अध्याय 3 – लॉगिन
अगले दिन दोपहर लगभग 1:00 PM
स्थान: जयपुर स्टेशन
मुंबई से आई ट्रेन जैसे ही जयपुर स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर रुकी, जैसे ही अविन ने पहला कदम बाहर रखा, तपती हुई सच्चाई ने उसे ज़ोरदार झटका दिया। उसे लगा जैसे किसी ने 'ओवन' से निकली गर्म, शुष्क हवा का एक ज़ोरदार झोंका उसके चेहरे पर दे मारा हो। मुंबई की चिपचिपी, घुटन भरी नमी पल भर में एक कड़वी याद बनकर रह गई।
“गर्म, गुरू! बहुत गर्म!” अविन ने अपनी सूखी जुबान पर क़ाबू करते हुए, अपना जैकेट उतारा और सूखी हवा को कोसते हुए आँखें सिकोड़ीं। धूप की वजह से मिट्टी का रंग ऐसा पीला-नारंगी था कि आँखों में चुभ रहा था। स्टेशन के बाहर, धूल का एक हल्का सुनहरा भँवर उठा और अविन के आसपास ऐसे घूमने लगा, जैसे कोई अदृश्य बच्चा शरारत कर रहा हो।
अविन
> " राजस्थान में स्वागत है बेटा.. अब आएगा गर्मी का मज़ा । अविन ने सोचा शायद यह मेरे 'लॉगिन' से पहले का कड़ा इम्तिहान है," उसने खुद को ढाढ़स बंधाया और एक ठंडी पानी की बोतल खरीदी।
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स्टेशन के पास के बस स्टैंड पर जाकर मालूम हुआ कि अविन की हवेली' तक पहुँचना एक जंग जीतने जैसा था। पहले 110 किलोमीटर का सफ़र एक साधारण, पुरानी बस से तय होगा, और फिर उसके बाद का 30 किलोमीटर का रास्ता— पैदल। हवेली तो मानो किसी गुप्तचर केंद्र की तरह सबसे छिपी हुई थी।
अविन ने 150 रुपये की टिकट ली और सीटों पर जमा मोटी धूल को हाथ से झाड़कर बैठ गया। बस धीरे-धीरे रेगिस्तान के वीरान, धूल भरे, नारंगी-भूरे रास्ते से गुज़र रही थी। हर 15 मिनट में बस ऐसे कराहती थी, जैसे अब उसके पहिये जवाब दे देंगे। अविन को यह सब देखते हुए अपने 'कॉमर्स का स्टूडेंट' होने का मज़ाक खुद ही उड़ाया। "मैं कोई 'आर्मी का जवान' तो हूँ नहीं," उसने सोचा, "इस गर्मी और धूप में मेरा क्या होगा?" पर अब वापसी का कोई रास्ता नहीं था। यह सफ़र अब उसकी मंज़िल नहीं, उसकी नियति थी।
लगभग 3:30 PM पर, बस एक सुनसान चौपाल पर रुक गई। अविन नीचे उतरा, तो बस ड्राइवर ने खिड़की से सिर निकालकर चेतावनी दी—
"बाबूजी, रात होने से पहले पहुँच जाना। इस इलाके में 'अकेले' मत डरना!"
ड्राइवर की यह अजीब टिप्पणी अविन के दिल में एक अजीब सी अनहोनी की भावना भर गई। वह आगे बढ़ा।
लगभग 15 किलोमीटर चलने के बाद, थकान से उसका बुरा हाल था । उसने अपने फ़ोन में देखा तो समय 5 बजने के वाले थे ।
उसने अपने बैग से पानी की बोतल निकाली और पानी पीने लगा ।
तभी अचानक, एक विशाल काला बाज़ (Black Kite) उसके ठीक ऊपर से गुज़रा और ज़ोर से 'की-ई-ई-आर' की आवाज़ करते हुए, उसके बैकपैक को झपटकर नीचे गिरा दिया। ओर उड़ कर "की-ई-ई-आर" चिल्लाते हुए आगे चला गया ।
मानो जानबूझकर,जैसे उसकी परीक्षा ली हो।
अविन गिरते-गिरते बचा।
"बेटा, "अपने इलाके में तो कुत्ता भी शेर होता है"
आओ कभी हमारी मुंबई वहां बताऊंगा!"
