something on men in Hindi Human Science by Sanjay Sheth books and stories PDF | पुरुष बदलता है

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पुरुष बदलता है

पुरुष बदलता है… जब वह सच में एक स्त्री से प्रेम करता है

लोग कहते हैं कि पुरुष प्रेम नहीं करता। पुरुष सिर्फ शारीरिक आकर्षण करता है, सिर्फ ज़िम्मेदारियाँ निभाता है, सिर्फ घर चलाता है।

लेकिन जिस दिन एक पुरुष को सच्चा प्रेम हो जाता है, उस दिन वह खुद को भी पहचान नहीं पाता।

उसका दिल एक छोटे बच्चे जैसा हो जाता है, जिसे बस एक ही व्यक्ति के पास रहना होता है, जिसका हाथ पकड़कर चलना होता है, जिसकी आँखों में अपनी पूरी दुनिया देखनी होती है।

ये कहना कि पुरुष प्रेम नहीं करता गलत है। पुरुष बहुत गहरा प्रेम करता है। इतना गहरा कि कभी-कभी वह खुद भी डर जाता है 
“इतना सारा प्यार… क्या मैं इसे संभाल पाऊँगा?”

लेकिन उस प्यार को दिखाने में… वह हमेशा थोड़ा पीछे रह जाता है।
इसलिए नहीं कि उसे शर्म आती है,
बल्कि इसलिए कि उसे डर लगता है—
“अगर मैंने इतना सारा प्यार दिखा दिया और उसकी क़दर न हुई तो?”

इसी वजह से वह अपना प्रेम अपनी छोटी-छोटी देखभाल में छुपा देता है,
अपनी खामोशी में छुपा देता है,
अपनी दिन-रात की मेहनत में छुपा देता है।

स्त्री अपना प्रेम शब्दों में, आँखों में, स्पर्श में, हँसी में रोज़ व्यक्त करती है।
पुरुष वही प्रेम घर की चार दीवारों में,
बैंक बैलेंस में,
बच्चों के भविष्य में,
रात को चादर ओढ़ा देने में व्यक्त करता है।

वह कहता नहीं,
लेकिन उसके हर काम में एक ही वाक्य लिखा होता है—
“मैं तुम्हें खुश रखूँगा।”

और फिर एक दिन, वही पुरुष एक ऐसी स्त्री से मिलता है,
जिसके सामने उसकी मज़बूती का नक़ाब खुद-ब-खुद गिर जाता है।
जिसके सामने उसे किसी भी तरह के जजमेंट का डर नहीं लगता।
वह उसके कंधे पर सिर रखकर रो पड़ता है
और यह रोना उसकी कमजोरी नहीं,
उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी जीत होती है।

क्योंकि पहली बार
वह अपने दिल के सारे दरवाज़े खोल देता है।
“मैं थक गया हूँ… मुझे डर लगता है… मैं भी कभी-कभी अकेला महसूस करता हूँ…”

जब ये शब्द उसके मुँह से निकलते हैं,
वह पहली बार खुद को पूरी तरह मुक्त महसूस करता है।
वह स्त्री धन्य है
क्योंकि उसके सामने पुरुष अपना सबसे सच्चा,
सबसे नरम,
सबसे नाज़ुक रूप दिखा सकता है।

उसके सामने वह कह सकता है—
“मैं तुम्हारे लिए बदलूँगा… और मुझे यह बदलना अच्छा लगता है।”

इसमें कोई अहंकार नहीं,
कोई दबाव नहीं
सिर्फ एक शुद्ध स्वीकृति है कि
“तुम मुझसे बेहतर हो,
और तुम्हारे साथ मैं अपने बेहतर रूप को जीना चाहता हूँ।”

