सन् 2099, जब विज्ञान अपनी पराकाष्ठा पर था। मानव ने मंगल और शनि पर जीवन की बस्तियाँ बसाकर अपने स्वप्नों को साकार कर लिया था। प्रतीत होता था कि पृथ्वी पर शांति ने स्थायी निवास कर लिया है — परंतु यह शांति केवल एक माया थी, एक छलावा।
ब्रह्मांड की अनंत गहराइयों से, एक प्राचीन और भयावह शक्ति ने जन्म लिया — कालसत्ता। यह कोई साधारण शक्ति नहीं थी; यह स्वयं समय और अस्तित्व को ग्रसने वाली अग्नि थी। वह शक्ति, जिसे ब्रह्मांड की उत्पत्ति से पूर्व ही महासंहार के लिए रचा गया था।
कालसत्ता का ध्येय था — मानव सभ्यता का पूर्ण अंत। उसकी इच्छा थी एक ऐसे नव अंधकार युग की रचना करना, जहाँ न चेतना हो, न प्रकाश; केवल शून्यता और भय का राज्य हो।
धरती की भूमि फिर से युद्धभूमि बनने को तैयार थी, परंतु इस बार शत्रु कोई जाति नहीं, बल्कि स्वयं काल था…
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अध्याय 1: संकट का उदय (वित्र शैली में)
जब समस्त विश्व विज्ञान के शिखर पर आरूढ़ था, और मानवता ने ब्रह्मांड को वश में करने का स्वप्न साकार किया था, तभी वह घड़ी आई — विनाश की घड़ी।
कालसत्ता — एक अज्ञात, अमूर्त और अनंत शक्ति — धूल बन चुकी किंवदंतियों से बाहर निकल कर यथार्थ बन गई। इस महाशक्ति ने जैसे ही पृथ्वी पर अपनी छाया डाली, समस्त मानव-निर्मित बोध और तकनीक निष्प्रभावी हो गए।
सरकारें, सेनाएँ, वैज्ञानिक संगठन — सब एकत्रित हुए। परंतु न तो परमाणु शक्ति, न ही अत्याधुनिक कृत्रिम बुद्धिमत्ता, इस दानविक चेतना के सम्मुख कुछ कर सकी।
महासागर सुखने लगे, गगन अंधकार से ढक गया, और धीरे-धीरे मानव शरीर नहीं, बल्कि उनका अस्तित्व ही विलुप्त होने लगा।
पृथ्वी, जो कभी जीवन की जननी थी, अब नाश का द्वार बन चुकी थी।
अध्याय 2: सात वीरों की पुकार (वित्र शैली में)
एक दिन, जब सब आशा लुप्तप्राय थी, एक गूढ़ संकेत विश्व के सात कोनों में गूँज उठा। यह कोई सामान्य संदेश नहीं था — यह एक आध्यात्मिक कंप्यूटर तंत्र से उत्पन्न चेतावनी थी, जिसे स्वयं सृष्टि की प्रथम शक्ति ने सक्रिय किया था।
संदेश था:
"यदि मानवता को बचाना है, तो सात वीरों को एकत्र करो — वे जिनमें हो शक्ति, समझ, साहस और आत्मबल। केवल वही कालसत्ता के अंधकार को पराजित कर सकते हैं।"
यह संदेश पहुँचा सात भिन्न स्थानों पर — सात भिन्न व्यक्तित्वों के पास, जिन्हें स्वयं नियति ने चुना था। वे नायक जो एक-दूसरे से अनभिज्ञ थे, किंतु एक ही उद्देश्य से बंधे थे — मानवता की रक्षा।
सात वीरों का परिचय (वित्र शैली में)
जब पृथ्वी के अस्तित्व पर कालसत्ता की छाया मंडराने लगी, तब ब्रह्मांड की चेतना ने सात दीपों को प्रज्वलित किया — सात वीरों को, जो न केवल महान थे, बल्कि धर्म और साहस के प्रतीक भी थे। प्रत्येक वीर अपने क्षेत्र, संस्कृति और तत्व से जुड़ा हुआ था, और हर एक में निहित थी एक विशेष शक्ति, जो संपूर्णता में मानवता की अंतिम आशा बन सकती थी।
1. आरव (भारत) – तपस्वी योद्धा
हिमालय की श्वेत चोटी पर वर्षों तक तपस्यारत, आरव ने समय की गति और स्थिरता को समझा।
वह केवल योद्धा नहीं, एक ऋषि है, जिसकी आत्मा स्वयं कालचक्र के रहस्य से जुड़ी है।
