Create a syndicate and have fun in Hindi Comedy stories by Dr Sandip Awasthi books and stories PDF | सिंडिकेट बनाओ और मजे करो

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सिंडिकेट बनाओ और मजे करो

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"यह क्या होता है सिंडिकेट?" सिगरेट के छल्ले उड़ाते,हाथ में महंगा मोबाइल और सामने उतरती भीड़ को कोफ्त से देखते हुए एक आधुनिक लेखक ने पूछा।  

उधर साहित्यिक दुनिया में असंख्य वाइल्ड कार्ड एंट्री की तरह आई एक सुंदर महिला पूछ रही थी," यह ऑनलाइन तो हर जगह रचना आ रही मेरी। पर आप इतने वर्षों से लिख रहे आपके फॉलोवर मुझसे भी कम क्यों हैं?" 

जैसे कुछ जगह नेताओं के नेपो किड्स को दो अनुभवी,बाप के साथ के,दो युवा पर जुगाड़ू और दो वाह वाह वाले चमचे घेरे दिखाई देते हैं वैसे ही कुछ सिंडिकेट होता है। हमने विनम्रता से नयनतारा को समझाया। यह हर जगह होता है बस आपको ही मालूम नहीं पड़ता क्योंकि आप सिंडिकेट का हिस्सा नहीं होते। 

खेल के मैदान,फिल्म,राजनीति से शहरों कस्बों तक और दफ्तर,स्कूल ,कॉलेज से साहित्य की बहुरंगी दुनिया तक यह पाए जाते हैं। आज से ही नहीं सदियों से। आपके जन्म से लेकर मृत्यु तक यह सिंडिकेट होते हैं और आप इनके निशाने पर । कई बार तो निशाने को ही पता नहीं चलता कि दफ्तर,कॉलोनी, सोसाइटी,साहित्य में कहां और कितनी बार वह सिंडिकेट के हाथों छला गया और घाटे में रहा। क्योंकि इनका मुखिया जानता है कौन कौन निशाने हैं और उन्हें कैसे सांत्वना देकर अगली बार के लिए भी बकरा तैयार करना है ।दो बानगी देखें जो आप सभी के साथ हुई होंगी। पहली आप योग्य हैं,अपनें मन से नहीं बल्कि वर्षों के अनुभव, योग्यता से आप आगे हैं दौड़ में। आश्वस्त हैं कोई कमीपेशी नहीं।आपसे पहले भी इतनी ही योग्यता वालों की तरक्की हुई है। लेकिन बॉस कहने लगता है टफ मुकाबला है इस बार। कुछ भी हो सकता है। तो समझ जाए कि सिंडिकेट काम कर रहा है। दिन नजदीक आते हैं और आपको दूसरे लोग अनायास ही आकर कहते हैं ,"देखो,क्या होता है? अभी तो आसार कम ही हैं।" 

अब यहां जो अपनी मेहनत, ईमानदारी और सत्य पर खड़ा है वह ऐसे ही जिंदगी भर खड़ा रहेगा। क्योंकि झूठ,चालाकी, चमचागीरी के स्केट लगाकर सिंडिकेट का आदमी दन से निकल जाएगा। जो यह सुनते ही समझ गया कि खेला होबे तो वह कर भी क्या सकता है? सिंडिकेट रातों रात सदस्य नहीं बनाता। आपकी वफादारी, दुम हिलाने की क्षमता और हे हे हे करने की क्षमता देखी जाती है।

    इसे पहचाने कैसे? इसकी कुछ खास निशानियां हैं। सिंडिकेट के सदस्य हमेशा झुंड में मिलते हैं।क्योंकि अकेले प्रतिभा के सामने खड़े होने की ताकत नहीं होती। और सदैव इंतज़ार करते मिलते क्योंकि इनका बॉस सदैव, जानकर ,देर से आता। यह इंतजार करते और उसी के साथ अंदर जाते। बॉस भी इनका ख्याल रखता और हर कार्यक्रम में दो तीन को सम्मानित/काव्य पाठ करवा देता। महिलाएं भी होती इनकी सदस्या।उनकी पहचान यह की वह इनके आते ही आसपास मंडराती। नए संपर्क बनाने हो तो हाइ टी या लंच के समय ढूंढकर मिलती इन आकाओं से। उनके अधिक काम आता सिंडिकेट।क्योंकि उनकी इच्छा अपना नाम छपा देखने की होती भले ही पचास ,दस कॉपी का छोटा सा अखबार हो या ऑनलाइन पत्रिका। फोटो सहित अपनी बेतुकी,अर्थहीन,भाव,बिंब,प्रतीक रहित,असर रहित रचना देखकर यह खुश हो जाती। और इतना ही नहीं तीस कॉपी या ऑनलाइन पत्रिका के संपादक को बाकायदा टैग करके धन्यवाद भी देती, कृतज्ञ भी होती। है न कमाल!! मां,बच्चे,राष्ट्र, फूल जैसे घिसे पिटे विषय पर दो लाख प्रतिदिन कविताएं लिखी जा रही ,क्या कीजे? 

