इसमें धुम्रपान और शराब का सेवन है। लेखक इसे प्रोत्साहित नहीं करता।साथ ही, इसमें हिंसा, खून-खराबा और कुछ जबरन संबंध भी शामिल हैं। पाठकगण कृपया विवेक से पढ़ें।
63. परफेक्ट दुर्घटनास्थल दिखाना है!
पिछले भाग में कवच ने महाशक्ति का हाथ थाम वहाँ से जाने लगा। उनके पैरों के नीचे मलबा आवाज़े निकाल रही थी। कवच के बड़े और गर्म हाथ महाशक्ति को सुरक्षित महसूस करा रहे थे। पर अंदर ही अंदर परेशान थी। उसके आँखे में संकोच था। उसे यह इंसाफ डरपोकों का लगा। जितने लोगों ने भी उसके अत्याचार सहे उनके साथ यह अन्याय था। कवच के हाथ में लाइटर थी। ऐसा लग रहा था कि समीर की अंत निश्चित और उसके पापों का भी। एक दूरी में जाकर उसकी उँगली लाइटर पर चली।
कवच, समीर का अंतिम संस्कार करने ही जा रहा था कि महाशक्ति ने उसका हाथ पकड़ लिया।
"वृषा, अभी नहीं। एक राक्षस को राक्षस वाली मौत मिलनी चाहिए ना कि ऐसे सम्मानजनक विदाई। सैकड़ों, नहीं, हजारों, नहीं, लाखों, नहीं, करोड़ लोग उसकी हैवानियत के शिकार हुए है। बच्चो, नवजातों तक का नहीं छोड़ा इस कमीने ने। सिर्फ हम ही उसके भाग्य का फैसला कैसे कर सकते हैं? हमे इसके फैलाए जाल को जड़ से उखाड़ना होगा।"
उसकी आँखें न्याय चाहती थीं।
कवच चाहता था कि समीर को यही तेल में डुबोकर जलाकर मार दे पर महाशक्ति को बात भी सही थी। ऐसे राक्षस के लिए इतनी आसान मौत और सम्मानजनक विदाई नहीं होनी चाहिए, उसे तिल-तिलकर, अपमान का घूँट पीकर मृत्यु की लालसा रखने वाला जीवन जीने पर मज़बूर करना चाहिए। और इसके लाख राज़ अब भी दफ़्न थे।
कवच की आँखे नीची हुई और उसके हाथ से लाइटर फिसलकर नीचे गिर गयी।
महाशक्ति के होंठ ने टूटी मुस्कान दी और कवच के कंधे तक तो नहीं पहुँच पाई पर पीठ पर थपथपाकर कहा, "हम कर लेंगे।"
कवच ने गहरी साँस ली और बिना एक पल ज़ाया किए पहले ज़ख्मी जीवन को निकाला फिर समीर के पास गया। समीर कार के अंदर सैंडविच था। असहाय और कमज़ोर। कवच के हाथ उसे बचाने से एक पल के लिए पीछे हो गए थे। उसने अपनी शक्ति की ओर देखा, उसके द्वारा किए त्याग के लिए कवच ने अपनी अंतर्मन के ख़यालों को दफ़्न कर उसे निकालने कि कोशिश की— कवच को निकालना इतना आसान नहीं था।
समीर सीट से चिपक चुका था।
"वृषाली मेरी मदद करो!", कवच मदद के लिए चिल्लाया।
वृषाली रुक गयी। उसे अपने असली नाम की आदत नहीं रही। वह मीरा से परिचित थी। वह अपने सोच से बाहर निकली और कवच की ओर काँच और लोहे के बिछे दरी पर दौड़ी।
लोहे और काँच की क्रंच-क्रंच करती आवाज़े तोप से निकले गोले जैसे सुनाई दे रही थी।
कवच किसी लोहे के टुकड़े से डैशबोर्ड तोड़ रहा था, "जल्दी से, कुछ धारदार।",
वह तुरंत टूटे हुए काँचों के ढेर पर से एक मज़बूत और तेज़ काँच टटोलकर कार के पास दौड़ी और सीट बेल्ट को काटने लगी। उस समय तक समीर का आधा खून बह चुका था। उसका शरीर पीला पड़ चुका था और होंठ रूखे और गहरे होने लगे थे। उनके पास समय नहीं बचा था। वे उसके जैसे राक्षस को परिणाम भुगतने के बिना मरने नहीं दे सकते थे और महाशक्ति वृषाली को उससे हिसाब बराबर करने थे।
कवच, समीर के जांघों को आराम से धीरे-धीरे से एक-एक कर उसे सीट से निकाल रहा था।
महाशक्ति की नज़र समीर को निकालते-निकालते उनकी गाड़ी से रिसलते तेल पर गयी।
"वृषा हमे जल्दी करनी होगी। धमाका कभी भी हो सकता है।", महाशक्ति ने हांफते हुए।
महाशक्ति और कवच हाँफ रहे थे पर उसे बचाने के लिए जी-तोड़ कोशिश कर रहे थे।
