skit in Hindi Short Stories by Deepak sharma books and stories PDF | ऊटक नाटक

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ऊटक नाटक

ऊटक नाटक
सोमा हाथ बांध कर फिर हमारे सामने खड़ी थी, “सर जी, मेम साहब जी, बिट्टो शादी करना चाहती
है…..”
“रुपया चाहिए?” मेरे पति मुस्कराए। हालांकि चौंकने के साथ-साथ मैं थोड़ी सिटपिटाई भी।
हमारी तीनों बेटियों में से किसी ने भी अभी विवाह की उतावली नहीं दिखाई है और हमें भी कोई
जल्दी नहीं है।
“नहीं,सर जी। हमें रिश्तेदारी चाहिए। लड़का बिट्टो को बहुत चाहता है। बहुत भला है। दहेज की
एक्को मांग नहीं। सिर्फ़ रिश्तेदारी चाहिए…..”
“फिर क्या मुश्किल है?” मैं ने पूछा।
“उसे बिट्टो ने हमें आप की मौसेरी बहन बता डाला है। यह नहीं बताया हम यहां नौकरानी हैं…..”
“तुम नौकरानी कहां हो?” मैं हंस पड़ी, “मेरी बहन ही तो हो। अभी तुम्हारी बेबी- लोग को फ़ोन
लगाती हूं। तुम्हें तुम्हारा नाम लेने की बजाए मौसी बुलाया करें…..”
“तुम्हें इस के बारे में दोबारा सोच लेना चाहिए,” मेरे पति ने मुझे टोक दिया, “रिश्तेदारी तानना
एक बहुत ज़िम्मेदारी का काम है…..”
“ठीक है, सोमा, तुम अपना काम देखो,” दूसरों के सामने मैं अपने पति के साथ कभी बहस नहीं
करती, “जब तक मैं सोचती हूं…..”
सोमा मेरे पति के चपरासी चुन्नीलाल की बहन है। तेइस साल पहले की आकस्मिक परिस्थितियां
उस मां- बेटी को हमारे घर लाईं थीं। बेटी उस समय कुल जमा पांच साल की थी और मां को विधवा हुए अभी
कुछ माह ही हुए थे और वह नौकरी तलाश रही थी। इधर अपनी तीसरी बेटी सारंग के स्कूल में दाखिल होते
ही मैं ने भी एक स्कूल में अध्यापन पकड़ लिया था।
मेरे स्कूल के घंटे लंबे थे । सुबह सात बजे से दोपहर ढाई बजे तक। जब कि मेरी बेटियों का स्कूल
नौ से एक का रहा।ऐसे में मुझे एक आया की सख्त ज़रूरत थी जो उन्हें दोपहर का खाना एक मां की तरह
खिला सके।उन के टिफ़िन कर्तव्यनिष्ठा से तैयार कर सके।
मां का नाम सोमा था और बेटी का शशिबाला। हालांकि हम मां- बेटियां अपनी निजी बातचीत में
मां को ‘विनती’ ही कहा करतीं और बेटी को ‘गूज़’।
मां के पास हर समय कोई न कोई विनती तैयार रहा करती और बेटी के पास कोई न कोई बेतुकी
हरकत या मांग।

हर चीज़ को नापने- जोखने और फिर छूने की बेटी को बुरी आदत थी।मगर उस की उम्र और
कुतूहल को देखते हुए हम उसे रोकती न थीं।
कई कीमती चीज़ें उस के हाथ से गिरीं और टूटीं भी। तिस पर तुर्रा यह कि वह कोई भी ज़िद पकड़
लेती, ‘मैं भी दीदी की तरह ब्रेड लूंगी,आमलेट लूंगी।’ या फिर, ‘मैं भी दीदी लोग जैसे अपने बाल कटवाऊंगी
और उन के स्कूल में पढ़ूंगी।’
कभी हम उस की मानतीं तो कभी हम मां- बेटियां हंसती और उसे ‘गूज़’ समझ कर टाल जातीं।
गूज़ की हिंदी,हंसिका, में अंग्रेज़ी के छिपे संकेत नहीं।
अंग्रेज़ी जानने वाले ‘गूज़’ शब्द के साथ मूर्खता और बेतुकापन जो ला जोड़ते हैं। बेशक
‘गूज़’,हंसिका हिंदी में भी हंस और बत्तख की बिचली है : ऊंची,दबी हुई चोंच और दो पेट वाली। जिस की टागें
बत्तख की तुलना में छोटी होती हैं और गर्दन उस से ज़्यादा भारी, ज़्यादा लंबी।
यहां काम शुरू करने के अगले ही माह सोमा अपनी बेटी की ज़िद मेरे सामने दोहराने लगी थी,
“हमारी बिट्टो को भी बेबी- लोग के स्कूल में भर्ती करवा दीजिए…..”
