हर चीज़ की एक पहली बार होती है — और कभी-कभी वही “पहली बार” हमें सिखा देती है कि डर बस हमारे मन में होता है।
ऐसी ही कहानी है एक हाई स्कूल की लड़की की, जिसने पहली बार अपने लिए कुछ ऑर्डर किया।
वो हमेशा दूसरों को देखकर सोचती — “काश मैं भी कुछ ऑर्डर कर पाती…”
पर उसके दिल में डर था।
कहीं पैसे चले गए तो?
कहीं सामान गलत आ गया तो?
या अगर घरवाले पूछ लें कि “ये क्या मंगा लिया?” तो क्या जवाब देगी?
इन सवालों ने उसे हमेशा रोक दिया था।
एक दिन उसकी फ्रेंड उसके घर आई। दोनों बातें करने लगीं तो फ्रेंड ने कहा, “चलो कुछ ऑर्डर करते हैं।”
दोनों ने मोबाइल निकाला, शॉपिंग ऐप खोला और कई चीज़ें देखीं — पर आखिर में कुछ नहीं खरीदा।
लड़की ने मुस्कराते हुए कहा, “छोड़ो, कोई गलती हो गई तो?”
फ्रेंड बोली, “तू बहुत सोचती है, कभी तो ट्राई कर।”
फ्रेंड तो चली गई, लेकिन उसकी बात लड़की के मन में रह गई।
दो दिन बीत गए। उस रात लड़की बिस्तर पर लेटी थी, पर नींद नहीं आ रही थी।
वो सोचती रही — “क्या सच में मुझसे नहीं होगा?”
अगली सुबह उसने खुद से कहा — “बस! अब डरना नहीं है।”
उसने मोबाइल उठाया, एक ऐप खोला, और अपनी पसंद की चीज़ चुनी।
उसे देखकर उसके चेहरे पर मुस्कान आई।
फिर उसने हिम्मत जुटाई और “Order” पर क्लिक किया।
स्क्रीन पर लिखा था — “आपका ऑर्डर कुछ ही मिनटों में पहुँच जाएगा।”
उसका दिल तेजी से धड़कने लगा।
वो कभी वॉशरूम जाती, कभी आईने में खुद को देखती, कभी खिड़की से झाँकती — “आ गया क्या?”
उसके अंदर डर भी था और उत्साह भी।
कुछ देर बाद डोरबेल बजी।
वो तेजी से नीचे भागी।
सामने डिलीवरी बॉय था, हाथ में छोटा-सा पैकेट लिए।
वो मुस्कराई, पैसे कैश में दिए और पैकेट लिया।
वो पल उसके लिए किसी बड़ी जीत से कम नहीं था — उसकी पहली ऑनलाइन खरीदारी!
डिलीवरी वाला मुस्कराकर बोला, “मैडम, पाँच स्टार देना मत भूलना।”
लड़की ने भी मुस्कराकर कहा, “अभी तो शुरू किया है, धीरे-धीरे सब समझ जाऊंगी।”
उसने सीढ़ियाँ चढ़ते हुए पीछे मुड़कर देखा — उसे अपनी हिम्मत पर गर्व महसूस हो रहा था।
घर आकर उसने सबसे पहले अपने फोन में ऐप खोला और दिल से चार स्टार दिए।
फिर पैकेट खोला, चीज़ निकाली और उसकी फोटो खींची।
उसने तस्वीर पापा को भेजी और लिखा — “पापा, मेरा पहला ऑर्डर!”
पापा ने रिप्लाई किया — “बहुत अच्छा! अब तू सब खुद कर सकती है।”
माँ ने मुस्कराते हुए कहा — “देखा, डर बेकार था ना?”
वो हल्के से हँसी, और अपने कमरे में चली गई।
वो शाम उसके लिए खास बन गई।
पहली बार उसने अपने डर पर जीत पाई थी — छोटी-सी कोशिश ने उसके अंदर बड़ा आत्मविश्वास जगा दिया था।
उस रात उसने अपनी डायरी खोली और लिखा —
“आज मैंने खुद से एक छोटी-सी जंग जीती है।
डर अब भी है, लेकिन अब मुझे पता है कि मैं उससे लड़ सकती हूँ।
यह बस एक ऑर्डर नहीं था — यह मेरे आत्मविश्वास की शुरुआत थी।
अब मैं जान गई हूँ कि जब तक हम कोशिश नहीं करते, हमें अपनी ताकत का एहसास ही नहीं होता।
मैं अब छोटे-छोटे कदमों से आगे बढ़ूँगी, क्योंकि यही छोटे कदम एक दिन मुझे मेरी मंज़िल तक ले जाएंगे।”
उसने डायरी बंद की, मुस्कराई और सोचा —
“कभी-कभी जिंदगी का सबसे बड़ा कदम, बस एक क्लिक होता है।”