*मेरे ख़्वाबों का देस*
*लेखिका: नैना खान*
_(एक अध्याय में विस्तृत हिंदी कथा, उर्दू साहित्य से प्रेरित)_
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*अध्याय: समंदर की पुकार और मोहब्बत का पैग़ाम*
कभी-कभी एक सपना सिर्फ़ सपना नहीं होता। वो एक दरवाज़ा होता है, जो हमें उस दुनिया में ले जाता है जहाँ हर चीज़ की एक रूह होती है—पानी की, हवा की, फूलों की, और यहाँ तक कि पत्थरों की भी। मेरी कहानी भी एक ऐसे ही सपने से शुरू होती है।
मैंने एक रात एक सपना देखा। एक गहरा नीला समंदर था, जिसके किनारे एक छोटा सा गाँव बसा था। उस गाँव का नाम "नूरपुर" था। वहाँ के लोग सादगी से जीते थे, मगर उनके दिलों में मोहब्बत की दौलत थी। हर घर के बाहर फूलों के बाग थे, हर खेत में हरियाली झूमती थी, और हर चेहरे पर मुस्कान थी। वहाँ की हवा में एक अजीब सा सुकून था—जैसे किसी पुराने गीत की धुन।
मैं और मेरा परिवार भी उसी गाँव में रहते थे। अब्बा खेतों में काम करते थे, अम्मी फूलों की देखभाल करती थीं, और मेरी छोटी बहन तितलियों के पीछे भागती रहती थी। हमारा घर मिट्टी का था, मगर उसमें जो गर्मी थी, वो किसी महल से कम नहीं थी। हर सुबह हम सब मिलकर सूरज को सलाम करते थे, और हर शाम चूल्हे के पास बैठकर कहानियाँ सुनते थे।
एक दिन, जब आसमान बादलों से साफ़ था और समंदर की लहरें जैसे हमें बुला रही थीं, हमने तय किया कि आज मछली पकड़ने चलेंगे। हम सब तैयार होकर समंदर के किनारे पहुँचे। वहाँ की रेत कुछ अलग थी—जैसे किसी जन्म की याद हो। पत्थरों के बीच मछलियों के घर थे, और पानी में एक रहस्यमयी चमक थी।
जैसे ही मैंने पानी में हाथ डाला, मछलियाँ खुद-ब-खुद मेरी ओर आने लगीं। छोटी-बड़ी, रंग-बिरंगी मछलियाँ मेरे चारों ओर तैरने लगीं। ऐसा लगा जैसे वो मुझे पहचानती हों। मैंने एक सुनहरी मछली को पकड़ा, जिसकी आँखों में एक कहानी थी। वो मछली बोलती नहीं थी, मगर उसकी आँखों में एक पैग़ाम था—एक दावत थी, एक सफ़र की शुरुआत।
अचानक पानी में एक उजाला फैला और एक दरवाज़ा खुल गया। हम सब उस दरवाज़े से अंदर गए और पहुँचे एक जादुई दुनिया में। वहाँ के दरख़्त बातें करते थे, फूल गाते थे, और मछलियाँ हवा में उड़ती थीं। हर चीज़ में एक नज़्म थी, एक एहसास था। वहाँ की ज़मीन रेशमी थी, और आसमान जैसे किसी कवि की कल्पना।
वहाँ हमें एक बुज़ुर्ग मछली मिली—बाबा नीला। उसने कहा, “तुम्हारा गाँव मोहब्बत का रखवाला है। जब दुनिया में नफ़रत बढ़ती है, तो तुम्हारे जैसे लोग इस दुनिया में आते हैं ताकि मोहब्बत को फिर से ज़िंदा किया जा सके।”
उसने हमें मोहब्बत के बीज दिए और कहा, “इन्हें अपने गाँव में बाँटो। हर बीज एक दिल को नरम करेगा, हर बीज एक रिश्ता जोड़ेगा।” वो बीज कोई साधारण बीज नहीं थे। उनमें यादें थीं, एहसास थे, और वो हर उस दिल को छू सकते थे जो कभी टूटा था।
हम मोहब्बत के बीज लेकर लौटे। गाँव में जब उन्हें बाँटा, तो हर तरफ़ खुशबू फैल गई। रिश्ते जो टूट रहे थे, जुड़ने लगे। दिल जो सख़्त थे, पिघलने लगे। समंदर अब सिर्फ़ पानी नहीं था, वो एक आईना था—जो हमारे दिलों की ख़ूबसूरती दिखाता था।
मगर कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती।
कुछ दिनों बाद, गाँव में एक अजनबी आया। उसका नाम "ज़ाफ़र" था। वो एक मुसाफ़िर था, मगर उसकी आँखों में एक तूफ़ान था। उसने कहा कि वो उस जादुई दुनिया की तलाश में है, जहाँ मोहब्बत ज़िंदा रहती है। मैंने उसे सब कुछ बताया, मगर वो यक़ीन नहीं कर पाया।
मैंने उसे उस सुनहरी मछली की कहानी सुनाई, बाबा नीला का पैग़ाम बताया, और मोहब्बत के बीज दिखाए। तब जाकर उसकी आँखों में नमी आई। उसने कहा, “मैंने बहुत कुछ खोया है। क्या ये बीज मेरे लिए भी हैं?”
मैंने उसे एक बीज दिया। उसने उसे अपने दिल के पास रखा और कहा, “शायद अब मैं फिर से जी सकूँ।”
ज़ाफ़र गाँव में रहने लगा। उसने बच्चों को कहानियाँ सुनाना शुरू किया, बूढ़ों की सेवा की, और हर दिन मोहब्बत बाँटी। धीरे-धीरे, उसका तूफ़ान शांत हो गया। उसकी आँखों में अब एक समंदर था—गहरा, मगर सुकून भरा।
समय बीतता गया। गाँव में एक त्योहार आया—"रूहों का मेला"। उस दिन हर कोई अपने दिल की बात कहता था, और समंदर के किनारे दीप जलाए जाते थे। मैंने भी एक दीप जलाया, और उसमें वो सुनहरी मछली की याद रखी।
दीप समंदर में तैरता गया, और दूर कहीं एक उजाला फिर से फूटा। बाबा नीला की आवाज़ आई, “तुमने मोहब्बत को ज़िंदा रखा। अब ये दुनिया फिर से साँस ले सकती है।”
उस दिन मुझे समझ आया कि मेरा सपना सिर्फ़ मेरा नहीं था। वो एक पैग़ाम था, एक मिशन था। और अब, वो सपना हक़ीक़त बन चुका था।
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*समापन*
"मेरे ख़्वाबों का देस" कोई काल्पनिक जगह नहीं है। वो हर उस दिल में बसता है जो मोहब्बत को समझता है, जो सुकून को महसूस करता है, और जो दूसरों के लिए जीता है। अगर तुमने कभी किसी की आँखों में आँसू देखकर अपना दिल नरम किया है, तो तुम भी उस देस के निवासी हो।
और अगर कभी तुम्हें लगे कि दुनिया सख़्त हो गई है, तो उस सुनहरी मछली को याद करना। वो फिर आएगी, और तुम्हें उस दरवाज़े तक ले जाएगी जहाँ हर चीज़ की रूह होती है।
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