majnu ki mohabbat in Hindi Comedy stories by Deepak Bundela Arymoulik books and stories PDF | मजनू की मोहब्बत

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मजनू की मोहब्बत

❤️❤️मजनू की मोहब्बत❤️❤️

❤️ मजनू भोपाली का इश्क़नामा – भाग 1

टपरी की महफ़िल

शाम ढल चुकी थी। कॉलोनी के मोड़ पर बनी उस पुरानी चाय की टपरी से भाप उड़ाती हुई केतली, छनते हुए छनकती चाय की खुशबू और खटाखट होती गिलासों की आवाज़ें पूरे सबका दिल बहला रही थीं।

मैं रोज़ की तरह अपनी जगह पर आकर बैठा ही था कि सामने से आते दिखे—मजनू भोपाली। 55 साल की उमर, सफ़ेद बालों की दाढ़ी, आँखों में हमेशा चमक और चेहरे पर वो “आशिक़ाना मुस्कान” जो मोहल्ले की आधी औरतों को खटकती और आधे लड़कों को प्रेरित करती थी। उनका आना मतलब टपरी की शाम में हलचल। हर कोई जानता था—अब चाय सिर्फ पीने की चीज़ नहीं, बल्कि "महफ़िल" जमने वाली है।

मैं:-“मजनू भाई, पिछले कुछ दिनों से आपको देख रहा हूँ... चेहरे पर नयी चमक है, आँखों में नयी नमी है। मोहल्ले वाले कह रहे हैं कि आप फिर से किसी 'एकतरफा इश्क़' में पड़ गए हो। सच बताइए, कौन है वो मोहतरमा?”

मजनू भाई: (गहरी चुस्की लेते हुए)- "अरे भाई, इश्क़ तो वो रोग है जिसमें डॉक्टर भी फेल हो जाता हैं। और फिर मैं तो इस रोग का पुराना मरीज हूँ। देखो, मोहब्बत पूछकर नहीं की जाती, और उम्र देखकर तो बिलकुल भी नहीं।”

फिर अचानक उनकी जुबान से शेर निकला

"उम्र के जिस मोड़ पर सब ढूँढते हैं दवा,
और मैं वहां ढूँढता हूँ मोहब्बत की हवा ।”

टपरी पर बैठे लोग हँस पड़े, और सभी के पर चेहरे पर ताली जैसी मुस्कान लहर गयी।

मैं:- "पर भाई, ये हमेशा 'एकतरफा इश्क़’ ही क्यों? दोतरफा वाला कभी मिला ही नहीं क्या?”

मजनू भाई:- "अरे भाई, दो तरफा इश्क़ वैसा है जैसे coalition सरकार—हर वक्त समझौता, बहस और गिरने का डर।
एकतरफा इश्क़ वैसा है जैसे dictatorship—जो चाहो सोच लो, कोई विरोध नहीं। मोहब्बत का पूरा budget मैं अकेला उठाता हूँ।”और उन्होंने अगला शेर जड़ दिया—

"वो ना कहे तो भी उनकी हां सुन लेता हूँ,
मेरा इश्क़ तो खुद से ही सौदा करता हूँ।”

इतने में तीन-चार लड़के, जो टपरी पर अक्सर "मजनू लवगुरु" से सलाह लेने आते थे, वे भी पास खिसक आए।

लड़का 1:- "मजनू अंकल, मेरी वाली रोज़ इंस्टा पर गुलाब डालती है। तो क्या वो मुझे चाहती है?”

मजनू भाई:- "बेटा, इंस्टा पर गुलाब का मतलब मोहब्बत नहीं, data pack का इस्तेमाल है। असली मोहब्बत तब है जब वो तुम्हारे लिए data recharge करवा दे। समझें वरखुद्दार" इतना जवाब सुन कर लड़का मायुश हो जाता हैं और बाकी लोग हंसने लगते हैं.

लड़का 1:- "तो ठीक हैं न अब तेरा पूछ अंकल से....देखना तेरा भी यही हाल होगा.

लड़का 2:- "अंकल, मेरी गर्लफ्रेंड को जब भी फोन या SMS करो तो बार-बार कहती है कि वो busy है। आज तक बात ही नहीं हो पायी.

मजनू भाई:- बेटा, जो लड़की ऐसा बोले या SMS करें तो, समझ लो उसके दिल में vacancy नहीं है। भर्ती का अगला notification आने तक इंतज़ार करो।”

हुर्रे.... हां... हां... हां... सब हँसते हैं

मजनू:- लो इसी पर एक शेर सुनो...