मुझे उस पर हंसी भी आई थी और दया भी। उसे यह बताना असंभव था कि उस स्कूल की फ़ीस
और उस की बस का किराया उस के बूते के बाहर की बात थी। सो मैं ने कह दिया, “वहां दाखिला सिर्फ़ तीन
साल की बच्ची को मिला करता है। इसीलिए तो सारंग को इतनी छोटी उम्र में वहां भेजना पड़ रहा है…..”
“तो किसी और स्कूल में दाखिल करवा दीजिए। आप वाला कैसा रहेगा? वहां तो इसे आने- जाने
की मौज भी रहेगी। आप की रिक्शा के एक कोने में बैठ लेगी और स्कूल के गेट से पहले उतर जाएगी…..”
मेरा स्कूल सरकारी था और उस की फ़ीस भी मामूली थी। मैं ने सोचा,क्यों नहीं? बेटी को आगे
पढ़ाने की लालसा में मां हमारा काम छोड़ेगी नहीं और मेरे घर रसोईदारी और मेरी बेटियों की रखवाली
बढ़िया चलती रहेगी।
“ठीक है, कल कोशिश करती हूं…..”
और बेटी को वहां दाखिला मिलते ही सोमा उसे माहवार लगवाई मेरी रिक्शा में मेरे बैठने से पहले
ही बिठलाने लगी थी।
उस की छठी कक्षा तक।
फिर सोमा बोली थी, “मेम साहब जी, हमारी बिट्टो अब बड़ी हो गई है। उसे आप के साथ बैठते हुए
अब शर्म लगती है। मालाश्री बेबी की साइकल उसे इस्तेमाल करने को मिल जाती…..”

मालाश्री हमारी मंझली बेटी है।उस से बड़ी का नाम गौरी है और छोटी का सारंग। मेरे पति को
संगीत का अच्छा शौक है और दुर्गा रागिनी को ध्यान में रख कर उन्होंने बेटियों को ये नाम दे रखे हैं। संगीत-
प्रेमी जानते हैं दुर्गा रागिनी गौरी,मालाश्री व सारंग और लीलावती के योग से बनती है।
फिर जैसे ही मेरे स्कूल से उस का इंटरमीडिएट खत्म हुआ और मैं ने उसे नर्सिंग का कोर्स करने
की सलाह दी तो सोमा ने फिर अपने हाथ बांध लिए, “मेम साहब जी, हमारी बिट्टो अपने मन में मालाश्री बेबी
का नक्शा उकेरे है। उन्हीं के नक्शेकदम पर चलना चाहती है। उन्हीं के कालेज में बी.ए.करेगी…..”
मालाश्री को शुरू से ही गौरी और सारंग के विपरीत विज्ञान विषयों में रुचि नहीं रही थी और उन
दिनों अपनी बी.ए.के एकदम बाद भूगोल में एम.ए.कर रही थी। जब कि गौरी अपने देहली वाले मैडिकल
कालेज में एम.डी.कर रही थी और सारंग आई.आई.टी. कानपुर से अपनी इंजीनियरिंग।
इंटरमीडिएट में शशिबाला ने अच्छे, ऊंचे अंक प्राप्त किए थे और साथ में छात्रवृति भी जीत चुकी
थी और फिर मालाश्री वाले कालेज में फ़ीस भी कुछ ज़्यादा नहीं रही थी। ऐसे में हमें क्या आपत्ति हो सकती
थी?
