ek tere bharose pe in Hindi Book Reviews by Sudhir Srivastava books and stories PDF | इक तेरे भरोसे पे

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इक तेरे भरोसे पे

पुस्तक समीक्षा 
इक तेरे भरोसे पे (काव्य संग्रह)

                  समीक्षक = सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा (उ.प्र.)

     सरल, सहज, मृदुभाषी, बहुमुखी व्यक्तित्व की धनी कवयित्री मीनाक्षी सिंह की 'इक तेरे भरोसे पे' के रूप में तीसरा संग्रह है। इसके पूर्व आपका 'बातें जो कही नहीं गई' और 'निर्मल उड़ान' ने उनकी साहित्यिक पहचान को काफी हद तक स्थापित कर दिया है। ऐसे में प्रस्तुत संग्रह के प्रकाशन के बाद उनकी रचनाओं पर चर्चा परिचर्चा होना स्वाभाविक ही है। हालांकि मैं उनकी प्रथम पुस्तक की समीक्षा करते हुए जो महसूस किया था, वह काफी हद तक सफल भी मान सकता हूँ।
      खेल, समाज सेवा और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच साहित्य में समर्पण उनका जुनून ही कहना उचित होगा। जो उनके व्यक्तित्व को और निखार ही रहा है।
     प्रस्तुत काव्य संग्रह के प्रथम खंड - भक्ति भाव में पुस्तक के नामकरण वाली पहली रचना है, जिसमें उनकी अनंत सत्ता में आस्था, विश्वास पूरी तरह उजागर हो रहा है। जिसकी अंतिम दो पंक्तियां अपने आप सब कुछ रेखांकित कर रही हैं।
एक आशीर्वाद एक आपका साथ, एक आपका साथ,
एक आपकी मैं, इक तेरे भरोसे पे।।
    आगे के पृष्ठों पर माँ शारदे की वंदना, भगवान चित्रगुप्त, बजरंगबली- हनुमान महाशिवरात्रि, माँ दुर्गा, मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम, छठ पूजा के साथ दीपावली, शरद पूर्णिमा, भैया दूज, अद्वितीय प्रेम, वीरों को नमन, राष्ट्रीय एकता, नववर्ष अभिनंदन, बसंत ऋतु और अक्षय तृतीया को भी भक्ति भाव से परिपूर्ण मानते हुए अपने शब्द चित्रों को उसी भावना के नजरिए से उकेरने का एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। इस खण्ड को देखने पढ़ने से उनकी श्रद्धा और भक्ति भाव अपने देवी देवताओं के राष्ट्र की एकता, वीर सैनिकों के शौर्य, त्योहारों, पर्वों को भी भक्ति भाव से महसूस कराने का सुंदरतम प्रयास अत्यंत सराहनीय है। क्योंकि ऐसा भाव अपवाद स्वरूप ही देखने को मिलता है।
         उपरोक्त रचनाओं से कुछ की एक दो पंक्तियां आप के समक्ष रखना आवश्यक समझता हूँ।

माँ शारदा की वन्दना से 
प्रातः काल करो स्मरण,तो होगी सफल आराधना,
माँ के मंत्र से मिलेगा ज्ञान, बुद्धि का वरदान।

दीपावली में आप लिखती हैं -
दशरथ राघव की रावण पर
विजय का जश्न मनाना है।

भगवान श्री चित्रगुप्त में मीनाक्षी अपनी भक्ति भावना को इस तरह व्यक्त करते हुए लिखती हैं -
नाम में है जिसके चित्र और रहस्य 
भगवान चित्रगुप्त जी कहलाते हैं।

अद्वितीय प्रेम में चंद शब्दों में आपके चिंतन, भक्ति-भाव की व्यापकता को उजागर करता है -
एक थी भक्त, एक थे भगवान,
एक थी राधा, एक थे श्याम।

वीरों को नमन करते हुए मीनाक्षी नतमस्तक होकर नमन करते हुए 
लिखती हैं -
वीरों को नमन 
उनके अदम्य साहस को नमन,
उनके बलिदान को नमन,
इस पवित्र धारा को नमन।

