Last journey - but together forever in Hindi Moral Stories by Raju kumar Chaudhary books and stories PDF | आखिरी सफर - मगर हमेशा के लिए साथ

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आखिरी सफर - मगर हमेशा के लिए साथ


❤️ आख़िरी सफ़र – मगर हमेशा के लिए साथ ❤️

कोर्ट की सीढ़ियाँ उतरते हुए उसकी आँखें भारी थीं। आज दस साल के रिश्ते को काग़ज़ के कुछ पन्नों ने खत्म कर दिया था।
पति ने धीरे-धीरे कदम बढ़ाए और बाहर खड़ी एक ऑटो में बैठ गया। मन अंदर से खाली-सा हो चुका था।

पर किस्मत का खेल देखिए – पीछे से वही महिला भी ऑटो में बैठ गई।
वही महिला, जो कभी उसकी दुनिया थी… उसकी पत्नी रौनक।

ऑटो चल पड़ा। दोनों एक-दूसरे के सामने चुप बैठे थे।
माहौल इतना भारी था कि आवाज़ गले तक आकर रुक जा रही थी।

पति ने कातर दृष्टि से उसकी ओर देखा और धीमे स्वर में बोला –
“एलिमनी की रकम दो-तीन महीने में दे दूँगा। घर बेच दूँगा… तेरे लिए ही बनाया था।
तु अब मेरी ज़िंदगी में नहीं रही, तो घर का क्या करूँगा?”

रौनक ने तुरंत जवाब दिया –
“नहीं! घर मत बेचना।
मुझे पैसे नहीं चाहिए। मैं अब प्राइवेट जॉब कर रही हूँ। मेरा और मुन्ने का गुज़ारा हो जाता है।”

इतना कहते हुए उसकी आँखें भीग गईं।

अचानक ऑटो ने तेज़ ब्रेक मारा।
रौनक का सिर सामने की लोहे की रेलिंग से टकराने ही वाला था कि पति ने झटके से उसका हाथ पकड़ लिया।
एक पल को दोनों की निगाहें मिलीं।

रौनक की आँखों में आँसू छलक आए।
वह फुसफुसाई –
“अलग हो गए मगर परवाह करने की आदत अब भी नहीं गई आपकी…”

पति ने कुछ नहीं कहा।
चुपचाप सामने देखने लगा।

कुछ क्षणों की चुप्पी के बाद रौनक धीरे से बोली –
“एक बात पूछूँ? दो साल हो गए अलग रहते हुए… मेरी याद आती थी क्या?”

पति ने गहरी सांस ली और कहा –
“अब बताने से क्या फायदा? अब तो सब खत्म हो चुका है। तलाक हो गया न…”

यह सुनकर रौनक फफक पड़ी।
उसकी रुलाई थम नहीं रही थी।
भीगी आवाज़ में बोली –
“दो सालों में मुझे एक भी रात वो नींद नहीं आई… जो आपके हाथ का तकिया बनाकर सोने से आती थी।”

यह सुनकर पति की आँखें भी नम हो गईं।

इसी बीच ऑटो बस अड्डे पर आकर रुका।
दोनों धीरे-धीरे नीचे उतरे।

जैसे ही रौनक ने ऑटो से पाँव बाहर रखा, पति ने उसका हाथ थाम लिया।
वह काँप गई… महीनों बाद यह स्पर्श उसकी कलाई पर महसूस हुआ था।

पति की आवाज़ गूंज उठी –
“चलो… अपने घर चलते हैं।”

रौनक ठिठकी और बोली –
“मगर… तलाक के कागज़ों का क्या होगा?”

पति मुस्कुराया और बोला –
“फाड़ देंगे।”

बस इतना सुनते ही रौनक दहाड़ मारकर उसके गले लग गई।
उनके आँसुओं ने मानो दो साल की दूरी मिटा दी।

पीछे-पीछे रिश्तेदार भी आ रहे थे।
उन्होंने यह दृश्य देखा, पर बिना कुछ कहे चुपचाप दूसरी बस में बैठकर चले गए।


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👉 सीख:

रिश्तों को कभी रिश्तेदारों पर मत छोड़ो।
अपस में बात करो, एक-दूसरे की तकलीफ समझो।
अपनी गलती मान लो।
क्योंकि प्यार और अपनापन हर झगड़े से बड़ा होता है। ❤️


📚 राजु कुमार चौधरी
✍️ लेखक | कवि | कहानीकार
📍 प्रसौनी, पर्सा, नेपाल

"मैं कहानियाँ नहीं लिखता, मैं आपको एक दूसरी दुनिया में खींच ले जाता हूँ।"

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कहानियाँ पढ़ने नहीं, जीने के लिए होती हैं — और मेरी कहानियाँ आपकी रूह को छू जाएंगी।
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