दोंनो के शरीर से अभी-अभी रुका खून फिर से इतने हलचल के बाद वापस बहने लगा। कवच के हाथ उस तरह नहीं हिल रहे थे जैसा वह चाहता था।
कवच और महाशक्ति ने जैसे-तैसे, जोड़तोड़ कर समीर को बाहर निकाल दिया। समीर पूरा था पर हड्डियों की हालत जीवन-मरण के ऊपर थी। उसके होंठ नीले पड़ रहे थे। उनके पास वक्त कम था।
जैसे दोंनो ने समीर को बाहर निकालकर एक सुरक्षित दूरी में गए।
उसी समय दोंनो कारे, बम! धाम! विस्फोट के साथ आग की लपटों की गोद में फटा। कवच ने महाशक्ति को गले लगा लिया और उसे विस्फोट से बचाया। कुछ ही पल में दूसरा धमाका हुआ। उसने डर के मारे उसे गले लगा लिया। पूरी सड़क गाड़ियों के चिथड़ो से भर गयी। कवच ने अभी भी उसे गले लगाते हुए ऊपर देखा। सब कुछ बर्बाद हो गया था। आसपास की जगह का तापमान ज्वालामुखी के फटने के बाद जैसा हो गया। आग, गर्म हवा, भारी काला धुँआ, चीथड़े और तबाही। महाशक्ति अभी भी डरी हुई है, आँखें बंद करके उससे लिपटी हुई है। वह धीरे से मुस्कुराया। दोनों खून से नहाए हुए थे।
"सब ख़त्म हो गया है।", उसने धीरे से कहा।
महाशक्ति ने धीरे से अपनी आँखें खोलीं और वृष की छाती देखी। वह अचंभित रह गई। उसने खून से रंगी उसकी कमीज पर से अपनी मजबूत पकड़ ढीली कर दी। उसने उसे उठने में मदद की। महाशक्ति ने आपदा को देखा। हर भव्य वस्तु कबाड़ में बदल गई थी। कवच समीर के पास जाकर खड़ा हुआ।
कवच की घृणा भरी नज़र समीर पर देख महाशक्ती ने कहा, "चिंता मत करिए। इसके जैसे पापी को नर्क भी नहीं चाहता। हमे अपना कुछ बंदोबस्त करना होगा।"
"तुम उसकी चिंता मत करो।", कवच के आँखो में घृणा और दर्द का मिश्रण था।
उसने समीर के खून में भीगे कपड़ो की तलाशी ली। कवच को कुछ चाबियाँ मिली और फ़ोन को अपने जेब से निकाला।
कवच ने अपना दायाँ हाथ हवा में हिलाया।
एक आदमी, जो सफेद गाड़ी चला रहा था जंगल से एक चाँदी जैसे दिखने वाले डब्बा लिए निकला।
कवच ने सारा सामान उस डिब्बे में डाला और उस आदमी को दे दिया।
"ये क्या है वृषा?", महाशक्ति ने पूछा,
वो आदमी दूसरा डब्बा दे वहाँ से एक मोटरसाइकिल पर निकल गया।
वो आदमी वहाँ कब आया, मोटरसाइकिल वहाँ कैसे आई वृषालीषको समझ नहीं आया।
कवच ने उस डिब्बे से दो इंजेक्शन निकाली।
'क्रंच-क्रंच'– काँच पर चलने की आवाज़।
महाशक्ति पीछे हट गयी।
"क्या हो रहा है वृषा?", उसने डरते हुए पूछा,
उसकी आँखो में खौफ देखकर, "वो बॉक्स रेडियो तरंगों या किसी भी प्रकार की तरंगों को अवरुद्ध करता है जो इसे ट्रैकिंग से रोकती हैं।
और ये दोनों इंजेक्शन तीव्र नींद की दवाओं से भरे हुए हैं, जिसका पता लगाभग नामुमकिन है कि इसे कब इंजेक्ट किया गया था और सामान्य लोगों पर इसका असर होने में तीन से चार मिनट लगते हैं और हमारे जैसे लोगों पर, जो भारी दवाओं के संपर्क में हैं, अधिकतम दस मिनट।
चिंता मत करो यह सुरक्षित है। मैं तुम्हें कभी भी चोट नहीं पहुँचा सकता, अपने बुरे सपने में भी नहीं।", अंतिम पंक्ति में उसकी ज़बान फिसल गई। वह मुस्कुराया। दो सालों में वो पहली बार दिल से मुस्कुराया।
"उम, कोई बात नहीं। हमे जल्दी करना होगा। ज़ंजीर और अधीर रास्ते में ही होंगे।", उसने जल्दी से कहा और इंजेक्शन को ऊँगली से हल्के मारकर उसमे से हवा निकाली।
वो अब भी उससे दूर थी।
"क्या कान्हा ठीक रहेगा? इन सबका ठीकरा कही राहुल पर ना फूटे!", उसे कान्हा और राहुल की चिंता खाए जा रही थी।
उसे उनके लिए चिंता करते देख कवच को थोड़ी जलन हुई और अपना हाथ खुद को इंजेक्शन देने के लिए उठाया।
उसे देख वो चिल्लाई, "रुको! आप खुद को ख़ुद मारने की सोच रहे हो?"
