समुंदर के किनारे बसा एक छोटा-सा कस्बा था — जहाँ लहरों की आवाज़ घड़ी की टिक-टिक से मिलकर कुछ अजीब-सी धुन बनाती थी।
कहते थे, उस समुंदर में कोई रहस्य है — अगर कोई उसे सच में समझ ले, तो वो अपना भविष्य देख सकता है, मगर शर्त ये थी... कि वो भविष्य पहले जी चुका हो।
आरिन, एक ख़ामोश घड़ीसाज़, दिन-रात टूटी घड़ियाँ जोड़ता रहता था। उसकी बनाई हर घड़ी में एक कमी थी — वो सही वक़्त कभी नहीं बताती थी।
शहर वाले कहते, “ये लड़का पागल है।”
पर आरिन के दिल में एक राज़ था —
हर सुबह जब वो जागता, उसे एक लड़की का चेहरा याद आता था, जिसे वो कभी मिला ही नहीं था।
नाम... मीरा।
उसे उसकी हँसी याद थी, उसकी आँखों की नमी, और वो पल जब वो कहती — “आरिन, देर मत करना।”
मगर कब? कहाँ? ये उसे खुद नहीं पता था।
एक शाम, जब वो किनारे बैठा एक पुरानी पॉकेट वॉच ठीक कर रहा था,
समुंदर अचानक चमक उठा।
लहरों के बीच से एक लड़की चली आ रही थी — भीगी नहीं थी, पर उसके हाथ में एक रेतघड़ी थी जो रोशनी से रिस रही थी।
वो सीधी आरिन के सामने आकर रुकी —
और जैसे कोई पुराना सपना बोल उठा, उसने कहा,
“तुम मुझे नहीं जानते... लेकिन तुमने ही मुझे बनाया है।”
आरिन स्तब्ध था।
“मैंने...?”
वो मुस्कुराई —
“मैं भविष्य से आई हूँ। तुम्हारी घड़ी... वक़्त रोक देगी एक दिन। और तब मैं फिर लौटूंगी।”
उसकी बातें सुनकर आरिन के मन में एक धुन गूँज उठी —
“वक़्त की पकड़ में जो इश्क़ ना आये,
वही मोहब्बत सच्ची कहलाये...”
उस रात चाँद ने समुंदर पर जैसे एक दस्तख़त कर दिया —
दो रूहें, दो दिशाओं में चलती हुई, एक-दूसरे की तलाश में उलझ गईं।
रात का समुंदर, हल्की नीली रौशनी से झिलमिला रहा था।
आरिन ने मीरा के हाथ में वो रोशनी रिसती रेतघड़ी देखी — और पूछा,
“ये... क्या है?”
मीरा ने उसे धीरे से थामकर कहा,
“इसमें वो वक़्त है जो किसी के पास नहीं।
हर बार जब मैं तुम्हें खोती हूँ...
इस रेत से एक पल कम हो जाता है।”
आरिन की आँखों में बेचैनी थी —
“मतलब... तुम जा सकती हो?”
वो मुस्कुरा दी,
“नहीं आरिन... मतलब मैं दोबारा मिलूँगी — पर शायद तू मुझे पहचान न पाए।”
चुप्पी लम्बी थी। बस लहरों का संगीत और टूटती रेतघड़ी की चमक।
अगले दिनों में, आरिन और मीरा ने साथ में वक़्त को समझने की कोशिश की।
वो दोनों रोज़ उस घड़ी को छूते, और दुनिया कुछ पल के लिए थम जाती।
पंछी हवा में रुक जाते, लहरें ठहर जातीं, और हवा साँस लेना भूल जाती।
उन्हें बस एक-दूसरे का चेहरा दिखाई देता।
मीरा कहती —
“शायद इश्क़ वही होता है जो वक़्त को रोक दे।”
आरिन हँसता —
“या फिर वो जो वक़्त को मना ले।”
लेकिन जैसे-जैसे दिन गुज़रते गए,
मीरा की परछाई धुंधली होने लगी।
उसकी उँगलियाँ पारदर्शी हो रही थीं — जैसे वो धीरे-धीरे किसी और दिशा में घुल रही हो।
आरिन घबरा गया।
“मीरा! रुको… मैं कुछ कर लूँगा!”
वो बोली —
“तुम्हें बस एक घड़ी बनानी होगी, जिसमें सुइयाँ ना हों।
जो चले ही नहीं —
क्योंकि जब वक़्त थम जायेगा... मैं लौट आऊँगी।”
उसने अपना हाथ उसके चेहरे पर रखा —
और आख़िरी बार कहा,
“अगर मैं मिट जाऊँ... तो मुझे याद मत करना,
वरना वक़्त हमें फिर सज़ा देगा।”
और उसी पल,
समुंदर ने एक चमक में उसे निगल लिया।
आरिन अब अकेला था।
दिन-रात वो एक ही घड़ी बनाता रहा —
एक ऐसी घड़ी जिसमें कोई सुई नहीं थी,
सिर्फ़ एक धड़कन थी — जो उसी के साथ धड़कती थी।
जब वो तैयार हुई, उसने समुंदर के किनारे उसे रखा और कहा,
“अगर इश्क़ सच्चा है तो लौट आओ,
वरना वक़्त ही झूठा साबित होगा…”
उसने जैसे ही वो घड़ी चालू की —
लहरों की जगह टिक-टिक की आवाज़ आने लगी।
और समुंदर… थम गया।
दूर कहीं से, रोशनी की एक लहर उठी —
और उसकी आवाज़ गूँजी,
“मैं याद रखती हूँ… कल भी, और अगला जनम भी।”
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“वक़्त थम गया, पर इश्क़ चलता रहा,
जो होना था, वो हर जनम में पलता रहा