इस रचना के सभी पात्र ओर घटनाएं काल्पनिक है इनका किसी धर्म ओर जाति ,मानव ,पशु से कोई लेना देना नहीं है । ये मात्र मेरे दिमाग ओर मेरी लेखनी की उपज है इस कहानी के सारे राइट्स मेरे अधीन है कोई भी इसको कॉपी पेस्ट ओर धारावाहिक,screenplay सीरीज, बेब सीरीज में बिना लेखक की मदद से नहीं कर सकता है )✍️या कुन्देन्दुतुषारहारधवला..." और "शुक्लां ब्रह्मविचार सार..."
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लेखक:भगवत सिंह नरूका
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जब इस धरती का सृजन हुआ तब उस दुनिया बनाने वाले ने पहले इस भरत वर्ष की भूमि को देवो के लिए चुना इस लिए इसको देव भूमि भी कह सकते है । एक नए धर्म का उदय आज से करोड़ों अरबों वर्ष पहले हुआ ।
ओर उदय हुआ उन महान वीर प्रतापी राजाओं योद्धाओं का ओर उदय हुआ महान शांत ऋषियों का जिनके तेज प्रताप से इस भरत की भूमि को इंसानों के रहने योग्य बनाया ।
लेकिन समय तो समय है उसके आगे तो खुद भगवान की भी नहीं चली थी । समय को अपना खेल खेलना था क्योंकि कोई भी चीज इस दुनिया में है वो स्थाई नहीं है ।
इस भरत की भूमि पर हजारों लाखों बार खूनी खेल खेला गया फिर चाहे वो सतयुग में हुआ हो या द्वापर, त्रेता,या फिर कलयुग (यानि मै)।
फिर एक समय आया जब दुनिया के रचने वाले ने अपनी सभी लीलाएं इस धरती पर दिखाई चाहे वो कोई सा भी युग रहा हो ,,उनके जाते ही ये धरती कलयुग के अधीन कर दी गई । कलयुग ने भी आते आते अपने विकराल रूप के लोगों को दिखाना शुरू किया ।
कलयुग के समय में जितने भी राजा महाराजा शूरवीर पैदा हुए उन्होंने कलयुग का तेज देखा था ।
वो कलयुग के आगे बेबस लाचार दिखाई देने लगे लेकिन अपने स्वाभिमान से कभी समझौता नहीं किया ।
शरीर त्याग दिया लेकिन झुकना नहीं सीखे,इस तरह की कई घटनाएं इतिहास में आज भी अमर है ।
लेकिन जिस विषय पर मै आपके बीच हु ,उस पर चर्चा जरूरी है क्योंकि आज तक इस धरती के बनने तक जितने भी युद्ध हुए उन में सबसे जायदा जिस युद्ध की चर्चा आज भी होती है वो है ,,,, कुरुक्षेत्र का युद्ध ,,,, कहते है आज भी वो जमीन लाल रंग की है ,वो इस लिए की इतना खून रक्त बहा की जमीन लाल हो गई ।
जब मुगल साम्राज्य आया अंग्रेज आए तब भी इतना युद्ध में खून नहीं बहा होगा जितना पांडव ओर कौरवों के युद्ध में बहा था ।
अगर मै अपने समय की एक युद्ध की बात ओर करु तो ,, क्योंकि यहां रक्त की बात चली है तो आपको यह भी जानना जरूरी है हल्दी घाटी के युद्ध में भी कुछ ऐसा ही रक्त पात नजर आता है । जिस में महाराणा प्रताप ओर मुगल आक्रांता अकबर के बीच हुआ
खैर ये सब छोड़ो अभी लेखक ओर मेरे (समय)बीच बाते चल रही है ,जिसके आप साक्षी बने हो ।
कुरुक्षेत्र यानी महाभारत का युद्ध, शब्द से पता चल रहा है महा+भारत जिस में सभी देशों के राजाओं ने भाग लिया आज के जितने भी देश है उस समय राज्य बोलते थे या यू कहे अखंड भारत,, इसी युद्ध में सब मारे गए लेकिन एक युद्ध बचा था जो आज भी जिंदा है इस धरती पर ।
मुझे लेकर चले उस दौर में की क्या हुआ ऐसा जिसके कारण आज भी उस योद्धा को कलयुग के अंत तक रहने का श्राफ मिला था ।
(लेखक ओर समय के बीच ये संवाद है )
धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र…
रक्त की मिट्टी पर सूरज डूबने लगा था।
धूल के गुबार में घायल अश्वत्थामा खड़ा था—
छाती धौंक रही थी, आँखों में आग थी।
महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था…
लेकिन उसके भीतर का युद्ध अभी शुरू हुआ था।
द्रोणाचार्य की मृत्यु का बदला लेने के लिए उसने रात में पंचपांडवों के पाँच सोते हुए पुत्रों का वध कर दिया।
वह सोच रहा था—
“धर्म स्थापित हो जाएगा…”
परंतु अगले ही क्षण,
श्रीकृष्ण का क्रोध आकाश में गूँज उठा—
“अश्वत्थामा!