'क्रंच-क्रंच, क्रंच-क्रंच', वो काँच पर भागकर उसके पास गयी।
"हाँ?", उसने भौंह ऊपर कर कहा।
'सर-सर' हवा उनके बीच से बही,
"तो शक आप पर ही जाएगा।", उसने सिर पकड़कर कहा,
"मतलब?", उसने प्रश्नवाचक भाव के साथ पूछा,
"इंजेक्शन हमेशा निशान छोड़ते है और एंगल को देखकर कोई भी डॉक्टर बता देगा कि सब आपका रचा है!", उसने कवच का हाथ पकड़कर कहा, "वृषा आप ख़ुद को सुरक्षित रखोगे तो दूसरो को सुरक्षित रख पाओगे।",
उसका चिंतित मुख देख कवच का दिल पसीज आया। उसने इंजेक्शन नीचे कर लिया।
वृषाली ने इंजेक्शन को शक भरी निगाह से देखा।
"क्या यह इंजेक्शन दर्द कम करता है?", उसने होंठ भींचकर पूछा,
कवच ने हाँ में सिर हिलाया।
उसने जल्दी से इंजेक्शन पकड़ा। यह अजीब और काफी फिसलन भरा था। उसके दिल के एक कोने मे डर था तो दूसरे में कवच को बचाने की चाह और तीसरे में रोमांच।
उसने इंजेक्शन को गलत तरीके से पकड़ा था। कवच ने उसका हाथ पकड़कर उसे सही तरीका सिखाया। "ऐसे और सुई जब एक-चौंथाई अंदर घुस जाए तब सारा द्रव्य इंजेक्ट कर देना और काँपना मत। मेरी ज़िंदगी तुम्हारे हाथ में है।",
उसने कवच के ठीक बाँह पर मुक्का मारकर कहा, "मुझे और डराओ मत! मेरी हालात पहले से ही पतली है!",
वह इंजेक्शन लगाने का तरीके की नकल कर रही थी।
कवच मुस्कुराया। कवच जगह के हिसाब से कुछ ज़्यादा ही मुस्कुरा रहा था।
तरीका ठीक होने तक कवच ने उसे सिखाया।
अपनी तकनीक ठीक करने के बाद दोंनो कार के मलबों सड़क के किनारे गए जहाँ से कवच की कार आई थी। कवच वहाँ से एक-दो फीट दूर गया। महाशक्ति उसके पीछे गयी। जैसा कवच ने सिखाया, उसने कवच की गर्दन की नस में अपहरणकर्ता के तरीके को कॉपी करते हुए सारा तरल पदार्थ उसके शरीर में उतार दी।
कवच ने दर्द से अपनी भींची।
"कैसा लग रहा है?", उसने इंजेक्शन को देखे हुए पूछा,
कवच कुछ ढूँढने नीचे देखा।
और बिना रुके, "अम... वृषा? क्या यह हमारे सीखने के दौरान दूषित तो नहीं हो गया होगा?", वृषाली मुँह से अचानक निकला,
कवच कुछ ढूँढ रहा था वो रुका और सोचते हुए बोला, "हम हॉस्पिटल ही जाने वाले है डॉक्टर देख लेगा।", उसके चेहरे पर डर नहीं था। उसने एक रॉड महाशक्ति को पकड़ाया।
"वो भी ठीक है। बस पहुँचने के पहले मत मरना।", चिन्तामुक्त कह उसने रॉड पकड़ा जो कवच ने दिया।
"अब इस रॉड से मेरी पीठ और पैरों पर पाँच बार मारो।"
अचानक चौंककर उसने पूछा, "आपको मारना?",
"अगर तुम नहीं चाहते कि मैं गिरफ्तार हूँ?", उसने अगले इंजेक्शन की तैयारी करते हुए कहा,
वह एक क्षण के लिए स्तब्ध रह गई और चिढ़कर बोली, "हा! कोई पूरी दुनिया पर शासन कैसे कर सकता है? यह मूर्खता की हद है!",
उसने वृषाली की खून से सनी कुर्ती का कॉलर नीचे खींचा और उसे इंजेक्शन लगा दिया। वह दर्द में सिसकाई।
वह आसमान की तरफ बेसुध देखने लगी।
"तुम ठीक हो?", चिंतित कवच ने पूछा,