यह बदलाव किसी ज़बरदस्ती से नहीं आता,
यह प्रेम के एक छोटे-से स्पर्श से आता है।
जो पुरुष दुनिया के सामने पत्थर जैसा खड़ा रहता है,
वही पुरुष एक स्त्री की आँखों में डूबकर कहता है
“तुम जैसा चाहो, मैं वैसा बन जाऊँगा…
क्योंकि तुम्हारे साथ मैं अपनी सबसे अच्छी पहचान जी पाता हूँ।”

ऐसा पुरुष दुनिया को और सुंदर बना देता है।
क्योंकि वह समाज को एक बड़ी सीख देता है
पुरुषत्व सिर्फ मज़बूत होना नहीं है,
पुरुषत्व प्रेम में नरम होने की हिम्मत भी है।
पुरुषत्व रोना नहीं है,
पुरुषत्व वह साहस है कि जब दिल टूटे, तब रो लिया जाए।
पुरुषत्व बदलना नहीं है,
पुरुषत्व उस प्रेम के लिए बदलने की क्षमता रखना है जिससे वह प्रेम करता है।
कई स्त्रियाँ शिकायत करती हैं
“वह मुझसे प्यार नहीं करता।”

पर सच्चाई यह है कि उसका प्यार उसकी खामोशी में छुपा होता है,
उसकी हर छोटी-सी देखभाल में छुपा होता है।
जब तुम बीमार पड़ती हो,
वह पूरी रात जागता है
उसकी आँखें लाल हो जाती हैं,
लेकिन सुबह वही कहता है
“मेरी तो नींद पूरी हो गई।”

जब तुम रोती हो,
वह चुपचाप तुम्हारे पास बैठा रहता है,
तुम्हारा हाथ थामे
क्योंकि उसे पता नहीं होता कि क्या कहना है,
पर उसे पता होता है कि हाथ छोड़ना नहीं है।
उसका प्रेम उसके “मैं ठीक हूँ” जैसे झूठ में छुपा होता है
जो वह सिर्फ इसलिए कहता है ताकि तुम्हें चिंता न हो।
और जब उसे कोई ऐसी स्त्री मिल जाती है
जो उसकी इस खामोशी को समझ सके,
जो उसके इस शांत प्यार को पढ़ सके,
तब वह पुरुष अपने प्रेम को बोलना भी सीख जाता है।

वह भी रोज़ “मैं तुमसे प्यार करता हूँ” कहने लगता है।
वह भी फूल लाता है।
लंबे संदेश लिखता है।
और जब तुम रोती हो
तो वह चुप नहीं रहता,
तुम्हें गले लगाकर रोने देता है।
वह स्त्री उसे सिखाती है कि प्रेम दिखाने में कोई शर्म नहीं।

और वह स्त्री को सिखाता है कि खामोशी में भी कितना गहरा प्रेम छुपा होता है।
दोनों एक-दूसरे को पूर्ण करते हैं।
एक शब्दों से प्रेम दिखाता है,
दूसरा अपने कर्मों से।
और अंत में दोनों एक ही सत्य पर पहुँचते हैं
प्रेम शब्द नहीं—एक एहसास है।
और जब एहसास सच्चा हो,
तो वह इंसान को बदल देता है।
जो पुरुष प्रेम में पड़कर उसे व्यक्त करना भी सीख लेता है
वह इस दुनिया का सबसे बड़ा उपहार है।
क्योंकि वह दुनिया को दिखाता है कि
पुरुष भी प्रेम कर सकते हैं,
पुरुष भी रो सकते हैं,
पुरुष भी बदल सकते हैं,
और सबसे बड़ी बात
पुरुष अपना प्रेम खुलकर दिखा भी सकते हैं।
ऐसा प्रेम हर किसी को मिले
जहाँ पुरुष अपने प्रेम के हर रंग दिखा सके,
और स्त्री उस प्रेम की गहराई समझ सके।
क्योंकि जो पुरुष प्रेम करना सीख लेता है
वह खुद से प्रेम करना भी सीख लेता है।
और उसके साथ जो स्त्री होती है
वह सचमुच धन्य होती है।

पुरुष दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ|