The Last Bus to Dreams in Hindi Classic Stories by Subodh Kumar Sinha books and stories PDF | The Last Bus to Dreams

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The Last Bus to Dreams


🌙 शीर्षक: सपनों की आख़िरी बस

रात का सन्नाटा धीरे-धीरे रानिपुर की गलियों में उतर आया था। हवा में हल्की ठंडक थी, और सड़क किनारे के बिजली के खंभे टिमटिमा रहे थे। दूर, पुराने बस स्टैंड पर सिर्फ़ एक ही बस खड़ी थी — उस पर धुंधले अक्षरों में लिखा था “Dreams Express – आख़िरी बस”।

रवि वहीं खड़ा था, अपने पुराने, फटे बैग को कसकर पकड़े हुए। उसके चेहरे पर थकान थी, लेकिन आँखों में एक अजीब चमक — जैसे किसी नए सफ़र की शुरुआत होने वाली हो।
उसने शहर की नौकरी छोड़ दी थी — वही नौकरी जो हर किसी के लिए “सुरक्षित भविष्य” की गारंटी थी। लेकिन रवि के दिल में हमेशा एक सपना पलता था — लेखक बनने का।
लोग हँसे, बोले “लेखक बनकर कोई पेट नहीं पाल सकता।”
पर उस रात रवि ने तय कर लिया — अब वो अपनी ज़िंदगी डर के हिसाब से नहीं, दिल के हिसाब से जिएगा।

बस का दरवाज़ा चरमराया और एक बुज़ुर्ग कंडक्टर मुस्कुराते हुए बोला, “आ रहे हो बेटा?”
रवि ने हिचकते हुए पूछा, “लेकिन ये बस कहाँ जाती है?”
बुज़ुर्ग ने मुस्कराकर जवाब दिया — “जहाँ तुम्हारा दिल जाना चाहता है।”

रवि ने कुछ सिक्के उसकी हथेली पर रख दिए। बस के अंदर कुछ लोग पहले से बैठे थे — एक चित्रकार जिसके बैग से रंग झाँक रहे थे, एक संगीतकार जो अपनी टूटी गिटार थामे था, एक नर्तकी जिसकी आँखों में अधूरी चमक थी, और एक छोटा बच्चा जिसकी गोद में स्केचबुक रखी थी।
सबके चेहरे पर एक जैसा भाव था — डर और उम्मीद का संगम।

जैसे-जैसे बस आगे बढ़ी, बाहर का नज़ारा बदलने लगा।
पहले पेड़ और खेत दिखाई दिए, फिर आसमान में तैरते हुए शब्द, उड़ते हुए रंग, और गाते हुए अक्षर। रवि ने खिड़की से झाँकते हुए खुद से कहा — “शायद यही सपनों की दुनिया है।”

कंडक्टर धीरे-धीरे हर यात्री के पास पहुँचा और उनसे कुछ फुसफुसाया।
जब वह रवि के पास आया, तो बोला —
“बेटा, दुनिया को तुम्हारी कहानियों की ज़रूरत है। डर को अपने सपनों का ड्राइवर मत बनाओ। बस को दिल से चलने दो।”

थोड़ी देर बाद बस एक छोटी-सी जगह पर रुक गई। बाहर अलाव जल रहा था, और कुछ बच्चे उसके चारों ओर बैठकर किसी से कहानी सुन रहे थे।
कंडक्टर ने मुस्कुराकर कहा — “यही तुम्हारा स्टॉप है।”

रवि ने हैरानी से पूछा, “पर ये जगह कौन सी है?”
बुज़ुर्ग बोला — “वो जगह जहाँ हर सपना जन्म लेता है — यक़ीन की धरती।”

रवि जैसे ही बस से उतरा, बस गायब हो गई।
उसके हाथ में अब एक नई नोटबुक थी, जिसके पहले पन्ने पर चमकते अक्षरों में लिखा था —
“अपनी कहानी लिखो, दुनिया इंतज़ार कर रही है।”

उस रात उसने अलाव की रोशनी में अपनी पहली कहानी लिखी — अपने दिल से, बिना किसी डर के।
सुबह जब गाँव के बच्चे उसके आस-पास इकट्ठा हुए और उसकी कहानी सुनने लगे, तो रवि को एहसास हुआ —
वो बस उसे सिर्फ़ एक जगह नहीं, बल्कि उसके असली मक़सद तक ले आई थी।
उसने मुस्कुराकर आसमान की ओर देखा और धीरे से कहा —
“धन्यवाद, सपनों की आख़िरी बस।”


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क्या चाहोगे मैं इस कहानी का दूसरा भाग (सीक्वल) भी लिख दूँ — जिसमें रवि की लिखी कहानी उसे मशहूर लेखक बना देती है और उसका सपना सच्चाई में बदल जाता है?