*मां*
एक ऐसा शब्द जो अपने आप में ही सम्पूर्ण हे इसे समझने के लिए किसी और शब्द की जरूरत नहीं होती।
"मां एक ऐसा शब्द जिसके आगे देवता भी नतमस्तक है"
मां की ममता पाने को देवता भी धरती पर अवतरित हुए हैं।
मां...मां होती है चाहे फिर वह इंसान की हो या किसी पशु पक्षी की हो ।
सुना है भगवान हर वक्त आपके समक्ष नहीं रह सकते इसलिए उन्होंने मां को बनाया है।
मेरी यह कहानी एक सत्य घटना पर आधारित है
'एक मां की भावना ने मेरे मन को छू लिया था इसलिए मैंने उसे अपने शब्दों से व्यक्त करने की कोशिश की है ,इस उम्मीद से कि शायद आपको भी पसंद आए'
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यह देखो कितना फैलारा कर रखा है घर में सारा दिन बस यही फेलारा उठाते रहो ।
इतने बड़े-बड़े बच्चे हो गए हैं पर अभी तक अपनी चीज़ों को सही जगह रखना नहीं सीख पाए ।
एक कमरा साफ करके निकालो कि दूसरे में फैलारा बस यही समेंटते रहो फिर खाना बनाओ बाहर भी संभालो घर में भी देखो बस यही करते-करते आधी जिंदगी बीत गई और फिर भी किसी को कोई परवाह नहीं मेरी..
तभी आशु मां के पास आकर बोला --क्या हुआ मां इतनी परेशान क्यों हो ?लाओ में कर देता हूं सारे काम ।
मां बोली--अच्छा ! तुम करोगे सारे काम तुम तो अपनी चीज अपनी जगह पर रख दो यही मेरे लिए बहुत है।
तुम ही हो जो चीजो को अपनी व्यवस्थित जगह पर नहीं रखते और मुझे दिन भर समेटना पड़ता है।
नहीं मां वो पापा... पापा की बात तो बिलकुल ही मत करना उन्हें तो किसी राजघराने में जन्म लेना था पर गलती से मिडील क्लास में जन्म हो गया।
सब राजे महाराजे की जिंदगी जी रहे हैं एक मैं ही हूं नोकरानी जो दिन भर काम में लगी रहती हूं।
आज मां का गुस्सा सातवें आसमान पर था।
आशु बस मां को शांत करने की कोशिश कर रहा था।
प्रियु भी अंदर किचन में काम करते हुए मां और भाई की बातें सुन रही थी ।
आशु अंदर जाता है और प्रियु से कहता है -आज मम्मी बहुत गुस्से में है तुम सारे काम कर लो जल्दी से।
प्रियु बोली- भैया मां मुझसे नहीं आपसे नाराज है आप अपनी चीज़ों को व्यवस्थित नहीं रखते ।
तब तक मां बरांडे में झाड़ू लगाते हुए पहुंच गई ।
बरांडे में बहुत से घास के तिनके पड़े थे देखते ही मां का पारा फिर चढ़ गया ।
चिल्लाकर बोली --घर के लोग काम थे जो तुम और आ गई कचरा फैलाने कितनी बार कहां है यहां घोसला मत बनाओ पर, तुम कहां सुनती हो रोज चली आती हो तिनके ले लेकर ।
मां की तेज आवाज सुनकर प्रियु और आशु बाहर आते हैं और देखते हे कि मां झाड़ू से चिड़िया को भगा रही है और उनका घोंसला भी तोड़ दिया और सारे तिनके झाड़ कर फेंक दिए।
आशु और प्रियु दोनों उदास मन से मां की और निहारते हैं जैसे कह रहे हो मां मत करो ऐसा पर उनके बोलने की हिम्मत ना हुई।
दूर डाल पर बैठी चिड़िया भी अपने टूटे हुए घोसले को निहार रही थी ।
उसका उदास चेहरा भी मानो यही कह रहा हो कि मत तोडो मेरे घर को यह मेरे बच्चों का आशियाना है ।
पर...तब तक मां तोड़ चुकी थी उनके आशियाने को !!