            फिर सिंडिकेट एक और काम करता। उसके लिए अनिवार्य है कि आप उनके व्हाट्सएप या फेसबुक कम्युनिटी के सदस्य हो। वहां आप रोज अपनी कविताएं ( भड़ास,पीड़ा लेखक नहीं मानने की ) पोस्ट करें। बॉस के इशारे पर चार पांच पट्ट चमचे उसकी वाह वाही , महादेवी,सुभद्रा कुमारी चौहान या पुरुष और मोटी कमाई वाला है तो नागार्जुन,शमशेर,प्रसाद से तुलना कर देंगे यह दलाल।

       इससे तीन तरफ एक साथ एक ही तीर लगता है। जी।समझें पहला तीर जिसकी रचना है वह गुलाम आपका।दूसरा तीर उसकी वाह वाही देख अन्यों के दिल में भी ऐसी ख्याति पाने की इच्छा बलवती होती,यानि नए मुर्गे,मुर्गियां फंसते। तीसरे खुद गुमनाम आका ,गर्व और घमंड से चार इंच ऊपर मुंह करके तस्वीर में नजर आते। भले ही आका की चार किताबें कहीं भी किसी ने पढ़ी न हो।

        आगे और देखें सिंडिकेट के कमाल। आखिर साहित्य की दुनिया में रथ पर चढ़ना कोई आसान काम है? तो लगातार उत्साहवर्धन के बाद रोज की तीन कविताओं से एक वर्ष में हजार से अधिक सर्जन हो जाता है। है किसी राष्ट्रकवि में इतनी उर्वर सर्जन क्षमता? फिर उस संग्रह का भव्य लोकार्पण, जी हां आजकल लोकार्पण चल रहा विमोचन की जगह। भव्य,बड़ा और भारी। 

       उसके बाद क्या होता है यह मत पूछो। क्योंकि लोकार्पण करने किसी बड़े शहर का छुटभैया लेखक आता है। आने जाने का एसी किराया,होटल में स्टे,घूमना और फिर रवाना होने के बाद उसी किताब की भूल जाता है जिसके लिए आया था। लेखक यदि सिंडिकेट का हिस्सा है,आमतौर पर नए लोग इस वायरस को नहीं जानते, पर यदि है तो उसके लाख रुपए का खर्चा बेकार नहीं जाता। सिंडिकेट उसकी दो चार समीक्षाएं करवाकर विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लगवा देता है।भले ही वह क्रमश पचास से दो सौ प्रतियां ही लोकल में छपती हो। उधर वह लेखक (इसे स्त्रीलिंग भी समझा जाए) फूल कर कुप्पा और जगह जगह ऑनलाइन वह समीक्षा और पत्र के संपादक जी के प्रति दोहरा हो आभार प्रदर्शन नृत्य करता रहता।इसे आप आज भी रोज देख सकते हो। जबकि अच्छी रचना को प्रकाशित करना संपादक का भी कर्तव्य है। किस बात का नृत्य कर रहे? वैसे भी यह वह संपादक/भूतपूर्व असफल लेखक हैं जो सिंडिकेट के बूते पत्र निकालते ही इसीलिए है कि अपनी आजीवन सदस्यता हजारों रुपए में आपसे ले सकें।

 