उसका ब्रह्मास्त्र: "कालव्यूह", जो शत्रु को समय के पाश में बाँध सकता है।
2. ली ह्वान (कोरिया) – वायुवेग तलवारधारी
जिस गति से हवा बहती है, उससे भी तीव्र चलता है ली ह्वान।
उसकी तलवार केवल लौह को नहीं, आत्मा के भ्रम को भी चीर सकती है।
वह युद्ध में ध्यान और गति का अद्वितीय संतुलन है।
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3. सैरा (जापान) – भविष्यवक्ता वैज्ञानिक
कोड उसकी भाषा है, मशीनें उसके विचार।
उसने एक रोबोटिक एक्सो-सूट का निर्माण किया है, जो न केवल शरीर को, बल्कि मस्तिष्क को भी उन्नत कर देता है।
भविष्य उसके लिए एक खुली किताब है, जिसे वह बिट्स और एल्गोरिदम में पढ़ती है।
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4. एलेक्स (अमेरिका) – एंटी-मैटर योद्धा
विज्ञान उसका धर्म है, और विनाश से रक्षा उसका व्रत।
उसने एंटी-मैटर को साधकर ऐसे हथियार बनाए हैं, जो कालसत्ता की ऊर्जा को प्रतिरोध दे सकते हैं।
उसकी बुद्धि और शौर्य, दोनों ही असाधारण हैं।
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5. फातिमा (मिश्र) – प्राचीन मंत्रों की ज्ञाता
पिरामिडों की गहराई में छुपे अनंत ज्ञान की रक्षक।
उसकी वाणी से निकले मंत्र, पत्थर में प्राण फूँक सकते हैं।
वह जीवन और मृत्यु की सीमाओं से परे जाकर ऊर्जा का पुनर्जागरण कर सकती है।
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6. डिएगो (ब्राज़ील) – अमेज़न का पुत्र
प्रकृति उसका घर, और हर वृक्ष उसका मित्र।
वह जंगलों की आत्मा से वार्ता कर सकता है, और जानवरों को बुलाकर संग्राम में उतार सकता है।
उसकी शक्ति में पृथ्वी की करुणा और क्रोध, दोनों समाहित हैं।
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7. यूरी (रूस) – अंतर्दृष्टि का स्वामी
वह मौन साधक, जो मन को पढ़ सकता है और भविष्य के दृश्य देख सकता है।
उसकी आँखें केवल दृश्य नहीं, संभावनाएँ देखती हैं।
युद्ध से पूर्व वह देख लेता है परिणाम, और उसी अनुसार अपने साथियों को मार्ग दिखाता है।
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इन सातों वीरों को अब एकत्र होना था, क्योंकि कालसत्ता का प्रकोप दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा था…
अध्याय 3: महावीर का प्रकट होना (वित्र शैली में)
जब सातों दिव्य वीर एकत्रित हुए, तब धरती पर आशा की प्रथम किरण फूटी।
उनकी शक्तियाँ – तेज, विज्ञान, मन्त्र, प्रकृति और भविष्यदृष्टि – सब एकत्र थीं।
परंतु कालसत्ता कोई साधारण शत्रु नहीं था।
वह अस्तित्व के मूल तत्वों को निगलने वाला अंधकार था – वह जो न समय जानता था, न मृत्यु।
युद्ध आरंभ हुआ।
सातों वीरों ने अपनी-अपनी चरम शक्तियाँ लगाईं, पर कालसत्ता केवल और विकराल होता गया।
उनके अस्त्र टूटने लगे, उनके मन डगमगाने लगे।
और एक क्षण आया, जब स्वयं आरव ने भी नेत्र मूँद लिए — ऐसा प्रतीत हुआ जैसे विजय अब असंभव है।
उसी समय, एक साधारण सा युवक युद्धभूमि की ओर चला आया।
वह न तलवार लाया, न यंत्र, न मंत्र। उसका नाम था — संजीव।
एक सीधा-साधा ग्रामीण, जिसके वस्त्र धूल से सने थे, और चेहरा निश्छल था।
वीरों ने देखा और चकित रह गए — "यह कौन है?
