actor Munnan in Hindi Short Stories by Devendra Kumar books and stories PDF | अभिनेता मुन्नन

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अभिनेता मुन्नन


अपने छोटे नगर के छोटे मुहल्ले मेंजब मैं छोटा था तब की याद अभी तक सपने में आकर कभी भी झकझोर जाती ही नहीं बल्किपुराने समय में बिताया समय भी बहुत बार सुन्दर सपना लगता है. आज के नजरये से    अभाव के होते होंगे पर वे क्या शानदार दिन थे,कितने आनंद के  थे उसे महसूस या याद किया जा सकता हैपर  वर्णन कर पाना असंभव है.

देश की स्वतंत्रता के थोडे वर्ष बादपचास के दशक में अपना एक खुला खुला मुहल्ला था, अडोस पड़ोस के मकानों में बहुत से लोगनए बने पाकिस्तान से अपना घर बार, खेत खलियान, दुकान, मकान ज़मींन- ज्यादाद सब छोड़ अपनी जान बचा कर एक एक कमरे में, कोठरियों में गुज़ारा कर रहे थे, क्योंकिपडौस में आसपास के काफी मकानों में ही30-40 विस्थापित परिवार रह रहे थे. छोटे एक कमरों के घरों में अन्दर ज्यादा जगह न होने केकारण सडक और गलियों और बरामदों में ये काफीलोग उठते बैठते, नहाते धोते, रस्सियों बांध और खाटखड़ी कर कपडे सुखाते और हर तरह से प्रयोग करते थे. सो वातावरण में शोर शराबा, कहासुनी, हंसी मजाक, बच्चो के खेल कूद, सडक पर ही रस्सी बाँध कर कपडे सूखते, बच्चेतड़ी मार,पकडम पकड़ा ,गुल्ली डंडा, लड़कियों की इक्कल दुक्कल चलती रहती, हमें तो यहसब रौनक मेला खूब भाता. खेल-खेलमें हम बच्चों को पंजाबी बोलनी समझनी भी काफी आ गयी उनकी गालियाँ भी सीखली थी, यह भी जान गए कि कौन सी पंजाबीदोआबी लाहौरी है, कौन सी मीरपुरी कौन सी मुल्तानी व कौन सी पिशोरी.

 मुहल्ले के कुछ बुज़ुर्ग आपस में शिकायत करते रहते थे कि इन लोगोंने बाहर से आकर मुहल्ला सडा दिया. हैं इनके बच्चे नालियों में टट्टी करते रहतेहै, औरतें बेशर्म हैं,सिर उघाड़ेरहती हैं, ज़रा ज़रा सी बातों पर खूब लडती है चिल्ला चिल्लाकर कुत्ते बिल्ली की तरह चिल्लाती हैं, मार पीट, हाथा पाई से भी नहीं हिचकती. सडक भी सारी घेर कर रखी हुई है आदि आदि. पर हमें तो इस रौनक मेले में मज़ा ही आता था. बहुत से हम उम्र दोस्त मिल रहे थे, नए नए खेल व शैतानियाँ सीख रहे थे. बड़ेबुजुर्ग बिना मांगे सलाह देते कि खुद बिगड़े हैं तुम्हें भी बिगाड़ देंगें. कई बारतो नज़र बचा के भाग कर उनके पास पहुँच जाते. हमें बड़ों की ‘धर्म-शिक्षा’ में कहाँआनंद आता था जो उन हम उम्र नए दोस्तों के साथ खेलने में आता था. 

