ghar diwaro se nahi hota evm siskate zakh in Hindi Book Reviews by ramgopal bhavuk books and stories PDF | घर दीवारों से नहीं होता एवं सिसकते जख्मों की यादें की नब्ज

Featured Books
Categories
Share

घर दीवारों से नहीं होता एवं सिसकते जख्मों की यादें की नब्ज

घर दीवारों से नहीं होता एवं सिसकते जख्मों की यादें की नब्ज

 

                           रामगोपाल भावुक

 

 डॉ. वी एन. सिंह की कृति घर दीवारों से नहीं होता एवं सिसकते जख्मों की यादें कृतिया सामने है। सिंह साहब सकारात्मक सोच के अनुभवी कवि है। आप स्व.पत्नी सुमन राजे जिनके लेखन पर अनगिनत पी. एच. डी हो चुकीं हैं। आपने सिसकते जख्मों की यादें उन्हीं को समर्पित की है। उनकी व्यथा यही है कि वे प्रतिदान में वह लोक को अमृत ही देना चाहते हैं।

समकालीन साहित्यकार अपनी जमीन स्वयं तैयार करता है।आपने बुन्देलखण्ड की लोकवार्ता जैसे विषय में बुन्देलखण्ड के गाँव- गाँव घूम- घूमकर पी.एच.डी. की है। आपकी पहली कृति अजायबघर 1978 ई. में प्रकाशित की गई थी। उसके बाद तो अब तक चौहदवाँ संग्रह गहरी अनुभूतियों में सराबोर प्रकाशित हो चुके हैं।

आप कविता को इस तरह मानते हैं

कविता हौंसलों  की

कुंजी है

जिसका ताला कभी बन्द

नहीं होता

कविता मेरी जिन्दगी है

न मुझे गिरने देती है

 न झुकने देती

और कविता दौलत है में तो-

मैं कविता में जीता हूँ

कविता मुझ में जीती है।

     कवि का जीवन बंजारे के जीवन की तरह होता है, वह जाने कितने तरह के भावों वाले कविता के वितान ताने अपने सृजन पर मुग्ध होता रहता है। ऐसे ही भावों से परिपूर्ण बंजारे वाली दो कवितायें मन को छू जातीं हैं।

 मैं महसूस कर रहा हूँ कवि इन विभिन्न संकलनों में निभिन्न विषयों पर सार गर्भित कलम चलाई है। आपकी सभी रचनायें सकारात्मक सोच की कवितायें है।

    आदिवासी संसार वाली रचना भी उन्हें महाजनी संस्कृति वाले बधुआ श्रमिक बनाने में लगे हैं। कवि का दर्द है कि वे इस पीड़ा से कैसे मुक्त हो।

  कविता शब्द मे है

देश की माटी की सुगन्ध

 दूसरी जगह शब्द ब्रह्म हैं। शब्द ब्रह्म वाणी में शब्द को विचार शक्ति का प्रतीक बतलाया है।

               घर दीवारों से नहीं होता के अन्तिम पायदान पर तो- मेरी  अपनी तरह डॉ. वी एन. सिंह जी भी अस्सी के पायदान की व्यथा कहते दिख जाते हैं।

आँखें जो दूरवीन थीं

चश्में में छिप गयीं

हड्यिों ने जिस्म से

प्यार करना छोड़ दिया।

बिस्तर पर आराम करतीं।

 

                अब हम सिसकते जख्मों की यादें संजोये। इस रचना में डॉ. वी एन. सिंह  सिसकते हुए दिख जाते हैं। तेरहवे संकलन की तरह यह संकलन भी आपने स्व. पत्नी सुमन राजे को समर्पित की है। वे एक कालजयी रचना कार रहीं हैं  निश्चय ही ऐसे रचनाकार की स्मृतियाँ भी तो कालजयी रही होगीं।

               सिसकते जख्म रचना से  प्रश्न-

ईश्वर ने तो सुन्दर आदमी बनाया

फिर समाज बट-बटा क्यों है

जाति, धर्म और समप्रदाय में

और यादें थमती नहीं में जो रचनाकार ने पत्नी सुमन राजे के लिए ही लिखी है, मुझे तो इस सारे संकलन का सार ही कविता में ध्वनित हो रहा है-

तुम्हरी  यादों मे

मेरी दुनिया बसी हे, वही मैं हूँ।

यादें मेरे साथ-साथ

चलती फिरती हैं।

तुम वह रोशनी हो

जो जिन्दगी को रोशन करती

तुम्हारी मीठी भरी आवाज

आज भी मेरे कानों में गूंजती है

कभी वह आवाज कहती थी

प्रचार्या क्या बनी

फाइलों का बोझ

कधों पर लद गया

आज के युग में

ईमानदार होना गुनाह है।

ऐसी साधिका के बारे ममें कवि कहता है-

तुम विदा हो गय

हथ में कलम दे गयी

कह गयी लिखते रहना।

दर्दकी दुनिया में कवि कहता है-

दर्द को मैं अपने से

अलग नहीं कर पाता

मेरी खुशी  में कवि मानता है कि

कविता वह ओजार है

जो बगैर किसी हिंसा के

बदल देती है दुनिया।

मुझे खुशी है कि मेर तरह ही कवि की विचार धारा है-वह किसी राजनीति के घेरे में नहीं हैं।

संग्रह के अन्तिम पायदान पर तो यादें क्यों लौटती हैं-

यह कौन सी आग है

दिल जल रहा है

धुआँकहीं नहीं।

 

               अपनी बात कहने में कवि को अपनी भाषा पर पूर्ण अधिकार है, आपके शब्द अपनी बात कहने के लिये रचना में स्वयं आ बैठते हैं। ऐसे रचना कार को हार्दिक बधाई।

 

कृतियों के नाम-घर दीवारों से नहीं होता एवं सिसकते जख्मों की यादें

रचनाकार का नाम- डॉ. वी एन. सिंह

प्रकाशक- विकास प्रकाशन, कानपुर

समीक्षक- रामगोपाल भावुक, कमलेश्वर कॉलोनी (डबरा) भवभूतिनगर

              जिला-ग्वालियर म.प्र. 475110

मो- 9425715707,8770554097