(विवरण - मनुष्य अनगिनत उपाय और चालें जानता है। उसकी बुद्धि, चतुराई और अनुभव उसे आगे बढ़ाते हैं। लेकिन इस सृष्टि में एक ऐसी शक्ति भी है, जो मनुष्यों की सीमाओं से परे है। वह शक्ति है ‘सृजनेश्वरी’, जिसे कोई पूरी तरह समझ नहीं पाया। यह शक्ति सृष्टि के हर कण में समाई है। इसी शक्ति के माध्यम से मनुष्य को कभी जीवन मिलता है कभी मृत्यु, क्योंकि इसकी गहराई में देवत्व भी है और शैतानियत भी। इस शक्ति के सहारे ही जन्म लेते हैं विचित्र जीव और आशा के बीज। यहाँ सृष्टि में एक ऐसा यात्री है, जो मृत्यु के बाद भी नहीं मरता। वह बार-बार पुनर्जन्म लेता है, हर युग में, हर काल में। उसके जीवन के पीछे कोई गहरा रहस्य है। परंतु वह स्वयं भी नहीं जानता कि उसका मार्ग उसे कहाँ ले जाएगा? देवत्व की ओर या दानवत्व की ओर?)
Episode 1 - शैतान आर्योष का अंत
‘अम्बर शान’ नाम से जाना जाने वाला विशालकाय पर्वत, जो अनंत जंगलों से ढका हुआ था। आज उस पर ‘आर्योष नक्षत्रेश’ गहरे हरे रंग के फटे वस्त्र पहने खड़ा था। उसके बाल बिखरे हुए थे और उसका पूरा शरीर खून से लथपथ था। बड़ी मुश्किल से अपनी नज़रें उठाकर उसने उस अम्बर शान पर्वत के चारों ओर देखना शुरू किया।
इस समय उसके खून से सने वस्त्र उस विशालकाय पर्वत की असीम ऊंचाई पर हवा में किसी युद्ध के झंडे की तरह लहरा रहे थे।
उसके शरीर पर लगे अनगिनत घावों से लगातार ताज़ा खून बह रहा था। थोड़ी देर वहाँ खड़े रहने से ही आर्योष के पैरों के नीचे खून का एक बड़ा सा तालाब बन गया था।
वह समझ चुका था कि उसके शत्रुओं ने उसे चारों ओर से घेर लिया था, जिनसे बचकर निकलने का अब उसके पास कोई मार्ग नहीं बचा था। इससे यह तो तय था कि उसकी वहीं उस अम्बर शान पर्वत पर आज मृत्यु होने वाली थी।
आर्योष अपनी मौजूदा स्थिति को अच्छी तरह समझ सकता था, लेकिन मृत्यु के सामने भी उसके हाव-भाव नहीं बदले थे। भय और निराशा के स्थान पर वह बिल्कुल शांत लग रहा था। उसकी निगाहें एकदम स्थिर थी और आँखें कुएँ में पानी के गहरे कुंडों जैसी थी, जो इतनी गहरी थी कि उनकी गहराई तक पहुँचना लगभग असंभव था।
तभी अचानक आर्योष के कानों में किसी बेहद बूढ़े बुज़ुर्ग की गरजती हुई आवाज गूंजी, - “आर्योष, चुपचाप ‘काल-झंकारण’ मुझे थमा दो, बदले में मैं तुम्हें तुरंत एक बहुत आसान मृत्यु दूँगा!”
इस बीच एक औरत की दर्द भरी चीख सुनाई दी, जिसने आँखों में घृणा लिए कहा, - “शैतान आर्योष, अब और विरोध करने का कोई लाभ नहीं। आज न्याय के सभी प्रमुख समुदाय तुम्हारे इस शैतान नगर को नष्ट करने के लिए एक साथ आ गए हैं। तुम्हारा यह स्थान पहले से ही अभेद्य जालों से घिर चुका है। चाहकर भी तुम आज यहां से जीवित बचकर नहीं भाग सकते। इस बार तुम्हारा सिर ज़रूर धड़ से अलग होकर रहेगा!”