शाम को सडक पर ही खूब धुओं  ही धुओं होता, जब चूल्हे और अंगीठियाँ चढ़े रहतेथे. मोटी पंजाबन का पति शाम को अपनी दुच्छत्ती के घर आता,अगर बीबी को नहीं पाता तोएक सोंटी लेके उसे ढूंढने निकलता. और रास्ते में भी उसे पीटने से नहीं हिचकता था. वहबेचारी अकेले रहती थी, कोई बच्चा नहीं था नीचेएक गौदाम था ऊपर साइड से पतला जीना और केवल लगभग साढ़े पांच फीट पर छत थी, एक खिड़कीथी जिस से सडक दिखती थी, जगह तो कालकोठरी के माफिकलगती होगी. बाहर निकलती तो पति के कहर.वह काफी मोटी, गौरी सुन्दरगोल मटोल थी तथा पतिउम्र में उससे काफी बड़ा, एक तरह से ठिगना और कुरूपथा, संतान हीन होने की भी हीनता भी शायद तंग करती रही होगी.उसके मर्द को जब कोईठीक काम नहीं मिल पाया तो  वह रेलवे माल गौदाम पर माल गाडी से माल उतारने चढाने की कमर तौड़ पल्लेदारी करता था, बाहर कहीं तोउसकी चलती नहीं थी सिर्फ अपनी पंजाबन पर अपनी खीज निकालता और मर्दानगी दिखाता. हमलोग झांकते रहते पर कुछ नहीं कर पाते. अगले दिन उस बेचारी के शरीर पर नील पड़ेमिलते. पर बेचारी खुश मिजाज़ थी सबसे बड़ी अच्छी तरह से बात करती रहती जैसे कुछ हुआही नहीं हो. छोटे बच्चों को निहारती और दुलराती रहती थी. छोटी छोटीबच्चियों के साथ नीचे बैठ जाती और खेलती, ‘गुडदी रेवड़ी री इक दिन लड़ी बतासे नाल. बच्चियों के संग बच्ची बन कर उन के साथखेलती और खिलखिलाती. वह बच्चों को अच्छी लगती थी और उसे बच्चे.

 इसी तरह हमारे मकान के पिछले हिस्से में एकशरणार्थी महिला जीवनी नाम की रहती थी, उसका पति शाम को देशी शराब पी कर आत्ता आकर जोरजोर की आवाज निकाल लड़ता झगड़ता और कई बार जीवनी को पीटने की कोशिश करता जो अक्सर उसे काफी भारी पड़ती थी. जीवनी कमज़ोर नहीं थी, उसकीजबान भी चलती और वह हर तरह उसका डट कर मुकाबला करती, इसके अलावा उनका ग्यारह सालका बेटा और आठ साल की बेटी  पति- पत्नी संग्राममें सदा अपनी माँ का साथ देते. माँ व बेटी शोर मचा कर मुहल्लेवालों को भी बुलाने कीगुहार लगाती. एक दो पड़ोसी आकर उस शराबी को कमरे से बाहर निकाल देते. फिर वह बाहर बरामदे में पड़ा भूखाप्यासा रात भर गाना गाते रहता था. वह गानों बड़ा काशौक़ीन था वह अक्सर जोर से  यह गाना गाता जोदूर तक सुनता-

‘हवा में उड़ता जाए मोरा लाल दुपट्टा मल मल का, जी मोरा लाल दुपट्टा मलमल का ...हो जी ...हो जी  

कैसा भी हो बंदा गाता बहुत अच्छा था,अगले दिन देख कर ऐसा लगतारात में जैसे कुछ हुआ हीनहीं था. हम बच्चे भी उसका यही गाना उसकी तरह गाने की कोशिश करते थे.  