फिर बी.ए.के बाद शशिबाला ने भूगोल ही में दाखिला ले लिया था : ‘मैं भी मालाश्री दीदी की तरह
आए.ए.एस. में बैैठूंगी।’
इस बीच मालाश्री अपने पहले ही प्रयास में आए.ए.एस. में चुन ली गई थी और कस्बापुर में
अपनी तैनाती भी पा ली थी। बल्कि उन तीन बहनों में वही सब से पहले अपनी जीवन- वृत्ति में पहुंची। गौरी
को अपने अस्पताल में नौकरी अगले साल मिली और सारंग को आई.आई.एम. के दो साल वाले अपने
मैनेजमेंट कोर्स के बाद। मुंबई शहर में।
इधर आए.ए.एस. की परीक्षा में दो साल फ़ेल हो जाने के बाद शशिबाला प्रादेशिक प्रशासनिक
सेवा में जब स्थान पाई तो सोमा की अगली विनती तैयार हो ली, “साहब जी, हमारी बिट्टो को हम से दूर मत
जाने दीजिएगा। हम उस के बिना रह नहीं पाएगीं और इधर आप की सेवा मरते दम तक छोड़ना नहीं
चाहतीं…..”
मेरे पति के अनुमोदन पर लखनऊ में तैनाती पाए शशिबाला के छः माह अभी बीते भी न थे कि
उस की इस नई मांग को ले कर सोमा जब- तब हम पति-पत्नी को आन घेरती, “बिट्टो जिस लड़के से शादी
करना चाहती है,वही प्रस्ताव भेजे है, उसे हमें कुछ भी देना- दिलाना नहीं। ऐसे में हमें इतना ही उसे
बताना- सुनाना है, कि हमारी आप से रिश्तेदारी है…..”
“लड़का करता क्या है?” अन्ततोगत्वा मेरे पति ने पूछ ही बैठे।

“बिट्टो के साथ दफ़्तर में है। उसी के बैच का। राजस्व सेवा में। उस का परिवार दूसरे प्रदेश में रहता
है। उन्हें वह बुला भी नहीं रहा। यहीं कचहरी में अपने दोस्तों की संगति में शादी करेगा। बिट्टो कहती है हम लोग
भी इधर अपने परिवार में से किसी को न बुलाएंगे। कहीं भेद खुल गया तो!”
“भेद कभी तो खुलेगा ही,” मेरे पति ने उसे चेताया और फिर मेरी ओर देख कर बोले, “नियत्से हैज़
सेड, औल टरुथ्स दैट आर कैप्ट साइलेंट बिकम पौएज़नस …..”
“यह कह रहे हैं अबोले सभी सच विषैले बन जाया करते हैं,” मैं सोमा की ओर देखने लगी, “भेद न
बताने पर वह विष जमा करता रहता है…..”
“भेद जब की जब खुलेगा, तब की तब शादी हो चुकी होगी, साहब जी, मेम साहब जी। बिट्टो
कहती है वह अभी से उसे इतना चाहता है तो शादी के बाद तो तिगुना- चौगुना चाहने लगेगा जब वह अपनी
पूरी की पूरी तनख्वाह हर महीने उस के हाथ में थमा
दिया करेगी…..”
“इस मां की हिम्मत के सामने मैं क्या इतना हौसला नहीं रख सकती जो मैं इसे अपना बहनापा दे
सकूं?” अँग्रेज़ी ही मैं ने अपने को अपना प्रतिवाद वापस लेने का निवेदन किया। एक अंगरेज़ी कहावत के
साथ, ‘ईवन अ किंग हैज़ पुअर रैलेटिवज़ ( गरीब संबंधी तो राजा के भी हुआ करते हैं) ‘। साथ ही चुन्नीलाल की
सेवा का भी उल्लेख किया जो सालों- साल हमारे प्रति इतनी निष्ठा रखता रहा था।
“फिर भी रास्ता यह जोखिम ही का है…..”