उस औरत की आवाज के थमते ही एक लड़की, जिसने सफेद रंग की साड़ी पहन रखी थी, उसने आगे बढ़कर क्रोध से आर्योष को घूरा और कहा, - “खुद को भगवान का दर्जा देने वाले हैवान, तुम भगवान नहीं शैतान हो शैतान! सिर्फ़ इसलिए कि तुम काल-झंकारण की शक्तियों से साधना करके सबसे शक्तिशाली बनना चाहते थे, तुमने हज़ारों लोगों की बलि चढ़ा दी, उन्हें निर्दयता से मार दिया। तुमने अपने पूरे जीवन में बहुत से अक्षम्य, जघन्य और घोर पाप किए हैं। ऐसे दुष्ट, पापी शैतान को तो नर्क में भी जगह नहीं मिल सकती।”
उस लड़की की इन बातों से आसपास के लोगों में तेज शोर मचने लगा, जिसे शांत करते हुए उस बेहद बूढ़े बुजुर्ग ने अपने हाथों को हवा में लहराकर कहा, - “ ‘संयोनिता’ ने सही कहा, इस शैतान को नर्क में भी जगह नहीं मिल सकती। मुझे भली-भांति याद है कि इस शैतान ने 300 वर्ष पहले न सिर्फ मेरा अपमान किया था, बल्कि मेरे शरीर की पवित्रता भी छीन ली थी और मेरे पूरे परिवार को निर्दयता से मार डाला था। उसके बाद भी इस शैतान को संतुष्टि नहीं मिली, इसने मेरी 9 पीढ़ियों का भी सर्वनाश कर दिया। उस क्षण से ही मैं इस शैतान से बहुत ज्यादा घृणा करता आया हूँ इसलिए इस शैतान को तो आज हर कीमत पर मरना ही होगा, वरना मेरे परिवार के सदस्यों की आत्माओं को कभी शांति नहीं मिलेंगी।”
उन सब लोगों की क्रोध, घृणा और तिरस्कार भरी बातें सुनकर आर्योष बिल्कुल शांत था। न्याय के प्रमुख समुदाय जो उसे घेरे हुए थे, वे न केवल अनुभवी बुजुर्ग थे, बल्कि युवा और प्रतिभाशाली योद्धा भी थे। चारों ओर से घिरे आर्योष के करीब और दूर खड़े उन सभी लोगों में से ज्यादातर क्रोध से चिल्ला रहे थे, बहुत कम उसकी दयनीय दशा का उपहास बना रहे थे, कुछ गिने-चुने लोगों की आँखें ठंडी रोशनी से चमक रही थी और सबसे आगे खड़े बुज़ुर्ग और नौजवान अपने घावों को पकड़े हुए आर्योष को भयभीत होकर देख रहे थे। फिर भी वे अपने स्थान से जरा से भी नहीं हिले, क्योंकि वहां उपस्थित हर कोई आर्योष के अंतिम हमले से सावधान था।
यह तनावपूर्ण माहौल अगले 6 घंटों तक बना रहा और दोपहर के बाद, अब शाम हो गई थी। खुले आसमान में तेज़ी से चमकते सूरज की किरणें उस विशालकाय पर्वत के किनारों पर साफ-साफ पड़ रही थी। जिससे ऐसा लग रहा था जैसे उस जगह में आग लग गई हो।
आर्योष, जो 6 घंटों से एक मूर्ति की तरह मौन था, अचानक धीरे से अपना शरीर घुमाने लगा। यह देखकर वहां खड़े लंबे-चौड़े रक्षकों का समूह एकदम से सतर्क हो गया और वे सभी एक झटके के साथ अपने कदम पीछे हटाने लगे।
अब तक तो आर्योष के पैरों के नीचे दिखती सैंकड़ों फुट बड़ी चट्टान गहरे लाल रंग से रंग चुकी थी। बहुत ज़्यादा खून बहने के कारण आर्योष का चेहरा मौत की तरह पीला पड़ गया था। फिर धीरे-धीरे सूर्यास्त के बीच अंतिम बार आर्योष के चेहरे पर एक अनजानी रहस्यमयी चमक आ गई।
अपनी धुंधली आँखों के सामने डूबते सूरज को देखकर आर्योष हल्के से हँसा। उसकी इस हँसी में दर्द तो था, लेकिन कोई निराशा या और जीने की इच्छा नहीं थी। जिसके साथ उसने बहुत धीमी आवाज में खुद से बुदबुदाते हुए कहा, - “सूरज अब पर्वतों के परे डूब रहा है और पतझड़ का चाँद बसंत की ठंडी हवा में तैर रहा है। सुबह बालों जैसी नर्म रोशनी लिए सब कुछ चमकाती हुई नई उम्मीद की तरह लगती है। रात बर्फ़ की चुप्पी लिए हर चीज़ को ढक लेती है। चाहे हम सफल हो या असफल, जब पीछे मुड़कर देखते है, तब हमें सिर्फ़ खाली रास्ते और उड़ती यादें ही दिखती है। हह… यहाँ सब कुछ क्षणिक है… यह क्षण भी चला जाएगा!”
