घर की चौखट पर वही भीड़-भाड़ और नाक-उंची बातों का सिलसिला जा रहा था। चाची की छोटी लड़की—मिस्सी—हँसते हुए आई और निधि की ओर झूठी सहजता से बोली,
“अभी आपको पता है एक बात? मेरी फ्रेंड कह रही थी कि तुम्हारे भैया तो बहुत स्मार्ट हैं… निधि भाभी कोई खास नहीं।”
निधि चुप रही। उसने बस सोचा—“क्या यही सब बताना जरूरी है?” पर मिस्सी को यही मज़ा आता था दूसरों की बातों से छेड़छाड़ करना। उसकी सहेलियाँ भी पीछे-पीछे थीं, आँखों में कोई शरारत चमक रही थी। निधि के चेहरे पर हल्का सा कड़वाहट उभर गया, पर उसने कुछ नहीं कहा—क्योंकि जवाब देने की आदत उसमें कब की खो सी गई थी।
फिर एक और बात आई—मिस्सी ने ऊँची आवाज़ में कहा, “हमारे ट्यूशन में एक सर हैं, बहुत हैंडसम। उनकी बीवी भी बहुत सुंदर है, फोटो दिखाऊँ?” उसने मोबाइल निकाला और फोटो दिखाकर हवा में यकीन बिखेर दिया। फिर जोरों से बोली, “मेरी सहेली कृतिका सर से प्यार करती है—सर कहते हैं उसकी बीवी कुछ ठीक नहीं रहती।”
निधि को तरह-तरह के विचार चुभने लगे। उसके मन में खटकती बात यह थी कि इतने छोटे-छोटे बच्चे कैसे इतनी उथली बातें फैलाते हैं? 15–16 साल की लड़कियाँ, जो अभी जीवन की नींव बनाती हैं, वे अपने रिश्तों को खेल समझकर कैसे ख़ुद की इज्ज़त कमजोर कर रही थीं? मिस्सी और उसकी दोस्ती का अंदाज़ ऐसा था मानो सब कुछ सामान्य हो—पर निधि के लिए यह सब शर्मनाक और खतरनाक था।
मिस्सी आगे बोली, “कल तो हमारी कृतिका अपने बॉयफ्रेंड से… अरे, वो बाथरूम में किस ... और फिर… अरे, पागल हो जाऊँ मैं! दोनों ने क्या कर दिया!” वो हँस दी, और बाकी लड़कियाँ भी ठठाकर हँसीं। उनको समझ नहीं आया कि किसी की ज़िंदगी में यह किस तरह का नुकसान कर सकता है—गलत राह पर धकेलना, बदनामी, और जीवन भर की छाया।
निधि अंदर से काँप उठी। उसने देखा कि ये बच्चे, ये नन्हें-नरम दिल जैसे धीरे-धीरे कठोर और ज़हरीले बन रहे हैं—और उनके पीछे कौन? समाज की उथली नज़ारे, मोबाइल की दुनिया, और अनियंत्रित बातें। वह सोचने लगी—“क्या सुंदरता ही सब कुछ है? क्या लोग सिर्फ़ बाहरी रूप से ही किसी को परखते हैं?”
इसी माहौल में निधि की सास ने एक और बात झोंक दी—“अरे, सुधांशु की बचपन की दोस्त है—उसकी कुछ तस्वीरें भी हैं। वो कहती है सुधांशु की गर्लफ्रेंड है। अगर किसी ने मेरे बच्चे को कुछ कहा तो मैं फाड़ डालूँगी!” उसका सुर मातहत मगर दिखावटी था—जैसे वह अपने बेटे की हिफाज़त की मिस्ट्री चाहती हो। कुछ औरतें दहाड़ मारने वाली माँ जैसी बनकर कह देतीं—“हम अपने बेटे का बचाव करेंगे।” पर असलियत में सब चालाकी और दंभ से भरा हुआ था।
निधि सुनकर खामोश रही। उसे डर था कि जो बातें इस तरह हवा में उड़ती हैं, वे सुधांशु के प्रति लोगों की धारणा बना देंगी—और यही दुष्प्रचार धीरे-धीरे रिश्ता खोखला कर देता है। सुधांशु का एटीट्यूड भी उसको जकड़ता—कभी प्यार भरे वादे, कभी ठुकराने वाली बातें। वह बार-बार कहता, “अब से नहीं पियूँगा—तुम्हारी कसम।” पर हर बार वही हुआ—वादा टूटा। ये चक्र निधि के मन में गहरा निशान छोड़ गया था।
वह याद करने लगी कि कैसे सुधांशु अपने दोस्तों के बीच कभी-कभी उसकी बुराई कर देता—“कम दिमाग है, थोड़ी कम अकल है।” ये शब्द सिर्फ़ मज़ाक नहीं थे; वे उसकी आत्मसम्मान को कटघरे में खड़ा कर देते थे। और घर की महिलाएँ, जो इसे सुना कर हँसतीं, बस थोड़ा-सा सिर हिलाकर बात बदल देतीं। कोई नहीं रोका, कोई नहीं समझा।
निधि के भीतर की बेचैनी बढ़ती ही चली गई। वह सोचती—“अगर लोग ऐसे ही मेरे बारे में गंदा मज़ाक करेंगे, तो मेरा क्या होगा? क्या मेरा मान-सम्मान इसी तरह मिटता जाएगा?” उसकी आँखों में उदासी थी, पर वह किसी को यह दिखा नहीं सकती थी। उसकी गरीबी-सी मजबूरी, सामाजिक ताने और पति की अनभिज्ञता—सब मिलकर उसका आत्मबल कम कर रहे थे।
और फिर सुधांशु की वही बुरी आदत—सिगरेट—का वादा। “अगली बार से नहीं पिऊँगा,” वह कहता, और वही बार-बार करता। निधि हर बार उम्मीद करती, फिर अंदर टूटती। उसकी उम्मीदें अब केवल देवांश और ईश्वर तक सिमट कर रह गई थीं। बच्चे की हँसी ही उसकी दुनिया की एकमात्र रोशनी थी। मगर जाहिर है, बाहरी शोर-शराबे और चुहल-छल्ल के कारण यह रोशनी भी मद्धम पड़ती जा रही थी।
दिन बीतते गए—मिस्सी की बातें, ट्यूशन की अफ़वाहें, और सुधांशु की दोस्ती के बहाने उठती जिज्ञासा—सब कुछ निधि के मन को खोखला कर गया। उसके भीतर की चिंता इतनी बढ़ गई कि रातों की नींद उड़ने लगी, आँखों के नीचे काले घेरे उभर आए। पर निधि ने हार नहीं मानी—उसने अपनी चुप्पी को हथियार बना लिया। बाहर से शांत, भीतर से लड़ती—यही उसकी नई पहचान बन गई थी।
उसने सोचा—“अगर मैं चुप बैठकर हर ताने को सहती रहूँगी तो ये बातें रुकेंगी नहीं। पर बोलने पर जो हाल होता है, मैं उसे भी झेल चुकी हूँ।” वह समझती थी कि उसके पास कमजोर सा आवाज़ है, पर वही आवाज़ कभी सही समय पर बुलंद हो सकती है। अभी नहीं—पर धीरे-धीरे—निधि ने ठाना कि वह अपने बच्चों के लिए और अपने आत्मसम्मान के लिए खड़ी होगी।