तूने सोते हुए निर्दोष बालकों पर वार किया है।
उस अधर्म का दंड तुझे युगों तक मिलेगा…।”
हवा थम गई।
अश्वत्थामा का हृदय काँप गया।
कृष्ण ने अपनी उंगली उठाई—
आँगुली के इशारे से उसके माथे का मणि निकल गया।
घाव खुला…
रक्त बहा…
और वह घाव—
युगों तक कभी न भरने वाला घाव बन गया।
कृष्ण की वाणी गूँजी—
“तू अमर रहेगा…
परंतु बिना सम्मान के।
मनुष्य के बीच रहेगा…
परंतु अकेले।
युगों तक मुक्ति की प्रतीक्षा करेगा…
जब तक कल्कि अवतार तुझे क्षमा न कर दें।”
अश्वत्थामा चिल्लाया—
“प्रभु! यह श्राप नहीं, मृत्यु से भी भयंकर यातना है!”
लेकिन कृष्ण जा चुके थे।
मैदान में केवल उसका श्वास शेष था…
और अनंत एकांत।
अब ये वो मेरा तुम्हारा समय जिस में अभी तुम ओर मै आमने सामने है ,मेरा युग कलयुग ,,,,अब यहां से आगे की यात्रा खुद तुम्हे करनी होगी ,उस योद्धा तक पहुंचने की ओर देखना होगा कि Ashvdhama कहा है ओर उसके जीवन में कितने दर्द है ,,
कलियुग – 5125 वर्ष बाद (काल्पनिक दृश्य ओर लेख)
उत्तराखंड का एक घना, शांत जंगल।
बरसों से वहाँ एक बूढ़ा सन्यासी रहता था।
लंबे बाल, बिखरी दाढ़ी, भारी शरीर, और आँखों में सदियों की पीड़ा।
उसका नाम कोई नहीं जानता था।
लोग उसे बस इतना कहते थे—
“जंगल का अमर बाबा।”
रात को अचानक उसकी आँख खुली।
माथे पर पुराना घाव हल्का चमका…
जैसे किसी ने उसे पुकारा हो।
वह उठ खड़ा हुआ।
“समय… बदलने लगा है।
क्या कल्कि अवतार का दौर निकट है…?”
उसी समय – New Delhi
भारत की एक गुप्त प्रयोगशाला।
वैज्ञानिक एक पुराने ताँबे के घड़े से निकली खुश्क रक्त की बूंद पर माइक्रोस्कोप से झुके हुए थे।
अचानक वैज्ञानिक चिल्लाया—
“ये… ये DNA तो किसी मानव का हो ही नहीं सकता!
ये तो दसियों हजार साल पुराना है… और फिर भी सक्रिय है!”
कमरे में सन्नाटा छा गया।
ओवरहेड स्पीकर से आवाज आई—
“क्या यह… वही हो सकता है…?”
सभी ने एक दूसरे की ओर देखा।
पहली बार किसी ने अश्वत्थामा की कहानी को वैज्ञानिक शक की नजर से नहीं,
वास्तविक खतरे की नजर से देखा। जिसके चारों तरफ खतरा नजर आ रहा था ।
और दूर जंगल में,
वह बूढ़ा सन्यासी…
आसमान की ओर देख कर बोला—
“वो मुझे ढूँढ रहा है…
कही ये संकेत किसी बड़ी आपदा का तो नहीं ,,,(माथे पर बड़ी लकीर खींच गई ) उसको मेरी जरूरत है ,कितना इंतजार करवाया आपने मुझे
(आसमान काले बदलो में बदल गया घोर घनी घटाए आसमान में चढ़ने लगी थी दिन में रात जैसा दिखाई देने लगा जैसे कोई बड़े तूफान का संदेश हो )
मिलते है अगले भाग में , कॉमेंट में बताना कैसी लगी रचना ओर रेटिंग जरूर देना ।✍️✍️✍️ धन्यवाद
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लेखक भगवत सिंह नरूका ✍️