alochna ke ghere me ram gopal bhavuk in Hindi Book Reviews by ramgopal bhavuk books and stories PDF | आलोचना के कठघरे में कथा कार राम गोपाल भावुक

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आलोचना के कठघरे में कथा कार राम गोपाल भावुक

आलोचना के कठघरे में कथा कार राम गोपाल भावुक
संपादन---श्री राज नारायण बोहरे
प्रकाशन----लोकमित्र प्रकाशन
एक अरसा से राम गोपाल भावुक जी साहित्य सृजन में रत हैं ।उन्होंने बहुत से उपन्यास कहानियां कवितायेँ सृजित कीं हैं हर विधा में हाथ आजमाया और अपने क्षेत्र की आंचलिक भाषा को साहित्यिक सम्मान दिलाया मैं भ्रम में था कि मैंने भावुक जी का सम्पूर्ण साहित्य पढ़ डाला अब किसी से भी उनके बारे में अधिकारिक रूप से चर्चा कर सकता हूँ। उनके साहित्य की आलोचना कर सकता हूँ ।बहस कर सकता हूँ उनके साहित्य पर कहीं भी व्याख्यान दे सकता हूँ ।पर जब यह पुस्तक मेरे हाथ आई तब ऊँट पहाड़ के नीचे आया ।मैंने उनका सारा साहित्य मैंने नहीं पढ़ा उसका केवल एक छोटा सा भाग पढ़ा । जब अन्य वरिष्ठ आलोचकों के उनके साहित्य के बारे में विचार व्याख्याएं पढ़े ,तब पता लगा उनके साहित्य के बहुत से पक्षों के बारे में कतई अनभिग्य निकला। मेरा अहम् गल कर सारी बर्फ पानी में बदल चुकी थी,मैं तो निरा अल्पग्य निकला। मुझे अपने पर क्रोध आया, मैं अपने में शर्म से डूब गया पर फिर हंस पड़ा, पगले ये तो एक मौका है फिर से भावुक जी से सत्संग करने की इच्छा जाग उठी ।उनके लेखन की परिधि में कई चरित्र ।लोग जब महात्मा तुलसी दास की प्रशंसा आलोचना में व्यस्त थे तब वे रत्नावलि से पाठकों का परिचय करा रहे थे।उस मध्य युग में उसे पति रहते हुए भी सारी उम्र अकेले काटना पड़ी सामाजिक उपेक्षा सहन करना पड़ी संघर्ष करना पड़ा ।इसका मार्मिक चित्रण भावुक जी अपनी कलम से उकेर रहे थे । पर उनकी नायिका विद्रोह नहीं करती नहीं करती वह पतिव्रता है उन्हें सम्बल प्रदान करती है ।तो दूसरी तरफ उनकी नायिका अम्रिता है जो एक अनजान गांव से आकर एक खुशहाल किसान का घर उनकी गृह सेविका बन जाती है। और समय के फेर से विधायक मंत्री बन जाती है। वह सबका सह्योग लेती है, जिसमें गुंडे अपराधी आर्थिक भ्रष्ट सभी हैं ,और सफल होने पर उन्हीं भ्रष्ट अपराधी गुंडों का समर्थन सहयोग करती है। पर समाज सेवा दया कृपा का आवरण ओढ़े रहती है ।
जब सरकारें लव जिहाद के खिलाफ कड़े क़ानून बना रहीं हैं तत सम्बन्धी कड़े क़ानून बना रहीं हैं ऐसे में भावुक जी अंतर्धार्मिक विवाह का झंडा उठाये हैं उनके नायक नायिका अंतर धार्मिक विवाह रचाते हैं भावुक जी इस अभियान को तार्किकता प्रदान करते हैं ।
उनकी एक और सशक्त कहानी आज की स्त्री है जिसमें नायिका अपने पिता से विद्रोह करती है जब उसका नया पति सास ससुर उस पर नौकरी छोड़ देने का दबाव बनाते हैं तो वह अपने पति के सामने ही ससुराल के घर से अपने एक साथी की मोटरसाइकिल पर बैठ कर अपने कार्यस्थल की ओर चल देती है ।
नंदी के वंशज कहानी में भावुक जी की चिंता का क्षेत्र केवल मानव तक ही सीमित नहीं है आज के मशीनी युग में एक किसान का जवान बेटा अपनी बैल जोड़ी को जब अनुपयोगी समझ कर उन्हें घर से निकाल देता है तो भावुक जी जो उस किसान की बेचैनी का चित्रण करते हैं वह किसी भी संवेदन शील ह्रदय को बेचैन कर देता है ।
वे अपने अराध्य राम को शम्बूक वध के आरोप से मुक्ति दिलाने के लिए कहाँ कहाँ से तर्क ढूढते हैं न जाने कितने उद्धरण प्रस्तुत करते हैं पूरा जोर लगते हैं कितने सफल होते हैं? यह मैं सुधि पाठकों पर छोड़ता हूँ।
श्री राज नारायण बोहरे ,स्वर्गीय श्री के बी एल पांडे,श्री महेश कटारे जी और भी बहुत सारे वरिष्ठ साहित्यकारों ने उन पर आलोचनात्मक लेख लिखे ।जिससे उनका साहित्य के बहुत से छिपे पक्ष उजागर हुये।मुझे उनका ‘गूंगा गांव’ अभी भी बहुत श्रेष्ठ क्रिति लगती है।फिर रत्नावलि महाभारत का उपेक्षित पात्र पर एकलव्य रचा ,’शम्बूक’’ लिखकर अपने आराध्य राम को शम्बूक वध से दोष मुक्त करने का भगीरथ प्रयास।वर्तमान राजनीति पर व्यंग्य करता उनका उपन्यास’ लोकतंत्र के वारिस’ तो बहुत चर्चित हो रहा है।उनकी कलम ने ऐसे बहुत से चमत्कार किएहैं उनके सृजन के प्रति मेरी शुभकामनायें उनकी कलम ऐसे ही निरंतर ऐसे ही चलती रहे ।
स्वतंत्र कुमार सक्सेना