 मुहल्ले में शामको सडक पर दो तंदूर थोड़े थोड़े फासले पर जलाए जाते थे, उन्हें सुलगाने वाले पुरुषहोते थे और जनानियाँ गुंदा आटालेकर, या घर से ही रोटियां बेल कर लाती और अपनी बेली रोटिया गरम तंदूर में  लगाती और सारे परिवार को गरम गरम वहीँ अपनीअपनी मंझिओं पर बैठे परिवारकोखिलाती जाती, केवल चार पांच मिनट में एक परिवार की 25 तीसरोटियां सिक जाती थी, चार पांच परिवार आस पास अपनी गरम गरम तंदूरी खाते, पिकनिकजैसा माहौल रहता दो तीन घंटे तक यह माहौल रहता, धधकते हुए तंदूर के आसपास गरमाई औररोटियों की,महक और कभी कभी गाने, टप्पे, भी चलते रहते थे, मूड में आकर गाने लगते ----बारी बरसी खटन गया सी, (दो बार बोलते) ओयेख़ट के लिआंदा आना, ते भंगड़ा तां सजदा जब नचचे मुंडे दा नाना ... इसी तरह कभी मुंडे के चाचा, मामा, दादी जिस को चाहे नाचनेके लिये सुनाते. वे निकल करनाच देते या बस एक दो ठुमका तो लगा ही देते. खूब अच्छा उनका मनोरंजन होता और हमतमाशबीनों का भी. बैसाखी और लोहड़ी पर तो ज़बरदस्त मजे आते. हम बच्चे भी उसमें शामिलहो जाते रेवड़ियां खाते. ये गरीबी के बावजूद दिलदार लोग थे. इस माहौल में चिंताके, अभाव के सब बादल छट जाते, हम बच्चे खुश होते ताली बजाते और मुहल्लेवाले पुरानपंथी कुढ़ते और कहते रहते ‘कितने बेशरम हैं, लोग लुगाई सडक पर सरे आम नाच रहेहैं. बिलकुल शरम भी बेच खाई.’ कहते ज़रूर थे पर उन्हें ताकना नहीं छोड़ते थे. बहुतसी पंजाबिनें गौरी अच्छे लम्बी तकड़ी ख़ूबसूरत थी, यह तो बुरे दिनों ने ही तो सडकओअर डाल दिया था.

दोनों ही तंदूर वालों में एक दूसरेसे ज्यादा मजे करते दिखने में होड़ सी रहती थी .

ज्यादातर बाशिंदे  विभाजन के बाद किराये के कमरों मेंरहने वालों के समूह में थे. इन्ही से लगे एक दुमंजलेमकान में रहते थे ग्रेन चैम्बर स्कूल के अध्यापक चन्द्र भान शर्मा, उनकी दूसरीपत्नी व उनका पहली शादी से पुत्र राम भरोसेऔर उनकी  विधवा सास जिसके घर में मास्टरजी  दुहेज्जू घर जमाई बने हुए थे. शर्मा की पहली पत्नी व राम भरोसे की मां कोएक बीमारी में मरे कई साल हो गए थे.

 बिना मां के शैतान राम भरोसे को अकेले पालना, घरचलाना 38 वर्षीय मास्टरजी को मुश्किल पड़ता था, उनके सहयोगी रवि दत्त शर्मा जी ने अपने जानकार पडोसी की कुंवारी परतोतली लड़की की मां से बातचीत कर मास्टरजी की एक बहुत सादे समारोह कर शादी करने कापुण्य काम किया था, हालाकि दोनों पति पत्नी की  उम्र में 17-18 वर्ष का अंतर तो रहा होगा. वहीतोतली व शरीफ राम भरोसे की नई मां थी. इन्ही के मकान के  नीचे वाले एक कमरे में रहती थी कल्लो महरी जो मास्टरजीकी सास के घर में पिछले बहुत वर्ष से साथ थी, और उनके घर के सारे काम करती और बदले में रहती थी और गुजारेके लिये थोड़े पैसे पा जाती थी. मास्टर चन्द्रभान संस्कृत के उपदेश सुनाने के बड़े  शौकीन थे और राम भरोसेहद दर्जे का नालायक था. अपनी  तोतली नई माँ को पिता के घर न होने पर खूब तंगकरता और उसकी आवाज की नक़ल करता, कभी कभी उल्टा उस पर हाथ भी उठा कर भग जाया करता. एक दिन राम भरोसे ने हाथ का पंखाफेंक कर मारा जिसकी डंडी उसकी नई मां की आँखमें लग गयी जो सूज भी गयी थी. मास्टरजी को वापिस आने पर जब मामले का पता लगा, उससमय राम भरोसे घर में था ही नहीं भाग कर खेलरहा था. काफी देर में जैसे ही आया मास्टर जी ने अपनी ज्ञान-वर्धनी कम्मच से राम भरोसे की धुनाई शुरू की, राम भरोसे बरामदे में इधर से उधरभाग कर बचता तथा उसने शोर मचा मचा कर मुहल्ले को सुनाना शुरू कर दिया था,“पिताजी, अहिंसा परमो धर्म: ....... पिताजीअहिंसा परमो धर्म:...”   जो भी सुनताखूब हंस रहा था बाप के उपदेश बाप को सुना रहा था. ऐसाही अनोखा था हमारा मुहल्ला हमेशाकुछ न कुछ मजेदार से मजेदार घटता ही रहता था.