             **राजनेताओं का सिंडिकेट, गठजोड़,तो सभी जानते हैं। एक बार सत्ता तुम्हारी तो अगली बार हमारी। तुम हमें। यहां खुश रखो तो हम तुम्हे अगली बार हम तुम्हारा ख्याल रखेंगे। इसी भाईचारे में पूरे विश्व की राजनीति चल रही है। और जो उसका उल्लंघन करता है उसका जिलेस्की,फिलिस्तीन, ईरान जैसा हाल कर दिया जाता है। कई कस्बेनुमा स्मार्ट शहरों में वार्ड पार्षद,जिन्हें नगर सेवक बोलते हैं ,ऐसे भाईचारे से बंधे होते हैं कि नगर के भले के लिए कभी एक शब्द सभा में नहीं बोलते। बस अपना चलता रहे। सभी के सभी जनता की गाढ़ी कमाई को लूटने में लगे होते हैं। कोई सत्ता पक्ष या विपक्ष नहीं। अभी अभी दिल्ली की मुख्यमंत्री ने सभी विधायकों को आई फोन सोलह प्रो,मात्र डेढ़ लाख रुपए का फोन ,गिफ्ट किया है।पंद्रह अगस्त ,आजादी के उत्सव की खुशी में की इस पर वह जनता की समस्याओं और आंकड़ों को जल्दी कर पाएंगे। उधर विधायकों के घरों के बच्चों,भाई बहनों ने पहले ही इस गिफ्ट पर अपना अधिकार जमा लिया है। वैसे दिल्ली राज्य के सत्ताधारी विधायकों,मंत्रियों के चेहरे देखें जरा l ऐसे खिले खिले हैं मानो महीने का पांच पांच करोड़ अंदर कर रहे हो।पच्चीस वर्षों का इंतजार और अकाल खत्म जो हुआ है। सब संतुष्ट हैं क्या अफसर,क्या मंत्री, संत्री,क्या छोटा बड़ा व्यापारी,क्या बिजली कम्पनी,क्या पानी ,भू माफिया क्या स्कूल माफिया,चिकित्सा माफिया से लेकर हर कोई ऐसे खुश है मानो अंधेर नगरी चौपट राजा हो रहा हो। और हम यह देख रहे कि कितनी मेहनत से दस वर्षों में व्यवस्था पटरी पर बैठी थी और उसे बर्बाद करने में दस हफ्ते भी नहीं लगे। पर सिंडिकेट भी कोई चीज होता है या नहीं? तभी जब पूर्व शिक्षा मंत्री सिसोदिया, जिन आरोपों में सीबीआई के द्वारा गिरफ्तार और जेल गए थे, उन सभी आरोपों से कोर्ट ने बाइज्जत बरी कर दिया। इसकी खबर किसी को नहीं क्योंकि सत्ता हाथ आ गई अब होता रहे कोई बरी।

यह है सिंडिकेट महिमा।जो इससे बाहर जाता है या अलग राग अलापता है तो सिंडिकेट अपने पूर्व सदस्य को बाहर तो करता ही है साथ ही उसका ऐसा हाल करता है जैसे अभी अभी एक भूतपूर्व कवि का हुआ। उसने तो वही किया था कि एक गुमनाम पर युवा लेखिका को वह सम्मान दिलवा दिया जो लोगों को पचास की आयु और पंद्रह किताबों के बाद भी नहीं मिलता। उसके बदले में जो नियम है वही वह भी वसूलते। परंतु जब उन्होंने अपनी वय में ऐसा शानदार काम का ढोल पीटा तो यह कुछ को हजम नहीं हुआ और आज वह घूरे पर हैं। लेकिन जैसे ही कुछ दिनों बाद सिंडिकेट के बॉस की हुजूरी करके और अपने बड़बोलेपन पर अंकुश का वादा करेंगे वह वापिस पाक साफ होकर फिर यही सब करेंगे। इस बार सिंडिकेट उनके साथ जो होगा। क्या? वह महिला लेखक का क्या? तो भैया सिंडिकेट के दरवाजे उसके लिए भी खुले हैं उन्हीं शर्तों पर,आ गई तो ठीक अन्यथा हिंदी साहित्य से अब वह निर्वासित है। 

 

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(डॉ संदीप अवस्थी, आलोचक,व्यंग्यकार और प्रेरक वक्ता हैं। आपको देश विदेश से अनेक पुरस्कार मिले हैं।विभिन्न विषयों पर आठ किताबें प्रकाशित)