✨ बेजुबान इश्क – लव स्टोरी ✨ नज़रों की खामोश बातेंमुंबई की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में, भीड़ से भरी लोकल ट्रेन के बीचदो आँखें रोज़ एक-दूसरे को ढूँढ़ती थीं—अन्या, एक सीधी-सादी, शांत और समझदार लड़की।और आदित्य, कम बोलने वाला, दिल का बहुत साफ़ लड़का।दोनों की मुलाकात रोज़ 8:22 की चर्चगेट लोकल में होती।ना कभी बात हुई,ना कभी नाम पूछा,फिर भी दोनों के दिलों ने एक अजीब-सा रिश्ता बना लिया था।अन्या हमेशा खिड़की के पास बैठती,और आदित्य उसकी सीट के सामने वाले दरवाज़े के पास खड़ा रहता।अन्या किताब पढ़ती,और आदित्य चुपके से उसकी मुस्कान को देखता।एक दिन अचानक ट्रेन झटके से रुक गई,गर्दी में धक्का लगा और अन्या का संतुलन बिगड़ गया।लेकिन आदित्य ने उसे गिरने से पहले पकड़ लिया।पहली बार उनकी आँखें इतनी करीब आईं…दोनों के दिल की धड़कन तेज़ हो गई,मगर कोई शब्द नहीं।अन्या धीमे से बोली—“थैंक यू…”और आदित्य सिर्फ मुस्कुरा दिया…वो मुस्कान बहुत कुछ कह गई।बेजुबान इश्क उस दिन के बाद दोनों की ज़िंदगी बदल गई।लोकल का सफर अब सिर्फ सफर नहीं रहा,बल्कि इंतज़ार बन गया।कभी नज़रों से हँसी,कभी झिझक में झुकी पलके,कभी बिना कहे सब समझ लेना—दोनों का बेजुबान इश्क यूँ ही चलने लगा।पर फिर एक दिन…अन्या आई ही नहीं।आदित्य बेचैन था।वो हर स्टेशन, हर डिब्बा देखता रहा,पर अन्या कहीं नहीं थी।उस दिन उसके पास पहली बार एक छोटा सा लिखा हुआ नोट था,जो वो अन्या को देना चाहता था—पर नोट उसकी जेब में ही रह गया।दो दिन बीत गए…तीसरे दिन अन्या आई,लेकिन बहुत थकी हुई, आँखों में आँसू।आदित्य उसके पास भाग कर गया,मगर बोलने को शब्द नहीं मिले।उसने बस चुपचाप उसके आँसू पोंछ दिए।अन्या रोते हुए बोली—“मैं सब कह नहीं सकती…पर मैं हारने नहीं आई हूँ।”उसके हाथ काँप रहे थे,आवाज़ टूटी हुई।आदित्य ने बस उसका हाथ पकड़ लिया—और बिना बोले कह दिया,“मैं हूँ… हमेशा।”
लोकल ट्रेन स्टेशन से चल पड़ी थी…
भीड़ का शोर था, पर दोनों के बीच सिर्फ खामोशी।
आदित्य ने अन्या का हाथ हल्के से पकड़ा हुआ था—
जैसे कह रहा हो, “मत डरना, मैं यहीं हूँ।”
कुछ देर बाद अन्या ने धीरे से हाथ छुड़ाया,
खिड़की के बाहर देखने लगी।
आँसू फिर से उसकी पलकों तक आ गए।
आदित्य ने हिम्मत जुटाई और पहली बार बोला—
“अन्या… तुम ठीक हो?”
उसने सिर झुका लिया, आवाज़ कांप रही थी—
“ठीक हूँ… बस जिंदगी कभी-कभी बहुत भारी हो जाती है।”
आदित्य समझ गया, बात बहुत गहरी थी।
पर उसने सिर्फ एक ही सवाल पूछा—
“मैं कुछ कर सकता हूँ?”
अन्या ने उसकी ओर देखा,
आंखें नम, पर मुस्कुराने की कोशिश करती हुई—
“अगर तुम रोज़ इसी ट्रेन में मिलते रहो…
तो शायद सब ठीक हो जाएगा।”
उसकी बात सुनकर आदित्य मुस्कुरा दिया।
उस मुस्कान में वादा था, भरोसा था, प्यार था।
ट्रेन अपनी मंज़िल के करीब थी…
उतरने से पहले आदित्य ने अपने बैग से छोटा सा फोल्ड किया हुआ कागज़ निकाला।
यही वो पहला नोट था, जो वो दो दिन पहले देना चाहता था।
उसने अन्या के हाथ में रख दिया और बस इतना कहा
“जब अकेला महसूस करो, इसे पढ़ लेना।”
ट्रेन रुक गई।
दोनों अलग दिशाओं में चल पड़े।
लेकिन अन्या रुक गई, पीछे मुड़ी…
और पहली बार मुस्कुराते हुए बोली—
“कल मिलोगे ना?”
आदित्य ने सिर हिलाया—
“हमेशा।”
उस रात…
अन्या ने कागज़ खोला।
अंदर सिर्फ एक ही लाइन लिखी थी—
“तुम्हारी मुस्कान में मेरी पूरी दुनिया बसती है।”
— आदित्य
उस नोट को पढ़ते ही अन्या फूट-फूटकर रोने लगी।
कमरे में सिर्फ सन्नाटा था,
और दीवार पर टंगी एक पुरानी तस्वीर—
अन्या, उसके पापा और उसकी माँ की।
तस्वीर के फ्रेम पर काले रिबन बंधे थे।
अन्या ने हल्के से फोटो छुआ और फुसफुसाई—
“माँ… शायद अब मुझे कोई मिला है जो मेरी टूटन संभाल सकता है…”
वो पहली बार कई दिनों बाद चैन से सोई।
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