 मास्टरजी  के घर में काम करने वाली कम्मो कहारिन के तीनबेटे थे बड़ा श्री राम, छोटा छोटे लाल और बीच का हमारा मुन्नन, छोटा चुंगी स्कूलमें दो साल से चोथी में पढता था  साथ में एकघर में सुबह स्कूल के बाद रात तक नौकर का काम करता था जिसमें मालिक तीर्थराम की भैंसकी देखभाल का काम भी था. बड़ा श्री राम एक दूकान में सुबह से शाम तक काम करता औरकम्मो तो काम करती ही थी. मुन्नन आठवी क्लास तक कक्षा आठ तक पहुँच गया था हालाकि दोबार फ़ैल हो कर अपने साथियों से दो वर्ष पीछे रह गया था. उसे सिनेमा का शौंक हद से ज्यादा था तीन सिनेमाघरोंकी एक भी फिल्म नहीं छोड़ता था, इसके अलावा फिल्मों के टिकेट ब्लैक में बेचने मेंभी माहिर था. जिससे वह सिनेमा देखने के जुगाड़ कर लेता था, गले के रंगीन रूमाल, चश्मा, तेल फुलेल ले लेता था. और एक दिन फ़िल्मी हीरो बननेके मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखता रहता था. उसी मुहल्ले में मोहन था जो देश के बंटवारे से पहले पेशावर में रहता था, वहीँ से यहाँ अपने परिवार के साथ आयाथा, वह बड़े बच्चों में था, हमसबसे बड़ा था, मुन्नन से भी बड़ा. उसका फिल्मों का ज्ञान मुन्नन से भी कई गुना ज्यादाथा, वह फ़िल्मी कहानी सबको सुनाया करता था, कहानीसुनाने का उसका अंदाज़ इतना जबरदस्त था कि हम सब एक बार सुनने बैठ जाते तो हिलते नहींथे. उस ने पेशावर के बहुत किस्से सुनाये थे, जहां  से वे लोग विभाजन के समय मुश्किलसे बच कर आये थे. उसका घर पेशावर मेंकिस्सा ख्वानी बाज़ार के बहुत पास था वहीँ से कहानी सुनने, बनाने और सुनाने की लतउसे लगी थी. मुन्नन और मोहनादोनों खूब छह आने वाले टिकट वाली अगली  लाईनोंमें बैठ कर फ़िल्में  देखते थे, और फिरमोहना हमें बहुत मजे से लटके घटके केसाथ कहानी सुनाया  करता था. सुनते समय हमें लगता था कि हम खुद ही फ़िल्म देख रहे हों. जब जब मुन्नन भी हमारे साथ होता तब बीच बीच में वह एक्टिंगकर भी दिखाता. मोहना और मुन्नन की जोड़ी हमें तो अच्छी लगती पर हम बच्चों के मातापिता को नहीं. वे समझा कर कहते थे कि उनसे दूर रहो खराब असर पड़ेगा उनकी सोहबत मेंमत जाओ. पर हमें ऐसा चस्का लग गया था कि इस के लिये डांट या दो चार थप्पड़ खाना भीहमें सस्ता सौदा लगता था.बघरे वाले ज़मींदार बुड्ढे कहते “ तुखम तासीर सोहबत का असर”फिर वे समझाते कि किसी व्यक्ति के गुण, आदतें और चरित्र  उसके वंश (तुखम) और उसकी सोहबत या कंपनी सेप्रभावित होते हैं. हम सुन कर उनको आश्वासन देते पर अपने को  सुनने से रोक नहीं पाते थे.