छठ पूजा की महत्ता को पौराणिक कथाओं के अनुसार उजागर करते हुए मीनाक्षी की ये पंक्तियां महत्वपूर्ण हैं -
त्रेता युग में माता सीता 
द्वापर युग में द्रौपदी ने,
रख षष्ठी मैया का व्रत 
किया भगवान सूर्य को प्रणाम।

द्वितीय खण्ड- दिल से में विविधताओं से मिश्रित विषयों पर अपने मनोभावों को शब्दों में ढाल कर प्रस्तुत किया है। 
 माँ को देखने उनका नजरिया एकदम स्पष्ट है -
रिश्तों की भीड़ में 
बेशकीमती होती है माँ,
सृष्टि के रचयिता की 
सबसे बड़ी उपलब्धि है माँ।

कवयित्री के अंर्तमन में द्वंद्व का शब्द चित्र देखने लायक है -
धरती और गगन हो रहे मगन हैं,
पता नहीं क्यूँ, कैसी लग्न में लगी है।

खुद के सवालों का खुद ही जबाब देते हुए मीनाक्षी की ये पंक्तियां आइना दिखाती प्रतीत होती हैं -
कब हम, मैं हो गए, पता ही नहीं चला, 
सच कहूँ तो सचमुच पता नहीं चला।।

इंतजार में उनके सकारात्मक नजरिए का चित्र मन को छूते हुए बड़े सहज भाव से परिस्थितियों में ढलने का उदाहरण लगता है -
तुम्हें देखें बिना भी वर्षों मुहब्बत की हमने,
अब मिलने से ज्यादा इंतजार प्यारा लगता है।।

आस और विश्वास के प्रति उनका चिंतन यथार्थ बोध कराने जैसा है -
तुम सही हम गलत, हम सभी तुम गलत,
बस इसी का रोना रोने में लगे हैं।

साथ ही वो स्वीकार करती हैं कि-
यह शिकायतों का दौर है 
थोड़ा कठिन समय है।

इस खण्ड में भी संग्रह के नामकरण वाली रचना में जीवन के प्रति कवयित्री का नजरिया देखिए -
तुम हालात और उम्र के साथ 
बदल तो नहीं जाओगे,
जिंदगी अब निभाएंगीं सारी रस्में इक तेरे भरोसे पे।

संग्रह की अंतिम रचना गुस्ताखी में बेबाकी से लिखती हैं -
कुछ अपना सा, कुछ पराया था,
कुछ पराया होकर भी अपना था।

पुस्तक के अंतिम कर पृष्ठ पर कवयित्री का संक्षिप्त जीवन परिचय उनके बहुआयामी व्यक्तित्व का आइना सरीखा लगता है ।

    मीनाक्षी सिंह के प्रस्तुत काव्य संग्रह की रचनाएं उनके भक्ति भावना और श्रद्धा के साथ उनके सामाजिक, व्यवहारिक दृष्टिकोण, चिंतन मनन सहित बेबाक स्पष्टवादिता को दर्शाती है। सबसे अच्छी बात है कि मीनाक्षी की रचनाएं सरल सहज रुप में पाठकों को आकर्षित करने में समर्थ दिखती है। कुछ नजर अंदाज की जा सकने वाली त्रुटियों के सिवा संग्रह में ऊबाऊ और बोझिलता जैसा कुछ नहीं है। अग्रज होने के साथ बतौर समीक्षक मेरी ओर से बधाइयाँ, मंगल कामनाओं के साथ असीम स्नेह आशीर्वाद के साथ प्रस्तुत काव्य संग्रह की शुभेच्छा। विश्वास है कि हमारी अनुजा विभिन्न क्षेत्रों में तमाम व्यस्तताओं के बीच अपनी लेखनी से निरंतर नव अनुभवों के साथ सतत अग्रसर रहकर आने वाले समय में अपनी पहचान बनाने में और समर्थ और हम सभी को गौरवान्वित करती ही रहेगी।
   अंत में लोकरंजन प्रकाशन प्रयागराज द्वारा प्रकाशित ₹ 130/ मूल्य का प्रस्तुत काव्य संग्रह नव आयाम के साथ पाठकों के मन में उतरने में समर्थ होगा। इसी विश्वास के साथ......
अशेष स्नेहिल शुभकामनाओं सहित........

गोण्डा उत्तर प्रदेश 
8115285921