“वह मुझे अपनी मौसेरी बहन बता रही है। आप को अपना मौसेरा भाई नहीं। और बहनों की
किस्मत तो उन की शादियों के बाद ही बनती- बिगड़ती है। क्यों नहीं हो सकता एक बहन की शादी गलत
निकल आई और फिर वह बुरे वक्त से घिर गई?” अंग्रेज़ी में मैं ने अपनी बात पर फिर ज़ोर दिया, “और वह
लड़का कौन मेरी मां से या इस की मां से मिलने जा रहा है?”
“मैं यही समझता हूं तुम्हें इस मां- बेटी के झूठ में शामिल नहीं होना चाहिए। तुम जानती हो मैं झूठ
के विरुद्ध हूं। दया और सहानुभूति के नहीं। नैतिक स्तर पर भी और व्यावहारिक स्तर पर भी। दूसरे को भ्रम में
रखना अपने को असुरक्षित करना है।जब यह झूठ उस लड़के पर प्रकट होगा तो इस के परिणाम भंयकर हो
सकते हैं…..”
“मैं तुम से बाद में बात करती हूं, सोमा,” उसे टाल देना अनिवार्य हो गया।
उस के जाते ही मैं ने गौरी का नंबर मिलाया और उसे सब कह सुनाया। इस आग्रह के साथ कि वह
अपने पापा को सोमा की सेवाओं का हवाला दे कर मना ले।
मैं जानती थी गौरी की बात टालना मेरे पति के लिए मुश्किल होगा।

और उन्हों ने मुझे अपना समर्थन दे डाला।
इस नई रिश्तेदारी ने सोमा के प्रति मेरा द्रष्टिकोण बदल दिया।मेरा व्यवहार बदल दिया। उसे दिया
अपना नाम ‘विनती’ भी मैं ने वापस ले लिया।
अब वह मेरे लिए साहस की प्रतिमूर्ति थी। ममता का प्रतिमान। जिस के मन में एक ही ललक रहा
करती, मुझे अपनी बिट्टो का हर सपना साकार करना है।
हां, उस की बेटी ज़रूर मेरे लिए ‘गूज़’ की ‘गूज़’ ही रही।
समस्या उस के विवाह के बाद खड़ी हुई। जब उस का पति, हेमंत, पुलिस के हाथों रिश्वत लेता हुआ
पकड़ा गया।
विडंबना अब यह घटी कि उस के अपराध और दंड का माप निर्धारित करने का शासकीय निर्देश
मेरे पति ही को मिला। जो उस समय सतर्कता विभाग के अध्यक्ष के पद पर नियुक्त रहे।
अपनी बेटी की नियोक्ता के रूप में सोमा फिर अपनी अभ्यर्थना मेरे पति के पास लिवा लाई :
“हिए के अंधे ने बिट्टो का सांस रोक रखा है। कहता है, तभी सांस छोड़ना जब तेरे मौसा अपनी रिपोर्ट में मुझे
इस अभियोग से छुटकारा दिला दें…..”
किंतु इस बार मेरे पति ने साफ़ सिर हिला दिया, “जो काम मुझे सौंपा गया है उसे पूरी ज़िम्मेदारी
से निभाना मेरा धर्म है। अपने शासनपत्र में सच सामने लाना मेरा कर्तव्य है। यहां कोई तरफ़दारी नहीं चल
सकती।”
अपनी प्रशासनिक सेवा के दौरान जिस सत्यवादिता तथा न्यायप्रियता की धाक व धज उपार्जित
करने में उन्हों ने अपने पिछले पूरे तैंतीस साल लगा रखे हैं, उसे बनाए रखना उन्हें अनिवार्य लगता है।
सोमा ने अपने हाथ फिर बांध लिए, “ इस बार उसे बचा लीजिए, साहब जी। वह हमारी पूरी
ज़िंदगी की पूंजी है।कमाई है…..”
“देखता हूं,” मेरे पति ने उसे टाल दिया।
जांच में हेमंत निर्दोष नहीं पाया गया और उसे निरपराध ठहराना मेरे पति के लिए असंभव रहा।
उस की रिपोर्ट जैसे ही सार्वजनिक हुई, हेमंत उन के दफ़्तर के अंदर जा पहुंचा, “मैं सब समझ गया
हूं। आप ने मेरी रिपोर्ट क्यों बिगाड़ी है…..”
“क्यों बिगाड़ी है?”
