तानिया उस शिवि से कहती है.. " मैं ये तो नहीं जानती ये विक्रम क्या करने वाला है लेकिन जो भी हो अधिराज औऱ वैदेही के लिये सही नहीं होगा, इसलिए तुम अधिराज को यहां लेकर आयो, औऱ उनसे कहना अगर इस बार वैदेही को नहीं खोना चाहते तो बिना सवाल किये तुरंत यहां पहुंच जाये.." तानिया की बात सुनकर शिवि वहाँ से सीधा अधिराज के पास चली गई..तो वही विक्रम एकांक्षी से नैत्र सम्बन्ध करके उसे अपने सममोहन में कर लेता है, एकांक्षी अब पूरी तरह उसके वश में थी, विक्रम शातिराना अंदाज में हॅसते हुए कहता है... " वैदेही नहीं एकांक्षी मेरी बात ध्यान से सुनो, आज से ठीक पचीस साल पहले क्या हुए था? याद करो कैसे तुम्हे अधिराज ने धोखा दिया था, तुम्हारे प्यार का उपयोग किया था.. " एकांक्षी उसकी बातों को सुनकर सोचने लगी थी, उसे पचीस साल पहले हुई कुछ यादे दिखने लगी थी, जिसे देखकर एकदम हैरानी भरी नज़रो से उसे देखकर पुछती है.. " ये सब क्या था जो मैंने अभी देखा औऱ ये अधिराज , कौन है ये?.. जिसने किसी वैदेही को धोखा दिया था.. " विक्रम शातिराना अंदाज में मुस्कुराते हुए एकांक्षी को दोनों कंधो से पकड़कर कहता है.. " रिलैक्स एकांक्षी मैं सब बताता हूँ, पहले यहां बैठो.. " विक्रम एकांक्षी को पास हीं बेंच पर बैठा है औऱ पानी की बोतल उसको देते हुए कहता है.. " पहले पानी पियो.. " एकांक्षी वो पानी को बोतल खुदसे दूर करके कहती है.. " मुझे पहले बताओ ये सब क्या था?. " विक्रम उसे बताता है..
तो वही शिवि अधिराज की तरंगों को महसूस करते हुए उसे घर पहुँचती है, अधिराज जोकि अब पूरी तरह इंसानी दुनिया में आ चूका था अपनी माँ के पास बैठा कुछ बाते कर रहा था , उसी समय शिवि वहाँ पहुँचती है..
उसे देखकर अधिराज ठंडी आवाज में कहता है.. " क्यू आई हो यहां?.. " शिवि परेशानी भरी आवाज में कहती है.. " पक्षीराज महारानी माद्रीका ने एक जरुरी सन्देश भेजा है.. अधिराज उसे बोलने का इशारा करता है..शिवि आगे कहती है.. " पक्षीराज आप अपनी वैदेही को फिरसे नहीं खोना चाहते तो जल्दी से मेरे साथ चलिए, जहाँ महारानी माद्रीका आपकी प्रतीक्षा कर रही है.. " अधिराज गुस्से में चिल्लाते हुए कहता है... " तुम कहना क्या चाहती हो, " शिवि डरते हुए माद्रीका की कही हुई पूरी बात बताती है..जिसे सुनकर अधिराज बिना देर किये उसके साथ चल देता है..
तो वही विक्रम एकांक्षी से कहता है.. " एकांक्षी मेरी बात ध्यान से सुनो वो वैदेही कोई औऱ नहीं तुम हीं हो, ये तुम्हारा पुनर्जन्म है " एकांक्षी उसे घूरते हुए पुछती है.. " पुनर्जन्म.?.. " विक्रम एक गहरी सांस लेते हुए कहता है.. " हा पुनर्जन्म पहले तुम वैदेही थी जैसा तुमने अभी देखा होगा की कैसे सबकी मदद करती थी, तुम्हारी मासूमियत को अधिराज ने धोखे से अपनी प्यार में फसा लिया, ताकि वो तुम्हारे जरिये जीवंत मणि तक पहुंच सके, औऱ उसके बाद उसे तुम्हे छोड़ दिया " विक्रम की कही बात से एकांक्षी को फिर से पहले की घटना ध्यान आती है...
अधिराज तुमने हमें धोखा दिया है, तुमने सिर्फ हमारा उपयोग किया था इस मणि के लिये, आज के बाद से हम तुमसे सिर्फ घृणा करती है..
एकांक्षी की आँखो से आँसू की बूंद गिरती है, विक्रम उसे झाझोरता है, जिससे एकांक्षी उस घटना से बाहर आकर कहती है.. " तुम कौन हो?. "