एक रात के बाद
खिड़की से ठंडी हवा और बारिश की बूंदें अंदर आ रही थीं। बूंदों की नमी जब आरोही के चेहरे को छूकर गुजरती, तो जैसे उसके मन की उलझनों को और गहरा कर देतीं। वह गुमसुम खड़ी थी, मानो बारिश की हर बूंद उसके अंदर के सवालों को और कुरेद रही हो।
“आरोही, तुम्हें सर्दी लग जाएगी।”पीछे से माँ की आवाज़ आई। आवाज़ इतनी परिचित और कोमल थी कि आरोही की सोचों का सिलसिला टूट गया।
“माँ, मैं बस बारिश देख रही थी,” आरोही ने धीमे स्वर में कहा।
इतने में उसका फोन बज उठा। स्क्रीन पर एक नाम फ्लैश हो रहा था — आर्यन।आरोही ने फोन की तरफ देखा और चौंक गई। माँ ने ध्यान से उसे देखा और पूछा —“फोन क्यों नहीं उठा रही हो?”
आरोही कुछ बोल नहीं पाई। उसकी आँखों में अनकही बातें थी। माँ के सवाल का जवाब जैसे उसके पास था ही नहीं।
यादों की बौछार
फोन लगातार बजता रहा और आखिरकार रुक गया। आरोही ने खिड़की से बाहर देखा — बारिश और तेज हो गई थी। उसे आर्यन के साथ बिताए हुए पल याद आ गए।
आर्यन उसका कॉलेज का सबसे अच्छा दोस्त था। हंसी-मजाक, पढ़ाई, प्रोजेक्ट्स — हर जगह आर्यन उसका सहारा था। धीरे-धीरे यह दोस्ती एक ऐसे रिश्ते में बदल गई, जिसके बारे में दोनों कभी खुलकर नहीं बोले थे, लेकिन दिल जानता था कि इसमें दोस्ती से कहीं ज्यादा था।
लेकिन कुछ महीनों पहले आर्यन ने बिना कुछ कहे उससे दूरी बना ली। कॉल्स और मैसेज का जवाब देना बंद कर दिया। आरोही ने बहुत कोशिश की, पर कोई कारण समझ नहीं आया।
आज अचानक, इस रात, जब बारिश उसे पुराने दिनों की याद दिला रही थी, उसी समय आर्यन का फोन आना… यह संयोग था या किस्मत का इशारा?माँ की चिंता
“आरोही, सब ठीक है ना?” माँ ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा।
“हाँ माँ, सब ठीक है।” उसने बनावटी मुस्कान दी।
माँ ने कुछ देर तक उसकी आँखों में झाँका, जैसे वह उसके मन की गहराई पढ़ लेना चाहती हों। लेकिन माँ जानती थीं, कुछ बातें समय और भरोसे से ही खुलती हैं।दूसरा कॉल
कुछ ही देर में फिर से फोन बजा। इस बार आरोही ने काँपते हाथों से फोन उठाया।
“हैलो…” उसकी आवाज़ बहुत धीमी थी।
“आरोही…” फोन के उस पार से आर्यन की आवाज़ आई।वह आवाज़ सुनते ही आरोही की आँखें भर आईं।
“आर्यन… अब याद आई मुझे?” उसके शब्दों में कसक थी।
“आरोही, मैं सब समझा दूँगा… बस एक बार मिल लो।”
उसके शब्दों में एक सच्चाई और उतावलापन था। आरोही चुप रही। दिल कह रहा था कि मिलना चाहिए, लेकिन दिमाग सवाल पूछ रहा था — क्यों अचानक अब? इतने दिनों की चुप्पी क्यों?वह रात
माँ रसोई में चली गईं थीं। घर में बस बारिश और फोन की गूंज थी।
आर्यन ने फिर कहा, “आरोही, मुझे अपनी गलती का अहसास है। मैंने जो किया, उसके पीछे मजबूरी थी। लेकिन आज मैं सच बताना चाहता हूँ।”
आरोही ने धीमे से पूछा, “कौन-सा सच?”
“मुझे नौकरी के लिए शहर से बाहर जाना पड़ा। वहाँ इतनी परेशानी थी कि तुम्हें कुछ भी बताना सही नहीं लगा। मैंने सोचा था कि सब संभालकर तुम्हारे पास वापस आऊँगा। पर इस दौरान मैंने तुम्हें बहुत चोट पहुँचाई।”
आरोही की आँखों से आँसू निकल पड़े। उसने खिड़की के बाहर देखा — आसमान मानो उसके मन की तरह ही रो रहा था।निर्णय का पल
“आरोही, मैं कल सुबह तुम्हारे घर आऊँगा। अगर तुम चाहो तो बात कर लेंगे। अगर तुमने मना कर दिया, तो मैं हमेशा के लिए चला जाऊँगा।” आर्यन की आवाज़ भारी थी।
आरोही ने फोन काट दिया।
उस रात वह सो नहीं पाई। मन में उथल-पुथल थी। कभी यादें मुस्कुराहट लातीं, तो कभी चोट आँसू बन जाती।अगली सुबह
सुबह का सूरज निकला। बारिश थम चुकी थी। लेकिन आरोही के दिल में तूफ़ान अभी भी था। दरवाजे की घंटी बजी। माँ ने दरवाजा खोला। बाहर आर्यन खड़ा था, आँखों में सच्चाई और चेहरे पर पछतावा।
आरोही दरवाजे तक आई। दोनों की नज़रें मिलीं। शब्दों की ज़रूरत नहीं थी। उस नज़र में सवाल भी थे और जवाब भी।
माँ चुपचाप मुस्कुराईं और अंदर चली गईं।एक रात के बाद…
कभी-कभी ज़िंदगी बदलने के लिए बस एक रात की बारिश काफी होती है। वह रात जिसने आरोही को उलझन और दर्द में डुबोया था, वही रात उसे सच्चाई और उम्मीद के करीब भी ले आई।
आरोही ने गहरी सांस ली और कहा,“आर्यन, चलो बात करते हैं।”
उसके शब्दों में गुस्से की जगह सुकून था।
और इस तरह, एक रात के बाद, दो दिलों के बीच जमा हुआ सारा अंधेरा धीरे-धीरे रोशनी में बदलने लगा।