अविन ने झुंझलाहट में खुद से कहा, बैकपैक उठाया और एक लंबी साँस लेकर फिर आगे बढ़ा।
करीब 10 किलोमीटर और तय करने के बाद, अविन को हवा में अचानक एक पतली, अनदेखी काँच जैसी चमक दिखी। हवा के अणु जैसे जम गए थे। उसके छूते ही अविन की उँगलियाँ बर्फ़ जैसी ठंडी हो गईं। यह एक अदृश्य बाधा (Invisible Barrier) थी, जो आविन को ऐसी लगी जिसे इस दुनिया को दूसरी दुनिया में अलग कर रही थी।
जैसे ही अविन ने इसे पार किया, उसे लगा दुनिया पलट गई।
सामान्य राजस्थान की पीली-नारंगी मिट्टी अचानक काली, सूखी और राख जैसी दिखने लगी। पेड़ मुड़कर कंकाल जैसे दिख रहे थे। हवा अचानक भारी हो गई, उसमें एक अजीब सी गंध थी, जैसे कोई बहुत पास में ही साँस ले रहा हो, लेकिन दिख नहीं रहा।
अविन ने घबराकर पीछे देखा— बैरियर के उस पार सब सामान्य लग रहा था शाम हुई अंधेरा सब तरफ थी पर अविन को कुछ असामान्य सा लगा । इसलिए आविन ने आगे बढ़ने के बारे में सोचा और ध्यान नहीं दिया ।
> "हाँ...सामान्य राजस्थान नहीं है। यह जगह तो किसी भूत की ज़मीन लग रही है। और होगा क्यों नहीं भूतों ने तो मेरा जीना मुश्किल कर रखा है ।
और मेरे लालच ने मुझे अंधा कर दिया है?" वह बुदबुदाया, उसकी आवाज़ भारी हवा में दब गई।
> आविन आसमान की तरफ देखा रात में चांद ऐसे जगमगा रहा था ऐसे रोशनी कर रहा था मानो रात हो ही ना । रात ने अपना अंधेरा फैला रखा था पर आविन को सब साफ साफ दिख रहा था।
उसने सोचा ये बस इसे लिए है मैं इस जगह में ही इसलिए या मुझे रात में देखे कि शक्ति मिली है । छोड़ो जो भी हो अच्छा हैं मुझे यह सब कुछ दिख रहा हैं , बस भूत न देखे जाए ।
4 किलोमीटर और चलने के बाद, इस डरावनी, राख-भरी ज़मीन के बीचों-बीच, एक विशाल, टूटी हुई संरचना उभरी— अविन की हवेली। चारों तरफ़ टूटी, ऊँची दीवारें थी और छत पर वही काला बाज़ शान से बैठा था, जो अब ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहा था। हवेली के अंदर से एक हल्की, गूँजती हुई फुसफुसाहट थी— जैसे ढेर सारे लोग दूर से बात कर रहे हों, पर उनकी आवाज़ स्पष्ट न हो, केवल एक भिनभिनाहट सुनाई दे रही हो।
अविन अंततः हवेली के पास पहुंच गया था । आसमान में अब रात काली हो रही थी। चारों ओर की हवा में एक भयानक शांति थी, सिर्फ़ हवा के झोंके में पेड़ो से बच्चों की धीरे-धीरे रोने की आवाज़ आ रही थी, मानो कोई अदृश्य बच्चा उस पर पेड़ो पर बैठकर अविन का इंतज़ार कर रहा हो।
अविन ने डर पर गुस्सा दिखाते हुए कहा, "मैं इसे हवा के झोंके से नहीं डरता।" उसने अपना फोन निकाल और समय देखा रात के 10:14 बजने वाले थे और मोबाइल में चार्जिंग सिर्फ 15% थी ।
और नेटवर्क जीरो ।
उसने रास्ते में काम ही फोन चलाया था उसने सोचा था रास्ते में कहीं रोकने की जगह मिल जाएगी तो वहां चार्जिंग कर लेगा पर उससे रुकने को कोई जगह नहीं मिली ।
जैसे ही अविन दहलीज़ के पास पहुँचा, बड़ा सलाखों वाला दरवाज़ा खुद-ब-खुद कर्रर्र... कर्रर्र... की भयानक आवाज़ के साथ पूरा खुल गया जैसे वो उसी का इंतजार कर रहा हो । अंदर की गहरी परछाईं से, दो पीली, ठंडी आँखें झाँक रही थीं— जो उसे सीधा घूर रही थीं।
अविन अचानक दरवाजे खुलने की आवाज से डर गया और बोला
यार हॉरर फिल्मों में दरवाजे आराम से खुलते हैं इतने जोर से कौन दरवाज़ा खोलता है ये कैसे डरने का तरीका है ।
