bahut purani bat kahne me swatntr ka lahza swatantr in Hindi Book Reviews by ramgopal bhavuk books and stories PDF | बहुत पुरानी बात कहने में स्वतंत्र का लहजा स्वतंत्र

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बहुत पुरानी बात कहने में स्वतंत्र का लहजा स्वतंत्र

बहुत पुरानी बात कहने में स्वतंत्र का लहजा स्वतंत्र

 

               रामगोपाल भावुक

 

डॉ. स्वतंत्र कुमार सक्सेना की नई कृति पढ़ने को मिली। देखा किस विषय पर आपने कलम चलाई है, कृति में विषय नदारत था। यह उपन्यास है अथवा संस्मरण। कथानक पर दृष्टि डाली मैं नाम का पात्र सामने आ गया। चलो पता तो चला कि यह उन्होंने अपना संस्मरण लिखा है।

 डॉ. स्वतंत्र कुमार सक्सेना एक सरल व्यकितत्व के धनी हैं। सरलता उनके व्यतित्व में कूट कूट का भरी है। वे जैसे दिखते हैं वे बैसे ही हैं। उनमें बनावटीपन का अभाव है। उन्हें जो बात कहना हैं, सरलता से कह जाते हैं।

                ऐसी ही बातें उन्होंने इस कृति रखीं हैं। उनके मैं के आसपास जो परिवेश विखरा पड़ा था, उसी का सरलता से इस कृति में वर्णन किया है। कृति के शुरू-शुरू में तो लगा कि उन्होंने डबरा नगर के उत्पत्ति से लेकर आज तक का इतिहास इस कृति के माध्यम से कह डाला है। मेरा भावुक नाम लेकर नगर के नामकरण को लेकर तर्क संगत ढ़ग से अपना बिरोध दर्ज कराया है। इसमें मेरा अपना तर्क है और उनका अपना।जो बातें उनके अनुभव में आई हैं उन्होंने उन्हें ही शब्दों में पिरोया है। इस माध्यम से उन्होंने आज देश में जिन शहरों के नाम बदले जा रहे हैं उनकी सार्थकता-असार्थकता की ओर  पाठकों का ध्यान का आकर्षित किया है।

                 वे जनवादी कवि होते हुए सन् उन्नीस सौ पेंतीस से चालीस के समय में माधवराव सिंधिया के जन  हितकारी कार्यों की चर्चा करने लगते हैं। उसके बाद वे अपने मित्र वेदराम मनमस्त जी  के गाँव की बात करने लगते हैं। उसके बाद वे फिर उसी नवविकसित नगर की चौड़ी की जा रहीं सड़कों की  चर्चा करने में लग जाते हैं।

               कृति के बारहवे पृष्ठ पर वे स्वयम् डबरा नगर के अस्पताल में नौजवान डॉWक्टर के रूप में ड्यूटी पर उपस्थित होते हैं। यहाँ उनका यह संस्मरण इसी अस्पताल के इर्द- गिर्द मैं नाम के पात्र के रूप में रहकर, व्यवस्था की शल्य क्रिया करने में लग जाते हैं। वे एक शराबी डॉक्टर की कथा भी लिखने में सफल रहे हैं ।

         इस नगर के जाने पहिचाने डॉ. वर्मा नाम के डॉWक्टर का नाम बदलकर सामने ले आते हैं। उस अस्पताल के प्रसिद्व कम्पाउन्डर खत्री बाबू भी सही नाम से  संस्मरण में दिखाई दे जाते हैं।

                डॉWक्टर वर्मा क्षेत्र के जमीदार परिवार में से थे,लेकिन उनके स्वभव में जमीदारी की बू नहीं थी। फिर भी बनठन कर रहने के शौकीन थे। लेखक ने उनके बहाने जमीदारी प्रथा की परम्पराओं  का  सटीक उल्लेख  किया है।

        उनके अस्पताल में मेरे परिचित रहे डॉWक्टर कृष्ण गोपाल जी का भी उनकी कलम से उनके स्वभाव का बडा ही सटीक वर्णन कर उनके स्वभाव की खूबियों को समाज के सामने रखा है। वे जाति सम्प्रदाओं से प्रथक व्यक्त्त्वि रहे। अस्पताल के वातावरण में नगर की राजनीति कैसे पग पसार रही है, कैसे दादागिरी करने वाले अस्पताल में आकर डॉWक्टर और नर्स को प्रताड़ित करते रहते हैं, यह बर्णन करने में भी लेखक माहिर रहे हैं। जहाँ-जहाँ मैं नाम के डॉWक्टर को जाना पड़ा वही वहीं उनके पीछे पीछे यह रचना चलती रही।  जब तक वे डबरा अस्पताल में रहे रचना वही अपना रूप दिखाती रही। जब वे मानसिक अस्पताल में ग्वालियर चले जाते हैं तो रचना वही की होकर रह जाती है। अन्त में वे ग्वालियर के अस्पताल में स्थानांतरित हो जाते हैं, तो रचना उनके साथ वहीं के पात्रों की होकर रह जाती है। वहीं से उनके पात्र विदेश में चले जाते हैं तो रचना में विदेशी संस्कृति का आनन्द भी दे जाती है। मरीज और नर्स में होने वाले स्वाभाविक विवादों को भी रचना में खूब स्थान मिला है। इससे रचना रोचक बन गई है।

                इस कृति में मैं नायक को छोड़कर नायिका की तलाश में भटकता रहा। संस्मरण के आखिर में जाति और सम्प्रदाय  एवं देश विदेश की सीमा से ऊपर उठकर रोचक प्रेम प्रसंग से रचना में रोचकता आ गई है। जिसका निर्वाह लेखक ने कृति के अन्त तक किया है। लेखक ने स्वयम् दृष्टा बनकर उन घटनाओं का सरलता पूर्वक लेखन किया है इसके लिये वे बधाई के पात्र है।

      कृति में थोड़ी लेखन की नई तकनीकि का उपयोग किया होता तो रचना खण्डों-उपखण्डों में बटकर पाठक को विराम देती चलती तो पाठक को थोडा सोचने के लिये समय मिल जाता।

     इसके बाबजूद कृति रोचक, पठनीय एवं संग्रहणीय है। कृतिकार स्वतंत्र जी इसके लिये बधाई के पात्र है।

कृति का नाम- बहुत पुरानी बात........।।

रचनाकार-स्वतंत्र कुमार सक्सेना

मूल्य-250/- रु मात्र

प्रकाशक-लोकजतन,13-बी,पद्मनाभ नगर

भोपाल (म. प्र.) 462023

प्रकाषन का वर्ष- 2025

समीक्षक- रामगोपाल भावुक

9423717707,7880554097