एक दिन मोहना ने हमेंबड़ी गरमा गरम सुनाई कि मुन्नन सुबह तडके तड़क बम्बई जाने वाली फ्रंटियर मेल सेएक्टर बनने के लिये बंम्बई भाग गया है, हमें पूरी उम्मीद थी कि वह अच्छा फ़िल्मीहीरो बनेगा और उसे अब सिनेमा के पोस्टरों में छपा देखेंगे, उसकी फिल्म प्रकाशटाकीज़ के गोल्डन स्टेज रोजाना तीन शो में दिखाई जाया करेगी. लगभग छः महीने बीत गए कोई फिल्म तो नहीं आए पर मुन्नन ही प्रगटहो गया. बिलकुल हीरो जैसे ही कपडे, चमकदार जूते-जुर्राब, आँखों पर काला चश्मा,गलें में रेशमी रूमाल. बोलने का अंदाज़ आदि सब बदले बदले थे. मोहना भी सुन कर वहांमिलने आया. कई बच्चो ने उससे हाथ मिला कर धन्य माना. वह अंग्रेजी में भी बात कहताजो अपने पल्ले नहीं पड़ रही थी हिंदी भी अलग अंदाज़ से इतराते हुए बोल रहा था, “अपुनको मुबई बहुत अच्छा टाइम रहा, कई एक्टरों से मुलाकात हुई, देवानंद, दिलीप कुमार, नो नो यूसुफ़ भाई, राज कपूर से परसबसे ज्यादा देवानंद भाई लगा. उसी के कहने से अपुन को अगली फिल्म के लिये एक्टिंगमिल गया है, कंट्रक्ट साईंन भी कर दिया है, कुछ समय बाद बुलावा आईंगा.” युसूफ भाईतथा देवानंद अच्छे फ्रेंड बन गए हैं. अंग्रेजी के जुमले भी इस्तेमाल करता, अपनीमाँ को ‘मम्मी’ कहता जो उसे बिलकुल नहीं सुहाता. और भी कई वाक्य अंग्रेजी मेंबोलता जैसे गुड मोर्निंग , ‘हाउ डू यू डू’,थैंक यू’ आदि आदि.

हम भी खुश उसके घर वालेभी खुश कि ज़ल्दी उनका गरीबी का दलिद्दर दूर हने वाला है. हम छोटे बच्चे तो मुन्ननके फैन थे. कहानीकार मोहना दुनिया का सबसे बढ़िया सुनाने वाला पिशोरी कथाकार भी, हमेंलगता मुन्नन और मोहना एक दिन फ़िल्मी जगत में ज़रूर छा जाने वाने वाले हैं. मोहनाकहानी लिखने वाला ओर डायरेक्टर और मुन्नन फिल्म का  हीरो.   

एक दिन दोपहर एक बार फिर मुन्नन ने सबको  सरप्राइज दिया जब वह एक चमकीली भड़कीली नईरिक्शा लेकर आया, जिसमें छोटी छोटी घंटियाँ थी, पीछे रंगीन रिबन थे. हैंडल बार परभी रंगीन छोटे रुमाल थे, साइड में और पीछे देवानंद, सुरैय्या, देवानंद व वहीदा रहमानके फोटो से सजावट थी. होने वाला एक्टर रिक्शा क्यों लाया यह अचम्भा भी था, उसने हमेंबताया कि यह सब ‘टाइम पास’ के लिये है, जो फिल्म उसने साईन की है उसमें ऐसा रोल भीहै जाते समय रिक्शा अपने भाई छोटे लाल को दे जाएगा.