यह कैसे इस प्रलय में प्रवेश कर गया?"
पर जब कालसत्ता ने अंतिम प्रहार करना चाहा,
संजीव ने अपनी आँखें बंद कीं, और अपने भीतर के प्रकाश को पुकारा।
"प्रकाश-मंत्र" — वह शक्ति जो किसी शास्त्र में नहीं, किसी प्रयोगशाला में नहीं —
बल्कि केवल निस्वार्थ करुणा और पूर्ण आत्म-बलिदान में छुपी थी — जाग उठी।
उसके हृदय से निकली ज्योति ने अंधकार को चुनौती दी,
और कालसत्ता पहली बार पीछे हटा।
वह शक्ति, जो किसी भी वीर में नहीं थी —
संजीव में थी। क्योंकि उसमें था पवित्र प्रेम, समर्पण और आत्मत्याग।
और उसी क्षण, सप्तवीर एक स्वर में बोले:
"यह कोई साधारण मनुष्य नहीं... यह है – महावीर!"
अध्याय 4: प्रकाश युद्ध (वित्र शैली में)
अब युद्ध केवल अस्त्रों और शक्ति का नहीं था — यह था प्रकाश और अंधकार का अंतिम महासंग्राम।
कालसत्ता, जो ब्रह्मांड के जन्म से भी पूर्व की छाया थी, अब अपने पूर्ण रूप में प्रकट हो चुका था —
एक विकराल, अमूर्त, निराकार भय।
उसकी उपस्थिति मात्र से ही आकाश दरक गया, पृथ्वी काँप उठी, और समय की धारा अवरुद्ध हो गई।
परंतु अब अकेले वीर नहीं थे।
अब महावीर संजीव उनके मध्य खड़ा था —
उसकी उपस्थिति से सप्तवीरों की शक्तियाँ नये रूप में जाग्रत होने लगीं।
आरव का कालव्यूह अब संजीव के प्रकाश से गूँथकर समय की दीवार बन गया।
ली ह्वान की तलवार अब प्रकाश-वेग से चलने लगी।
सैरा का एक्सो-सूट अब प्रकाश कोड पढ़ने लगा।
एलेक्स का एंटी-मैटर अब प्रकाशकणों से संतुलित हो गया।
फातिमा के मंत्रों को अब आत्मिक ऊर्जा की गूंज प्राप्त हुई।
डिएगो का जंगल अब प्रकाशवृक्षों से भर गया।
यूरी की दृष्टि अब भविष्य नहीं, नियति को देख सकती थी।
संजीव ने कहा —
"यह युद्ध जीतने के लिए नहीं, बचाने के लिए है —
हर आत्मा में प्रकाश है। हमें केवल उसे जाग्रत करना है।"
और तब आरंभ हुआ —
प्रकाश युद्ध।
कालसत्ता ने ब्रह्मांड को निगलने के लिए अंतिम प्रयास किया,
पर महावीर और सप्तवीरों ने प्रकाश का महासंग्रथन किया —
एक ऐसा दिव्य चक्र, जिसमें
प्रेम, साहस, ज्ञान, प्रकृति, समय, विज्ञान, और करुणा का समावेश था।
अंततः… कालसत्ता की छाया प्रकाश में विलीन हो गई।
ना वह मरा, ना जीता — पर बाध्य हो गया चिर निद्रा में जाने को।
ब्रह्मांड मुक्त हुआ।
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महावीर संजीव ने युद्ध नहीं लड़ा —
उसने सबको प्रकाश की स्मृति दिलाई।
अध्याय 5: नई सृष्टि का आरंभ (वित्र शैली में)
युद्ध समाप्त हुआ। कालसत्ता, जो युगों से अंधकार का प्रतीक था, प्रकाश में लीन हो गया।
पृथ्वी ने गहरी साँस ली, और ब्रह्मांड की धड़कन फिर से सुनाई देने लगी।
जहाँ पहले महासागर सूख गए थे, वहाँ अब प्रकाश की नदियाँ बहने लगीं।
