लिए काफी हैं।
एक्शन: रवि तेजा ने इस फिल्म में खुद को एक एक्शन स्टार के रूप में फिर से स्थापित किया है। उनके स्टंट्स और बॉडी लैंग्वेज में वही पुराना 'क्रेक' वाला अंदाज़ नज़र आता है।
कॉमेडी: हालांकि फिल्म का विषय गंभीर है, लेकिन रवि तेजा ने अपने पुराने कॉमिक टाइमिंग को नहीं छोड़ा है, जो फिल्म के पहले हाफ को बोझिल होने से बचाता है।
खलनायक और सहायक कलाकार
नवीन चंद्रा ने शिवुडु के रूप में एक प्रभावशाली प्रदर्शन दिया है। एक मास फिल्म की सफलता अक्सर उसके विलेन की ताकत पर निर्भर करती है। नवीन ने अपनी आंखों और शांत व्यवहार से एक खौफनाक विलेन की छवि पेश की है। हालांकि, लेखन के स्तर पर उनके किरदार को और अधिक गहराई दी जा सकती थी।
श्रीलीला के पास फिल्म में करने के लिए बहुत कुछ नहीं था। वह मुख्य रूप से गानों और नृत्य के लिए उपयोग की गई हैं। उनकी और रवि तेजा की ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री 'धमाका' के बाद यहाँ भी रंग लाती है, विशेषकर डांस नंबर्स में।
सहायक कलाकारों में राजेंद्र प्रसाद और नरेश ने अपने अनुभव से फिल्म को सहारा दिया है। राजेंद्र प्रसाद के कुछ भावनात्मक दृश्य फिल्म को केवल एक्शन फिल्म बनने से बचाते हैं और उसे एक 'फैमिली ड्रामा' का टच भी देते हैं।
निर्देशन और पटकथा (Direction and Screenplay)
निर्देशक भानु भोगवरापु की यह पहली फिल्म है, और उन्होंने रवि तेजा की 'मास इमेज' को बखूबी समझा है।
  • सकारात्मक पक्ष: निर्देशक ने फिल्म के माहौल (Atmosphere) को बहुत अच्छी तरह से स्थापित किया है। रेलवे स्टेशन के आसपास के दृश्यों और 'जठरा' (मेले) के बैकड्रॉप का उपयोग कहानी में तनाव पैदा करने के लिए बेहतरीन तरीके से किया गया है।
  • नकारात्मक पक्ष: फिल्म की पटकथा (Screenplay) बहुत हद तक अनुमानित (predictable) है। यदि आपने 90 के दशक की या पिछली कुछ 'मास' फिल्में देखी हैं, तो आप पहले से ही अंदाजा लगा सकते हैं कि अगले सीन में क्या होगा। फिल्म का दूसरा हाफ थोड़ा लंबा महसूस होता है, जहाँ एडिटिंग और चुस्त की जा सकती थी

संगीत और तकनीकी पक्ष (Music and Technicalities)

भीम्स सिसिरोलियो का संगीत फिल्म की जान है।

  1. बैकग्राउंड स्कोर (BGM): फिल्म का बीजीएम बहुत लाउड है, जो मास फिल्मों की डिमांड होती है। हर बार जब रवि तेजा स्क्रीन पर आते हैं, तो संगीत दर्शकों के रोमांच को बढ़ा देता है।
  2. गीत: 'जठरा' टाइटल ट्रैक और श्रीलीला के साथ रवि तेजा का डांस नंबर पहले ही चार्टबस्टर बन चुके हैं।
  3. छायांकन (Cinematography): विधु अय्यन्ना ने फिल्म को बहुत ही 'रॉ' और 'रस्टिक' लुक दिया है। गांव के धूल भरे रास्तों और रात के समय किए गए एक्शन दृश्यों की लाइटिंग काबिल-ए-तारीफ है।

फिल्म के मुख्य आकर्षण (High Points)

  • रेलवे स्टेशन फाइट सीक्वेंस: इंटरवल से ठीक पहले का एक्शन सीन फिल्म का सबसे बेहतरीन हिस्सा है। यह तकनीकी रूप से बहुत ही सधा हुआ है।
  • संवाद: संवाद लेखक ने स्थानीय भाषा और मास अपील का अच्छा मिश्रण किया है।
  • क्लाइमेक्स: फिल्म का अंत भव्य है, जहाँ 'जठरा' के मेले के बीच नायक और खलनायक का आमना-सामना होता है।

कमी कहाँ रह गई?

इतनी ऊर्जा के बावजूद, 'मास जठरा' कुछ मोर्चों पर कमजोर पड़ती है:

  • नयापन की कमी: कहानी में कुछ भी नया नहीं है। एक ईमानदार पुलिस वाला, एक शक्तिशाली अपराधी और उनके बीच की लड़ाई—यह फॉर्मूला दशकों से इस्तेमाल हो रहा है।
  • तर्क की अनदेखी: मास फिल्मों में अक्सर लॉजिक को पीछे छोड़ दिया जाता है, और यहाँ भी वही हुआ है। नायक अकेले ही सैकड़ों गुंडों को मार गिराता है, जो कभी-कभी वास्तविकता से बहुत दूर लगता है।
  • महिला किरदारों का कमज़ोर होना: श्रीलीला जैसी प्रतिभाशाली अभिनेत्री को केवल एक ग्लैमरस डॉल के रूप में इस्तेमाल करना थोड़ा खटकता है।

निष्कर्ष: किसे देखनी चाहिए और क्यों?

'मास जठरा' एक ऐसी फिल्म है जो केवल और केवल प्रशंसकों के लिए बनाई गई है। यह फिल्म कलात्मक सिनेमा या 'आउट ऑफ द बॉक्स' कहानी की तलाश करने वालों के लिए नहीं है। लेकिन यदि आप रवि तेजा के प्रशंसक हैं, आपको भारी-भरकम एक्शन पसंद है और आप ढाई घंटे के लिए सब कुछ भूलकर सिर्फ मनोरंजन चाहते हैं, तो यह फिल्म आपके लिए एक 'ट्रीट' है।

यह फिल्म यह साबित करती है कि भले ही सिनेमा बदल रहा हो, लेकिन भारतीय दर्शकों का एक बड़ा हिस्सा आज भी पर्दे पर अपने नायक को असंभव कारनामे करते हुए देखना चाहता है।

अंतिम रेटिंग: 2.5 / 5