"कौन ठीक रहेगा?! हाँ बताना, कौन ठीक रहेगा?! मुझे मेरी मम्मी- डैडी की याद सताए जा रही है! मुझे उनसे मिलना है, उनकी गोद में एक बार, बस एक बार सर रखकर माफी माँगनी है! राहुल और प्रिया से माफी माँगनी है! मिस्टर आर्य, दिव्या से माफी माँगनी है! दी और शिवम जीजू से माफी माँगनी है! भाई से माफी माँगनी है! कान्हा से बस एक बार, आखरी बार माँ सुनना है!", वह थकी हुई थी, चिढ़ी हुई थी और बिना किसी कारण के कवच पर गुस्सा थी। फिर भी वह नहीं चाहती थी कि उसे गिरफ्तार किया जाए। उसने रॉड को कंधे पर रखा और, "चलो लेट जाओ!", ज़ोर से चीखकर कहा।
कवच चुपचाप अपराधबोध में लेट गया। वह एक ही समय में आकर्षक और खतरनाक थी।
उसने गहरी साँस ली और अपनी पूरी ताकत से कवच के कंधे और कोहनी के बीच वार किया।
कवच मुँह सील कर दर्द से झपटा।
उसने दूसरे हाथ पर प्रहार किया, पहले से धीरे।
"धीरे क्यों?!", कवच चीखा,
"आपको दर्द—", वृषाली को अपना वाक्य पूरा करने नहीं दिया और बीच में उसे समझाते हुए हमेशा वाले धैर्यतता से बोला, "कम से कम एक दो हड्डी टूटने चाहिए। तभी पुलिस का शक हम पर नहीं जाएगा।",
महाशक्ति सीना कठोर कर उसपर प्रहार कर रही थी। वह रुकी। अपने गर्दन पर हाथ फेरा, काला खून, जैसे कच्चा तेल हो। डॉक्टरों पर जख्मों को छोड़, वह अपने होहोठों को भींचे वार कर रही थी।
हर एक ज़ोरदार वार कवच के निर्देश पर हो रहा था। वो जहाँ बोलता, वो वहाँ प्रहार कर रही थी। हर एक वार को वो मुँह बँद कर दर्द से कराहता सहता गया ताकि वृषाली विचलित होकर ना रुके। हर वार के साथ उसकी आँखें फट बाहर आ जाती थीं। मुँह जितने चाहे पर आँखे सच नहीं छुपा पाती।
"कुछ टूटा?", महाशक्ति ने चिन्तित होकर पूछा,
"देखते है कितने प्लास्टर पड़ते है?", कवच ने हँसकर कहा।
उसे सब कुछ दुर्घटना जैसा दिखाने के लिए, कवच ने फिर उससे अपने अंगों को काटने के लिए कहा ताकि घाव बन जाए।
महाशक्ति ने बगल से जितनी हो सके, सीधी और साफ काँच को ढेर में से निकला और कवच के जिस्म में जीतने हो सके घाव कुरेद दिए। नए पुराने सब हरे हो गए। कवच के शरीर में भी खून कम लगने लगा था।
वक्त कम था, कवच ने भी महाशक्ति के अंगो में चीरे लगाई। जैसे ही खून टपकना शुरू हुआ, वह तुरंत दूसरी तरफ लड़खड़ाते हुए भागी ताकि कवच की तरफ कोई खून ना गिरे। वह गिरते हुए विपरीत दिशा में भागी जहाँ समीर पड़ा था। जैसे ही वह समीर के लगभग मृत शरीर के पास से गुज़री, दवाओं और खून की कमी ने ने अपना प्रभाव डालना शुरू कर दिया। वह पलटी। कवच धुंधला दिखा। उसने अपने चश्मे को साफ किया। सब लाल दिखा। उसने आँखे साफ की तो कवच पहले से ही बेहोश था। उसकी आँखे और शरीर भी जवाब देने लगी। उसके हाथ से चश्मा फिसला और दूसरे ही पल वो भी वहीं बेहोश हो गिर पड़ी।
यह सही घटना स्थल था। जो हादसा लग रहा था— धू-धूकर जलती गाड़ियाँ— उनके तितर-बितर पड़े अवशेष। उनके बगल पड़े लोग जो कभी भी लाशे बन सकती थी। मदद दूर-दूर तक नहीं दिखी। रास्ता श्मशान की तरह सुनसान। पूरे क्षेत्र में बस जलती गाड़ियों के लपटों की गूँज थी। ऐसा था जैसे पक्षी भी वहाँ से उड़ना नहीं चाहते थे।
परफेक्ट!