"जब भी लड़की कॉल पर "busy' कहे तो मसला साफ़ है,
दिल का दरवाज़ा बंद, बाहर के बाकी लोग STOP है।”

टपरी में ठहाके गूंज उठे।

मैं:- “वाह मजनू भाई! आप तो मोहल्ले के UPI जैसे हो—हर आशिक़ का transaction यहीं settle होता है।”

मैं:- "कम से कम इतना तो बताइए, वो मोहतरमा कौन हैं? मोहल्ले वाली हैं या बाहर वाली हैं?”

मजनू भाई: (रहस्यमयी अंदाज़ में):- "इतना बता दूँ कि वो रोज़ पार्क में टहलने आती हैं।
उनके चलने का अंदाज़ देखो तो सुबह की धूप भी शर्मा जाए।”

मजनू का शेर
"वो चलें तो लगे बयार चलती है,
मैं देखूँ तो लगे बहार चलती है।”

मैं:- "मजनू भाई, मोहल्ले वाले कहते हैं 55 साल की उमर में ये सब शोभा नहीं देता।”

मजनू भाई:- "अरे, मोहल्ले वाले तो सब्ज़ी वाले से पाँच रुपये कम करने में शोभा ढूँढते हैं। उन्हें क्या पता, इश्क़ आदमी को जवान कर देता है।”

फिर उन्होंने राजनीति का ताना कसते हुए कहा— "देखो, राजनीति और मोहब्बत में कोई फर्क नहीं। राजनीति में नेता जनता से एकतरफा मोहब्बत करता है—वो वोट देती है, नेता बाद में भूल जाता है। इश्क़ में आशिक़ मोहतरमा से एकतरफा मोहब्बत करता है—वो मुस्कुरा देती है तो आशिक़ बावरा हो जाता है।”

और फिर एक शेर निकला—

"नेता और महबूबा में फ़र्क बस इतना है,
एक कुर्सी से खेलता है, दूसरी दिल से।”

तभी तीसरे लड़के ने अपनी मोहब्बत का हाल पेश किया:- "अंकल, मेरी गर्लफ्रेंड कहती तो बस यही कहती है कि "तुम बहुत अच्छे दोस्त हो', अब इसका क्या मतलब?”

मजनू भाई:- "बेटा, 'अच्छे दोस्त हो' इन हसीनाओ का वो वाक्य है जिसमें मोहब्बत का postmortem छुपा होता है।
मतलब अब तुम्हें सिर्फ राखी और birthday wish का ही ठेका मिलेगा इसलिए उसे छोड़ के कई और मोहब्बत की तलाश करो।”

फिर उन्होंने शेर से बात खत्म की—

आशिक का दिल जला के दिया बुझा दिया,
उसने आशिक़ को राखी का पता बता दिया।

शेर सुनते ही लड़कों ने सिर पकड़ लिया और बाकी लोग जोर से हँस पड़े लेकिन टपरी का माहौल थोड़ा गंभीर-सा हो गया।

तभी मैंने मजनू जी से पूछा:- "भाई, ये मोहब्बत आपके लिए आखिर है क्या? क्यों आप बार-बार इसी में पड़ते हो?”

मजनू भाई: (धीमी आवाज़ में):- "देखोमियां, इश्क़ वो इबादत है जिसमें खुदा को गवाह की तरह बुलाना नहीं पड़ता।
ये वो दरिया है जिसमें तैरना सीखो या न सीखो, डूबना तय है, और मैं डूबने से नहीं डरतता, तुम क्या जानो मियां-

"डूबकर ही मिलती है मोहब्बत की गहराई,
न उतरोगे इस दरिया में तो प्यासे ही रह जाओगेl लो कमबख्त अब चाय भी खतम हो गई" 

लेकिन मजनू जी का इश्क़ अभी भी उबाल पर था।

मैं:- भाई, मोहतरमा को अगर कभी पता चल गया तो?”

मजनू भाई:- "तो वो कहेंगी—'आप पागल हैं', और मैं कहूँगा— "हाँ, मोहब्बत में पागलपन ही असली मोहब्बत है।’”

फिर हँसते हुए शेर सुनाया—

"लोग कहते हैं पागल हूँ, मैं कहता हूँ आशिक़ हूं,
फर्क औरों से इतना है कि मैं इश्क़ में क्लासिक हूं।”

"चलो मिया अब भोत होगयी मोहब्बत की बातें अब मैं तो चला तुम्हारी भाभी जान फंफना रही होंगी घर वाली और बाहर वाली दोनों को मेंटेन करना पड़ता हैं"

और मजनू मियां अपना कुर्ता झड़ते हुए घर को चल दिए और मैं उन्हें जाते हुए देखते रह गया और सोचने लगा----मजनू भाई सिर्फ इंसान नहीं, बल्कि मोहब्बत की यूनिवर्सिटी हैं। जहाँ syllabus एकतरफा इश्क़ है, exam समाज का ताना है, और result वही—आशिक़ हमेशा पास, मोहतरमा हमेशा बेक़सूर।

क्रमशः-