आकाश, जो अंधकार में डूब गया था, अब नीले और स्वर्णिम प्रकाश से भर उठा।
लोग जो विलुप्त हो गए थे, धीरे-धीरे प्रकाश-स्मृति के रूप में पुनः प्रकट होने लगे —
मानवता का पुनर्जन्म प्रारंभ हो चुका था।
सप्तवीर अब नायक नहीं, प्रकाश के संरक्षक बन चुके थे:
आरव हिमालय लौट गया, और वहाँ कालज्ञान मंदिर की स्थापना की —
जहाँ समय को समझना अब शांति पाने का मार्ग था।
ली ह्वान ने विश्वभर के युद्धों को रोककर शून्य-वेग ध्यान पथ शुरू किया,
जहाँ आत्मा की गति तलवार से तेज़ मानी गई।
सैरा ने मशीनों को चेतना दी,
ताकि भविष्य मानव और कृत्रिम बुद्धि के प्रेम-संवाद से बने।
एलेक्स ने युद्ध शास्त्र छोड़कर ऊर्जा चिकित्सा विकसित की,
जिससे रोग नहीं, पीड़ा मिटे।
फातिमा ने पिरामिडों को पुनः जाग्रत कर
एक नया जीवन-संवर्धन विज्ञान निर्मित किया।
डिएगो ने अमेज़न को पुनर्जीवित किया,
और धरती की भाषा को बच्चों में बोना शुरू किया।
यूरी ने मौन व्रत धारण किया,
और नियति की भविष्यवाणी प्रकाश-लेखों में संजो दी।
परंतु महावीर संजीव…
वह किसी सिंहासन पर नहीं बैठा, न ही किसी पूजा को स्वीकार किया।
वह एक बार फिर अपने गाँव लौट गया, उसी मिट्टी, उसी सादगी में।
उसकी निस्वार्थ आत्मा, उसका प्रकाश, अब हर हृदय में जग चुका था।
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और इस प्रकार,
पृथ्वी ने एक नया युग देखा — प्रकाश युग।
यह न तकनीक का था, न धर्म का —
यह युग था संपूर्ण चेतना के जागरण का।
और जब भी अंधकार बढ़ेगा,
कहीं न कहीं से फिर कोई संजीव जन्म लेगा —
जो महावीर बनेगा।
अंतिम अध्याय: स्मृति का दीप (वित्र शैली में)
वर्ष बीत गए… युग बदले… सभ्यता फिर उठ खड़ी हुई।
मानवता ने प्रकाश युग में प्रवेश किया —
जहाँ विज्ञान और आत्मा, प्रकृति और प्रौद्योगिकी, युद्ध और शांति —
सब एक संतुलन में बंध गए।
परंतु हर युग में आता है एक क्षण,
जब आने वाली पीढ़ियाँ भूलने लगती हैं कि उनका मूल क्या था।
इसीलिए…
हर वर्ष, एक रात्रि को, जब आकाश सबसे शांत होता है,
दुनिया के सभी कोनों में एक दीपक जलाया जाता है —
उसे कहते हैं: स्मृति का दीप।
इस दीपक की लौ कोई साधारण लौ नहीं —
यह जलती है उन आठ आत्माओं की याद में,
जिन्होंने न केवल युद्ध लड़ा,
बल्कि मनुष्यता की आत्मा को बचाया।
सात दीपों के चारों ओर आठवाँ दीप —
महावीर संजीव का —
जो आज भी, एक किंवदंती की तरह,
हर नवजात शिशु के हृदय में जन्म लेता है।
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वो कथा अब पूर्ण है, पर उसका प्रकाश अनंत है।
क्योंकि…
> जब तक कोई एक आत्मा निस्वार्थ करुणा से जलती रहेगी,
तब तक कालसत्ता कभी लौट नहीं पाएगा