Kबहुत सुंदर और गहरी भावना है आपकी —
जिसे स्कूल जाने से रोका जाता है,जिसे पढ़ने-लिखने का अधिकार नहीं मिलता,जिसके साथ समाज गलत नज़र से देखता है,और फिर भी वह संघर्ष कर रही है अपनी पहचान के लिए।
✍️ लेखिका: पूनम कुमारी
(अंतरा 1)सुबह-सुबह जब सूरज निकला,वो भी उठी उम्मीद लेकर।पर माँ ने कहा — “रुक जा ज़रा,लड़कियाँ नहीं जाती बाहर।”
दिल में अरमान जलते रहे,पुस्तकें देख आँसू बहते रहे।स्कूल के गेट पे खड़ी थी वो,पर कदम बाँध दिए समाज ने दो।
(मुखड़ा)क्यों बेटी को तुम रोकते हो,क्यों सपनों के पंख तोड़ते हो।जो सीखेगी वही आगे बढ़ेगी,बेटी है वो, दुनिया गढ़ेगी।
(अंतरा 2)किताबें अधूरी, बैग भी नहीं,ड्रेस फटी, कलम भी नहीं।वो फिर भी मुस्कुराती रही,आसमान को देख कहती रही —
“एक दिन मैं भी उड़ान भरूँगी,अपने हक़ की पहचान करूँगी।”पर समाज की नज़रें ऐसी हैं,जैसे बेटी कोई बोझ वैसी हैं।
(मुखड़ा)मत देखो उसे तिरछी नज़र से,वो भी खुदा की एक क़सम से।बेटी है वो, न कमजोर है,हर आँसू में भी चिंगारी ज़ोर है।
(अंतरा 3)जब भाई स्कूल जाता है,सब उसको दुआएँ देता है।पर जब बेटी कहती — “मुझे भी भेजो”,हर कोई बस कह देता — “तू घर देखो।”
रसोई, कपड़े, काम की दीवार,उसके सपनों पर ताला भारी।पर आँखों में उसकी आग जलती,हर रात वो किताबों को पलटती।
(मुखड़ा)अब रुकना नहीं है मंज़िल से पहले,अब झुकना नहीं है दुनिया के मेले।मैं बेटी हूँ, मैं सीखूँगी,हर अंधेरे से अब भी लड़ूँगी।
(अंतरा 4)समाज ने कहा — “बेटी चुप रहो”,पर उसने कहा — “अब मैं खुद कहूँगी।”जो पढ़ने नहीं देते थे पहले,अब उसी बेटी से सीखेंगे कल।
उसकी आवाज़ गूंज उठी,हर गली में पहचान बनी।जो रुकावट थी कल तक दीवार,अब वही बनी उसकी पुकार।
(अंतिम मुखड़ा)अब बेटी डरती नहीं, बोलती है,हर अन्याय को तोलती है।किताबों से अब जग बदलेगा,हर घर में दीपक जलेगा।
मैं बेटी हूँ — रौशनी बनूँगी,अपने अधिकार की कहानी लिखूँगी।जो रोकेंगे अब राह मेरी,मैं बनूँगी उनकी भी जागृति।
🌸 भावार्थ:यह गीत उन सभी बेटियों के लिए है जिन्हें आज भीस्कूल जाने से रोका जाता है, समानता नहीं मिलती,और समाज गलत नज़र से देखता है।गीत का संदेश यह है —
“अगर बेटी को पढ़ने दिया जाए, तो वही समाज की सबसे बड़ी शक्ति बन सकती है।”
क्या आप चाहेंगी कि मैं अब इस गीत कोगाने की लय और सुरों (पियानो/ढोलक/धीमी ताल) के साथएक प्रेरणादायक संस्करण में तैयार कर दूँ —ताकि इसे स्कूल या महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम में गाया जा सके?
जीत गई” (भाग – 2)
✍️ लेखिका: पूनम कुमारी
(अंतरा 1)जिसे कहा था “कमज़ोर” सबने,वो अब बनी है मज़बूत अपने सपनों में।जिस राह में काँटे बिछाए थे जहाँ,अब वही राहों में फूल खिले हैं वहाँ।
कभी जो ताने थे – “तू क्या करेगी?”,अब वही पूछते हैं – “कैसे कर गई?”वो बेटी जो चुप थी कल तक,आज बोलती है सच खुलकर।
(मुखड़ा)मैं वही बेटी हूँ, अब रुकूँगी नहीं,जो हार गई थी कल, अब झुकूँगी नहीं।मेरी जीत अब सबके लिए मिसाल है,अब मेरा नाम हर घर में सवाल है।
(अंतरा 2)अब वो स्कूल की अध्यापिका बनी,जहाँ कभी जाने से रोका गया था उसे।किताबें जो छीनी गई थीं कल,आज वही बाँटती है सबको सफल।
जिसे कहा गया था — “घर संभालो”,अब उसी ने गाँव का स्कूल सँभाला।हर बच्चे को सिखाया उसने यही,“सपने देखो, डरना नहीं।”
(मुखड़ा)अब बेटी खुद एक कहानी है,जो दूसरों के लिए निशानी है।अब आँसू नहीं, आँखों में चमक है,हर कठिनाई में अब दमक है।
(अंतरा 3)समाज की सोच अब बदल गई,बेटी की पहचान अमर हो गई।जो कभी डर के परे थी,अब वो आसमानों में बढ़ चली।
माँ-बाप के चेहरे पर गर्व है,जिसका नाम कल तक दर्द था।अब वही बेटी तारा बनी,हर अंधेरे में उजियारा बनी।
(मुखड़ा)अब बेटी को कोई नहीं रोक सकता,ना झूठ, ना डर, ना धोख सकता।वो ही है कल की सच्ची रानी,हर इंसान की वो अभिमानी।
(अंतरा 4)अब जब किसी को बेटी जन्मे,तो ढोल बजे, दीये जलें।क्योंकि बेटी अब कमज़ोर नहीं,वो बदलाव की चिंगारी है सही।
जिस घर में बेटी हँसेगी,वो घर कभी न टूटेगा।क्योंकि उसकी मुस्कान में ही,नया सूरज फूटेगा।
(अंतिम मुखड़ा)मैं वही बेटी हूँ जो टूटी नहीं,हर दर्द में भी झुकी नहीं।अब मेरा नाम शक्ति बना,हर अंधियारे का दीप बना।
बेटी हूँ मैं — अब जीत गई हूँ,जो कल ठुकराई गई, आज पूजित हुई हूँ।ये मेरी नहीं, हर बेटी की कहानी है,अब दुनिया में उसकी भी निशानी है।
🌸 भावार्थ:इस गीत का यह दूसरा भाग बताता है कि —बेटी अगर एक बार ठान ले,तो वह समाज की हर बंद सोच को तोड़ सकती है।यह गीत हर उस बेटी के लिए है जो आज लड़ रही है,ताकि कल उसकी आने वाली पीढ़ी मुस्कुरा सके।
क्या आप चाहेंगी कि मैं अब इसका तीसरा भाग (भाग – 3) भी लिख दूँ —जिसमें दिखाया जाए कि अब वही बेटी दूसरी बेटियों के अधिकारों के लिए लड़ाई शुरू करती है,और संपूर्ण समाज में क्रांति की आवाज़ बन जाती है?