परिवार हर बच्चे की पहली पाठशाला होता है। बच्चा वही सीखता है जो वह अपने घर के वातावरण में देखता और महसूस करता है। यदि घर का माहौल सकारात्मक हो तो बच्चा आत्मविश्वासी, समझदार और खुशमिज़ाज बनता है। लेकिन अगर घर का माहौल झगड़ों और कड़वाहट से भरा हो तो उसका असर सीधा बच्चे की मानसिकता पर पड़ता है। माता-पिता का आपसी संबंध बच्चों के भविष्य की नींव होता है, इसलिए उनके सामने झगड़ना बच्चों के लिए बेहद हानिकारक है, घर में हर दिन झगड़े और कड़वाहट हो, तो यह बच्चे के दिल और दिमाग पर गहरी चोट करता है।
* बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव :-
जब माता-पिता बच्चों के सामने झगड़ते हैं, तो बच्चे डर और असुरक्षा से भर जाते हैं। उन्हें लगता है कि उनका परिवार टूट सकता है या माता-पिता उन्हें छोड़ देंगे। इस डर की वजह से वे पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाते और उनका आत्मविश्वास भी कम होने लगता है। धीरे-धीरे उनका स्वभाव चिड़चिड़ा हो सकता है और वे दोस्तों व समाज से दूरी बनाने लगते हैं।बच्चा डरपोक और असुरक्षित महसूस करता है।
समाज के प्रति उसका दृष्टिकोण नकारात्मक हो सकता है,वे दूसरों से घुलने-मिलने से कतराने लगते हैं।
* मानसिक और भावनात्मक असर :-
झगड़े का बोझ बच्चों के कोमल दिल पर गहरा असर डालता है। कई बार बच्चे यह सोच लेते हैं कि झगड़े की वजह वे खुद हैं। यह अपराधबोध (guilt) उन्हें भीतर ही भीतर तोड़ देता है। ऐसे बच्चे अक्सर चुपचाप रहते हैं, उनकी हंसी-खुशी खो जाती है और वे अवसाद (depression) की ओर भी बढ़ सकते हैं। बड़े होने पर वे रिश्तों को लेकर असुरक्षित महसूस करते हैं और दूसरों पर भरोसा करने से डरते हैं।बच्चा अकेलापन महसूस करता है।भविष्य में रिश्तों को लेकर डर और अविश्वास बढ़ जाता है।बच्चे बहुत मासूम होते हैं। वे अपने माता-पिता को ही अपना सहारा मानते हैं। ऐसे में जब उनके सामने झगड़े होते हैं, तो उनके दिल में गहरी चोट लगती है। खासकर जब पिता माँ पर हाथ उठाते हैं, तो यह दृश्य बच्चों के दिल को झकझोर देता है।माता-पिता के झगड़े बच्चों के लिए किसी जहर से कम नहीं होते। यह उनके मासूम बचपन को भीतर से तोड़ देता है
यह दर्द इतना गहरा होता है कि उस दिन से जैसे उसका बचपन छिन गया हो। बच्चों के लिए यह केवल माँ को मारना नहीं होता, बल्कि उनके दिल पर ऐसा घाव होता है जो जिंदगीभर नहीं भरता।
ऐसे माहौल में बच्चे असुरक्षित महसूस करते हैं और अक्सर मन ही मन सोचते रहते हैं कि क्या उनकी गलती है जिसकी वजह से यह सब हो रहा है। यह अपराधबोध उन्हें भीतर ही भीतर तोड़ता रहता है।
* समाज और परिवार पर असर:-
बच्चे समाज का भविष्य होते हैं। यदि उनका बचपन डर और झगड़ों में बीतेगा तो वे बड़े होकर या तो बहुत गुस्सैल और आक्रामक बन सकते हैं या फिर दब्बू और आत्महीन। दोनों ही स्थितियाँ न उनके लिए सही हैं और न ही समाज के लिए। इसीलिए माता-पिता को समझना चाहिए कि उनका व्यवहार केवल घर तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे समाज पर असर डालता है। रिश्तों की कद्र करना भूल सकता है।ऐसे बच्चे बड़े होकर रिश्तों से डरने लगते हैं। उन्हें भरोसा करना मुश्किल हो जाता है। यह केवल उनके लिए ही नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए भी चिंता का विषय है।
* समाधान:-
झगड़े किसी भी रिश्ते में हो सकते हैं, लेकिन उन्हें बच्चों के सामने कभी नहीं करना चाहिए। मतभेद हों तो शांति से अकेले में बातचीत करें। बच्चों को हमेशा यह महसूस कराएँ कि वे सुरक्षित हैं और उनके माता-पिता उनसे बहुत प्यार करते हैं। सबसे ज़रूरी बात – पिता को कभी भी माँ पर हाथ नहीं उठाना चाहिए, खासकर बच्चों के सामने। इससे बच्चे टूट जाते हैं और यह दर्द उन्हें जिंदगीभर सताता रहता है।परिवार का माहौल सकारात्मक, संवादपूर्ण और सहयोगी होना चाहिए। यही बच्चों के स्वस्थ विकास की कुंजी है।आवश्यक है कि माता-पिता अपने अहंकार और गुस्से को नियंत्रित करें और बच्चों के सामने एक सकारात्मक उदाहरण पेश करें। बच्चे केवल शब्दों से नहीं, बल्कि माता-पिता के आचरण से सीखते हैं। यदि हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे खुशहाल, आत्मविश्वासी और अच्छे इंसान बनें, तो हमें उनके सामने प्यार, सहयोग और धैर्य का वातावरण देना होगा। यही असली माता-पिता होने का कर्तव्य है।