मुन्नन अपनी रिक्शा बड़ेस्टाइल से चलाता था, जैसे उसकी शूटिंग हो रही हो, उसने ज़ल्दी ही रिसर्च कर लिया थाकि उसकी ख़ास रिक्शा में कौन सी सवारियां जाने लायक है, कॉलेज में जाने वालीलड़कियां उसे ख़ास पसंद थी, उनके कॉलेज आने जाने के समय भी नोट कर लिये थे और वह उनके घर के आस पास पहुँच कर इंतजार करता और उनके निकलते ही उनके पास पहुँच जाता, अपनेमुम्बई अंदाज़ से तथा थोड़े से रेट रटाये  अंग्रेजी के वाक्य जैसे , गुड मोर्निंग, गुडइवनिंग, सी यू टुमारो आदि बोलता और बातों और व्यवहार से  इम्प्रेस करता था, शक्ल सूरत और कपडे तो ठीकरखता ही था, बालों में खुशबुदार तेल और गुफ्फे देवानंद की तरह बनाता था. दिन मेंसवारियाँ  चाहे कम रहें पर ऐरे गैरे नत्थूखैरे के लिये उसकी रिक्शा नहीं थी. जितने भी डॉक्टर साहेब, वकील साहेब,पोस्टमॉस्टर, इंजिनियर की लडकियां जिनको बड़े दो कॉलेज में जाना होता उनकी पहलीपसंद हमारा मुन्नन हो गया था. उसकी शानदार रिक्शा, उसकी ड्रेस, बोलने का तरीका सबउन्हें अच्छा लगता, सब को यही था कि मुन्नन फ़िल्मी जगत में अपना डंका जरूर बजाएगा.बंबई के बुलावे  को आना नहीं था नहीं आया,हमें भी अंदाज़ा हो गया कि वह सब कुछ सट्टा ही मारता रहा है. पर कॉलेज कि लड़कियोंमें अभी भी काफी पसंद किया जाता था, लोक प्रिय था. शायद सजावट वाली रिक्शा, मुन्ननके अल्ट्रा मॉडर्न कपडे, देवानंद सरीखे गुफ्फेदार बालों को सवांरने का तरीका यालच्छेदार बातें, कॉलेज आने जाने के लिये हमेशा समय पर मौजूद रहना.

पर एक दिन अचानक पता लगाकि वह साइकिल बेच, कल्लो कहारिन और छोटे लाल के पैसे लेकर कहाँ अंतर्ध्यान हो गया.अंदाज़ा ही रहा बंबई गया होगा.

समय के साथ मैं यह सबभूल गया था, पर एक घटना ने यह सब 60-65 बाद मुन्नन की याद फिर से याद दिला दी. हुआयूं कि एक साथ पढने वाली महिला ने, जो हमारे मोहल्ले की रहने वाली थी वहीँ बचपनगुज़ारा था ने एक दिन फ़ोन पर पूछा कि क्या मैं किसी मुन्ना नाम के रिक्शा वाले कोजानता हूँ? मैंने पूछा नहीं फिर पूछा कि किस लिये पूछ रही हो? उसने अपनी एक सहेलीका नाम लेकर बताया कि वह यूएसऐ से पूछ रही है वह मुन्ना की आर्थिक सहायता करनाचाहती है वह हमेशा बिना पैसे लिये भी कॉलेज से घर और घर से कॉलेज ले जाता था. तबमुझे याद आया ये जनाब मुन्ना नहीं मुन्नन के बारे में पूछ रही होगी. मेरा तो अपनेशहर, मोहल्ले में आना जाना है, अगली बार और अच्छी तरह से ज़बाब दे दिया कि मुन्नानहीं, हाँ मशहूर मुन्नन या  उनका परिवारमुद्दत से शहर छोड चुके हैं, किसी को आता पता नहीं है, हां बोली वुड में अभी तकमुन्नन  नामक अभनेता का आगाज़ नहीं हुआ हैंजिसका हमें बचपन में इंतजार था और अमेरिका में अभी भी उसके बारे में कोई उसकी फैनउसे चाहती है. मेरा ख्याल है उस अमेरिका वाली महिला के मन में भी हमारे मुन्ननअभिनेता के प्रति कुछ लगाव ज़रूर रहा होगा. ऐसा भी याद पड़ता है यह वही लड़की थी जोमंडी के डाकखाने के पास रहती थी तथा मुन्नन रिक्शा के चक्कर वहां लगाया करता था तथाअक्सर उसे कालिज लेजाने लाने में कामयाब हो जाता था.