Sanskrti ka Pathik - 1 in Hindi Travel stories by Deepak Bundela Arymoulik books and stories PDF | संस्कृति का पथिक - 1

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संस्कृति का पथिक - 1

"संस्कृति का पथिक"

प्रस्तावना

हर यात्रा केवल दूरी तय करने का नाम नहीं होती। कभी-कभी वह यात्रा मन, आत्मा और अनुभवों की होती है, जो हमें जीवन के भीतर गहराई से झांकने का अवसर देती है। मेरी यात्रा भोपाल से शुरू होकर भोजपुर, भीमबेटका, साँची, उज्जैन, ओंकारेश्वर, महेश्वर, मांडू, दतिया, ग्वालियर, ओरछा, चित्रकूट, अमरकंटक और जबलपुर तक फैली यह यात्रा, केवल भौगोलिक स्थलों की यात्रा नहीं, बल्कि इतिहास, धर्म, प्रकृति और आत्मिक अनुभवों का संगम है।

इस पुस्तक में प्रस्तुत यात्रा वर्णन केवल स्थलों का विवरण नहीं है। यह उन अनुभवों, भावनाओं और स्मृतियों का संग्रह है, जो मैंने प्रत्येक स्थल पर जाकर मैंने स्वयं महसूस की।
प्राचीन मंदिरों की भव्यता, नदियों की पवित्रता, घाटियों की शांति, झरनों और पहाड़ियों की ऊर्जा, सब मिलकर मेरे भीतर स्थिरता, भक्ति और रोमांच का अद्भुत मिश्रण छोड़ गए।
सच्ची यात्रा वह है जिसमें हम भीतर उतरकर अनुभव लेते हैं, जहाँ हम स्थिरता, भक्ति और आत्मिक ऊर्जा का अनुभव कर सकते हैं।
इस पुस्तक का उद्देश्य पाठकों को न केवल स्थलों का मार्गदर्शन देना है, बल्कि उन्हें यह अनुभव कराना है कि हर मंदिर, हर घाट, हर नदी और हर झरना हमें जीवन, भक्ति और स्थिरता के अमूल्य अनुभव देता है।
संस्कृति का पथिक लिखने का मेरा उद्देश्य
 केवल स्थानों और स्थलों का वर्णन प्रस्तुत करना नहीं है। यह पुस्तक भारत की समृद्ध सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहर को समझने और अनुभव करने की यात्रा का दस्तावेज़ है। इस पुस्तक के माध्यम से मैं पाठकों को यह संदेश देना चाहता हूँ कि:

1. यात्रा केवल कदमों से नहीं होती, यह मन, आत्मा और अनुभव से तय होती है।
2. भारत के ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल केवल देखने के लिए नहीं हैं; ये हमारे संस्कृति और इतिहास की जीवित गवाहियाँ हैं।
3. प्रत्येक यात्रा हमें अपने संस्कृति और परंपराओं से जोड़ती है, हमें भक्ति, सम्मान और आत्मिक स्थिरता का अनुभव कराती है।
4. जरूरी नहीं कि आप वही रास्ता अपनाएँ जो मैंने तय किया; अपने प्रदेश और आस-पास के स्थल देखकर भी आप अपनी यात्रा और अनुभवों से संस्कृति को जीवित रख सकते हैं।
मेरी इस यात्रा के माध्यम से संस्कृति और इतिहास की महत्ता को समझाना, उन्हें अपने अनुभवों के माध्यम से सीखने और साझा करने के लिए प्रेरित करना है। "संस्कृति का पथिक" यही संदेश देता है कि भारत की संस्कृति और इतिहास को समझने और संरक्षित करने में हम सभी की जिम्मेदारी है, और यह जिम्मेदारी हर यात्रा और अनुभव के माध्यम से पूरी की जा सकती है। तो आइये मित्रों यत्रा शुरू करते हैं.

मेरी यह यात्रा भोपाल से आरंभ हुई — झीलों की नगरी, जहाँ आधुनिकता और परंपरा एक साथ साँस लेती हैं। सुबह की पहली किरणों के साथ जब मैंने कार का इंजन चालू किया, तो भीतर एक अजीब-सी शांति थी — जैसे मन पहले से ही जानता हो कि आज की यात्रा सिर्फ सड़कों की नहीं, बल्कि आत्मा के गहराईयों की होगी और मेरी पहली मंज़िल थी भोजपुर, भोजपुर भोपाल से लगभग 28 किलोमीटर की दूरी पर, विंध्य पर्वतों की गोद में स्थित हैं भोजपुर का वातावरण जैसे किसी अनादि काल का आभास कराता है। रास्ते में खेतों की हरियाली, पत्थरों के बीच से निकलती हवा, और दूर कहीं घंटियों की ध्वनि सब कुछ मिलकर ऐसा लगता हैं मानो प्रकृति स्वयं शिव का जप कर रही हैं, जैसे-जैसे मैं भोजपुर के मंदिर के निकट पहुँचा, एक अद्भुत निस्तब्धता ने मुझे घेर लिया। सामने वह प्राचीन, अधूरा किंतु अलौकिक भोजेश्वर महादेव मंदिर जिसे राजा भोज ने बनवाया था।
कहा जाता है कि राजा भोज केवल एक शासक नहीं, बल्कि एक दार्शनिक और धर्मज्ञ थे। उन्होंने इस मंदिर का निर्माण उस विराट शिवलिंग की स्थापना के लिए कराया जो आज भी संसार के सबसे विशाल एकाश्म (एक ही पत्थर से बने) शिवलिंगों में से एक है। मैंने जब उस 12 फुट ऊँचे और 7.5 फुट व्यास वाले शिवलिंग के सामने खड़े होकर दर्शन किये, तो लगा जैसे समय ठहर गया हैं वह शिवलिंग केवल पत्थर नहीं वह शिव जी की उपस्थिति और अस्तित्व का प्रतीक था. उसकी ऊँचाई मानो यह कह रही थी कि "जो खोज भीतर की गहराइयों में उतरकर करेगा, वही ऊँचाइयों तक पहुँच सकेगा।”मुझे उस क्षण लगा कि भोजपुर केवल एक ऐतिहासिक स्थान नहीं, बल्कि राजा भोज के आत्मज्ञान का स्मारक है। यहाँ का हर पत्थर जैसे कह रहा हो- "जब तक मन का निर्माण अधूरा है, तब तक मंदिर भी अधूरा है।" मैंने कुछ देर आँखें मूँदीं, और भीतर से एक भाव उठा.“शिव केवल पूजनीय नहीं, वे चेतना का स्वरूप हैं जहाँ अहंकार समाप्त होता है, वहीं से शिव आरंभ होते हैं।”विशाल शिव लिंग के दर्शन करने के बाद मैं शिवालय के बाहर आया तो हवा में मुझे न केवल इतिहास की गंध मिली और अपने भीतर के शिवत्व की झलक भी दिखी.

क्रमशः