खुद से यह कहते ही आर्योष को पृथ्वी पर अपने पिछले जीवन की यादें, अपनी आँखों के सामने उभरती हुई दिखाई देने लगी।
वह मूल रूप से पृथ्वी पर अद्भुत क्षमताओं का विद्वान रहा था, जो संयोग से इस अनजान दुनिया में आ गया था, जिसका नाम था ‘अमोधिर महाप्रलय अमर लोक’।
आर्योष ने यहाँ 300 वर्षों तक कठिन जीवन जिया और 200 वर्षों से भी अधिक समय तक एकांत में रहा। उसके इस जीवन के लगभग 500 वर्ष पलक झपकते ही बीत गए थे, जिसका उसे पता भी नहीं चला था।
अपने दिल में दबी उन 500 वर्षों से भी अधिक हज़ारों-लाखों यादों को अपनी आँखों के सामने फिर से जीवंत होते देख आर्योष भावुक हो गया।
उसने बिना किसी इच्छा के खुद को खुद से ही अलग करते हुए कहा, - “इतना सबकुछ करने के बाद भी मैं असफल रहा। शायद यही जीवन का वास्तविक सत्य है!”
भावुक आर्योष ने अपने होंठों पर हल्की सी मुस्कान के साथ अपने चारों तरफ देखना शुरू किया। भले ही यह क्षण उसके जीवन का अंतिम क्षण था फिर भी उसे कोई पछतावा नहीं हो रहा था।
उसके जीवन का यह अंतिम परिणाम कुछ ऐसा था जिसकी उसने पहले ही कल्पना कर ली थी। जब उसने शुरू में अपना निर्णय लिया था, तब उसने खुद को इसके लिए तैयार भी कर लिया था।
शैतान, निर्दयी, क्रूर, हत्यारा और विध्वंसक होना ही उसे इस परिस्थिति तक लाया था। इससे आर्योष अब जान चुका था कि स्वर्ग हो या पृथ्वी या फिर कोई अन्य दुनिया, ऐसी किसी भी शक्ति, व्यवहार और दुष्टता के लिए कहीं कोई जगह नहीं थी। यही कारण था कि उसे उसके ही कर्मों ने पूरे अमोधिर महाप्रलय अमर लोक का सबसे बड़ा शत्रु बना दिया था, जिसके भयंकर परिणाम उसे आज भुगतने पड़ रहे थे।
अपने जीवन की इस सबसे बड़ी असफलता पर पागलों की तरह हसंते हुए आर्योष ने मन ही मन सोचा, - ‘मैंने अभी-अभी जिस काल-झंकारण की साधना की है, अगर वह कारगर रही, तो शायद मैं अगले जन्म में भी शैतान ही रहूँगा!’
वहाँ उपस्थित लोगों को आर्योष का इस तरह अपने अंतिम समय में पागलों की तरह हँसना थोड़ा अजीब लगा। वे एकदम से उससे दूरी बनाने लगे।
उनमें सबसे आगे खड़े उस बेहद बूढ़े बुज़ुर्ग ने चिल्लाते हुए प्रश्न किया, - “दुष्ट शैतान, मृत्यु के द्वार पर खड़े होकर भी तुम किस बात पर हँस रहे हो?”
लेकिन आर्योष ने उस बुज़ुर्ग को कोई उत्तर नहीं दिया, बस पागलों की तरह हँसता रहा। यह देखकर उस बूढ़े बुज़ुर्ग ने अपने कदमों को पीछे खींचते हुए कहा, - “सब लोग सावधान रहो। लगता है, यह शैतान अपने अंतिम क्षणों से पहले ही हम पर हमला करने वाला है!”
सभी लोगों को अपनी बात समझाने के बाद, उस बूढ़े बुज़ुर्ग ने आर्योष की ओर घृणा से देखकर कहा, - “जल्दी करो और उस काल-झंकारण को मुझे सौंप दो, मैं तुम्हें बहुत आसान मृत्यु दूंगा।”
इतना सब सुनने के बावजूद, आर्योष अभी भी बिल्कुल शांत था और किसी भी प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दे रहा था। इससे बेहद क्रोधित होकर उस बूढ़े बुज़ुर्ग ने अपने पीछे खड़े अन्य बुज़ुर्गों के समूह को कुछ संकेत दिया, जिसे समझकर वे सभी बुज़ुर्ग आगे बढ़ने लगे।
लेकिन इससे पहले की वे सभी बुज़ुर्ग आर्योष के करीब पहुँच पाते, उससे पहले ही उसी क्षण आसपास की हवा और हर चीज़ पूरी तरह से जकड़ गई, फिर एक ज़ोरदार धमाके के साथ आर्योष का शरीर चकाचौंध कर देने वाली सफेद ऊर्जा के आयाम में समा गया।