आकाश बिजली से चमक रहा था।
काले बादल गरज रहे थे, आँधी–तूफ़ान का प्रकोप था।
एक पुराने खंडहर के बीच एक तरफ़ आग भड़क रही थी,
तो दूसरी तरफ़ पानी बह रहा था — जैसे प्रकृति के दो तत्व — अग्नि और नीर — एक दूसरे से टकरा रहे हों।
लाल वस्त्र पहने एक युवा तलवार उठाए खड़ा था।
उसका चेहरा कसक से भरा था, आँखों में दर्द था।
उसने अपनी तलवार सीधा एक और युवा के पेट में घुसा दी —
वह युवा नीला वस्त्र पहने था, उसका नाम था — नीर।
अग्नि (काँपते हुए स्वर में):
"मुझे माफ़ कर दो, नीर... मेरे पास सिर्फ़ एक ही रास्ता था सब कुछ ख़त्म करने का... मुझे माफ़ कर दो।"
नीर ज़मीन पर घुटनों के बल गिर जाता है।
आँखों से आँसू बह रहे हैं... पर चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान है।
उसकी साँसें धीमी हो रही हैं...
नीर (मुस्कुराते हुए):
"अगर मेरी मृत्यु इसी काल में लिखी थी, तो यह मेरा सौभाग्य है कि वह तुम्हारे हाथों हो...
मुझे कोई दुख नहीं, अग्नि।
बस एक कसक है... कि जो कहना चाहता था, वो कह नहीं सका...
या तुम समझ नहीं पाए..."
"पर मुझे सुख है कि आख़िरी पल में भी मैं तुम्हारे पास हूँ...
अपने हाथों से दी गई मृत्यु से मैं तुम में हमेशा जीवित रहूँगा...
मुझे भूल तो नहीं जाओगे ना, अग्नि...?"
अग्नि बस नीर की आँखों को देखता है...
कुछ कह नहीं पाता...
नीर की साँस रुक जाती है... और उसका शरीर शांत हो जाता है।
🌫️ ...कुछ साल पहले...
(गुरुकुल के दिन...)
एक विशाल वन के बीच एक आध्यात्मिक गुरुकुल बना था —
जहाँ बाँस और घास से बनी कुटियाएँ थीं,
कहीं छोटी छोटी तालाब थीं, जिनमें कमल के फूल खिले थे।
एक तरफ़ अखाड़ा था, तो दूसरी तरफ़ तलवारबाज़ी का मैदान।
एक तरफ़ पुष्पों का उद्यान, तो एक और योग–शिक्षा का विशाल क्षेत्र।
सब तरफ़ वेद–मंत्र गूंज रहे थे।
पानी के ऊपर बनी एक विशेष कुटिया में बैठते थे
आचार्य विश्रयण, इस गुरुकुल के सर्वश्रेष्ठ गुरु।
उनकी आयु ६० के आसपास थी, लेकिन उनकी आँखों में ज्ञान और तेज़ की ज्वाला थी।
बादल गरज रहे थे, हल्की सी बारिश हो रही थी। गुरुकुल में अग्नि तलवार चलाने का अभ्यास कर रहा था। आसमान में बिजली कड़क रही थी, हवाएं तेज चल रही थीं। गुरुकुल के अखाड़े में अग्नि अपनी तलवारबाज़ी का अभ्यास कर रहा था। उसका ध्यान सिर्फ अपनी तलवार के वार पर था। उसका हर एक वार दुश्मन का अंत करने की ताकत रखता था।
तभी कहीं से पैरों की आहट गूंजी। नीर अपनी मस्ती में खरगोश के पीछे भाग रहा था। अचानक उसका पैर फिसला और वह अग्नि से जा टकराया। दोनों एक साथ गिर पड़े।
बादल से जैसे पानी की बूंदें गिरने लगी हों, दोनों एक-दूसरे को देखते रहे। समय जैसे थम सा गया। नीर और अग्नि को कुछ धुंधले चित्र नजर आए, कुछ धुंधला सा दिखा। दोनों एक-दूसरे को कुछ देर तक देखते रहे।
तभी नीर के पीछे उसके गुरुकुल के विद्यार्थी आए और बोले, "तुम ठीक तो हो न, नीर?"
अग्नि ने नीर को धक्का देते हुए कहा, "अग्नि... कौन हो तुम? तुम दिखाई नहीं देते। हम तलवारबाज़ी का अभ्यास कर रहे थे। यहाँ तलवारबाज़ी का अभ्यास चल रहा है। तुमने हमारे अभ्यास में बाधा उत्पन्न की है। अब यहाँ से तुरंत चले जाओ, वरना..."
नीर मज़ाकिया स्वभाव में बोला, "अरे अरे, आपको चोट तो नहीं लगी, छत्रिय राजकुमार? हमें तो पता ही नहीं था कि आप तलवारबाज़ी का अभ्यास कर रहे हैं। हमें तो लगा कोई घमंडी अपने घमंड का प्रदर्शन कर रहा था। वैसे चाचा, हमारा खरगोश आपकी ओर भागता हुआ आ गया और हम आपसे टकरा गए। वैसे महाशय, आपका क्या नाम है? ज़रा बताने का कष्ट करेंगे आप?"
अग्नि गुस्से में, अपने गुस्से को रोकते हुए बोला, "हमारा नाम अग्निवीर है। और तुमने हमारे अभ्यास में बाधा उत्पन्न की है। अब यहाँ से शीघ्र चले जाओ, वरना..."
नीर बोला, "अरे अरे, थोड़ा रुको! जाते जाते अपना क्रोध संत कर लो, राजकुमार अग्नि। जैसा आपका नाम है, वैसे ही आप अग्नि जैसे जल रहे हो। बस हमारे खरगोश के लिए थोड़ा ध्यान दो। आओ मेरे प्यारे खरगोश, मेरे साथ चलो, वरना किसी का गुस्सा तुम्हें सच में जला देगा।"
हँसते हुए नीर वहाँ से चला गया, लेकिन अग्नि उसे बस देखता रहा। थोड़ी दूर जाने के बाद नीर पीछे मुड़ा और अग्नि की ओर देखकर मुस्कुराया। मगर अग्नि के चेहरे पर कोई भाव नहीं था। वह बस उसे देखता रहा, जैसे उसके मन में कोई उलझन हो। उसकी आँखें जैसे किसी प्रश्न का उत्तर जानना चाहती हों।
लेकिन अभी वह एक बच्चा था, उसे कुछ समझ नहीं आता था। वह बस अपने अभ्यास पर ध्यान देता था। और इसी सब में दोनों की छोटी-मोटी टकराहटें होती रहती थीं। वे दोनों कुछ नहीं समझ पाते थे। मगर गुरु वृषण तो सब जानते थे। इन्हीं सबके बीच उनके गुरुकुल में लालन-पालन के साथ-साथ योग शिक्षा, शास्त्र ज्ञान, वेद, उपनिषद एवं छत्रिय धर्म का ज्ञान दिया जाता था। अब बस उन्हें छत्रिय धर्म के अनुसार वीरता की शिक्षा पाना बाकी था...
गुरुकुल में अब उन्हें इन सबका ज्ञान प्राप्त हुए 10 साल निकल चुके थे। अब नीर और अग्नि के साथ-साथ गुरुकुल के सभी शिष्य अपनी युवावस्था में आ चुके थे। वे सब अब 20 साल के हो चुके थे...