“क्योंकि आप हमारी मौसी को नीचा दिखाने चाहते हैं। उन के मायके वालों को नीचा दिखाने
चाहते हैं…..”

“आप क्या कह रहे हैं?” चुन्नीलाल उस समय मेरे पति के पास उपस्थित था।
हेमंत ने झन्न से उस के चेहरे पर एक तमाचा जड़ दिया, “हट, हम बड़े लोग के बीच आएगा? मैं तुझ
से बात नहीं कर रहा। अपने मौसिया ससुर से बात कर रहा हूं…..”
एक विडंबना यह भी रही कि शशिबाला ने चुन्नीलाल को हेमंत से कभी मिलने ही नहीं दिया था।
हालांकि चुन्नीलाल ज़रूर जानता रहा था शशिबाला उसी से ब्याही थी।
चुन्नीलाल ताव खा गया और जवाब में हेमंत को हल्लन दे बैठा, “पहले अपने ममेरे ससुर से तो
समझ ले…..”
हेमंत ने चुन्नीलाल को दूसरा तमाचा जड़ दिया, “तू क्या बक रहा है?”
अप्रतिम हो कर मेरे पति ने अपनी मेज़ की घंटी खड़का दी।
उन के निजी सचिव तत्काल अंदर लपक लिए, “येस, सर…..”
“इन दोनों को बाहर जाने के लिए बोलो। मुझे एक ज़रूरी फ़ाइल निपटानी है…..”
“येस सर…..”
“आप मुझे एक टुच्चे आदमी के साथ एक ही ब्रैकेट में नहीं रख सकते, अंकल,” हेमंत चिल्लाया,
“मैं आप का दामाद हूं…..”
“तू साहब लोग का नहीं, हमारा दामाद है,” चुन्नीलाल फूट पड़ा, “सोमादेई मेरी बहन है। हमारे साहब
की मेमसाहब की नहीं…..”
“क्या यह सच है?” हेमंत के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं।
“मुझ से पूछ,” चुन्नीलाल ने उसे बांह से घसीट कर बाहर ले जाना चाहा, “मुझ से…..
“क्यों?” हेमंत चीखने लगा, “इस युधिष्ठिर से क्यों न पूछूं? दूसरों के लिए, सत्य की विजय हो। वे
भूल करें तो उन की खाल खींच लो। और अपने लिए, झूठ का छींटा चलने दो। स्वार्थ के लिए आदमी गधे
को बाप बता देता है और ये मां- बेटी तो फिर आदम- जात हैं। इन की सेवा- टहल हमें चाहिए ही चाहिए। सो,
आप इन के मौसा हैं? हां, हैं। अश्वत्थामा मर गया? हां, मर गया…..”
शोरगुल सुनकर कुछ जिज्ञासु कर्मचारी दफ़्तर के बाहर आ जमा हुए।
उन की उपस्थिति की भनक लगते ही मेरे पति अपनी कुर्सी से उठ खड़े हुए और बाहर चले आए।
उन्हें देखते ही कर्मचारी छितर लिए किंतु हेमंत ज़रूर उन के पीछे चला आया। पीछा कर रहे
चुन्नीलाल के तेज़ कदम पिछेलता हुआ।
“चुन्नीलाल,” मेरे पति ने कड़े स्वर में पुकारा, “अब कोई हल्ला नहीं…..”
“येस,सर…..”

वहां से निकल कर हेमंत सीधा शशिबाला के पास जा धमका।
वहां उस ने ऐसा हंगामा खड़ा किया कि शशिबाला का अपने दफ़्तर में बने रहना दूभर हो गया।
वहां से उठ कर वह घर चली आई।
घर पहुंचते ही उस ने अपने गले में फांसी दे डाली।
बेशक सूचना- तंत्र के आगे सोमा बेटी की आत्महत्या का कारण दामाद का दुर्व्यवहार बता रही है
किंतु मेेरे पति एक कारण नियत्से के कथन को दोहराते हुए मुझे भी मान रहे हैं : औल टरुथ्स दैट आर कैप्ट
साइलेंट बिकम पौएज़नस ( अबोले सभी सच विषैले बन जाया करते हैं)।