मां कचरा साफ करके घर में आ जाती है।
प्रियु और आशु वही सामने डाल पर बैठ चिड़िया को निहार रहे थे उसका उदास चेहरा उनसे देखा नहीं जा रहा था उन्हें लगा जैसे चिड़या नम आखों से मां की शिकायत कर रही हो दोनों घर में आते हैं और मां से कुछ कहते इससे पहले मां बोली--
मुझे पता है तुम क्या कहना चाहते हो पर मैंने जो भी किया वह चिड़िया की भलाई के लिए ही किया है।
एक मां की भलाई के लिए पर तुम अभी नहीं समझोगे ।
पर मां....इसमें चिड़िया की कैसी भलाई , आपने तो उनका घर तोड़ दिया ।
मां दोनों बच्चों को बैठाकर समझती है देखो बेटा-चिड़िया जिस जगह पर अपना घर बना रही है वह जगह ठीक नहीं है घोंसले के लिए
जब चिड़िया उसमें अपने अंडे रखेंगी तो खोसला उसका वजन सहन नहीं कर पएगा और अंडे नीचे गिर जाएंगे
पर मां... मां बीच में ही बोल पड़ी अब मुझे कुछ और नहीं सुनना चलो अपना-अपना काम करो मुझे खाना भी बनाना है नहीं तो थोड़ी देर हुई कि सब खाने के लिए चिल्लाने लगेंगे
आशु बोला --नहीं मां मैं कुछ नहीं बोलुंगा।
अच्छा !! तुम्हें तो सबसे पहले और टाइम पर खाना चाहिए होता है और खुद कुछ भी काम टाइम पर नहीं करता कहते हुए मां किचन में चली गई।
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कुछ समय बाद मोबाइल की घंटी बजती है और उधर से आवाज आती है कि मामा जी की तबीयत खराब है मम्मी को भेज दो दो-चार दिन के लिए ।
ठीक है मामी जी कहकर प्रियु फोन रख देती है और मम्मी को आकर सब बात बता देती है।
मम्मी मायके जाने की तैयारी करने के साथ- साथ बच्चों को समझाते जाती है__अभी आ जाऊंगी दो-चार दिन में घर का ख्याल रखना अच्छे से और अपना भी पापाजी को समय पर खाना और दवाई खिला देना ।
दोनों बच्चे एक साथ कहते हैं --हां मां हम सब कर लेंगे आप बेफिक्र होकर जाइए ।
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2 दिन में ही भावना अपने मायके से लोट आती है और आते ही उसकी निगाह बरांडे के छज्जे पर पड़ती है तो..
देखती है कि बरांडे के छज्जे पर घोंसला बनकर तैयार हो गया है।
बरांडे से ही भावना चिल्ला कर बोली -प्रियु,,आशु
दोनों बच्चे दोड़ कर बाहर आते हैं क्या हुआ मां और आप कब आ गई।
वो सब छोड़ो यह बताओ कि चिड़िया ने घोंसला कैसे बनाया तुम दोनों क्या कर रहे थे रोका क्यों नहीं चिड़िया को ।
अब जाने भी दो ना मां बना लेने दो घर और देखो मां चिड़िया ने उसमें अंडे भी दिए हैं।
भावना कुछ नहीं बोली बस अंदर चली गई उसके चेहरे पर खुशी भी थी कि चलो अब इस घर में फिर से बच्चों के चेहकने की आवाज गूंजेगी,
पर साथ कुछ अनहोनी होने की आंशका भी थी कि कहीं हवा आंधी में चिड़िया का घोसला टूट ना जाए,
अगर ऐसा हुआ तो बहुत बुरा होगा क्या करेगी फिर चिड़िया कैसे समझाएगी अपने आप को एक मां के दिल को,
दूसरे ही पल भावना अपने आप से कहने लगी__
नहीं -नहीं ऐसा कुछ नहीं होगा भगवान सब ठीक करेंगे।
अगले दिन से ...
भावना और बच्चे रोज आते-जाते देखते कि --चिड़िया रोज तिनके उठाकर लाती और घोसले को मजबूत बनती और
शाम को अपने पंखों की गर्मी से अंडों को सहेजती थी ।
कुछ दिनों बाद....