अविन ने देखा उसके सामने ही हवेली थी वो आगे बड़ा
जैसे ही अविन ने दहलीज़ के आगे पहला कदम रखा,
वहाँ मौजूद हर आवाज़ अचानक शांत हो गई। हवा का भारीपन, फुसफुसाहट, बाज़ और दूसरे जीवों की आवाज —सब थम गया। यह शांति किसी तूफान से पहले की चुप्पी जैसी थी, जो सन्नाटे को और भी डरावना बना रही थी।
अविन ने खुद को शांत करने के लिए बुदबुदाया: "Login तो करना ही है, Boss!" और हिम्मत कर आगे बढ़ा।
उसने दरवाज़े से हवेली तक के काँटेदार 'स्वागत' को पार किया। रास्ते में झाड़ियों की डरावनी आकृतियाँ थीं और एक टूटी हुई, खुनी रंग की नामपट्टिका थी जिस पर केवल 'राजेश...' लिखा था। बाकी का नाम समय या किसी और चीज़ ने मिटा दिया था।
अविन ने हवेली को देखा उसे लगा था ये कोई छोटी सी हवेली होगी, हालांकि उसने कभी कोई हवेली को इतने करीब से नहीं देखा था, वह हवेली विशाल थी । पर कई सालों से उस जगह में कोई नहीं आया था इसलिए वो किसी जंगल की तरह सभी जगह काले घास और पौधे थे जो हवेली के दीवारों पर चिपके हुए थे ।
अविन ने कहा ये हवेली कम किसी झाड़ियों से झांकता कोई जानवर अधिक लग रहा था ।
अविन मुख्य दरवाज़े पर रुका।
अविन दरवाज़ा के ठीक सामने खड़ा था—भारी, काला, लोहे की धातु से बना बारह फीट का दरवाजा जिसमें दोनों ओर नुकीले संरचनाएं थी ।
आविन उसे घूरते हुए बस एक ही बात सोच रहा था: “ये दरवाज़ा बंद है… या मुझे ही अंदर खींचने का इंतज़ार कर रहा है?”
धातु की सतह पर फैली लंबी खरोंचें ऐसे लग रही थीं जैसे किसी ने भगा नहीं, बल्कि छुड़ाकर ले जाने की कोशिश की हो। हैंडल पर एक अजीब ठंड जमा थी, जैसे किसी मृत हाथ का स्पर्श। दरवाज़े की दरारों से आती धीमी, काँपती हुई साँसें अविन को महसूस हो रही थीं—सुनाई नहीं दे रही थीं… महसूस हो रही थीं।
अविन ने मन में ठान लिया कि वह इस विरासत को हासिल करेगा।
लेकिन हवेली की हालत को देखकर उससे लग नहीं रहा था कि उसे कुछ मिलेगा वह बस अपने माता-पिता के बारे में और जानना चाहता था इसलिए उसने हिम्मत करके उस दरवाज़े को धकेला, पर वह टस से मस नहीं हुआ। ताला तो था ही नहीं, फिर यह रुकावट क्यों?
तभी, उसके कानों में रहस्यमयी आवाज़ एक बार फिर गूँजी, पर इस बार यह शांत और निर्देश देती हुई थी:
> "चाबी (Key) आपको दे दिया गया है वो आपके पैंट की जेब में है।"
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अविन ने अपनी जींस की जेब चेक की, उसे वही चाबी थी जो उसे हवेली के विरासत के कागजों के साथ मिली थी हथेली जितनी बड़ी काली चाबी जिसमें दो आंखें थी जिनमें लाल रूबी लगी हुई थी ।
उसने अपनी जेब से चाबी को निकाल और ताले की को ढूंढने लगा । अचानक उसके हाथों के आसपास एक रहस्यमई लाल खून के जैसी रोशनी आने लगी और चाबी आविन के हाथ से उड़ा कर दरवाजे के ताले में अपने आप लगा दिया ताला दरवाजे के बीचो-बीच बने के छोटे से छेद में फिट हो गया और अपने आप घूमने लगा और सब तरफ फिर एक बार शांति थी ।
फिर एक तेज हवा चली और दरवाजा धड़ाम से खुल गया ।
आविन जो रोज अपनी टैक्सी में भूतों को सफर करता था उसने इस दृश्य को देखकर डर महसूस नहीं किया वह बस और ज्यादा क्यूरियस हो गया और और ज्यादा जानना चाहता था की हवेली के अंदर क्या है और क्या उसका इंतजार कर रही है ।
आविन को पहले से ही समझ आ गया था ।
अंधेरा सिर्फ अंधेरा नहीं होता…
उसके अंदर कोई होता है।